रामराजा सरकार के दो निवास; खास दिवस ओरछा, रहत हैं रैन अयोध्या वास ;यहां गार्ड ऑफ ऑनर रामराजा के अलावा PM,राष्ट्रपति को भी नहीं; भगवान राम की बाल रूप की अनोखी शर्त; रामलला की अनोखी स्टोरी
निसिचरहीनकरऊंमही, भुजउठाइपनकीन्ह। सकलमुनिन्हकेआश्रमही, जाहजाईसुखदीन्ह।। रामचरितमानस
HIGH LIGHT # मंदिर निर्माण पूर्ण होने के बाद ही भगवान को विराजमान कराया जाता है # अयोध्या से 8 माह 28 दिन पैदल चलकर महारानी गणेश के साथ आए थे राजा राम # भगवान राम ने बाल रूप में दर्शन दिए महारानी गणेश ने उन्हें अपने साथ जब ओरछा चलने के लिए कहा तो भगवान ने उनके समक्ष 3 शर्तें रखीं #भगवान राम ने बाल रूप में दर्शन दिए# महारानी गणेश ने उन्हें अपने साथ जब ओरछा चलने के लिए कहा # भगवान ने उनके समक्ष 3 शर्तें रखीं # पहली शर्त जहाँ जाऊंगा वहां का राजा मैं ही रहूँगा# दूसरी शर्त मैं केवल पैदल ही जाऊंगा# तीसरी शर्त एक बार जहाँ बैठ जाऊंगा वहाँ से उठूंगा नहीं # जब महारानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने भगवान राम की बाल स्वरुप मूर्ती की स्थापना अपने रसोई में कर दी, यह सोचकर – जब मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाएगा तब रसोई से भगवान राम को मंदिर में स्थापित कर देंगे। मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महारानी ने भगवान राम को मंदिर में स्थापित करने की खूब कोशिश की लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई। Execlusive Story by Chandra Shekhar Joshi Mob.9412932030
जब मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाएगा तब रसोई से भगवान राम को मंदिर में स्थापित कर देंगे। मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महारानी ने भगवान राम को मंदिर में स्थापित करने की खूब कोशिश की लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई।
Logon www.himalayauk.org (Leading Newsportal & Daily Newspaper & youtube Channel) चन्द्रशेखर जोशी की विशेष रिपोर्ट मो0 9412932030
अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा नाता है. जिस तरह अयोध्या के रग-रग में राम हैं, ठीक उसी प्रकार ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं. राम यहां धर्म से परे हैं. हिंदू हों या मुस्लिम, दोनों के ही वे आराध्य हैं. अयोध्या और ओरछा का करीब 600 वर्ष पुराना नाता है. कहा जाता है कि 16वीं शताब्दी में ओरछा के बुंदेला शासक मधुकरशाह की महारानी कुंवरि गणेश अयोध्या से रामलला को ओरछा ले आई
पौराणिक कथाओं के अनुसार ओरछा के शासक मधुकरशाह कृष्ण भक्त थे, जबकि उनकी महारानी कुंवरि गणेश, राम उपासक. इसके चलते दोनों के बीच अक्सर विवाद भी होता था. एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया पर उन्होंने विनम्रतापूर्वक उसे अस्वीकार करते हुए अयोध्या जाने की जिद कर ली. तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ
महारानी कुंवरि अयोध्या रवाना हो गईं. वहां 21 दिन उन्होंने तप किया. इसके बाद भी उनके आराध्य प्रभु राम प्रकट नहीं हुए तो उन्होंने सरयू नदी में छलांग लगा दी. कहा जाता है कि महारानी की भक्ति देखकर भगवान राम नदी के जल में ही उनकी गोद में आ गए. तब महारानी ने राम से अयोध्या से ओरछा चलने का आग्रह किया तो उन्होंने तीन शर्तें रख दीं. पहली, मैं यहां से जाकर जिस जगह बैठ जाऊंगा, वहां से नहीं उठूंगा. दूसरी, ओरछा के राजा के रूप विराजित होने के बाद किसी दूसरे की सत्ता नहीं रहेगी. तीसरी और आखिरी शर्त खुद को बाल रूप में पैदल एक विशेष पुष्य नक्षत्र में साधु संतों को साथ ले जाने की थी.
