राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर एक तीर से कई निशाने साधे – कांग्रेस में मठाधीश नेताओ को पैदल किया
कांग्रेस और राहुल गांधी से जुड़ी आज की तीन अहम खबरें. पहली खबर राहुल गांधी के इस्तीफे से जुड़ी है. दूसरी खबर में बात करेंगे राहुल गांधी की मुंबई कोर्ट में पेशी की. वहीं बात करेंगे राहुल गांधी के सोनिया गांधी के साथ कल अमेरिका जाने पर बने सस्पेंस की. इस बीच अध्यक्ष पद से इस्तीफे के फैसले पर राहुल गांधी को बहन प्रियंका का साथ मिला है. राहुल गांधी के इस्तीफे के बाद कांग्रेस में नए अध्यक्ष की खोज शुरू हो गई है.
कांग्रेस में कई ऐसे मठाधीश नेता है, जिनके चलते राहुल गांधी अपने फैसलों को पार्टी में लागू नहीं कर पा रहे थे. अब राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. राहुल ने इशारों ही इशारों में कहा है कि कई मौक़ों पर वह अपनी पार्टी में अलग-थलग पड़ते नज़र आए। राहुल ने कहा, ‘हमने एक मज़बूत और गरिमापूर्ण चुनाव लड़ा। हमारा अभियान भारत के सभी लोगों, धर्मों और समुदायों के लिए भाईचारे, सहिष्णुता और सम्मान में से एक था। मैंने व्यक्तिगत रूप से प्रधानमंत्री, आरएसएस और उन सभी संस्थानों से लड़ाई लड़ी है जिन पर उन्होंने क़ब्ज़ा कर रखा है। मैंने संघर्ष किया क्योंकि मैं भारत से प्यार करता हूँ। भारत ने जिन आदर्शों का निर्माण किया था उनकी रक्षा के लिए मैंने संघर्ष किया। कई बार मैं पूरी तरह अकेला खड़ा था और मुझे इस पर गर्व है।’
राहुल के मान जाने की आस लगाए बैठे नेताओं के हाथ-पाँव फूल गए हैं। राहुल ने उन नेताओं को चुनौती पेश कर दी है जो उन्हें पीठ पीछे, नौसखिया, अनुभवहीन, राजनीतिक रूप से अपरिपक्व बताते थे। दो साल पहले हुए पंजाब के विधानसभा चुनाव के दौरान यह चर्चा आम थी कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने राहुल गाँधी को पंजाब के मामले में दख़लंदाज़ी न करने का अनुरोध किया था। इसी तरह कई और बड़े नेता भी राहुल का फ़ैसला मानने में आनाकानी करते थे। इस्तीफ़ा देकर राहुल गाँधी ने अपनी टाँग खिंचाई करने वाले नेताओं के सामने उनसे बेहतर तरीक़े से पार्टी चलाने की चुनौती पेश की है।
हिमालयायूके ने आरजी के इस्तीफे को दूरगामी कदम और साहसिक कदम बताया है,
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. इस्तीफे का पत्र सार्वजनिक कर आगे की सारी संभावनाओं को राहुल ने खत्म कर दिया. साथ ही कांग्रेस को ‘गांधी परिवार’ से मुक्त रखने की दिशा में भी कदम बढ़ा दिया है. इसी के मद्देनजर राहुल गांधी ने एक लकीर भी खींच दी है कि कांग्रेस का नया अध्यक्ष ‘गांधी परिवार’ के बाहर का ही होगा.
