उत्तराखण्ड ;भाजपा सरकार का रिपोर्ट कार्ड- जनता का देवताओं को ज्ञापन ?
उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार का रिपोर्ट कार्ड- उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत राजनीति के चरमोत्कर्ष पर # पूर्व कृषि मंत्री के रूप में त्रिवेंद्र सिंह रावत अब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में 14 माह पूर्ण करने जा रहे हैं, ऐसे में उत्तराखण्ड में कैसे हालात है, क्या कहता है उत्तराखण्ड में त्रिवेन्द्र सरकार का रिपोर्ट कार्ड- उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री अपने राजनीतिक जीवन के चरमोत्कर्ष पर है तथा उनके द्वारा भूतकाल में जो भी पुण्य आदि कार्य किये गये होगे, उसका प्रतिफल उनको मिला और वह प्रदेश के मुखिया बने, परन्तु जिस पुण्य ने उनको यहां तक पहुचाया, वह अब लगातार क्षय हो रहा है # मुख्यमंत्री बनने के बाद उसमें जो उत्तरोत्तर व़द्वि होनी चाहिए थी, वह नही हो पाई, बस दिन कटाई हो रही है, जबकि उनको तो लम्बी पारी का खिलाडी साबित होना चाहिए था, वह हो नही पा रहा है, नौकरशाही उनके आंख कान बने, और ग्रासरूट के माने जाने वाले त्र्रिवेन्द्र आज आमजन से दूर होते दिख रहे हैं, यद यही कारण है कि सितारो की चाल भविष्य में क्या गुल खिला दे- उत्तराखण्ड राज्य को दैवीय शक्तियों के लिए जाना जाता हैै परन्तु यहांं उच्च नौकरशाहो के कार्यकलाप राजनीतिक परिवर्तन के कारण बनते रहे हैं। राजनीतिक मुखिया उच्च नौकरशाहो के सामने नतमस्तक हो जाते हैं, जिससे त्राहिमाम की स्थिति पर आम जनमानस देवीय शक्तियों को पुकारते हैं #उत्तराखण्ड ;भाजपा सरकार का रिपोर्ट कार्ड- नाराज जनता का देवताओं को ज्ञापन # सचिवालय में कैद है बजट मई माह की समाप्ति तक : फिर बरसात, फिर बर्फबारी, फिर आपदा: और अंत में मार्च में बजट की बंदरबांट – यह है बजट की दास्ता
ज्ञात हो -देवभूमि में जब अति हो जाती है तो सूबे की जनता दैवीय शक्तियों को पुकारती है और उनको ज्ञापन देती है- ऐसा ही हुआ जब ग्रामीणों का दल विश्व प्रसिद्व विश्वनाथ मंदिर में पहुंचा। ग्रामीणों ने पुरोहित राकेश नौटियाल को भगवान विश्वनाथ के नाम लिखा ज्ञापन दिया। ज्ञापन में ग्रामीणों ने सड़क निर्माण न होने से ग्रामीणों की व्यथा के बारे में लिखा। साथ ही विश्वनाथ से कामना करते हुए कहा कि अधिकारियों सदबुद्धि दे तथा काम करने की शक्ति प्रदान करे। यह एक अकेला उदाहरण नही है, अनेक प्रसिद्व मंदिरो से इस प्रकार की खबर आ रही है
पूर्व कृषि मंत्री के बाद अब त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं, क्या कह रहा है रिपोर्ट कार्ड- – एक्सक्लूसिव रिपोर्ट- हिमालयायूके के लिए चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक की विशेष प्रस्तुति-
नोट- इस रिपोर्ट कार्ड में हमने सिर्फ समस्याओ को रेखांकित किया है, किसी भी तरह का कोई आरोप आदि नही लगाये गये है, जिसे हम भाजपा हाईकमान को भी भेज रहे हैं
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की बागडोर संभाले करीब चार साल हो चुके हैं. चार साल बाद मोदी सरकार के मंत्री अपने मंत्रालयों को लेकर बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं. लेकिन बीते चार साल में पीएम मोदी के मंत्रियों कामकाज के आधार पर नैशनल मीडिया ने इन मंत्रियों का रिपोर्ट कार्ड तैयार किया है. यह रिपोर्ट कार्ड के देश 50 जाने माने पत्रकारों की टीम ने तैयार किया है. 50 पत्रकारों की इस टीम ने हर मंत्री के कामकाज को देखते हुए नंबर दिए हैं. इस टीम ने मंत्रियों को 10 के पैमाने पर नंबर दिए हैं. यानी रिपोर्ट कार्ड में जिस मंत्री के ज्यादा नंबर हैं, वो पास हैं, जिनके कम नंबर हैं वो फेल हैं. पांच सबसे अच्छे मंत्रियों की लिस्ट में टॉप पर सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी हैं. एक्सपर्ट्स की टीम ने नितिन गडकरी के कामकाज को सबसे ज्यादा सराहा है,
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के ग्रह उन्हें राजनीतिक संत जैसा बनाते हैं। ध्रुव योग और सूर्य के नक्षत्र में जन्में त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुडली में भी शनि चंद्र की युति उनके राजनीतिक करियर के लिए मिला-जुला संकेत देते है। त्रिवेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड को नई ऊंचाई देने का प्रयास करेगे, लेकिन उन्हें कई परेशानियों का भी सामना करना पड़ेगा। त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुंडली कर्क लग्न और कर्क राशि की है,जिसमें लग्नेश की महादशा में राहू के अन्तर पर चंद्रमा का प्रत्ययंतर है। इससे उन्हें मानसिक तनाव के दौर से भी गुजरना होगा।
ध्रुव योग और सूर्य के नक्षत्र में जन्में त्रिवेंद्र सिंह रावत की कुडली में भी शनि चंद्र की युति उनके राजनीतिक कैरियर के लिए अच्छा संकेत नहीं है। जिस समय त्रिवेंद्र सिंह रावत ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की, उस समय कर्क लग्न और मीन राशि थी। यह प्रदेश के लग्न और राशि का प्रतिमान काल है। उत्तराखंड की कुंडली में कर्क लग्न में मीन राशि के साथ राहू द्वादश भाव में विराजमान है। ज्ञात हो कि जिस समय मतदान शुरु हुआ था और जिस दिन मतगणना हुई, दोनों दिन ग्रहण योग लगा हुआ था, इसलिए सत्ता परिवर्तन के योग बने। चूंकि ग्रहण योग में चुनाव हुआ है और ग्रहण योग में ही मतगणना हुई है, अतः सरकार के पूर्ण बहुमत की होने के बाद भी स्थिर होने में संशय है। इसके अलावा जिस समय त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की, उस समय कर्क लग्न और मीन राशि थी। यह प्रदेश के लग्न और राशि का प्रतिमान काल है। इस राज्य में नारायण दत्त तिवारी के अलावा किसी मुख्यमंत्री ने अपना 5 साल का कार्यकाल पूर्ण नहीं किया है।
उत्तराखंड में एक मिथक यह भी है कि जो मुख्यमंत्री एक बार बन गया वह दोबारा चुनाव जीतकर भी मुख्यमंत्री नहीं बन पाया। 2012 में भाजपा ने खंडूड़ी को मुख्यमंत्री के रूप में चुनाव लड़वाया। उन्हें चुनाव मैदान में उतारकर मुख्यमंत्री के रूप में फिर से पेश किया। परंतु खंडूड़ी मुख्यमंत्री रहते हुए कोटद्वार विधानसभा चुनाव से कांगे्रस के उम्मीदवार सुरेन्द्र सिंह नेगी से चुनाव हार गए। इसी तरह इस बार विधानसभा चुनाव में कांगे्रस ने हरीश रावत को एक नहीं बल्कि दो-दो विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव मैदान में उतारा। और नारा दिया-उत्तराखंड रहे खुशहाल-हरीश रावत पूरे पांच साल। इस तरह कांग्रेस ने रावत को मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में चुनाव मैदान में पेश किया। रावत दोनों विधानसभा क्षेत्रों से चुनाव हार गए। इस तरह उत्तराखंड की जनता मुख्यमंत्री के रूप में चुनाव में पेश किए गए किसी भी मुख्यमंत्री को पसंद नहीं करती है।
उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव को लेकर जो सियासी मिथक पहले विधानसभा चुनाव से चले आ रहे थे, वे मिथक इस विधानसभा चुनाव में भी नहीं टूटे। उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव 2002 में हुए थे। तब गढ़वाल मंडल की गंगोत्री और कुमाऊं मंडल की रानीखेत विधानसभा सीट को लेकर जो मिथक बने थे। वे इस विधानसभा चुनाव में भी नहीं टूटे हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और उनकी रानीखेत विधानसभा सीट से जो दिलचस्प मिथक 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में बना था वह मिथक 2017 के विधानसभा चुनाव में भी कायम रहा। उधर मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट किए गए उम्मीदवार को यहां की जनता नकार देती है। भुवन चंद्र खंडूड़ी और हरीश रावत इसके उदाहरण हैं। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से यह मिथक जुड़ा हुआ है कि वे रानीखेत विधानसभा सीट से जब-जब चुनाव हारते हैं तब-तब उत्तराखंड में भाजपा की सरकार बनती है और जब-जब वे चुनाव जीतते हैं तब-तब उत्तराखंड में भाजपा की सरकार नहीं बनती है। 2002 में जब अजय भट्ट रानीखेत विधानसभा सीट से चुनाव हारे तो उत्तराखंड में भाजपा सत्ता से दूर हो गई और सूबे में नारायण दत्त तिवारी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई। 2007 में भट्ट रानीखेत विधानसभा सीट से चुनाव हारे तो सूबे में भुवन चंद्र खंडूड़ी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बन गई। 2012 के विधानसभा चुनाव में भट्ट रानीखेत विधानसभा सीट पर चुनाव जीते तो भाजपा को सूबे में सत्ता से हाथ धोना पड़ा और विजय बहुगुणा के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बन गई। इस बार के विधानसभा चुनाव में अजय भट्ट रानीखेत विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार करन माहरा से करीब पांच हजार वोटों से हारे तो सूबे में भाजपा की प्रचंड बहुमत से सरकार बन गई। इस तरह अजय भट्ट की रानीखेत विधानसभा सीट से जीत और हार सूबे की सत्ता के समीकरणों को तय करती है। भट्ट की हार भाजपा के लिए सूबे में सत्ता पाने के लिए शुभ होती है और भट्ट की जीत भाजपा को सत्ता से बेदखल कर देती है।
इसी तरह गढ़वाल मंडल के उत्तरकाशी जिले की गंगोत्री विधानसभा सीट के बारे में 1952 से बना यह मिथक इस चुनाव में भी कायम रहा। इस सीट पर जिस राजनीतिक दल का उम्मीदवार जीतता है, राज्य में उसी दल की सरकार बनती है। उत्तराखंड में 2002 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में गंगोत्री विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार विजयपाल सिंह सजवाण चुनाव जीते तो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी । 2007 में भाजपा के उम्मीदवार गोपाल सिंह रावत जीते तो सूबे में भाजपा की सरकार बनी और 2012 में फिर सजवाण इस सीट पर जीते तो कांगे्रस की सरकार बनी। इस बार विधानसभा चुनाव में फिर से भाजपा के गोपाल सिंह रावत चुनाव जीते और सूबे में भाजपा की सरकार बन गई। इस तरह उत्तराखंड के विधानसभा चुनाव को लेकर और कई मिथक भी सूबे के गठन के साथ ही बने हुए हैं। जो अब तक चले आ रहे हैं।
शिक्षा और पेयजल मंत्री – दोबारा से चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच पाता
उत्तराखंड के बारे में एक मिथक यह भी है कि जो राजनेता शिक्षा और पेयजल मंत्री होगा। वह दोबारा से चुनाव जीतकर विधानसभा नहीं पहुंच पाता है। हरीश रावत सरकार ने पेयजल और शिक्षा मंत्री रहे मंत्री प्रसाद नैथानी देवप्रयाग विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। 2002 में उत्तराखंड की पहली निर्वाचित सरकार में शिक्षा मंत्री रहे नरेंद्र सिंह भंडारी और पेयजल मंत्री रहे शूरवीर सिंह सजवाण 2007 में दोनों ही विधानसभा चुनाव हार गए। इसी तरह भाजपा सरकार में शिक्षा मंत्री रहे गोविन्द सिंह बिष्ट खजानदास और पेयजल मंत्री रहे प्रकाश पंत 2012 में विधानसभा चुनाव हार गए थे। इसी तरह हरक सिंह रावत के बारे में यह मिथक है कि वे राजगठन से लेकर अब तक हर बार सीट बदलकर चुनाव जीत जाते हैं। यह मिथक रावत के बारे में इस बार भी सही साबित हुआ। 2002 और 2007 में वे कांग्रेस के टिकट पर लैंसडॉन से विधानसभा चुनाव जीते थे। 2012 में सीट बदलकर रूद्रप्रयाग से कांग्रेस के टिकट पर जीत हासिल की। फिर भाजपा के टिकट पर उन्होंने सीट बदलकर कोटद्वार से चुनाव लड़ा और कांग्रेस सरकार के स्वास्थ्य मंत्री सुरेन्द्र सिंह नेगी को चुनाव हराकर जीत हासिल की। इस तरह उत्तराखंड के बारे में 2002 के चुनाव में जो चुनावी मिथक बने थे वे अब तक कायम है।
REPORT CARD ;
त्रिवेन्द्र रावत सरकार को जिस तरह का प्रचण्ड बहुमत मिला, उनके कार्य में ऐसा कोई प्रचण्ड आवेग देखने को नही मिल रहा, जिससे राज्य में एक संदेश जाता, आज नकारात्मकता पूरे प्रदेश में व्याप्त है कि त्रिवेन्द्र सरकार से ऐसी उम्मीद नही थी, और नौकरशाही हावी है, जिससे यह कहा जाने लगा है कि घुडसवार से ज्यदा घोडा हावी है,
उत्तराखण्ड में स्वच्छ पानी, बिजली, स्वास्थ्य सुविधाएं एवं कम खर्च पर स्तरीय शिक्षा उपलब्ध करवाना सरकारों की जिम्मेदारी होती है परन्तु सरकारें दोनों ही यह जिम्मेदारी निभाने में बुरी तरह विफल रही हैं। सरकारी अस्पतालों की भांति सरकारी स्कूलों की दशा भी अत्यंत खराब है और वहां स्वच्छ पानी, शौचालयों और लगातार बिजली जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव है। अनेक स्कूलों में तो बच्चों के बैठने के लिए टाट, ब्लैकबोर्ड व अध्यापकों के लिए कुर्सियां और मेज तक नहीं हैं। स्कूलों में अध्यापकों व अन्य स्टाफ की भी भारी कमी है। अनेक स्कूलों की इमारतें इस कदर जर्जर हालत में हैं कि वहां किसी भी समय कोई बड़ी दुर्घटना हो सकती है।
वही उत्तराखण्ड प्रदेश का कर्जा बढ़कर 3200 करोड़ से भी ज्यादा हो गया है। सितंबर में 400+500= 900 करोड़ बाजार से कर्ज लिया था। अब एक दिन बाद 25 अक्टूबर, 2017 को 500 करोड़ करोड़ फिर लिये। आरबीआई भी मेहरबान हो गयी, कर्ज लेने की सीमा 5850 करोड़ से बढ़ाकर 6422 करोड़ कर दी गयी। कुल मिलाकर कर्ज में चलने वाली उत्तराखण्ड की त्रिवेन्द्र रावत सरकार मानी जा रही है जो कर्ज लेकर विदेशो में भमण कर रही है, उत्तराखण्ड राज्य सृजन के समय से ही अपने आय के स्रोत विकसित करने के बजाय साल दर साल लिये जा रहे बेहिसाब कर्जों का क्रम आज तक नहीं टूटा है। लगता है इन कर्जों से हमें कभी भी मुक्ति मिलने वाली नहीं है?
