भारतीय रेल में खाना इंसानों के खाने के लायक नहीं ; सीएजी रिपोर्ट
रेल मंत्री को नैतिकता के आधार पर तत्काल इस्तीफा देना चाहिए था महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट को देखते हुए ; Top News; www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
रेलवे में सफर के दौरान मिलने वाले खाने को लेकर सीएजी यानी कि महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट में रेलवे को कटघरे में खड़ा किया. सीएजी रिपोर्ट में कहा गया कि खाना साफ सफाई, गुणवत्ता के पैमाने पर खरा नही उतरता. रेलवे फ्लेक्सी किराया वसूलने के बावजूद यात्रियों को घटिया खाना परोसी जा रही है. हालांकि, रेलवे ने पिछले दिनों फ्लेक्सी फेयर बढ़ाने के फैसले को वापस ले लिया है. रेलवे ने विमानों के तर्ज पर ही ट्रेन में फ्लेक्सी फेयर सिस्टम की शुरुआत की थी. लेकिन पूरी योजना पूरी तरह से नाकाम रही लिहाजा चारों तरफ हो रहे किरकिरी के बाद रेल मंत्रालय ने इस फैसले को वापस लिया है. अब यात्रियों को 31 जुलाई से फ्लेक्सी फेयर नहीं लगेगा. रेल मंत्री सुरेश प्रभु के मंत्री बनने के बाद रेलवे में कई प्रयोग किए गए. कहा ये गया कि यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा का विशेष ख्याल रखा जाएगा. पर हुआ बिल्कुल उलट.
रेलवे में सफर के दौरान मिलने वाले खाने को लेकर सीएजी यानी कि महालेखा नियंत्रक की रिपोर्ट में रेलवे को कटघरे में खड़ा किया. सीएजी रिपोर्ट में कहा गया कि खाना साफ सफाई, गुणवत्ता के पैमाने पर खरा नही उतरता.
भारतीय रेल में ज्यादा किराया भरने के बावजूद भी मुसाफिरों की मुश्किलें कम होती नजर नहीं आ रही हैं. बेहतर सुविधा के लिए रेल किराए की अधिकतम शुल्क भरने वाले यात्रियों को रेल की बद से बदतर हालत से हर रोज दो चार होना पड़ रहा है.
इस बात की तस्दीक नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट ने भी कर दी है. संसद में पेश नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय रेल में परोसा जाने वाला खाना इंसानों के खाने के लायक नहीं रहा.
सीएजी ने भारतीय रेल में यात्रियों के खान-पान को लेकर बड़ा सवाल उठाया है. रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है कि दूषित खाद्य पदार्थों, रिसाइकिल किया हुआ खाद्य पदार्थ और डब्बा बंद व बोतलबंद वस्तुओं का उपयोग उस पर लिखी इस्तेमाल की अंतिम तारीख के बाद भी किया जा रहा है.
रेलवे की जो दुर्गति पिछले कई दशकों में हुई है उसे यात्रियों से जबरिया अधिक किराया वसूल कर पूरा किया जाएगा? जबकि सुरेश प्रभु फ्रेट में कई तरह की छूट देकर रेलवे का मुनाफा बढ़ाने के लिए अपनी पीठ थपथपाते हैं.
मतलब जो रेलवे भारत की लाइफ लाइन कही जाती है उसमें व्यापार और धंधा करने की छूट तो मिलेगी लेकिन यात्रियों से अधिक किराया वसूले जाने के बावजूद घटिया खाना और सुविधा के नाम कुछ नहीं. ये कैसा सिस्टम है?
CAG रिपोर्ट में कहा गया है कि बेस किचन रेलवे स्टेशन से काफी दूरी पर बने हैं जहां पर किसी भी तरह का कोई क्वालिटी चेक नहीं होता और ना ही क्वालिटी को सुधारने, साफ-सफाई और स्वच्छता के पैमाने पर पर खरा उतरता है.
सीएजी रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि रेलवे में परोसे जाना वाला जनता मील को रेलवे ने ये कहकर शुरू किया था कि इससे रेलवे में सफर करने वाले यात्रियों को सस्ते दर पर अच्छा खाना मिलेगा लिख लेकिन पिछले 3 सालों में जनता मील में भी गिरावट आई है साथ ही जनता मील रेलवे स्टेशनों पर समुचित मात्रा में उपलब्ध ही नहीं होता.