वही दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को जमानत मिल गई है. मुंबई के शिवड़ी कोर्ट में पेशी के दौरान राहुल ने कहा कि मैं बेकसूर हूं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने राहुल को 15 हजार के बेल बांड पर अग्रिम जमानत दे दी. कांग्रेस के पूर्व सांसद एकनाथ गायकवाड़ ने राहुल के बेल बांड को भरा. कोर्ट से जमानत मिलने के बाद राहुल गांधी ने इशारों-इशारों में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधा. राहुल गांधी ने कहा कि उन पर लगातार हमले हो रहे हैं, लेकिन वो हमलों का सामना करते रहेंगे. ये विचारधारा की है, और ये लड़ाई आगे भी जारी रहेगी. साथ ही उन्होंने कहा कि वो गरीबों, किसानों और मजदूरों के साथ खड़े हैं. कोर्ट से बाहर आने पर राहुल गांधी ने पत्रकारों से बातचीत में कहा, “मैंने अपनी बात कोर्ट में कह दी है. विचारधारा की लड़ाई है. मैं गरीबों, किसानों और मजदूरों के साथ खड़ा हूं. आक्रमण हो रहा है और मजा आ रहा है. मैं 10 गुना ताकत से लड़ाई जारी रखूंगा.’ पार्टी के मुंबई इकाई के अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने कहा कि मुंबई में वह केवल सेवरी मेट्रोपोलिटन अदालत में सुनवाई में शामिल होने के बाद दिल्ली लौट जाएंगे. राहुल गांधी गुरुवार को आरएसएस के एक कार्यकर्ता द्वारा उन पर दायर मानहानि के एक मामले में मुंबई में एक अदालत में पेश हुए. एक आरएसएस कार्यकर्ता ध्रुतिमन जोशी ने राहुल गांधी पर बेंगलुरु की पत्रकार गौरी लंकेश की 2017 में हुई हत्या का संबंध आरएसएस से जोड़ने का आरोप लगाते हुए मानहानि का मामला दायर किया था.
अध्यक्ष पद के लिए पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह, एके एंटनी, मोतीलाल वोरा, डॉ. कर्ण सिंह, मल्लिकार्जुन खड़गे, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, ग़ुलाम नबी आज़ाद, तरुण गोगोई, वीरप्पा मोईली, ओमन चांडी, सुशील कुमार शिंदे से लेकर मीरा कुमार तक के नाम की चर्चा है। इनके अलावा कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के नामों की भी अध्यक्ष बनने के लिए चर्चा है। नया अध्यक्ष गाँधी-नेहरू परिवार से नहीं होगा लेकिन उसे परिवार का आशीर्वाद ज़रूर प्राप्त होगा।पिछले एक महीने में कांग्रेस ख़ेमों से अध्यक्ष पद के लिए कई फ़ॉर्मूलों का ख़बरें आई हैं और कई नाम बताए गए हैं। इनके मुताबिक़, कांग्रेस का नया अध्यक्ष पिछड़े या दलित वर्ग से होगा। अगर पार्टी पीएम मोदी के पिछड़े वर्ग की काट के लिए पिछड़े वर्ग का कार्ड खेलती है तो इस सूरत में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का नाम तय माना जा रहा है। क़रीब दो हफ़्ते पहले कांग्रेस के सूत्रों ने अशोक गहलोत का नाम अध्यक्ष पद के लिए तय होने की पुख़्ता ख़बर दी थी। लेकिन बाद में सुशील कुमार शिंदे के नाम पर मोहर लगने को पुख़्ता ख़बर बताया गया। इसके पीछे तर्क दिया गया कि पार्टी अपने पुराने ब्राह्मण, दलित और मुसलिम समुदाय को फिर से हासिल करने के लिए दलित कार्ड खेलना चाहती है। लेकिन अब इस पर भी संदेह जताया जा रहा है।
शिकायतकर्ता ध्रुतिमन जोशी ने अपनी याचिका में कहा कि लंकेश की हत्या के मुश्किल से 24 घंटों के बाद ही राहुल गांधी ने हत्या के लिए आरएसएस और उसकी विचारधारा को जिम्मेदार ठहरा दिया था. बता दें कि महाराष्ट्र में राहुल गांधी के खिलाफ किसी आरएसएस कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई यह दूसरी याचिका है. राहुल गांधी केरल के वायनाड से लोकसभा सांसद हैं.
इससे पहले 2014 में, एक स्थानीय कार्यकर्ता राजेश कुंते ने महात्मा गांधी की हत्या के लिए कथित रूप से आरएसएस पर आरोप लगाने के लिए राहुल के खिलाफ याचिका दायर की थी. वह मामला ठाणे में भिवंडी अदालत में लंबित है.
राहुल गांधी जब कोर्ट में पेशी के लिए मुंबई पहुंचे तो यहां मिलिंद देवड़ा, संजय निरूपम और अन्य नेताओं की अगुआई में बड़ी संख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने मुंबई हवाईअड्डे पर राहुल गांधी का स्वागत किया. इस दौरान राहुल गांधी के समर्थन में पार्टी कार्यकर्ताओं ने जमकर नारे लगाए.