थाईलैण्ड की ऐतिहासिक यात्रा कर आये, संत्री मंत्री सलाहकार सब विदेश भी घूम आये, खनन, आबकारी के भी ई टेण्डरिंग हो गये, परन्तु 14 माह में सुई तक का तो कोई कारखाना विदेश से आया नही है, मुखिया शायद सलाहकार से दूर है,
नौकरशाहो और मंत्रियों की विदेश यात्रा से कोई परिणाम नही निकला- वही दूसरी ओर राज्य में निवेश बढ़ाने के लिए उत्तराखण्ड सरकार अक्टूबर में इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन करने जा रही है. इस दो दिवसीय समिट के उद्घाटन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया जाएगा. इन्वेस्टर्स समिट से पहले चार मिनी कॉन्क्लेव का आयोजन किया जाएगा.
आम जन किसी ठोस परिणाम की आशा कर रहा था, वो अब तक दिख नही सका, न हो पाया
मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में यह फ़ैसला किया गया. कि सचिवालय में उत्तराखण्ड इन्वेस्टर्स समिट 2018 की बैठक में तय किया गया कि टिहरी, ऊधमसिंह नगर, नैनीताल और हरिद्वार में मीट से पहले मिनी कॉन्क्लेव आयोजित किया जाएगा. टिहरी में वेलनेस और पर्यटन कॉन्क्लेव, उधमसिंह नगर में खाद्य प्रसंस्करण और ऑटो, नैनीताल में फिल्म शूटिंग एवं पर्यटन और हरिद्वार में आयुर्वेद, हर्बल, ऐरोमेटिक एवं आयुष कॉन्क्लेव का आयोजन किया जाएगा. उत्तराखण्ड में मौजूद पूंजी निवेश के बारे में बेंगलुरु, हैदराबाद, मुम्बई, दिल्ली, कोलकाता आदि प्रमुख स्थानों पर रोड शो किया जाएगा. इसके लिए निवेश के अनुकूल 12 क्षेत्रों को चुना गया गया है. इनमें प्रमुख रूप से खाद्य प्रसंस्करण, वानिकी, फ्लोरीकल्चर, पर्यटन और हॉस्पिटेलिटी, वेलनेस और आयुष, ऑटोमोबाइल और कॉम्पोनेन्ट, फर्मा, सेरीकल्चर और नेचुरल फाइबर, आईटी, हर्बल और एरोमेटिक उत्पाद, रिन्यूबल एनर्जी, फिल्म शूटिंग और बायो टेक्नोलॉजी की शो केसिंग की जाएगी. इन्वेस्टर्स मीट का मुख्य आयोजन देहरादून के अंतर्राष्ट्रीय स्पोर्ट्स स्टेडियम रायपुर में किया जाएगा. यहां पर उपलब्ध औद्योगिक इकाई स्थापित करने की सुविधाओं की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी.
गौरतलब है इकोनोमिक टाईम्स बिजनेस न्यूज के अनुसार-
सरकार चिंतित है। सरकार अब जानना चाहती है कि आखिर क्या वजह है कि करोड़पति भारत छोड़कर विदेश जा रहे हैं # देश के अमीरों को भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर विदेश बसानेे का धंधा जोर पकड़ रहा है# पिछले 4 वर्षों में भारत से आनेवाले एप्लिकेशंस में 40% बढ़ोतरी #अमीर भारतीयों से मोटी कमाई कर रहे हैं ऐसे छोटे देश
अपनी कमजोर माली हालत सुधारने के लिए एंटीगुआ सरीखे छोटे देशों ने ऐसी स्कीम्स बना ली हैं, जिनके तहत एक सरकारी फंड में कॉन्ट्रिब्यूशन या एक रियल एस्टेट इनवेस्टमेंट के जरिए कुछ महीनों की नागरिकता हासिल की जा सकती है। इन देशों में आवेदक को केवल 50 हजार डॉलर यानी करीब 34 लाख रुपये देने होते हैं। इन देशों में विदेशी इनकम, कैपिटल गेन, इंपोर्ट, गिफ्ट, उत्तराधिकार में मिली संपत्ति पर कोई टैक्स नहीं लगता
पिछले 4 वर्षों में 23,000 करोड़पति छोड़ चुके हैं देश : रिपोर्ट
देश के अमीरों को भारतीय पासपोर्ट सरेंडर कर डोमिनिका, सेंट लूसिया, एंटीगुआ, ग्रेनाडा, सेंट किट्स, माल्टा या साइप्रस सरीखी जगहों की नागरिकता दिलाने का धंधा जोर पकड़ रहा है। इस काम में दुबई और दूसरे फाइनैंशल सेंटर्स से काम कर रहीं कंपनियां जुटी हुई हैं। ये कंपनियां भारत के वेल्थ मैनेजरों, टैक्स प्रैक्टिशनर्स और वकीलों के बीच अपने संभावित क्लाइंट्स ढूंढ रही हैं। कई मालदार भारतीय टैक्स कम चुकाने की गुंजाइश बनाने और मनमाफिक कारोबारी माहौल के लिए यह रास्ता पकड़ते हैं। कुछ अन्य अपनी कारगुजारियों की भनक भारतीय जांच एजेंसियों को लगने से पहले भारतीय अदालतों के दायरे से निकल भागने के लिए ऐसा करते हैं। इकनॉमिक टाइम्स ने ऐसी कुछ कंपनियों से संपर्क किया, जो 3-4 महीनों की सिटिजनशिप दिलाने में मदद करती हैं। इसके लिए वे क्लाइंट्स से एक लाख से लेकर 2.4 लाख डॉलर तक वसूलती हैं। (Link; Detail Report: https://himalayauk.org/citizen-investment-company-report/
उम्मीदों की सरकार सत्तासीन हुई तो पहाड़ की जनता को कई उम्मीदें जगीं- नाउम्मीद करा दिया
देवभूमि उत्तराखंड में साल भर पहले उम्मीदों की सरकार सत्तासीन हुई तो पहाड़ की जनता को कई उम्मीदें जगीं. संकल्प पत्र में भाजपा ने कई वादे किए थे और उन पर अमल करने का दावा भी. अब साल भर पूरा होने पर सरकार अपनी उपलब्धियां गिना रही है तो विपक्ष सरकार को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा. 18 मार्च, 2017 को उत्तराखंड में त्रिवेन्द्र सरकार सत्ता में आई तो लोगों ने खूब नारे लगाए कि अब डबल इंजन की सरकार देवभूमि के विकास को और अधिक रफ्तार देगी. मुख्यमन्त्री बनते ही त्रिवेन्द्र सिंह रावत एक्शन में आए और विकास कार्यों पर खरा उतरने के साथ ही संकल्प पत्र के वादों को पूरा करने की कवायद भी शुरू कर देेेेेगी, छोटे से राज्य में भाजपा सरकार आते ही मोदी सरकार भी मेहरबान हो गयी और उत्तराखंड पर धन की बरसात शुरू हो गई. ऐसा सपना जगाया, सालभर में सरकार ने विकास कार्यों की दिशा में कई उपलब्धियां हासिल करने का दावा किया है. सरकार दावा कर रही है कि करप्शन के मामले में ज़ीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई गई है. एनएच 74 घोटाले में कई अफसर जेल में हैं. स्थानांतरण प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए ट्रांसफर एक्ट लागू किया गया है. लोगों की शिकायतों पर सुनवाई के लिए हेल्पलाइन 1905 शुरू की गई है. ऊर्जा विभाग के राजस्व में 200 करोड़ की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है. परिवहन विभाग ने भी सालभर में 140 करोड़ की बढ़ोत्तरी दर्ज की है. खनन विभाग में पहली बार ई ऑक्शन प्रणाली से राजस्व में 27 फीसदी वृद्धि हुई है. अब सरकार की ओर से विकास पर खरा उतरने का दावा किया जा रहा है. पहाड़ में डॉक्टर चढ़ा दिए गए हैं, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोज़गार की दिशा में कवायद का दावा किया जा रहा है और विज़न 2020 पर तेजी से काम किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर सरकार के विकास के दावों पर सवाल निरंतर खड़े हो रहे है क्योकि धरातल पर कुछ करने में नाकाम रही है राज्य सरकार, बहरहाल सरकार अपने दावों पर खरा उतरने का दावा कर रही है परन्तु इसके बाद भी कठघरे में खड़ीी है सरकार. फिलहाल सरकार के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं क्योंकि जनता नेताओं की बयानबाजी नहीं कामकाज पर भरोसा करती है.