ओरछा और अयोध्या का संबंध करीब 600 वर्ष पुराना है. कहते हैं कि संवत 1631 में चैत्र शुक्ल नवमी को जब भगवान राम ओरछा आए तो उन्होंने संत समाज को यह आश्वासन भी दिया था कि उनकी राजधानी दोनों नगरों में रहेगी. तब यह बुन्देलखण्ड की ‘अयोध्या’ बन गया. ओरछा के रामराजा मंदिर की एक और खासियत है. एक राजा के रूप में विराजने की वजह से उन्हें चार बार की आरती में सशस्त्र सलामी गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है. ओरछा नगर के परिसर में यह गार्ड ऑफ ऑनर रामराजा के अलावा देश के किसी भी वीवीआईपी को नहीं दिया जाता, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक को भी नहीं
बुंदेला शासक मधुकर शाह की महारानी कुंवरि गणेश ने ही श्री राम को अयोध्या से ओरछा लाकर विराजित किया था, यह धार्मिक कथा ही नहीं है, बल्कि उन संभावनाओं को भी मान्यता देती है जिनमें कहा गया कि कहीं अयोध्या की राम जन्म भूमि की असली मूर्ति ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान तो नहीं? अयोध्या के रामलला के साथ ही ओरछा के राजाराम भी सुर्खियों में आ जाते हैं. अयोध्या जन्म भूमि की प्रतिमा ही ओरछा के रामराजा मंदिर में विराजमान है. इतिहासकार बताते हैं कि रामराजा के लिए ओरछा के मंदिर का निर्माण कराया गया था, पर बाद में उन्हें सुरक्षा कारणों से मंदिर की बजाए रसोई में विराजमान किया गया. इसके पीछे तर्क ये है कि माना जाता था कि रजवाड़ों की महिलाएं जिस रसोई में रहती हैं, उससे अधिक सुरक्षा और कहीं नहीं हो सकती.
अयोध्या से 8 माह 28 दिन पैदल चलकर महारानी गणेश के साथ आए थे राजा राम
मध्यकाल में बुंदेलखंड की महारानी कुँवर गणेश अयोध्या से 8 माह 28 दिन पैदल चलकर भगवान राम को ओरछा लेकर आई थीं। महारानी की रसोई में भगवान राम के बाल स्वरुप को स्थापित किया गया था तब से वे यहीं हैं। बुंदेलखंड की महारानी कुँवर गणेश मंदिर में बैठकर भगवान राम की पूजा कर रहीं थीं उस समय राजा मधुकर शाह वहां से गुजरे और रानी पर हंसने लगे। इस बात से रानी रुष्ट हो गई और राजा से उनके हंसने का कारण पूछा। तब मधुकर शाह ने कहा, कितना विचित्र है कि, भक्त बैठ कर पूजा कर रहा है और भगवान खड़े हैं। इस बात पर रानी में कहा कि अब मैं बैठे हुए भगवान की मूर्ती कहाँ से लाऊँ। इसका जवाब देते हुए मधुकर शाह ने उन्हें आयोध्या जाने की सलाह दी। महारानी कुँवर गणेश बिना देरी के आयोध्या रवाना हो गई।
आयोध्या में महारानी ने सरयू नदी के किनारे जाकर 7 दिन तक भगवान राम का इन्तजार किया। सातवें दिन जब महारानी को भगवान राम ने दर्शन नहीं दिए तब उन्होंने नदी में कूद कर जान देने की ठान ली। इसके बाद महारानी जब नदी में छलांग लगाने जा रहीं थी तब उन्हें भगवान राम ने बाल रूप में दर्शन दिए। महारानी गणेश ने उन्हें अपने साथ जब ओरछा चलने के लिए कहा तो भगवान ने उनके समक्ष 3 शर्तें रखीं: पहली शर्त जहाँ जाऊंगा वहां का राजा मैं ही रहूँगा। दूसरी शर्त मैं केवल पैदल ही जाऊंगा। तीसरी शर्त एक बार जहाँ बैठ जाऊंगा वहाँ से उठूंगा नहीं।
महारानी की रसोई में स्थापित भगवान राम:
