आपको जेल जाना ही चाहिए- सुप्रीम कोर्ट ने किसे कहा ?
आप जैसे लोगों को जेल जाना ही चाहिए। आपको 6 दिन के लिए नहीं बल्कि 6 महीने के लिए जेल भेजना चाहिए। अभिनेता के खिलाफ अवमानना कार्रवाई एक कारोबारी की याचिका पर की थी। यादव और उनकी पत्नी के खिलाफ दायर वसूली वाद में अदालत को गुमराह करने पर शुरू की गई थी।www.himalayauk.org (Newsportal) Bureau
इसके अलावा- सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला दिया- गर्भपात कानून के एक प्रावधान का लाभ देते हुए उच्चतम न्यायालय ने एक बलात्कार पीड़िता को अपने 24 हफ्ते पुराने ‘असामान्य’ भ्रूण का गर्भपात कराने की सोमवार (25 जुलाई) को इजाजत दे दी।
फिल्म अभिनेता राजपाल यादव को सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कड़ी फटकार लगाई। राजपाल के व्यवहार से नाराज कोर्ट ने कहा कहा कि आपको 6 दिन के लिए नहीं बल्कि 6 महीने के लिए जेल भेजना चाहिए। राजपाल यादव पर कोर्ट के आदेशों को हल्के में लेने का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि राजपाल का व्यवहार ऐसा था जिसको शब्दों में बयान नहीं कर सकते हैं। आप जैसे लोगों को जेल जाना ही चाहिए। कोर्ट ने राजपाल को एक मौका देते हुए आदेश दिया कि शुक्रवार तक हमें बताये कितना पैसा आप दे सकते हैं। अगर पैसे नहीं दिए तो जेल जाने को तैयार रहिए।
दरअसल दिल्ली हाई कोर्ट ने बॉलीवुड अभिनेता राजपाल यादव को 15 जुलाई तक तिहाड़ जेल में आत्मसमर्पण करके पूर्व में उन्हें दी गई सजा के बचे हुए 6 दिन काटने का निर्देश दिया था। जिसको उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अभिनेता को यह सजा झूठा हलफनामा दायर करने के लिए 2013 में दी गई थी।
यादव ने 3-6 दिसंबर 2013 तक जेल में चार दिन काटे थे जिसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट की खंडपीठ ने उनकी अपील पर सजा निलंबित कर दी थी। न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट और न्यायमूर्ति दीपा शर्मा की पीठ ने दिसंबर 2013 में एक जज की बेंच की दी गई सजा बरकरार रखी और कहा कि प्रक्रिया का पालन करने में यादव की नाकामी को स्वीकारा नहीं जा सकता। उनको अपने आचरण के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिए पर्याप्त समय दिए जाने के बावजूद वह झूठ पर कायम रहे। पीठ ने कहा था कि इस मामले का लंबा इतिहास बताता है कि बार बार शपथपत्र का उल्लंघन हुआ और जब यह पूछने के लिए उन्हें बुलाया गया कि कार्रवाई क्यों नहीं की जाए, अपीलकर्ता और उनकी पत्नी ने झूठे और टालने वाले जवाब दिए जिसमें झूठे हलफनामे को सही ठहराना शामिल है। एकल न्यायाधीश की पीठ ने यादव द्वारा दो दिसंबर 2013 को दायर हलफनामे पर आपत्ति जताई थी जो कथित रूप से झूठा तैयार किया गया था और इसमें उनकी पत्नी के जाली हस्ताक्षर थे।
वही दूसरी ओर
उच्चतम न्यायालय ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत कानून में दी गई अपवाद की स्थिति का लाभ पीड़िता को दिया। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत यह प्रावधान है कि यदि गर्भ से मां की जिंदगी को गंभीर खतरा हो तो 20 हफ्तों के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है।
न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘मेडिकल बोर्ड ने राय दी है कि गर्भावस्था जारी रहने से मां का शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य गंभीर खतरे में पड़ जाएगा। हम मेडिकल राय से संतुष्ट हैं और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के मुताबिक गर्भावस्था खत्म करने के लिए इसकी अनुमति दी जा सकती है।’ पीठ ने कहा, ‘हम याचिकाकर्ता को छूट देते हैं और यदि वह गर्भपात कराना चाहती है तो उसे इसकी अनुमति दी जाती है।’ सुनवाई के दौरान, मुंबई स्थित किंग एडवर्ड मेमोरियल कॉलेज एवं अस्पताल के सात सदस्यीय मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट एक सीलबंद लिफाफे में पीठ को सौंपी गई।
न्यायालय ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने 24 हफ्ते पुराने इस भ्रूण में गंभीर खराबियां पाई हैं और राय दी है कि यदि गर्भावस्था जारी रही तो मां की जिंदगी गंभीर खतरे में पड़ सकती है। पीठ ने कहा कि मेडिकल बोर्ड ने सिफारिश की है कि गर्भावस्था खत्म की जा सकती है। केंद्र की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 की धारा-5 के तहत अपवाद की एक स्थिति है और कानून की धारा-3 के तहत 20 हफ्ते के गर्भ की सीमा इस मामले में लागू नहीं होगी, क्योंकि मां की जिंदगी को गंभीर खतरा है। रोहतगी ने यह भी कहा कि इस मामले में एक व्यापक मुद्दा निहित है जिस पर अलग से विचार किया जा सकता है। इस पर पीठ ने कहा कि मां और भ्रूण की जान को गंभीर खतरा होने के बावजूद 20 हफ्ते से ज्यादा पुराने गर्भ को खत्म करने पर पाबंदी लगाने वाले गर्भपात कानून के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती के व्यापक मुद्दे पर वह पीठ विचार करेगी जहां इस मुद्दे पर ऐसी ही याचिका लंबित है।