राजनीति में वक्त बदलते देर नहीं लगती
हिमालयायूके न्यूज पोर्टल ब्यूरो
राजनीति में वक्त बदलते देर नहीं लगती #आने वाले दिन बदल भी सकते हैं. #भारत में कोई भी लंबे समय तक सत्ता में नहीं रह सकता है# राहुल गॉधी पर व्यग्य कसे जाते है, उनकी फोटो को लेकर मजाक बनाया जाता है, राहुल गॉधी को पप्पू कह कर मजाक बनाया जा रहा है- पर राजनीति में वक्त बदलते देर नही लगती- चालाक व्यक्ति की अपेक्षा आम जनता सीधे व्यक्ति को लाइक कर सकती है-
कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी राजनीतिक विश्लेषकों के लिए पंचिंग बैग सरीखे हैं. राजनीतिक पंडितों के लिए सबसे आसान काम है, राहुल गांधी के बयानों को लेकर उनकी आलोचना करना. हालांकि ये भी उतना ही सच है कि राहुल गांधी जाने अनजाने उन्हें ऐसे मौके दे जाते हैं. लेकिन कई बार लगता है कि राहुल गांधी के साथ ज्यादती हो रही है. और ये ज्यादती इसलिए होती है कि कहीं न कहीं हमने मान लिया है कि राजनेताओं का वाकपटु और चालाक होना उनकी पहली जरूरत है.
नेहरू-इंदिरा की जिस राजनीतिक विरासत के नाम पर कांग्रेस वोट मांगती आई है, वो बदले दौर में कांग्रेस के लिए कई बार उल्टी पड़ जाती है. लेकिन क्या इससे डर के कांग्रेस को अपनी राजनीतिक पूंजी एक किनारे रख देनी चाहिए?
राहुल गांधी क्यों न बार-बार इंदिरा नेहरू के नामों का इस्तेमाल करें? बर्कले के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में भी भाषण के दौरान राहुल गांधी ने कहा कि मेरे नाना ने भी यहां पर भाषण दिया था, आपने मुझे भी बुलाया, उसके लिए थैंक्यू. ऐसा कहके राहुल अपनी ऊंची राजनीतिक विरासत का प्रदर्शन करते हैं तो इसमें गलत क्या है? और उन्हें ऐसा क्यों नहीं करना चाहिए?
राजनीति में वक्त बदलते देर नहीं लगती- राजनीति में वक्त एक सा नहीं रहता और ये बीजेपी से ज्यादा अच्छे तरीके से कौन समझ सकती है. राहुल जब कहते हैं कि कांग्रेस पार्टी अभी बुरे दौर से गुजर रही है तो वो इस बात को समझ कर ही बोलते हैं. उन्होंने कहा कि भारत में कोई भी लंबे समय तक सत्ता में नहीं रह सकता है. तो वो आने वाली संभावना को भी देख रहे होते हैं. पिछले तीन साल के मोदी सरकार के कार्यकाल से सबक लेकर उन्होंने भी कुछ रणनीतियां बनाई होंगी.
राहुल गांधी कहते हैं कि कांग्रेस बीजेपी और RSS की तरह नहीं है, मेरा काम लोगों को सुनना है, उसके बाद फैसला लेने का है. मैं किसी और की तरह खड़ा होकर नहीं बोलता कि देखिए मैं ये कर दूंगा. बीजेपी ने लोगों से बात करना बंद कर दिया है. नरेगा, जीएसटी हमारा प्रोग्राम है, और अब वो उस पर ही काम कर रहा है. विपक्ष के नेता के बतौर राहुल गांधी का ये सरकार पर सटीक हमला है.
राहुल गांधी के राजनीतिक तेवर बदले हैं. शायद इसका कांग्रेस को तुरंत फायदा न मिले. लेकिन जिस तेवर के साथ राहुल गांधी बर्कले में दिखे हैं वो बरकरार रहती है तो आने वाले दिन बदल भी सकते हैं.
मंगलवार को बर्कले के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी इंडिया एट 70 विषय पर अपने विचार रख रहे थे. उन्होंने बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी पर सधा हुआ राजनीतिक हमला किया. राहुल गांधी ने कहा कि ‘मैं विपक्ष का नेता हूं लेकिन मिस्टर मोदी मेरे भी प्रधानमंत्री हैं. उनके पास कुछ खास काबिलियत है. वो एक अच्छे कम्यूनिकेटर हैं, वो मेरे से भी अच्छे वक्ता हैं और वो अच्छी तरह जानते हैं कि एक भीड़ के तीन और चार ग्रुप्स को किस तरह से मैसेज देना है. लेकिन वो बीजेपी के नेताओं की भी नहीं सुनते हैं.’ राहुल गांधी ने साफगोई से ये बात कही है. इस बात में कोई शक नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषण देने की कला के सामने वो कहीं नहीं ठहरते हैं. लेकिन अगर राहुल गांधी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं तो ये भी अपनेआप में बड़ी बात है. हालांकि पीएम मोदी को अच्छे वक्ता बताते हुए वो तंज भी कर जाते हैं कि पीएम मोदी बीजेपी नेताओं की भी नहीं सुनते.
राहुल गांधी ने बर्कले के कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में कई बातें कहीं. कुछ विशुद्ध राजनीतिक हमले के बतौर लिए जा सकते हैं. विपक्ष का नेता होने के नाते बीजेपी और मोदी सरकार पर हमले करना लाजिमी है. लेकिन कुछ मसलों पर सार्वजनिक मान्यता वाली बातें रखकर उन्होंने अच्छा संदेश देने की कोशिश भी की है.