महारानी ने ये तीनों शर्तें मान ली और भगवान को लेकर 8 महीना 28 दिन पैदल चलकर आयोध्या से ओरछा तक का सफर तय किया। महारानी के ओरछा आने की खबर पाकर मधुकर शाह ने ओरछा में चतुर्भुज मन्दिर बनवाने का आदेश दिया। जब महारानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने भगवान राम की बाल स्वरुप मूर्ती की स्थापना अपने रसोई में कर दी यह सोचकर की जब मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाएगा तब रसोई से भगवान राम को मंदिर में स्थापित कर देंगे। मंदिर निर्माण कार्य पूर्ण होने पर महारानी ने भगवान राम को मंदिर में स्थापित करने की खूब कोशिश की लेकिन वो ऐसा नहीं कर पाई।
देश में राम का राजा के रूप मे एक मात्र मंदिर ओरछा में है। मान्यता है कि “ओरछा की रानी भगवान राम की एक भक्त थी। वह एक बार एक बाल रूप में अपने पूज्य देवता को ओरछा लाने की इच्छा के साथ अयोध्या तीर्थ यात्रा पर गई थी”। भगवान राम उनकी प्रार्थना से प्रसन्न हुए, और ओरछा आने के लिए तैयार हो गए”। लेकिन उसने तीन शर्ते रखी कि यात्रा पुष्य नक्षत्र में होंगी।राजा कोई और नहीं होगा। जहाँ विराजमान होंगे वही रहेंगे। और रानी, राम राजा को ले कर ओरछा आती हैं, भगवान राम को एक बच्चे के रूप में दर्शन के लिए ओरछा के राजा ने उनके लिए एक मंदिर बनाने का आदेश दिया औऱ एक भव्य मंदिर का निर्माण हुआ। तब तक राजा राम को रानी महल में रखा गया जहाँ रानी पूजा करती थी। जब मंदिर तैयार हो गया, तो भगवान राम ने रानी को किसी और जगह जाने से इनकार कर दिया!
रानी का महल अंततः राम राजा मंदिर बन गया। यहां, भगवान राम को केवल भगवान के रूप में नहीं, बल्कि एक राजा के रूप में भी पूजा जाता है। यहाँ तक कि उंन्हे एक बंदूक की सलामी भी मिलती है जब लाल बत्ती चलती थी तब कोई भी नेता या अफ़सर लाल बत्ती को उपयोग नहीं करता था प्रशासन भी आरती में सम्मिलित होता है। महारानी के ओरछा आने की खबर पाकर मधुकर शाह ने ओरछा में चतुर्भुज मन्दिर बनवाने का आदेश दिया। जब महारानी ओरछा पहुंची तो उन्होंने भगवान राम की बाल स्वरुप मूर्ती की स्थापना अपने रसोई में कर दी यह सोचकर की जब मंदिर निर्माण पूर्ण हो जाएगा तब रसोई से भगवान राम को मंदिर में स्थापित कर देंगे।
भगवान राम अभी कहां है?
भगवान राम साकेत लोक में रहते हैं। इसे “शाश्वत अयोध्या” भी कहा जाता है। कोई उस स्वर्ग स्थान तक कैसे पहुंच सकता है, इसका वर्णन भगवान शिव ने पद्म पुराण में किया है। मैं इसे संक्षेप में कहूंगा, “राम, राम, राम का जाप करके कोई भी आसानी से/सुखद रूप से उन तक पहुंच सकता है।” यदि कोई मरने से पहले एक बार श्री राम के नाम का स्मरण कर ले तो वे उन तक पहुंच जाएंगे।
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोऽस्म्यहं रामे चित्तलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर।।
‘श्रीराम’ से बड़ा और कोई भी आश्रय नहीं है।मैं उन श्रीरामचन्द्र जी का दास हूँ । मेरा चित्त सर्वदा श्रीराम में ही लीन रहे,हे राम! आप मेरा उद्धार कीजिये। -रामरक्षास्तोत्रम् — चंद्रशेखर जोशी संस्थापक अध्यक्ष महा माई बगुला मुखी पीठ देहरादून
Yr. Contribution: Ac
Name: Himalaya Gaurav Uttrakhand Bank : State Bank of India, CA; 30023706551
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