रिपोर्ट में कहा गया है कि रेलवे में मिलने वाले खाने को लेकर ना तो साफ-सफाई और ना ही स्वच्छता का ध्यान रखा जाता है. रेलवे स्टेशन पर पहुंचने वाले और रेल में यात्रा करने वाले यात्रियों को जो सामान बेचा जाता है उसकी कीमत के बारे में कोई साफ-साफ जानकारी नहीं दी जाती और ना ही कोई बिल दिया जाता है. इतना ही नहीं जो सामान परोसा जाता है वह मात्रा में कम होता है और बाजार भाव से ज्यादा कीमत वसूली जाती है.
रेलवे ने खाने की शिकायत को लेकर शिकायत केंद्र भी बनाए हैं लेकिन उससे भी शिकायतों का ना तो निपटारा हो पा रहा है और ना ही शिकायतों में किसी तरह की कमी आयी है.
ऐसा नहीं है ये रेलवे के खाने को लेकर इस तरह से पहली बार सवाल उठे हों इससे पहले भी इस तरह सवाल उठते रहे हैं पर खाने की क्वालिटी में कोई सुधार नहीं हुआ.
रेलवे और सीएजी की ज्वाइंट टीम ने चुने हुए 74 स्टेशनों और 80 ट्रेनों में निरीक्षण किया है. इस दौरान ऑडिटर ने पाया कि खाना बनाने और सर्वे करने के लिए स्वच्छता का बिल्कुल ध्यान नहीं रखा जाता.
खाना बनाने के लिए अशुद्ध पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है. वहीं डस्टबिन ढका हुआ नहीं पाया गया और पूरी तरह से साफ भी नही होता है. खाने को मक्खी, कीड़े-मकौड़े, चूहे और कॉकरोच से बचाने के लिए कोई पुख्ताो उपाय नहीं किया जाता है.
सीएजी के मुआयने के दौरान किसी भी ट्रेन में वेटरों और कैटरिंग मैनेजरों के पास बेची जाने वाली चीजों से जुड़ा मेन्यू और रेट कार्ड नहीं मिला. रिपोर्ट में लिखा है, ‘खाने की चीजें तयशुदा से कम मात्रा में बेची जा रही थी. अनाधिकृत कंपनियों के डिब्बाबंद पानी की बोतलें बेची जा रही थी.’
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सहयोगी पार्टी शिवसेना के ना चाहते हुए भी सुरेश प्रभु को मंत्री बनाया. सुरेश प्रभु अपने शपथ ग्रहण के दिन ही बीजेपी में शामिल हुए थे. बीजेपी में आने से पहले सुरेश प्रभु शिवसेना में थे.
जानकारों की माने तो पिछले कुछ दिनों से रेल मंत्री सुरेश प्रभु के कामकाज पर उंगलियां उठने लगी हैं. देश में लगातार हो रही रेल दुर्घटनाओं से लेकर यात्रियों के सुविधा तक रेल मंत्री सवालों के घेरे में हैं. अब तो सीएजी की रिपोर्ट ने भी सुरेश प्रभु के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है.
दो साल पहले रेल मंत्रालय का कामकाज सुरेश प्रभु ने बिल्कुल एक सीए के अंदाज में ही संभाली थी. अटल जी की सरकार में ऊर्जा मंत्रालय में किए अपने शानदार काम का अवार्ड मोदी ने रेल मंत्री बनाकर दिया था.
पिछले कुछ सालों से रेलवे की फूड क्वालिटी में 75 प्रतिशत की गिरावट आई है. जबकि, सरकार ने फ्लेक्सी फेयर के जरिए यह कोशिश कि राजधानी या शताब्दी ट्रेनों से ज्यादा राजस्व अर्जित करें.
लेकिन, फ्लेक्सी फेयर लागू होने के बाद 30 प्रतिशत यात्रियों की संख्या में गिरावट आ गई. ज्यादा से ज्यादा सीट खाली जाने लगी. ट्रेन की तुलना में लोगों ने हवाई किराया को ज्यादा अहमियत देने लगे.
दूसरी तरफ ये हुआ कि क्वालिटी भी घटने लगी. टॉयलेट बदबूदार रहने लगे. कंबलों और चादरों को लेकर भी बहुत शिकायत आने लगी. रेल मंत्री ने यह बात स्वीकार किया था कि कंबलों की धुलाई 6 महीने में एक बार किया जाता है. इसके साथ ही रेलवे में कुछ ऐसी चीजें लगातार घटित हो रही थी जिससे यात्रियों का झुकाव रेलवे की तरफ ना जाकर दूसरी सुविधाओं के तरफ गया.