उत्तराखंड राज्य को बने हुए 17 साल बीत चुके हैं, इन 17 सालों में राज्य का विकास हुआ हो या नहीं लेकिन राज्य के ऊपर कर्ज बहुत बढ़ गया है. पहली बार राज्य में 57 विधायकों की सरकार है. जिससे प्रदेश वासियों को काफी उम्मीदें हैं. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने जब सूबे की सत्ता संभाली तो उत्तराखंड के सिर पर 40 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था. जो लगातार बढ रहा है,
एक साल में सरकार ने जो भी कर्ज लिया
वही त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राज्य के खजाने को बचाने और बढ़ते कर्ज से मुक्ति दिलाने की जिम्मेदारी वित्त मंत्री प्रकाश पंत को दी है. प्रकाश पंत ने बताया कि एक साल में सरकार ने जो भी कर्ज लिया है वो जरूरत के मुताबिक लिया है. राज्य के वित्त मंत्री के मुताबिक एक साल में राज्य सरकार ने जहां वित्तीय प्रबंधन को सुधारा है, तो वहीं केंद्र से मिल रही आर्थिक मदद से ऑल वेदर रोड, नमामि गंगे और रेलवे प्रोजेक्ट पर काम आगे बढ़ रहा है. प्रकाश पंत के मुताबिक उन्हें जब वित्त विभाग की जिम्मेदारी मिली थी, तो स्थिति बिगड़ी हुई थी. जिसे दुरुस्त करने का काम किया जा रहा है और सरकार शत-प्रतिशत पैसा का सही उपयोग करेगी. सरकार बीते एक साल में प्रबंधन बेहतर करने की बात कर रही है. जबकि विपक्ष डबल इंजन की सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है. विशेषज्ञ मानते हैं कि उत्तराखंड बीते 17 सालों से वित्तीय प्रबंधन की चुनौती झेल रहा है. जिस पर किसी भी सरकार का ध्यान नहीं गया और पहाड़ में आजीविका का संकट बढ़ा है.त्रिवेंद्र सरकार का एक साल 18 मार्च को पूरा हो गया है. ताजपोशी के बाद मुख्यमंत्री ने ‘हर घर बिजली, घर-घर बिजली’ का नारा दिया था. प्रदेश में नई जलविद्युत परियोजनाओं से प्रदेश को ऊर्जा प्रदेश बनाने और अर्थव्यवस्था समृद्ध करने की भी बात कही थी, लेकिन क्या ऐसा हुआ है? यह चुनावी जुमला साबित हुआ,
वादा किया था ; सपना दिखाया था-
राज्य गठन के समय उत्तराखंड को ऊर्जा प्रदेश के रूप में बदलने का सपना देखा गया था. वादा किया था कि यहां हर घर को बिजली मिलेगी और नदियों से इतना बिजली उत्पादन किया जाएगा कि प्रदेश ही नहीं देश के अन्य राज्यों को भी बिजली बेची जाएगी. यह भी कहा गया था कि राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देने का ये बड़ा ज़रिया बनेगा. लेकिन यह सपना सपना ही रह गया और आज आलम यह है कि दूसरों राज्यों में बिजली देने की बात तो दूर खुद ही आज प्रदेश के करीब साढ़े तीन लाख परिवार बिजली से वंचित हैं. हालांकि सरकार के पास ऊर्जा क्षेत्र में गिनाने के लिए बहुत कुछ है. साल भर में सरकार ने बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोई कार्य नहीं किया है. जबकि कई परियोजनाएं केंद्र में लंबित पड़ी हैं क्योंकि राज्य सरकार परियोजनाओं को लेकर केंद्र से बात नहीं करती. राज्य गठन के समय प्रदेश में केवल नौ मिलियन यूनिट बिजली खर्च होती थी. लेकिन आज करीब 40 मिलियन यूनिट बिजली की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन अभीतक एक भी नई परियोजना ने काम करना शुरू नहीं किया है. जब यूपीएएल हर साल करोड़ों की बिजली खरीदता है और घाटे की ओर बढ़ता जा रहा है तो यह कैसा ऊर्जा प्रदेश है?
मई 2018 समाप्त की ओर; बजट सचिवालय में कैद है
वही 3 Mar 2018 को बजट आया था, बजट का पैसा अभी तक तो विभागो में आया नही है, हालांकि शासन में सचिव भी अपर सचिव भी, विभाग मुखिया भी एक ही अधिकारी बैठे है, ऐसे में बजट सचिवालय में कैद है, विकास की चिडिया फुर्र उड चुकी है, वही
सबसे बड़ी चुनौती, सूबे के 10 लाख कर्मचारियों की हड़ताल पर जाने की चेतावनी है,
एक साल पुरानी उत्तराखंड सरकार के सामने अब तक की सबसे बड़ी चुनौती सामने आ गई है. इतनी बड़ी चुनौती शायद 17 साल के इतिहास में किसी सरकार के सामने नहीं आई.
