शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में ; ऊं शांति…ऊं शांति..ऊ शांति- अमोघ शांति मंत्र का जाप करे
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:, पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:, सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥ ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
शान्ति: कीजिये, प्रभु त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में
अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन में
सकल विश्व में अवचेतन में! शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन में, नगर, ग्राम में और भवन में
जीवमात्र के तन में, मन में और जगत के हो कण कण में
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥
पूज्य गुरूजनो के निर्देश पर मैं चन्द्रशेखर जोशी हिमालय की शक्तियो का आहवान करते हुए विनती करता हूं- शान्ति: कीजिये, प्रभु ;बस अब शांत हो जाइये- पूरी दुनियां में मानव जाति भयाक्रांत हो चुकी है, अब शांति कीजिये- जगत का पालन कीजिये-
गूगल ने अपने सर्च इंजन में रखा वरियता क्रम में- BY: www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Publish at Dehradun & Hariwar Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Report by Chandra Shekhar Joshi- Chief Editor & G.S. Kurmanchal Parishad Dehradun
शान्ति मन्त्र वेदों के वे मंत्र हैं जो शान्ति की प्रार्थना करते हैं। प्राय: हिन्दुओं के धार्मिक कृत्यों के आरम्भ और अन्त में इनका पाठ किया जाता है। इस मंत्र के जरिये कुल मिलाकर जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे इसकी प्रार्थना की गई है, परंतु विशेषकर हिंदू संप्रदाय के लोग अपने किसी भी प्रकार के धार्मिक कृत्य, संस्कार, यज्ञ आदि के आरंभ और अंत में इस शांति पाठ के मंत्रों का मंत्रोच्चारण करते हैं। यह सर्वाधिक लोकप्रिय मंत्रों में है, जिसे प्रार्थना की तरह दुहराया जाता है।
यजुर्वेद के इस शांति पाठ मंत्र में सृष्टि के समस्त तत्वों व कारकों से शांति बनाये रखने की प्रार्थना करता है। इसमें यह गया है कि द्युलोक में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति हो, पृथ्वी पर शांति हों, जल में शांति हो, औषध में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, विश्व में शांति हो, सभी देवतागणों में शांति हो, ब्रह्म में शांति हो, सब में शांति हो, चारों और शांति हो, शांति हो, शांति हो, शांति हो।
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम् पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ शं नो मित्रः शं वरुणः। शं नो भवत्वर्यमा। शं न इन्द्रो वृहस्पतिः। शं नो विष्णुरुरुक्रमः। नमो ब्रह्मणे। नमस्ते वायो। त्वमेव प्रत्यक्षं ब्रह्मासि। त्वामेव प्रत्यक्षम् ब्रह्म वदिष्यामि। ॠतं वदिष्यामि। सत्यं वदिष्यामि। तन्मामवतु। तद्वक्तारमवतु। अवतु माम्। अवतु वक्तारम्। ”ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ ॐ आप्यायन्तु ममांगानि वाक्प्राणश्चक्षुः
श्रोत्रमथो बलमिन्द्रियाणि च सर्वाणि। सर्वम् ब्रह्मौपनिषदम् माऽहं ब्रह्म
निराकुर्यां मा मा ब्रह्म निराकरोदनिराकरणमस्त्वनिराकरणम् मेऽस्तु।
तदात्मनि निरते य उपनिषत्सु धर्मास्ते मयि सन्तु ते मयि सन्तु।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ वां मे मनसि प्रतिष्ठिता
मनो मे वाचि प्रतिष्ठित-मावीरावीर्म एधि।
वेदस्य म आणिस्थः श्रुतं मे मा प्रहासीरनेनाधीतेनाहोरात्रान्
संदधाम्यृतम् वदिष्यामि सत्यं वदिष्यामि तन्मामवतु
