‘क्या अब सरकार सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रविरोधी कहेगी?’; राहुल गांधी
#मीडिया पर नियंत्रण इसलिए ज़रूरी #मीडिया को विज्ञापन की रिश्वत #सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थान को ही ख़रीद लें#सेंशरशिप के नए नए तरीके आ गए #हमीं श्रेष्ठ विकल्प #सत्ता से बाहर भी निकल सकते हैं- शिवसेना #www.himalayauk.org (Newsportal)
नोटबंदी के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शनिवार को एनडीए सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि क्या अब वह सुप्रीम कोर्ट को ‘राष्ट्रविरोधी’ कहेगी.
उन्होंने सरकार से सवाल पूछते हुए ट्विटर पर लिखा, ‘क्या अब सरकार सुप्रीम कोर्ट को राष्ट्रविरोधी कहेगी?’ राहुल ने ट्वीट के साथ एक खबर भी टैग की, जिसके अनुसार कलकत्ता हाईकोर्ट ने सरकार से कहा है कि उसने कदम उठाने से पहले पूर्व तैयारी नहीं की, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इससे आगे संकट की स्थिति पैदा हो सकती है.
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने यह टिप्पणी ऐसे समय में की है, जब सरकार 500 और 1,000 रुपये के पुराने नोटों का चलन बंद करने के अपने फैसले पर सवाल कर रहे कांग्रेस नेताओं को ‘राष्ट्रविरोधी’ बता रही है.
पिछले साल न्यूयॉर्क टाइम्स में एक लेख छपा था. इकनोमिक्स की प्रोफेसर सर्जेई गुरीव और राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर डेनियल त्रेसमन का यह लेख कहता है कि आजकल नए प्रकार के अथारीटेरियन सरकारों का उदय हो चुका है. ये सरकारें विपक्ष को खत्म कर देती हैं. थोड़ा बचा कर रखती हैं ताकि लोकतंत्र का भ्रम बना रहे. इन सरकारों ने ग्लोबल मीडिया और आईटी युग के इस्तेमाल से विपक्ष का गला घोंट दिया है. अति प्रचार, दुष्प्रचार यानी प्रोपेगैंडा का खूब सहारा लिया जाता है. सेंशरशिप के नए नए तरीके आ गए हैं. सूचना संबंधी तरकीबों का इस्तमाल होता है ताकि रेटिंग बढ़ सके. नागरिकों को अहसास दिलाया जाता रहता है, आपके पास दूसरा विकल्प नहीं है. हमीं श्रेष्ठ विकल्प हैं. इस लेख में इन शासकों को नया ऑटोक्रेट कहा गया है जो मीडिया को विज्ञापन की रिश्वत देते हैं. मीडिया पर केस करने की धमकी देते हैं. नए नए निवेशकों को उकसाते हैं कि सरकार की आलोचना करने वाले मीडिया संस्थान को ही ख़रीद लें. मीडिया पर नियंत्रण इसलिए ज़रूरी है कि अब सब कुछ धारणा है. आपको लगना चाहिए कि हां ये हो रहा है. लगातार विज्ञापन और भाषण यकीन दिलाते हैं कि हो रहा है. ज़मीन पर भले न हो रहा हो.
##सत्ता से बाहर भी निकल सकते हैं- शिवसेना
जिला बैंकों पर लागू नोटबंदी के मुद्दे पर शिवसेना ने आक्रमक रुख़ इख़्तियार कर लिया है. पार्टी के लोकसभा में नेता आनंदराव अडसूल ने कहा है कि इस मुद्दे पर उनकी बात सुनी नहीं गई तो वे सत्ता से बाहर भी निकल सकते हैं. अडसूल ने मुंबई में संवाददाताओं से बात करते हुए यह भी बताया कि शिवसेना के पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे से इस मुद्दे पर उनकी बात हो चुकी है और इस मुद्दे पर उद्धव ठाकरे की भी यही भूमिका है. सोमवार से शुरू होनेवाले संसदीय सत्र में शिवसेना इस मुद्दे पर सरकार को घेरने का मन बना चुकी है.केंद्र सरकार ने भारत के ज़िला सहकारी बैंकों को पुराने नोट वसूलने पर रोक लगा दी है. इसका सबसे बड़ा असर महाराष्ट्र में दिख रहा है. देश के जिला सहकारी बैंकों में से सर्वाधिक 31 केवल महाराष्ट्र में हैं. इनके 3 करोड़ के आसपास ग्राहक हैं और करीब 60 हजार करोड़ रुपये की इन बैंकों में FDs जमा हैं.
शुरुआती 4 दिनों में जब ज़िला सहकारी बैंकों को पुराने नोटों को स्वीकारने की अनुमति थी तब केवल महाराष्ट्र में ही 3200 करोड़ रुपये बैंकों में जमा हुए थे. जमा हुई रकम में बैंकों के पुराने कर्जे का बकाया भारी मात्रा में था.
महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक राज्य के सभी ज़िला सहकारी बैंकों की अपेक्स बैंक है. इस बैंक के एमडी प्रमोद कर्नाड ने भी ज़िला बैंकों के लिए लागू नोटबंदी को चिंताजनक बताया है. उनका तर्क है कि इस पाबंदी का प्रतिकूल असर ग्रामीण क्षेत्र पर और उसमें भी ख़ासकर किसान के रोजमर्रा के कामों पर होगा. क्योंकि ज़िला सहकारी बैंकों का नेटवर्क आज सुदूर ग्रामीण इलाकों में भी पाया जाता है.
कर्नाड ने बताया कि इस पाबन्दी के खिलाफ़ अगर ज़िला बैंकों ने अपना काम बंद किया तो किसान के कर्जे की वसूली पर भी बुरा असर हो सकता है. राज्य में 7 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा किसान कर्जे दिए जा चुके हैं और इस साल के बेहतर मॉनसून की वजह से कर्जे के अच्छी वसूली की उम्मीद है.