गैरसैंण में चल रहे विधानसभा के बजट सत्र में वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने 45585 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल का यह दूसरा बजट है। पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में त्रिवेंद्र सरकार ने 39957.20 करोड़ का बजट पेश किया था। वित्तीय वर्ष 2017-18 के मुकाबले यह 14.08 प्रतिशत ज्यादा है।
त्रिवेंद्र सरकार का दूसरा बजट रखते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि बजट ईज ऑफ डुईंग के साथ ईज ऑफ लिविंग की दिशा स्थापित करता है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि इस बजट से पहाड़ से मैदान तक, किसान से मजदूर तक, पर्यटन से लेकर पलायन रोकने तक, हर क्षेत्र का पूरा ख्याल रखा गया है। बजट में सरकार ने दिखा दिया है कि युवाओं को रोजगार देने, स्वरोजगार को बढ़ावा देने और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के प्रति पूरी तरह गंभीर है। इसका स्पष्ट और ठोस रोडमैप बजट में साफ नजर आ रहा है।
ग्राम्य विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकार का फोकस रहा है। इसका उद्देश्य उत्तराखंड में पलायन की समस्या पर काबू पाना है। वहीं पुलिस के आतंरिक ढांचे को मजबूत करने पर भी सरकार का ध्यान गया है। शिक्षा के बाद सर्वाधिक बजट ग्राम्य विकास को मिला है। बजट में देखें तो पहले नंबर पर शिक्षा, दूसरे पर ग्राम्य विकास, तीसरे पर हेल्थ सेक्टर, चौथे पर सड़क और पुल निर्माण, पांचवें पर आंतरिक सुरक्षा (गृह) और छठे नंबर पर आपदा प्रबंधन को सरकार ने प्राथमिकता दी है।
सूचना विभाग को 86 करोड़ 46 लाख 46 हजार का बजट दिया गया, जबकि इससे पूर्व यह 40 के आसपास रहता था,परन्तु बजट दोगुना होने के बाद भी जून माह शुरू होने वाला है और बजट विभागो में नही आ पाया, यह स्थिति तब है, जब विभागाध्यक्ष भी तथा शासन में अपर सचिव भी, सचिव भी एक ही आई0ए0एस0 को बैठाया गया है,
जून माह वर्ष का छठा माह बाद भी विभागाेे में बजट नही आ पाया- इसके उपरांत सूबे में भारी बरसात में 3 माह बजट वैसे ही डम्प पडा रहेगा-
निर्वाचन विभाग को 54 करोड़ 12 लाख का बजट , आबकारी विभाग को 26 करोड़ 98 लाख का बजट
लोक सेवा आयोग को 48 करोड़ 27 लाख का बजट , पुलिस एवं जेल विभाग को 1935 करोड़ 61 लाख 19 हजार का बजट
शिक्षा खेल एवं युवा कल्याण और संस्कृति विभाग को सात हजार 701 करोड़ 61 लाख 45 हजार का बजट
चिकित्सा एवं परिवार कल्याण विभाग को 2286 करोड़ 56 लाख 60 हजार का बजट, आवास एवं नगर विकास विभाग को 1636 करोड़ 4 लाख 34 हजार , सूचना विभाग को 86 करोड़ 46 लाख 46 हजार का बजट , कृषि विभाग को 9666 करोड़ 76 लाख 7 हजार का बजट , सहकारिता विभाग को 94 करोड़ 8 लाख 87 हजार का बजट , ऊर्जा विभाग को 319 करोड़ 93 लाख 92 हजार का बजट लोक निर्माण विभाग को 2053 करोड़ 92 लाख 35 हजार का बजट , परिवहन विभाग को 273 करोड़ 61 लाख 53 हजार का बजट पर्यटन विभाग को 183 करोड़ 36 लाख 58 हजार का बजट , वन विभाग को 808 करोड़ 55 लाख 40 हजार का बजट
राजधानी में पेयजल संकट तो प्रदेश के सुदूरवर्ती क्षेत्रो की क्या हालत होगी- सहज अंदाजा लगाया जा सकता है-
राज्य गठन के 18 साल बाद भी पेयजल किल्लत बनी हुई है। जबकि मानकों के अनुरूप पानी पाने का अधिकार उपभोक्ताओं का हैं। सभी को समुचित पानी उपलब्ध हो, यह तभी संभव है, जब हम दीर्घकालिक योजनाओं पर काम करें और जल स्रोतों के संरक्षण के लिए भी पुख्ता इंतजाम हो। जबकि आज की तस्वीर इससे उलट है। प्रदेश में इस समय 500 पेयजल स्रोत सूखने के कगार पर हैं और इनके दीर्घकालिक समाधान की जगह हमारे अधिकारी फौरी उपाय पर ही बल दे रहे हैं। इस वर्ष भी गर्मियों में पेयजल संकट से जूझने के लिए जल संस्थान ने अस्थायी व्यवस्था पर 14.27 करोड़ रुपये खर्च करने का निर्णय लिया।
प्रदेशभर में पेयजल की स्थिति पर गौर करें तो पता चलता है कि जल संस्थान ने ही 1544 इलाकों को अभावग्रस्त श्रेणी में रखा है। इनमें सबसे अधिक 391 इलाके उस देहरादून जिले के हैं, जहां की अधिकांश जलापूर्ति ट्यूबवेल पर निर्भर है। यह निर्भरता भी इसलिए है कि दून में नदी व झरने आधारित स्रोत ना के बराबर हैं और इनका जलप्रवाह पहले से ही काफी कम हो चुका है। यदि हमारे अधिकारी कल के जल के प्रति गंभीर होते तो आज धड़ाधड़ नए ट्यूबवेल निर्माण की जगह ग्रेविटी आधारित योजनाओं का निर्माण कर चुके होते।
मुख्यमंत्री ने शहरी परिवारों को जलापूर्ति सीवरेज, ड्रेनेज तथा शहरी परिवहन उपलब्ध करने हेतु चलाई जा रही अमृत योजना की समीक्षा भी की। उन्होंने भारत सरकार से इस योजना से कुछ नये शहरों को शामिल करने का अनुरोध करने हेतु प्रस्ताव बनाने को कहा। वर्तमान में देहरादून, हरिद्वार, हल्द्वानी, रूड़की, रूद्रपुर, काशीपुर तथा नैनीताल 07 मिशन शहर इस योजना में हैं। बताया गया कि 593 करोड़ रूपये की कुल 138 योजनाओं के सापेक्ष 80 की डीपीआर मंजूर हो गई है तथा कार्य प्रगति पर है। शेष 58 योजनाओं में डीपीआर मंजूरी का कार्य अथवा शासनादेश निर्गत होने का कार्य लंबित है। मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिये कि डीपीआर मंजूरी से लेकर कार्यपूर्ण होने तक हर एक चरण की माॅनिटरिंग करें। केन्द्र सरकार को जो भी यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भेजना है उसे समय पर भेजें।
नियमित जलापूर्ति और वनाग्नि नियन्त्रण पर भी दिये निर्देश – राजधानी में ही जलापूर्ति की स्थिति देख पाते मुख्यमंत्री- अमृत योजना का क्या हस्र चल रहा है, सिर्फ बजट खर्च करने का माध्यम बना है यह, पाईप बिछा दिये गये, परन्तु इन पाइपो को पानी से कहां से जोडा जायेगा, नल-जल योजनाओं से कैसे जोड़ा जाएगा. कोई देखने वाला नही है, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना उत्तराखण्ड में असफल साबित हुई है,
अल्मोड़ा में पूर्व सैनिकों की बैठक में नगर की ज्वलंत समस्याओं पर चर्चा की गई। वक्ताओं ने कहा कि जल संस्थान की ओर से कुछ मोहल्लों में तो निर्धारित एक घंटा पेयजल उपलब्ध कराया जा रहा है, वहीं कुछ मोहल्लों में जैसे धारानौला, पोखरखाली, बुद्धिपुर तथा ढूंगाधारा इलाकों में आधा या पौन घंटा ही पानी की आपूर्ति की जा रही है। कहा कि जल संस्थान उपभोक्ताओं को निर्धारित अवधि तक पेयजल तो उपलब्ध नहीं करा पा रहा है, वहीं बिल हर माह पूरा वसूल रहा है। वक्ताओं ने पेयजल लाइन में मीटर लगा कर उसकी मीटर रीडिंग के आधार पर ही जल मूल्य वसूलने की मांग उठाई।