तद्वक्तारमवत्ववतु मामवतु वक्तारमवतु वक्तारम्।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः श्रुणुयाम देवाः। भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः।
स्थिरैरंगैस्तुष्टुवागं सस्तनूभिः। व्यशेम देवहितम् यदायुः।
स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
शान्ति मन्त्र वेदों व वैदिक साहित्य में अन्यत्र भी हैं जिनमें से कुछ अत्यन्त प्रसिद्ध हैं।
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति:
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वेदेवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति: सा मा शान्तिरेधि ॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: ॥
हिन्दु धर्म में जो भी मान्यताएं या परंपराएं हैं उनके पीछे कोई न कोई कारण होता है। इन कारणों को लेकर धर्मग्रंथों और पुराणों में कथाएं भी मिलती हैं। इसका एक उदाहरण है कि जब भी मंत्र जाप या मंत्रोच्चारण का आयोजन होता है तो पंडित या पूजा करने वाले लोग मंत्रोच्चारण के अंत में तीन बार ऊं शांति कहने की परंपरा है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि ऐसा क्यों होता है? इसके बारे में कहा जा रहा है प्राचीन काल में लोग मानते थे कि जिस बात को तीन बार कहा जाए तो वह सच हो जाती है। यानी ‘त्रिवरम् सत्यमं’।
ऊं शांति…ऊं शांति..ऊ शांति बोलने के पीछे दूसरा कारण को लेकर कहा गया है कि ऐसा करने से तीन प्रकार से उत्पन्न बाधाओं में शांति मिलती है। दैविक- दैवीय आपदा जैसे बाढ़, भूकंप, तूफान आदि की शांति के लिए ऊं शांति बोलते हैं जिससे माना जाता है कि शांति मिलती है। भौतिक- भौतिक समस्याओं जैसे दुर्घटना, अपराध, मानवीय संपर्क आदि बाधाओं के लिए ऊं शांति बोलते हैं जिससे माना जाता है कि शांति मिलती है। आध्यात्मिक बाधाएं- ऐसी बाधाओं में क्रोध, निराशा, भय आदि के लिए ऊं शांति बोलते हैं जिससे शांति मिलती है। यही कारण है कि पुरोहित मंत्रोच्चारण के अंत में तीन बार ऊं शांति का उच्चारण करते हैं।
भगवान श्री विष्णु जी को त्रिदेवों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि जगत का पालन भगवान श्री विष्णु जी ही करते हैं। विष्णु जी देवी लक्ष्मी (विष्णुजी की पत्नी) के साथ क्षीरसागर में वास करते हैं। हिन्दू धर्म- शास्त्रों में भगवान विष्णु को श्री हरि, नारायण, नर-नारायण आदि कई नामों से जाना जाता है। विष्णुजी के कुछ विशेष 108 नाम कुछ इस प्रकार हैं-:
विष्णु | ॐ विष्णवे नमः। | हर जगह विराजमान रहने वाले | |
2. | लक्ष्मीपति | ॐ लक्ष्मीपतये नमः। | देवी लक्ष्मी के पती |
3. | कृष्ण | ॐ कृष्णाय नमः। | काले रंग वाले |
4. | नारायण | ॐ नारायणाय नमः। | ईश्वर, परमात्मा |
5. | गरुडध्वजा | ॐ गरुडध्वजाय नमः। | गरुड़ पर सवार होने वाले |
6. | वषट्कार | ॐ वषट्कार नमः। | यज्ञ से प्रसन्न होने वाले |
7. | भूतात्मा | ॐ भूतात्मा नमः। | ब्रह्मांड के सभी प्राणियों की आत्मा में वास करने वाले |
8. | पूतात्मा | ॐ पूतात्मा नमः। | शुद्ध छवि वाले प्रभु |
9. | परमात्मा | ॐ परमात्मा नमः। | श्रेष्ठ आत्मा |
10. | मुक्तानां परमागति | ॐ मुक्तानां परमागति नमः। | मोक्ष प्रदान करने वाले |
11. | अव्यय | ॐ अव्यय नमः। | हमेशा एक रहने वाले |
12. | पुरुष | ॐ पुरुष नमः। | हर जन में वास करने वाले |
13. | साक्षी | ॐ साक्षी नमः। | ब्रह्मांड की सभी घटनाओं के साक्षी |
14. | क्षेत्रज्ञ | ॐ क्षेत्रज्ञ नमः। | क्षेत्र के ज्ञाता |
15. | पद्मनाभा | ॐ पद्मनाभाय नमः। | जिनके पेट से ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई |
16. | हृषीकेश | ॐ हृषीकेशाय नमः। | सभी इंद्रियों के स्वामी |
17. | योग | ॐ योग नमः। | श्रेष्ठ योगी |
18. | माधव | ॐ माधवाय नमः। | देवी लक्ष्मी के पति |
19. | योगाविदां नेता | ॐ योगाविदां नेता नमः। | सभी योगियों का स्वामी |
20. | प्रधानपुरुषेश्वर | ॐ प्रधानपुरुषेश्वर नमः। | प्रकृति और प्राणियों के भगवान |
21. | नारसिंहवपुष | ॐ नारसिंहवपु नमः। | नरसिंह रूप धरण करने वाले |
22. | भूतभावन | ॐ भूतभावन नमः। | ब्रह्मांड के सभी प्राणियों का पोषण करने वाले |
23. | भाव | ॐ भाव नमः। | सम्पूर्ण अस्तित्व वाले |
24. | श्रीमान् | ॐ श्रीमान् नमः। | देवी लक्ष्मी के साथ रहने वाले |
25. | केशव | ॐ केशवाय नमः। | सुंदर बाल वाले |
26. | उपेन्द्र | ॐ उपेन्द्राय नमः। | इंद्र का भाई |
27. | पुरुषोत्तम | ॐ पुरुषोत्तम नमः। | श्रेष्ठ पुरुष |
28. | सर्व | ॐ सर्व नमः। | संपूर्ण या जिसमें सब चीजें समाहित हों |
29. | शर्व | ॐ शर्व नमः। | बाढ़ में सब कुछ नाश करने वाले |
30. | शिव | ॐ शिव नमः। | सदैव शुद्ध रहने वाले |
31. | स्थाणु | ॐ स्थाणु नमः। | स्थिर रहने वाले |
32. | भूतादि | ॐ भूतादि नमः। | सभी को जीवन देने वाले |
33. | निधिरव्यय | ॐ निधिरव्यय नमः। | अमूल्य धन के समान |
34. | सम्भव | ॐ सम्भव नमः। | सभी घटनाओं में स्वामी |
35. | भावन | ॐ भावन नमः। | भक्तों को सब कुछ देने वाले |
36. | भर्ता | ॐ भर्ता नमः। | सम्पूर्ण ब्रह्मांड के संचालक |
37. | चतुर्भुज | ॐ चतुर्भुजाय नमः। | चार भुजाओं वाले |
38. | प्रभव | ॐ प्रभव नमः। | सभी चीजों में उपस्थित होने वाले |
39. | प्रभु | ॐ प्रभु नमः। | सर्वशक्तिमान प्रभु |
40. | ईश्वर | ॐ ईश्वर नमः। | पूरे ब्रह्मांड पर अधिपति |
41. | स्वयम्भू | ॐ स्वयम्भू नमः। | स्वयं प्रकट होने वाले |
42. | शम्भु | ॐ शम्भु नमः। | खुशियां देने वाले |
43. | आदित्य | ॐ आदित्य नमः। | देवी अदिति के पुत्र |
44. | पुष्कराक्ष | ॐ पुष्कराक्ष नमः। | कमल जैसे नयन वाले |
45. | मत्स्यरूप | ॐ मत्स्यरूपाय नमः। | भगवान मत्स्य – भगवान विष्णु का अवतार |
46. | महास्वण | ॐ महास्वण नमः। | वज्र की तरह स्वर वाले |
47. | अनादिनिधन | ॐ अनादिनिधन नमः। | जिनका न आदि है एयर न अंत |
48. | धाता | ॐ धाता नमः। | सभी का समर्थन करने वाले |
49. | विधाता | ॐ विधाता नमः। | सभी कार्यों व परिणामों की रचना करने वाले |
50. | धातुरुत्तम | ॐ धातुरुत्तम नमः। | ब्रह्मा से भी महान |
51. | अप्रेमय | ॐ अप्रेमय नमः। | नियम व परिभाषाओं से परे |
52. | अमरप्रभु | ॐ अमरप्रभु नमः। | अमर रहने वाले |
53. | विश्वकर्मा | ॐ विश्वकर्मा नमः। | ब्रह्मांड के रचयिता |
54. | मनु | ॐ मनु नमः। | सभी विचार के दाता |
55. | त्वष्टा | ॐ त्वष्टा नमः। | बड़े को छोटा करने वाले |
56. | स्थविरो ध्रुव | ॐ स्थविरो ध्रुव नमः। | प्राचीन देवता |
57. | अग्राह्य | ॐ अग्राह्य नमः। | मांसाहार का त्याग करने वाले |
58. | सममित | ॐ सममित नमः। | सभी प्राणियों में असीमित रहने वाले |
59. | समात्मा | ॐ समात्मा नमः। | सभी के लिए एक जैसे |
60. | सत्य | ॐ सत्य नमः। | सत्य का समर्थन करने वाले |
61. | अच्युत | ॐ अच्युत नमः। | कभी न चूकने वाले |
62. | वसुमना | ॐ वसुमना नमः। | सौम्य हृदय वाले |
63. | वसु | ॐ वसु नमः। | सभी प्राणियों में रहने वाले |
64. | सर्वयोगविनि | ॐ सर्वयोगविनि:सृत नमः। | सभी योगियों के स्वामी |
65. | अमेयात्मा | ॐ अमेयात्मा नमः। | जिनका कोई आकार नहीं है। |
66. | वृषाकपि | ॐ वृषाकपि नमः। | धर्म और वराह का अवतार लेने वाले |
67. | सर्वादि | ॐ सर्वादि नमः। | सभी क्रियाओं के प्राथमिक कारण |