राहुल गांधी ने यह फैसला ऐसे समय में लिया है जब कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद पार्टी पूरी तरह से मझधार में फंसी हुई नजर आ रही है. ऐसे सियासी माहौल में कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़ना और नए राजनीतिक प्रयोग के लिए जो कदम उठा रहे हैं उससे यह सवाल खड़ा होता है कि राहुल कहीं पॉलिटिकल रिस्क तो नहीं ले रहे हैं.
राहुल गांधी के इस फैसले के साथ ही यह साफ हो गया है कि 21 साल बाद कांग्रेस की कमान एक बार फिर नेहरू-गांधी परिवार से बाहर किसी और नेता के हाथ में होगी. इंदिरा और राजीव के बाद ‘गांधी परिवार’ से सोनिया गांधी 1998 में अध्यक्ष बनीं और 2017 तक इस पद पर रहीं. इस दौरान कांग्रेस 10 साल तक केंद्र की सत्ता पर काबिज रही.
सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर राहुल गांधी की ताजपोशी दिसंबर, 2017 में हुई थी. हालांकि राहुल गांधी ने 2004 में राजनीतिक एंट्री की थी और 2007 में राष्ट्रीय महासचिव बने और बाद में उपाध्यक्ष के पद रहे. इस दौरान राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन को नई धार देने के लिए लिंगदोह कमेटी के तर्ज पर खड़ा करने की कोशिश की थी. इसके अलावा कई प्रत्याशियों के लिए कई राजनीतिक प्रयोग किए थे, जिनमें वह सफल नहीं हो सके.
राहुल महासचिव के पद पर रहते हुए एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस संगठन में सीधे पदों पर चयन के बजाय चुनाव को तरजीह दिया. उपाध्यक्ष रहते हुए राहुल गांधी ने चुनाव में कैंडिडेट को मैदान में उतारने से पहले प्रत्याशी चयन के लिए उसी के क्षेत्र में बकायदा वोटिंग प्रक्रिया के फॉर्मूले को आजमाया गया. इस बार के लोकसभा चुनाव में कैंडिडेट के चयन में शक्ति ऐप को राहुल ने अहमियत दी थी. इन तीनों प्रयोग में बुरी तरह से राहुल गांधी फेल रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कांग्रेस को गांधी परिवार के सहारे की मानसिकता से मुक्त करने के कदम में राहुल गांधी कहां तक सफल होंगे?
कांग्रेस की सियासत को लंबे समय से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शकील अख्तर कहते हैं कि राहुल गांधी ने अपना फैसला सोच समझकर लिया है. राहुल गांधी जिस तरह की आदर्शवादी और मूल्यों पर आधरित राजनीति करना चाहते हैं, उसमें वह सिर्फ जीतना ही नहीं बल्कि अपने आदर्श और मूल्यों को स्थापित करना चाहते हैं. यही वजह रही कि उन्होंने अपने छात्र और यूथ संगठन में लोकतांत्रिक व्यवस्था को लागू करने के लिए चुनाव कराने का कदम उठाया था, जिसे लेकर पार्टी के अंदर विरोध रहा.
इसके बावजूद उन्होंने इसे कायम रखा और पार्टी को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा. इसका नतीजा यह हुआ कि यूथ कांग्रेस में पहले जैसा जोश और जज्बा नहीं दिखा. इंदिरा गांधी जब 1977 में चुनाव हारीं थीं तो देश भर के कांग्रेसी सड़क पर उतर आए थे और नारे लगा रहे थे कि ‘आधी रोटी खाएंगे इंदिरा को वापस लाएंगे’, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव के हार के 40 दिन बाद जब कांग्रेसी धरने पर बैठे तो उनकी संख्या बहुत कम थी. लगता है कि इससे राहुल गांधी को बड़ा झटका लगा है, जिसके बाद उन्होंने अपने इस्तीफे को सार्वजनिक किया.
शकील अख्तर कहते हैं कि कांग्रेस अध्यक्ष पद छोड़कर राहुल गांधी काफी बड़ा रिस्क ले रहे हैं. अब राहुल राजनीति में किस भूमिका में रहेंगे यह कहना अभी मुश्किल है. वो अध्यक्ष पद पर दोबारा लौटेंगे या नहीं इसे कहा नहीं जा सकता है. हालांकि पांच साल का वक्त बहुत लंबा है ऐसे में हमें लगता है कि दो ढाई साल बाद प्रियंका गांधी पार्टी की कमान संभाले, क्योंकि हार के बाद से वह सक्रिय हैं. वह कहते हैं कि राहुल गांधी बहुत ज्यादा लिबरल रहे हैं, इसी का नतीजा है कि कांग्रेसी उनके बातों को तवज्जो नहीं देते थे. इंदिरा गांधी पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बदल देती थी, लेकिन सोनिया गांधी और राहुल गांधी दिल्ली में शीला दीक्षित और असम में तरुण गोगई को 15 साल मुख्यमंत्री बने रहने दिया. इसका खामियाजा क्या हुआ वह सामने है.