द्वाराहाट विकासखंड की छतगुल्ला ग्राम पंचायत में पेयजल योजना के लिए मिले पाइप रेलिंग में चिन दिए गए। पुरानी दीवार को नया दिखा बजट ठिकाने लगा दिया गया। यही नहीं स्वच्छ भारत अभियान के तहत बने शौचालय में तक धांधली कर दी गई। मामला पकड़ में आने के बाद खंड विकास अधिकारी ने बजट पर रोक लगा दी है। ब्लॉक के दूरस्थ छतगुला ग्राम पंचायत में विकास कायरें के लिए मोटा बजट आवंटित हुआ। ग्रामीणों के अनुसार सौर ऊर्जा, शौचालय निर्माण, मनरेगा, पेयजल योजना आदि का निर्माण कराया जाना था। सूत्रों की मानें तो कागजों में सब कुछ ठीक दर्शाया गया। ग्रामीण मुखर हुए। भारी धांधली की जांच की मांग उठी। जनदबाव में वर्ष 2016-17 में जांच बैठी लेकिन ठंडे बस्ते में डाल दी गई।
चौखुटिया में सुनवाई न होने के बावजूद बरलगांव के ग्रामीणों के हौसले बुलंद है। सिंचाई पंपिंग योजना की मांग को लेकर 22 वें दिन भी विकास खंड मुख्यालय में उनका आंदोलन जारी है। बुधवार को आठवें दिन भी गांव की दो महिलाएं क्रमिक अनशन में बैठीं तथा आधा दर्जन ग्रामीणों ने समर्थन में धरना दिया। इस दौरान ग्रामीणों ने विभाग व शासन के खिलाफ नारेबाजी की। कहा कि जब तक मांग पूरी नहीं हो जाती उनका आंदोलन जारी रहेगा।
क्रमिक अनशन की श्रंखला को आगे बढ़ाते हुए आज गोबिंदी देवी व भगवती देवी क्रमिक अनशन में बैठी। जिन्हें पूर्व प्रधान कमला देवी ने माल्यार्पण कर बिठाया। इससे पहले सातवें दिन के क्रमिक अनशनकारियों को गोबिंद सिंह ने जूस पिलाकर उठाया। समर्थन में कमला देवी, प्रदीप मिश्रा, हर्ष नाथ, देवकी देवी, रेखा, काजल, आशा देवी, खिमुरी देवी, लीला देवी, जसुली, हीरा व चंपा देवी ने धरने में सहभागिता की।
इस दौरान महिलाओं ने 22 दिन बीत जाने के बाद भी मांग पर कोई सुनवाई न होने से आक्रोश व्यक्त कर कहा कि अब वे मांग मनवाकर ही दम लेंगे। चाहे उन्हें आमरण अनशन ही क्यों न करना पड़े, किसी भी सूरत में पीछे नहीं हटेंगे। इसके लिए दो वृद्ध महिलाओं ने भूख हड़ताल में बैठने के लिए सहमति भी जताई। इधर प्रधान संगठन के अध्यक्ष मोहन सिंह व राजेंद्र सिंह समेत कई अन्य प्रधानों ने अपना समर्थन व्यक्त किया।
रानीखेत/ अल्मोड़ा में पेयजल योजनाओं के रखरखाव में प्रत्येक वर्ष करोड़ों खर्च। कागजों में सब कुछ ठीक। मगर ऐन गर्मी से पूर्व फिर वही पानी के लिए त्राहि त्राहि। सटीक जल नीति व योजना का अभाव ही कहेंगे कि पानी की तरह बजट बर्बाद करने के बावजूद जल संकट से पार पाना मुश्किल हो रहा। आलम यह है कि योजनाओं की मरम्मत व रखरखाव के नाम पर मोटी रकम बहाने के बाद अबकी संभावित चुनौती से निपटने को 12.35 करोड़ रुपये का अनुमोदन किया गया है। 8.85 करोड़ बाकायदा मिल भी गया है।
पंपिंग पेयजल योजनाओं पर बेशक करोड़ों रुपये हर वर्ष बहाए जाते हैं, मगर संबंधित जलस्रोतों व नदियों के संरक्षण तथा संवर्द्धन की ठोस नीति के अभाव में नतीजा वही शिफर। रानीखेत उपमंडल में ही बीते वर्ष योजनाओं के रखरखाव व मरम्मत आदि में करीब दो करोड़ का बजट खर्च किया गया। लेकिन स्रोतों में 25 फीसद पानी कम होने से पर्याप्त जलापूर्ति चुनौती साबित हो रही।
गर्मी सिर पर 108 योजनाएं हवा में
जिला योजना में चालू वर्ष में योजनाओं के रखरखाव व मरम्मत को 12.35 करोड़ में से 8.85 करोड़ रुपये मिल गए हैं। इस बजट से शहर में 108 पेयजल योजनाओं की मरम्मत की जानी है। मगर कब होगी कोई पता नहीं। वहीं डीएम ने 47 लाख रुपये अतिरिक्त विभाग को दिए हैं। इससे पंप की मरम्मत व क्षतिग्रस्त पाइप लाइन की मरम्मत की जानी है।
सोमेश्वर (अल्मोड़ा) जिले के कृषि बाहुल्य क्षेत्र सोमेश्वर में सिंचाई नहरों की खस्ता हालत किसानों के लिए परेशानी का सबब बनकर रह गई है। पहले से ही जंगली जानवरों का आतंक झेल रहे ग्रामीणों को अब नहरों के क्षतिग्रस्त होने के कारण सिंचाई की भी सुविधा नहीं मिल पा रही है। जिस कारण किसानों का खेती से लगातार मोहभंग होता जा रहा है।
सोमेश्वर क्षेत्र की बौरारो घाटी में होने वाले कृषि उत्पादन को देखते हुए यहा सिंचाई विभाग ने अनेक नहरों का निर्माण तो किया। लेकिन बाद में देखरेख के अभाव में यह नहरें कई जगहों पर क्षतिग्रस्त हो गई। नहरों के क्षतिग्रस्त होने के कारण यहां के किसानों को सालों से सिंचाई की सुविधा नहीं मिल पा रही है। एक जमाने में सोमेश्वर में पैदा होने वाला आलू हल्द्वानी, देहरादून और बड़े शहरों की मंडियों तक बिकता था। जबकि धान, गेहूं, मडुवा, सरसों, गहत, मास व लहसुन जैसी नकदी फसलों का उत्पादन भी काफी मात्रा में होता था। अधुरिया के काश्तकार दलीप सिंह का कहना है कि किसान पहले तो जंगली जानवरों के आतंक से परेशान थे। ऊपर से सिंचाई नहरों की खस्ता हालत ने किसानों की कमर तोड़ दी है। उन्होंने कहा है कि पहले यहां के लोग अपने उत्पादन से होने वाली आय से अपना आजीविका चला लेते थे। लेकिन अब लोगों को अनाज और सब्जियां भी बाजार से खरीदनी पड़ रही हैं। दलीप ने बताया कि नहरों की खस्ता हालत होने के कारण उपजाऊ खेत लगातार बंजर हो रहे हैं। लेकिन फिर भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
जैती : 17सूत्रीय मांगों को लेकर राम ¨सह धौनी राजकीय महाविद्यालय जैती के छात्रों ने तहसील मुख्यालय पर धरना दिया। छात्रसंघ अध्यक्ष देवेंद्र बिष्ट के नेतृत्व में एकत्र हुए छात्रों ने इस दौरान उग्र आंदोलन की चेतावनी दी। सभी का कहना था कि क्षेत्र में सड़क, पानी सहित इंटरनेट सेवा बेहतर करने की जरूरत है।
रानीखेत/ गरमपानी विकासखंड ताड़ीखेत व बेतालघाट से सटे बजेड़ी गाव में पेयजल संकट गहरा गया है। इससे लगभग 200 की आबादी बूंद बूंद को तरसने लगी है। ग्रामीणों ने पेयजल समस्या के लिए सीधे तौर पर विभाग को जिम्मेदार ठहराते हुए वषरें पुरानी योजना के पुनर्गठन में सुस्ती का आरोप लगाया है।
अंतरजनपदीय सीमा पर दूरस्थ बजेड़ी गाव में पेयजल व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है। जरूरत के अनुरूप पानी न मिलने से ग्रामीणों में हाहाकार मचने लगा है। हालाकि ग्रामीण दूरदराज के स्त्रोतों से जैसे तैसे जुगाड़ कर रहे, मगर नाकाफी साबित हो रहा।
ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग से वषरें पुरानी योजना के पुनर्निर्माण की माग उठाई जा चुकी है। मगर कोई सुध नहीं ली जा रही। स्थानीय लोगों के अनुसार वर्ष 1980 में गाव तक बिछाई गई पाइप लाइन बेहद जर्जर हालत में पहुंच चुकी है। प्रस्ताव भेजे जा चुके पर कोई कदम नहीं उठाया गया। इसका खामियाजा योजना पर निर्भर 200 परिवारों को भुगतना पड़ रहा।
