मजबूत मोहरा- ही कमजोर कडी- सितारो की दरकती चाल

मजबूत मोहरा हैं. वही  सबसे कमजोर कड़ी भी हैं; सितारो की चाल ही ऐसी होती है कि जो जितना मजबूत होता है, सितारे प्रतिकुल होते ही वह उतना ही कमजोर साबित होता है, Top Story by CS JOSHI- FOR www.himalayauk.org (Leading DigitalNewsportal) 

मशहूर अमेरिकी लेखक जोसेफ हेलर ने लिखा है ‘जब तक आप को पागल नहीं घोषित कर दिया जाता, तब तक आप लड़ाकू जहाज उड़ाना बंद नहीं कर सकते. और जब तक आप फाइटर प्लेन उड़ाना बंद नहीं करते, तब तक आपको पागल नहीं करार दिया जा सकता.’ राजस्थान में भाजपा चक्रव्‍युह में फंस गयी है, राजस्थान में बीजेपी न तो वसुंधरा के बिना चुनाव जीत सकती है और न ही उनके नेतृत्व में जीतने की उम्मीद दिखाई दे रही है –बडी स्‍टोरी- www.himalayauk.org (Newsportal)

राजस्थान और पश्चिम बंगाल उपचुनाव के नतीजों ने 2019 लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी की चिंताएं बढ़ा दी है।  शिवसेना, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के झटकों और टीडीपी के अल्टीमेटम से हिली बीजेपी के सामने गठबंधन के उलझनों को सुलझाने के साथ-साथ मिशन 2019 के माहौल बनाने की चुनौतियां हैं।
राजस्थान के सियासी हालात ठीक ऐसे ही हैं. बीजेपी वसुंधरा राजे की अगुवाई में चुनाव नहीं जीत सकती. लेकिन, पार्टी उनके बगैर भी राजस्थान में विधानसभा चुनाव नहीं जीत सकती. वसुंधरा हमारा सबसे मजबूत मोहरा हैं. वही  सबसे कमजोर कड़ी भी हैं.’ राजस्थान में बीजेपी के पास जीत का कोई तुरुप का इक्का नहीं. पार्टी को मालूम है कि लोग वसुंधरा सरकार से नाराज हैं.
उप चुनाव के नतीजों से पार्टी के नेताओं में आम राय है कि वोटर को लुभाने के लिए, सरकार के प्रति उसकी नाराजगी दूर करने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की जरूरत है. इन ठोस कदमों में से एक राज्य में नेतृत्व बदलने का विकल्प भी है. मगर, बीजेपी के साथ दिक्कत ये है कि उसके पास कोई दूसरा नेता नहीं. राजस्थान में वसुंधरा राजे ही बीजेपी हैं और बीजेपी वसुंधरा राजे है. पार्टी के दूसरी कतार के नेताओं में कोई उतना कद्दावर नहीं दिखता. ज्यादातर ऐसे नेता हैं, जिनके लिए अपनी सीट जीतना भी चुनौती ही होगी. वसुंधरा राजे के सिवा कोई ऐसा नेता नहीं, जो पूरे राजस्थान में हर समुदाय को लुभा सके.
बीजेपी के लिए हालात और मुश्किल इसलिए हो जाते हैं कि वसुंधरा राजे को हटाने का मतलब होगा, पार्टी में दो-फाड़ होना. बंटी हुई पार्टी के लिए तो चुनाव जीतना और भी मुश्किल होगा. बीजेपी को ये डर कर्नाटक में 2013 में बी एस येदियुरप्पा को हटाने के बाद से हुई हालत के बाद लगातार सताता रहता है. वसुंधरा राजे ने पहले कई बार पार्टी आलाकमान को अपने तेवर दिखाए हैं. हालांकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के राज में वसुंधरा ने अब तक केंद्रीय नेतृत्व पर आंखें नहीं तरेरी हैं. लेकिन, बीजेपी को पता है कि अगर वसुंधरा राजे को नाराज किया, तो चुनाव में इसका भारी खामियाजा उठाना पड़ सकता है. ठीक उसी तरह जैसे 2013 में कर्नाटक में येदियुरप्पा ने पार्टी का नुकसान किया था.

 

 वही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पिता जादूगर थे। अशोक गहलोत ने भी इस पेशे में हाथ आजमाए, लेकिन उनका जादू चला राजनीति के मंच पर.। इसे जादू से कम नहीं कह सकते कि राजस्थान जैसे प्रदेश में जहां की राजनीति लगातार क्षत्रियों, जाटों और ब्राह्मणों के प्रभाव में रही हो, वहां जाति से माली और खानदानी पेशे से जादूगर के बेटे ने अपने आपको कांग्रेस के सबसे बडे नेता के रूप में स्थापित कर लिया। वो १९९८ में ऐसे समय पहली बार मुख्यमंत्री बने, जब प्रदेश में ताकतवर जाट और प्रभावशाली ब्राह्मण नेताओं का बोलबाला था। अशोक गहलोत आज ग्वालियर राजघराने की बेटी और झालावाड राजघराने की बहूवसुंधरा राजे सिंधियाके सामने अकेली चुनौती हैं। राजस्थान में कांग्रेस की पीठ पर केंद्र और राज्य की सत्ता विरोधी लहर है, घोटाले हैं, विवाद हैं. ऐसे में उसे बस अशोक गहलोत का ही सहारा है।

अगले विधानसभा चुनाव में हार का डर भी बीजेपी को सता रहा है. यही वजह है कि वसुंधरा राजे से नाराज बीजेपी शायद उनकी अगुवाई में ही चुनाव लड़ने का फैसला करे. सियासी हिसाब-किताब लगाने के बाद पार्टी आलाकमान वसुंधरा राजे की सरकार को ही चलने देने का इशारा कर सकता है. हां, केंद्रीय नेतृत्व वसुंधरा को आगाह जरूर कर सकता है कि 2018 के चुनाव 2019 के लिए सेमीफाइनल जैसे हैं.
हाल ही में आए अलवर और अजमेर लोकसभा सीटों और मांडलगढ़ विधानसभा सीट के उपचुनाव के नतीजों ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है. बीजेपी के लिए वसुंधरा राजे गले की फांस बन गई हैं. तीनों सीटों को मिला लें तो कुल 17 विधानसभा सीटें और 40 लाख वोट होते हैं. सभी 17 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी पीछे रही थी. अलवर लोकसभा सीट को बीजेपी ने 2014 में 2.65 लाख वोट से जीता था. उप चुनाव में बीजेपी को पिछली बार से 25 फीसद वोट कम मिले. पार्टी को इस सीट पर शर्मनाक हार झेलनी पड़ी. ज्यादातर विधानसभा सीटों पर बीजेपी को पिछली बार के मुकाबले दस फीसद तक कम वोट मिले.
एक बीजेपी नेता ने पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को चिट्ठी लिखकर वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग की. एक दौर ऐसा भी था, जब ऐसा सोचना भी नामुमकिन था. इसके एक दिन बाद राज्य में बीजेपी के अध्यक्ष अशोक परनामी ने एलान किया कि इस साल के आखिर में होने वाले विधानसभा चुनाव वसुंधरा राजे की अगुवाई में लड़े जाएंगे. खुद परनामी की कुर्सी खतरे में है और वो वसुंधरा की अगुवाई में चुनाव लड़ने का एलान कर रहे हैं. परनामी ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि ‘उन्हें हटाए जाने की अटकलों में कतई दम नहीं है.’

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