राहुल गांधी के ऐसे बयान आमतौर पर कम ही सुनने में आते हैं. शायद इसलिए अक्सर वो राजनीतिक विश्लेषकों के निशाने पर होते हैं. ज्यादती तब होती है जब कई बार राहुल गांधी की गंभीर और संवेदनशील बातों को भी उतनी तवज्जो नहीं मिलती.
बर्कले में राहुल गांधी का नजरिया उनके पिछले भाषणों की अपेक्षा ज्यादा साफ और स्पष्ट दिखता है. वो एक कई ईमानदार स्वीकारोक्ति करते दिखते हैं. उन्होंने कहा कि ‘2012 में कांग्रेस पार्टी में अहंकार आ गया था. हमने लोगों से बातचीत बंद कर दी थी. अब नए नजरिए के साथ पार्टी को मजबूती देकर आगे बढ़ने का वक्त है.’
ये बात कही जा सकती है कि सिर्फ स्वीकारोक्ति से क्या होता है? क्या कांग्रेस पार्टी ने इसके बाद भी सबक ले पाई? क्या राज्य विधानसभा के चुनावों में इससे सबक लेते हुए रणनीति बनाई गई? ये सवाल वाजिब हैं. लेकिन जिस बदले माहौल में बीजेपी 2 से 116 होते हुए 282 सीटों और कांग्रेस 206 से 44 सीटों पर पहुंची है, इसे बदलने में वक्त तो चाहिए.
कांग्रेस में राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा सकते हैं और वो उठाए भी जाते रहे हैं. बीजेपी मौके बेमौके कांग्रेस में चली आ रही राजनीतिक विरासत संभालने की परंपरा पर तंज कसती रही है. कांग्रेस के लिए इसका माकूल जवाब देना मुश्किल होता है लेकिन फिर भी बर्कले में दिए अपने भाषण में राहुल गांधी ने अपना बचाव करने की कोशिश की.
राहुल गांधी ने कहा कि वो वही कर रहे हैं जिसकी भारत में परंपरा है. विरासत के नाम पर सवाल सिर्फ उन्हीं से क्यों पूछा जाए? राहुल ने कहा कि ‘परिवारवाद पर हमारी पार्टी पर निशाना मत साधें, हमारा देश इसी तरह काम करता है. अखिलेश यादव, एमके स्टालिन, अभिषेक बच्चन कई तरह के उदाहरण हैं. इसमें मैं कुछ नहीं कर सकता हूं. मायने ये रखता है कि क्या उस व्यक्ति में क्षमता है या नहीं.’
इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर सबसे ज्यादा सवाल उठाए जाते हैं. लेकिन सवाल ये भी है कि कांग्रेस के पास इसका विकल्प ही क्या है? कांग्रेस के भीतर से ही जब बदलाव की मांग नहीं उठती तो राहुल के नेतृत्व पर सवाल उठाकर भी क्या किया जा सकता है. राहुल गांधी को उनके हर बयान पर आड़े हाथों लेने वाले दरअसल उनके साथ नाइंसाफी करते हैं. राहुल गलतियां करते हैं. बर्कले में भाषण के दौरान भी उन्होंने गलती की. उन्होंने लोकसभा में सदस्यों की संख्या गलती से 546 बता डाली. लेकिन ऐसी गलती कौन नहीं करता. रैलियों और सभाओं में माहौल बनाने के लिए इससे भी बड़ी गलतियां हुई हैं, कौन नहीं जानता? लेकिन खिंचाई राहुल गांधी की होती है.
राहुल गांधी मानते भी हैं कि उनसे गलतियां होती हैं और वो अपनी गलतियों पर माफी भी मांगते हैं. एक ऐसे ही मौके पर संसद में भाषण के दौरान उन्होंने यूपीए सरकार की योजना को मनरेगा के बजाए नरेगा कहने लगे. बिना वक्त गंवाए विपक्ष ने उनकी गलति पर उन्हें टोकना शुरू कर दिया, राहुल ने भी बिना वक्त गंवाए माफी भी मांगी और ये भी कहा कि उनसे ऐसी गलती हो जाती है. और वो अपनी गलती मानते हैं, जबकि कुछ लोग तो अपनी गलती तक मानने को तैयार नहीं होते.
बर्कले में राहुल गांधी का भाषण सुनने के बाद शायद उनके आलोचकों को भी लगे कि कहीं वो राहुल गांधी के साथ कुछ ज्यादा ही ज्यादती नहीं कर रहे. या फिर ये भी कह सकते हैं कि बर्कले एक कड़ी है. पिछले कुछ वक्त से राहुल गांधी के बयानों में संजीदगी और गंभीरता दिखती है. वो विपक्ष के नेता के तौर पर सधे हुए हमले करते हैं. किसी सवाल पर अटकते नहीं और उनकी राजनीतिक समझ पर सवाल उठाने वालों को कई मौकों पर वाजिब जवाब देते दिखते हैं.
राहुल गांधी ने कहा कि ‘बीजेपी के कुछ लोग बस कंप्यूटर पर बैठकर मेरे खिलाफ बातें करते हैं, वो कहते हैं मैं स्टूपिड हूं, मैं ऐसा हूं. उनका एंजेडा ऐसा ही है.’ सोशल मीडिया पर एंजेडा चलाकर राजनीतिक छवि को नुकसान पहुंचाने की बात गलत नहीं है. हालांकि ये सभी पार्टियां करती हैं. लेकिन इस बात में किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि इससे जितना नुकसान राहुल गांधी को पहुंचा है, उतना किसी और को नहीं.
www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal & Daily Newspaper) publish at Dehradun & Haridwar; CS JOSHI= EDITOR MOB. 9412932030 MAIL; himalayauk@gmail.com
Availble; FB, Twitter & whatsup groups & All Social Media & e-edition