जल संकट से त्रस्त ग्रामीण मुखर होने लगे हैं। हीरा सिंह, भूपेंद्र सिंह समेत कई ग्रामीणों ने पेयजल व्यवस्था दुरुस्त किए जाने की माग उठाई है। चेतावनी दी है कि जल्द व्यवस्था न सुधरी तो आदोलन किया जाएगा।
अल्मोड़ा : गर्मी का मौसम सिर पर खड़ा है। शहर में पेयजल की किल्लत विभागीय आंकड़ों में साफ दिखाई दे रही। हालत यह है कि मांग व उपलब्धता के बीच एक लंबी खाई है, जिसे चाहकर भी विभाग पाट नहीं पा रहा। जलसंस्थान के आंकड़ों पर विश्वास करें तो शहर में हर दिन पेयजल की 18 एमएलडी की आवश्यकता है। जबकि इसके एवज में जलसंस्थान मात्र आठ एमएलडी पेयजल की आपूíत कर पा रहा। विभागीय अधिकारी इस कमी को मान भी रहे हैं, जिसमें लाख प्रयासों के बाद भी इसकी उपलब्धता का आंकड़ा बढ़ाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। प्रयास चल रहे हैं, लेकिन पुराने तौर-तरीके पर ही आम आदमी की प्यास गर्मी में बुझाने का भगीरथ प्रयास किया जा रहा है। जहां पर सप्लाई नहीं पहुंच पा रही वहां पर टैंकरों की मदद से पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चत की जाएगी।
जलसंस्थान के अधिशासी अभियंता केएस खाती ने बताया कि पेयजल की आपूíत को लेकर विभाग सतर्क है। यह सही है कि प्रतिदिन 18 एमएलडी पेयजल की मांग के अनुरूप मात्र आठ एमएलडी पेयजल सप्लाई देने में विभाग कामयाब हो पा रहा है। गर्मी में पेयजल की उपलब्धता मांग के अनुसार हो। जहां पर पेयजल पाइप लाइन नहीं है वहां पर टैंकरों की मदद से आपूíत सुनिश्चित की जाएगी। इसके लिए 10 टैंकरों की व्यवस्था विभाग ने की है। इसके साथ ही जहां भी इसकी कमी पड़ेगी और भी उपलब्ध कराए जाएंगे। बीती सरकार में जो पेयजल योजनाएं बनाई गईं उनमें मौजूदा सरकार ने आते ही बजट न देकर इनमें विराम लगा दिया। सभी को पेयजल दे पाना संभव नहीं है।
उम्मीद लगाये बैठे हैं कि मोदी-योगी के कार्यशैली का असर एक ना एक दिन उत्तराखण्ड पर भी जरूर पड़ेगा परन्तु नतीजा ढाक के तीन पात। जनता निराश्ा और परेशान-
उत्तराखण्ड मे एक मुख्यमंत्री करीब 1 करोड़ 25 लाख आबादी को लीड करता है तो वहीं उत्तरप्रदेश मे एक मुख्यमंत्री करीब 20 करोड़ की आबादी को लीड करता है । इस वक्त सामान्य बात यह है कि दोनों प्रदेशों के मुख्यमंत्री मूलतः उत्तराखण्ड के हैं लेकिन भिन्नता ये है कि जहाँ 20 करोड़ जनमानस को लीड करने वाले मूलतः उत्तराखण्ड के ही रहने वाले उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री ने मात्र 25 दिन मे ही ताबडङतोड़ एक बाद एक करीब 100 से ज्यादा फैसले ले लिये थे और उनमे से करीब 25 मामलों मे कार्यवाही भी शुरू कर दी थी ।
वहीं उत्तराखण्ड के लोग अभी भी अपने सवा करोड़ वाली आबादी वाले छोटे से राज्य मे अपने मुख्यमंत्री की तरफ किसी बड़े फैसले की घोषणा की उम्मीद मे टकटकी लगाए सिर्फ इंतजार कर रहे हैं और 14 माह के बाद भी आज तक इंतजार ही कर रहे हैं, जबकि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ के धुआंधार फैसलों और कुशल कार्यशैली से गद गद होकर अपनेआप को तसल्ली देते आ रहे हैं और आशान्वित होकर ये उम्मीद लगाये बैठे हैं कि मोदी-योगी के कार्यशैली का असर एक ना एक दिन उत्तराखण्ड पर भी जरूर पड़ेगा परन्तु नतीजा ढाक के तीन पात। जनता निराश्ा और परेशान-
स्वास्थ्य सुविधाएं-घोषणा हवा में गूंज कर रह गयी, आज तक कुछ हो नही पाया,
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि दूरस्थ क्षेत्रों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि यह कडवी सच्चाई और यथार्थ है कि कोई भी डाक्टर पहाड में अपनी सेवा नहीं देने चाहता। सरकार का विजन है कि आगामी २०२० तक राज्य के प्रत्येक दस किमी के दायरे में सभी लोगों को स्वास्थ्य सुविधायें उपलब्ध करायी जाएंगी। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सुविधाओं की बेहतरी के लिए लोग अपने सुझाव बेवसाइट व टोल फ्री १९०५ के माध्यम से भी दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि राज्य में अभी तक ११४१ डाक्टरों की नियुक्ति की जा चुकी है मुख्यमंत्री ने कहा कि आशा कार्यकर्ता को स्वास्थ्य सेवाओं में दिये जा रहे योगदान पर २ लाख रूपये दुर्घटना बीमा राज्य सरकार द्वारा मुहैया कराया जाएगा। उन्होंने आशा कार्यकत्रियों को प्रशिक्षण एवं उपकरण देने के उपरान्त उन्हें बेहतर पुष्टाहार तैयार कर अपनी आर्थिकी को बढाने को कहा। उन्होंने कहा कि कुपोषित बच्चों के लिए आशा कार्यकत्रियों के माध्यम से पुष्टाहार मुहैया कराया जाएगा। उन्होंने कार्यक्रम में कहा कि अब लोगों को कैंसर, कार्डियोलॉजी, हृदय सम्बंधी जांच के लिए भटकना नहीं पडेगा तथा आगामी माहों में सरकार द्वारा डिजिटल लैब की भी स्थापना की जाएगी।
मुख्यमत्री की उपरोक्त घोषणा हवा में गूंज कर रह गयी, आज तक कुछ हो नही पाया,
मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केन्द्र सरकार की प्राथमिकताओं वाले कार्यक्रमों की समीक्षा के अन्तर्गत शहरी विकास विभाग द्वारा संचालित योजनाओं की समीक्षा की। जिन योजनाओं की समीक्षा की गई उनमें स्मार्ट सिटी प्रधानमंत्री आवास योजना तथा अमृत योजना प्रमुख है।
मुख्यमत्री की उपरोक्त घोषणा हवा में गूंज कर रह गयी, आज तक कुछ हो नही पाया,
मुख्यमंत्री ने स्वयं कहा कि जनता को परिणाम से सरोकार होता है। उसके बाद भी नतीजा शून्य क्यो
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड पर्यटन प्रदेश है। यहां आने वाले यात्री प्रदेश की अच्छी छवि लेकर वापस जायें। शहरी क्षेत्रों की जनता की प्राथमिकता स्वच्छता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि योजनाएं धरातल पर दिखनी चाहिये तथा सभी प्रयासों का आउटकम(परिणाम) क्या निकला, इस पर बात होनी चाहिये। जनता को परिणाम से सरोकार होता है। ‘‘आप कुछ भी करें, बहुत अच्छा काम करें परन्तु यदि धरातल पर परिणाम नहीं है तो सब बेकार है’’ सीएम ने कहा। गंदगी, जल भराव और सडकों पर गड्डे इन समस्याओं से पूर्ण रूप से छुटकारा दिलाना है। मुख्यमंत्री ने कहा कि जनता की समस्याओं को चिन्हित कर उसे तत्कला एड्रेस करने वाला सिस्टम बनाया जाय। अतिक्रमण हटाओ अभियान बिना किसी भेदभाव और दबाव के चलाया जाय। महापुरूषों की प्रतिमाओं की नियमित साफ-सफाई की व्यवस्था करें। अधिकारी पैदल और दो पहिया वाहनों पर भ्रमण कर देखें शहर का हाल-सीएम ने कहा- मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को नसीहत दी कि वे चार पहिया वाहनों के स्थानों पर दो पहिया वाहनों के द्वारा भीडभाड वालों इलाकों में जाकर स्वच्छता, ट्रैफ़ि¬¬क आदि का हाल ले और व्यवहारिक, प्रभावी समाधान निकालें।