वहीं बीजेपी और नरेंद्र मोदी किसी को कुछ बनाते हैं तो उसके पीछे राजनीतिक मकसद छिपा होता है. शकील अख्तर कहते हैं कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष के चुनाव के लिए कई चीजें देखनी होंगी. गांधी परिवार के प्रति वफादारी के साथ-साथ युवा और सामाजिक-जातीय समीकरण का ध्यान रखना होगा, नहीं तो कांग्रेस की दशा और दिशा और भी खराब हो जाएगी.
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद सिंह कहते हैं कि राहुल गांधी को ऐसे दौर में कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा नहीं देना चाहिए था. राहुल के नेतृत्व में कांग्रेस भले ही लोकसभा चुनाव हार गई है, लेकिन 2009 में उनके नेतृत्व में यूपी में 22 सीटें पार्टी जीतने में सफल रही है और पिछले साल तीन राज्यों में कांग्रेस जीत दर्ज कर सत्ता में आई थी. इस तरह से राहुल एक सर्वमान्य नेता के तौर पर स्थापित हो गए थे.
वह कहते हैं कि पिछले तीस सालों में गांधी परिवार से बाहर के जो भी कांग्रेस अध्यक्ष रहे हैं, उसके अनुभव को देखें तो वह पार्टी को संभाल नहीं पाए हैं. नरसिम्हा राव के दौर में नारायण दत्त तिवारी जैसे कांग्रेस के दिग्गज नेता ने पार्टी से बगावत कर अलग पार्टी बना ली थी, जो बाद में सोनिया गांधी के दौर में वापस लौटे. इसके अलावा पार्टी में जिस तरह से नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं के बीच गुटबाजी है, उसे गांधी परिवार का सदस्य ही साधकर रख सकता है. हालांकि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष नहीं रहने के बाद भी मास लीडर के तौर पर उनकी अहमियत रहेगी.
वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने कहा कि राहुल गांधी के पास इस्तीफा देने के सिवा कोई और विकल्प नहीं बचा था. ‘गांधी परिवार’ के सिवा पार्टी के बाकी नेता मेहनत नहीं करना चाहते हैं. कांग्रेस के सीडब्लूसी में शामिल नेताओं को देखा जा सकता है. जबकि दूसरी पार्टियों में नेता से लेकर कार्यकर्ता तक संघर्ष करते नजर आते हैं. यही वजह है कि राहुल गांधी ने अपने फैसले से साफ संकेत दे दिया है कि ऐसी स्थिति में तो चुनाव नहीं जीता जा सकता है, अगर पार्टी को जीत दर्ज करनी है तो सबको मेहनत करनी होगी. 1989 के बाद गांधी परिवार का कोई भी सदस्य जिस प्रकार प्रधानमंत्री नहीं बना है, उसी तर्ज पर अब कांग्रेस संगठन को गांधी परिवार से मुक्त रखने का कदम उठाया जा रहा है.
वहीं, वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत लखेड़ा कहते हैं कि राहुल गांधी इस बात को बखूबी समझते हैं कि कांग्रेस जिस हालत में है, उसका चाल, चरित्र और चेहरा बदले बगैर नरेंद्र मोदी और अमित शाह के तंत्र से मुकाबला नहीं किया जा सकता है. इसी मद्देनजर उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया है. दरअसल कांग्रेस में कई ऐसे मठाधीश नेता है, जिनके चलते राहुल गांधी अपने फैसलों को पार्टी में लागू नहीं कर पा रहे थे. अब राहुल गांधी ने इस्तीफा देकर एक तीर से कई निशाने साधे हैं. इसके जरिए राहुल गांधी कांग्रेस में बने अलग-अलग पावर सेंटर की बेड़ियों को तोड़ने के साथ ही बीजेपी के नैरेटिव को भी तोड़ने का काम करेंगे.