हर हफ्ते एक दिन जनता से मिलेंगे राहुल गांधी
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह तय किया है कि वो हर हफ्ते एक दिन जनता से मिलेंगे, वो भी कांग्रेस मुख्यालय 24 अकबर रोड पर. साथ ही दो दिन वहीं पर वो अपने दफ्तर में रहेंगे और पार्टी नेताओं के लिए उपल्बध रहेंगे. कांग्रेस अध्यक्ष की कमान संभालने के बाद से ही राहुल गांधी एक्शन में दिख रहे हैं. ताजा जानकारी के मुताबिक राहुल गांधी जल्द ही हफ्ते में दो दिन मंगलवार और शुक्रवार को पार्टी मुख्यालय 24 अकबर रोड पर बैठने का सिलसिला शुरू करने वाले हैं. इसके अलावा शनिवार को दफ्तर के ही लॉन राहुल आम लोगों और कार्यकर्ताओं से मिलेंगे.
राहुल के इस कदम को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि ये स्वागत योग्य है. राहुल के करीबी सूत्र के मुताबिक इस प्रस्ताव को आखिरी रूप देने पर विचार चल रहा है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक ये कार्यक्रम नियमित रहेगा हालांकि राहुल गांधी की व्यस्तता के हिसाब से इसमें फेरबदल भी हो सकता है.
जानकारों के मुताबिक इंदिरा गांधी और राजीव गांधी भी कांग्रेस दफ्तर में आम कार्यकर्ताओं से मुलाकात करते थे. जानकारी के मुताबिक सोनिया गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद भी ऐसा कार्यक्रम बना था लेकिन चल नही पाया.
सोनिया गांधी अपने आवास दस जनपथ जो कांग्रेस के मुख्यालय के सटा हुआ है में ही नेताओं, कार्यकर्ताओं ने मिलती रहीं हैं. राहुल गांधी का निवास 12 तुगलक लेन है. ये जगह कांग्रेस दफ्तर से लगभग 2 किलोमीटर है. राहुल ज्यादातर अपने घर पर ही लोगों से मिलते रहे हैं.
इसके अलावा पार्टी से जुड़ी बैठकों के लिए 15 गुरुद्वारा रकाबगंज रोड स्थित कांग्रेस वॉर रूम का इस्तेमाल होता है. लेकिन चूंकि अब अध्यक्ष बनने की वजह मुलाकातियों की संख्या बढ़ेगी, शायद इसी वजह से राहुल ने हफ्ते के 2 दिन पार्टी दफ्तर पर बैठने का फैसला किया है.
राहुल गांधी के पार्टी दफ्तर में बैठने से जहां एक तरफ नेताओं और कार्यकर्ताओं को उनसे मिलने में सहूलियत हो जाएगी. वहीं दूसरी तरफ उनकी सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर कांग्रेस मुख्यालय के सामान्य कामकाज पर असर भी लड़ सकता है. इन चीजों में कैसे संतुलन बिठाया जाएगा ये तो सिलसिला शुरू होने के बाद ही पता चलेगा. उससे भी बड़ा सवाल ये है कि ये कब तक जारी रहेगा?
कांग्रेस नेतृत्व पर हमेशा से यह आरोप लगते रहे हैं कि वो जनता से कटते जा रहे हैं और वो केवल एक ही तरह के नेताओं से मिलते रहते हैं और उन्हीं से फीडबैक लेते रहते हैं. जनता से कटे होने के आरोपों के बाद ही लगता है यह फैसला किया गया है. गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी एक नए अवतार में नजर आ रहे हैं. अब पार्टी पर उनकी पकड़ मजबूत होती जा रही है. जनता की बात तो छोड़ें, कई कांग्रेसी नेताओं की हमेशा से यह शिकायत रही है कि राहुल गांधी के लिए उन्होंने एक हफ्ते इंतजार किया मगर वक्त नहीं मिला. कुछ इसी तरह की शिकायतों और तमाम मत विरोधों के बाद हिमंत विश्वय शर्मा असम में कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में चले गए और वहां बीजेपी की सरकार बनवाने में अहम भूमिका निभाई. इस बदलाव से जहां राहुल को यह जानने का मौका मिलेगा कि हरेक राज्य की समस्या क्या है और इस बारे में वहां के स्थानीय नेता क्या चाहते हैं. इससे राहुल गांधी को कम से कम ये तो पता चलेगा कि किन राज्यों में संगठन के लिए क्या किया जाना चाहिए. कांग्रेस के साथ दिक्कत यह है कि हरेक राज्य में पार्टी में कई गुट हैं जो एक दूसरे पर हावी होने की कोशिश करते रहते हैं. इनमें से हरेक गुट की बात राहुल गांधी तक नहीं पहुंच पाती है जिससे आखिरकार पार्टी को ही नुकसान होता है. शायद अब जब राहुल गांधी पार्टी दफ्तर में रहेंगे तब हो सकता कि हरेक राज्य के नेताओं से उनकी मुलाकात हो और वो समस्याओं को सही ढंग से समझ सकें. कांग्रेस अध्यक्ष को भी पता है कि पार्टी अभी बुरे दौर से गुजर रही है. लोकसभा की उसके पास इतनी कम सीटें हैं कि उसे मुख्य विपक्षी दल का भी दर्जा नहीं दिया गया है. ऐसे में यदि पार्टी में संजीवनी फूंकनी है तो वो संजीवनी जनता ही होगी. तो फिर जनता के पास ही पार्टी को ले जाया जाए, बजाए इसके कि जनता पार्टी के पास आए.
सोनिया गांधी के पास ये समस्या नहीं थी क्योंकि उस वक्त पार्टी सत्ता में थी और जब पार्टी सत्ता में होती है तो कार्यकर्ताओं का मनोबल वैसे ही ऊंचा रहता है क्योंकि सरकार की वजह से कार्यकर्ताओं के काम होते रहते हैं चाहे वो ठेके से लेकर ट्रांसफर पोस्टिंग की पैरवी ही क्यों न हो. मगर सत्ता न रहने के बाद कार्यकर्ताओं के मनोबल पर असर पड़ता है. तब उनके मनोबल को बनाए रखने के लिए उनसे मिलना, उनकी बात सुनना जरूरी हो जाता है.
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