68. | सिद्धि | ॐ सिद्धि नमः। | कार्यों के प्रभाव देने वाले |
69. | सिद्ध | ॐ सिद्ध नमः। | सब कुछ करने वाले |
70. | सर्वेश्वर | ॐ सर्वेश्वर नमः। | सम्पूर्ण ब्रह्मांड के स्वामी |
71. | अज | ॐ अज नमः। | जिनका जन्म नहीं हुआ |
72. | सर्वदर्शन | ॐ सर्वदर्शन नमः। | सब कुछ देखने वाले |
73. | प्रत्यय | ॐ प्रत्यय नमः। | ज्ञान का अवतार कहे जाने वाले |
74. | व्याल | ॐ व्याल नमः। | नाग द्वारा कभी न पकड़े जाने वाले |
75. | सम्वत्सर | ॐ सम्वत्सर नमः। | अवतार लेने वाले |
76. | अह्र | ॐ अह्र नमः। | दिन की तरह चमकने वाले |
77. | प्रजाभव | ॐ प्रजाभव नमः। | भक्तों के अस्तित्व के लिए अवतार लेने वाले |
78. | विश्वरेता | ॐ विश्वरेता नमः। | ब्रह्मांड के रचयिता |
79. | शरणम | ॐ शरणम नमः। | शरण देने वाले |
80. | सुरेश | ॐ सुरेश नमः। | देवों के देव |
81. | आत्मवान | ॐ आत्मवान नमः। | सभी मनुष्य में वास करने वाले |
82. | कृति | ॐ कृति नमः। | कर्मों का फल देने वाले |
83. | कृतज्ञ | ॐ कृतज्ञ नमः। | अच्छाई- बुराई का ज्ञान देने वाले |
84. | दुराधर्ष | ॐ दुराधर्ष नमः। | सफलतापूर्वक हमला न करने वाले |
85. | अनुत्तम | ॐ अनुत्तम नमः। | श्रेष्ठ ईश्वर |
86. | क्रम | ॐ क्रम नमः। | हर जगह वास करने वाले |
87. | विक्रम | ॐ विक्रम नमः। | ब्रह्मांड को मापने वाले |
88. | मेधावी | ॐ मेधावी नमः। | सर्वज्ञाता |
89. | धन्वी | ॐ धन्वी नमः। | श्रेष्ठ धनुष- धारी |
90. | विक्रमी | ॐ विक्रमी नमः। | सबसे साहसी भगवान |
91. | ईश्वर | ॐ ईश्वर नमः। | सबको नियंत्रित करने वाले |
92. | मधुसूदन | ॐ मधुसूदन नमः। | रक्षक मधु के विनाशक |
93. | भूगर्भ | ॐ भूगर्भ नमः। | खुद के भीतर पृथ्वी का वहन करने वाले |
94. | प्रजापति | ॐ प्रजापति नमः। | सभी के मुख्य |
95. | श्रेष्ठ | ॐ श्रेष्ठ नमः। | सबसे महान |
96. | ज्येष्ठ | ॐ ज्येष्ठ नमः। | सबसे बड़े प्रभु |
97. | प्राण | ॐ प्राण नमः। | जीवन के स्वामी |
98. | प्राणद | ॐ प्राणद नमः। | प्राण देने वाले |
99. | ईशान | ॐ ईशान नमः। | हर जगह वास करने वाले |
100. | मंगलपरम् | ॐ मंगलपरम् नमः। | श्रेष्ठ कल्याणकारी |
101. | पवित्रां | ॐ पवित्राम् नमः। | हृदया पवित्र करने वाले |
102. | त्रिककुब्धाम | ॐ त्रिककुब्धाम नमः। | सभी दिशाओं के भगवान |
103. | प्रभूत | ॐ प्रभूत नमः। | धन और ज्ञान के दाता |
104. | भूतभव्यभवत्प्रभ | ॐ भूतभव्यभवत्प्रभवे नमः। | भूत, वर्तमान और भविष्य के स्वामी |
105. | प्रतर्दन | ॐ प्रतर्दन नमः। | बाढ़ के विनाशक |
106. | लोहिताक्ष | ॐ लोहिताक्ष नमः। | लाल आँखों वाले |
107. | शाश्वत | ॐ शाश्वत नमः। | हमेशा अवशेष छोड़ने वाले |
108. | अग्राह्य | ॐ अग्राह्य नमः। | मांसाहार का त्याग करने वाले |
शांति
मंत्र शांति के लिए की जाने वाली हिंदू प्रार्थना है, आमतौर पर धार्मिक
पूजाओं, अनुष्ठानों
और प्रवचनों के अंत में यजुर्वेद के इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है। ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्षँ
शान्ति:,
पृथ्वी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्वँ शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा
मा शान्तिरेधि॥
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥ शान्ति: कीजिये, प्रभु
त्रिभुवन में, जल में, थल में और गगन में,
अन्तरिक्ष में, अग्नि पवन में, औषधि, वनस्पति, वन, उपवन
में,
सकल विश्व में अवचेतन में!
शान्ति राष्ट्र-निर्माण सृजन, नगर, ग्राम
और भवन में
जीवमात्र के तन, मन और जगत के हो कण कण में,
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