मुख्यमंत्री द्वारा अधिकारियों को नसीहत दी गयी, परिणाम शून्य
बेरोजगारी भत्ता बंद तथा नई नौकरियो का कोई अता पता नही-
उत्तराखंड में डेढ़ लाख से अधिक नौकरियां युवाओं के लिए आने वाली हैं। सिडकुल में प्रस्तावित 25 हजार करोड़ के निवेश से ये नौकरियां पैदा होंगी। राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में प्रस्तुत की गई आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ श्रम मंत्री हरक सिंह रावत ने बताया कि राज्य में कांग्रेस सरकार के समय शुरू किया गया बेरोजगारी भत्ता बंद किया जा रहा है।
संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने बुधवार को विधानसभा में राज्य की पहली आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की। सदन के पटल पर रखी गई रिपोर्ट के अनुसार राज्य के सिडकुल क्षेत्रों में इस समय कुल 1836 औद्योगिक इकाइयां हैं। जिसमें से 1400 के करीब इकाइयों में उत्पादन चल रहा है। इन इकाइयों में मौजूदा समय में 25 हजार करोड़ से अधिक का निवेश प्रस्तावित है। जिससे 1.60 लाख से अधिक नौकरियां पैदा होने का अनुमान है।
वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने कहा कि राज्य में विकास की वास्तविकता जानने के लिए आर्थिक सर्वेक्षण कराया गया है। इससे हमें राज्य के कमजोर और मजबूत पक्षों का पता चल पाएगा। इस रिपोर्ट के आधार पर विकास की नई संभावनाएं तलाशी जाएंगी, जबकि पिछले समय में रह गई कमियों को दूर किया जा जाएगा। इससे खराब स्थिति वाले जिलों की पहचान होगी। ऐसे क्षेत्रों पर विशेष फोकस किया जाएगा।
गैरसैंण में विधानसभासत्र में मंत्री ने बताया कि कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुआ बेरोजगारी भत्ता अब नहीं मिलेगा। सदन में श्रम मंत्री हरक सिंह रावत ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी भत्ते ने युवाओं को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित किया। इसलिए सरकार ने सम्यक विचार करने के बाद भत्ते के बजाय युवाओ को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने का निर्णय लिया है।
विधानसभा के बजट सत्र में किये गये वादे अभी तक सचिवालय में कैद है
गैरसैंण में चल रहे विधानसभा के बजट सत्र में किये गये वादे अभी तक सचिवालय में कैद है- धरातल पर नही आये-
3 Mar 2018 को गैरसैंण में चल रहे विधानसभा के बजट सत्र में वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए उत्तराखंड की त्रिवेंद्र सरकार ने 45585 करोड़ रुपये का बजट पेश किया है। त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल का यह दूसरा बजट है। पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में त्रिवेंद्र सरकार ने 39957.20 करोड़ का बजट पेश किया था। वित्तीय वर्ष 2017-18 के मुकाबले यह 14.08 प्रतिशत ज्यादा है।
वित्त मंत्री प्रकाश पंत ने गुरुवार को 45,585 करोड़ का बजट सदन में पेश किया। सरकार ने जनता पर किसी तरह का बोझ नहीं डाला है। कर रहित बजट में शिक्षा, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य, लोनिवि, पुलिस, कल्याण योजनाएं, पेयजल एवं शहरों के विकास को प्राथमिकता दी गई है। सरकार ने पहली बार गरीब परिवारों के मुखिया के लिए आम आदमी बीमा योजना भी लागू की है।
वित्त मंत्री पंत ने सदन में वित्तीय वर्ष 2018-19 का वार्षिक बजट प्रस्तुत किया। त्रिवेंद्र सरकार का दूसरा बजट रखते हुए पंत ने कहा कि बजट ईज ऑफ डुईंग के साथ ईज ऑफ लिविंग की दिशा स्थापित करता है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने कहा कि इस बजट से पहाड़ से मैदान तक, किसान से मजदूर तक, पर्यटन से लेकर पलायन रोकने तक, हर क्षेत्र का पूरा ख्याल रखा गया है। बजट में सरकार ने दिखा दिया है कि युवाओं को रोजगार देने, स्वरोजगार को बढ़ावा देने और महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण के प्रति पूरी तरह गंभीर है। इसका स्पष्ट और ठोस रोडमैप बजट में साफ नजर आ रहा है।
इन सेक्टर पर रहा फोकस
इस बजट में ग्राम्य विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकार का फोकस रहा है। इसका उद्देश्य उत्तराखंड में पलायन की समस्या पर काबू पाना है। वहीं पुलिस के आतंरिक ढांचे को मजबूत करने पर भी सरकार का ध्यान गया है। शिक्षा के बाद सर्वाधिक बजट ग्राम्य विकास को मिला है। बजट में देखें तो पहले नंबर पर शिक्षा, दूसरे पर ग्राम्य विकास, तीसरे पर हेल्थ सेक्टर, चौथे पर सड़क और पुल निर्माण, पांचवें पर आंतरिक सुरक्षा (गृह) और छठे नंबर पर आपदा प्रबंधन को सरकार ने प्राथमिकता दी है।
गरीबों को बीमा
सरकार ने पहली दफा गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों पर भी बजट में फोकस किया है। परिवार के मुखिया के लिए आम आदमी बीमा योजना के लिए 11 करोड़ से अधिक की व्यवस्था की गई है।
बजट में जनता के भी सुझाव
पंत ने कहा कि यह ऐतिहासिक बजट है, जिसमें जनता के सुझाव भी शामिल किए हैं। प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकताओं रोटी, कपड़ा, मकान, पढ़ाई का इसमें उल्लेख है।
जीडीपी 6.77 प्रतिशत रहने का अनुमान
पंत ने बताया कि राज्य की अर्थव्यवस्था का आकार वर्ष 2017-18 में 2,17,609 करोड़ अनुमानित है जो कि पिछले वर्ष की अपेक्षा 22,003 करोड़ ज्यादा है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में वास्तविक राज्य सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 6.77 फीसदी अनुमानित है, जो कि राष्ट्रीय आर्थिक विकास दर से अधिक है।
बजट पर एक नजर
25 करोड़ रुपये राज्य में उद्यमियों को निवेश के लिए
241 करोड़ का प्रावधान किया गया परिवहन विभाग के लिए
30 करोड़ की व्यवस्था किसानों को ऋण उपलब्ध कराने को
पर्वतीय क्षेत्रों में उद्यमिता प्रोत्साहन व पलायन रोकने को ग्रोथ सेंटर खुलेंगे
सभी 13 जिलों में दीर्घ अवधि प्लानिंग के लिए एक-एक पर्यटन स्थल होगा विकसित
वर्ष 2020 तक राज्य की सभी योजना में डीबीटी लागू
होम स्टे के लिए 15 करोड़ की व्यवस्था की
ऋषिकेश में अंतर्राष्ट्रीय कन्वेशन एवं वैलनेस सिटी की होगी स्थापना
सौंग नदी पर 40 करोड़ में बनेगा बांध
ई विधानसभा को धनराशि की व्यवस्था
गैरसैंण में अंतर्राष्ट्रीय संसदीय अध्ययन शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान को वित्तीय मंजूरी
भोजन माताओं की होगी वर्दी
आशा कार्यकर्ताओं व एएनएम के लिए दुर्घटना बीमा योजना
पंजीकृत व्यापारियों के लिए आकस्मिक दुर्घटना बीमा के लिए बजट का प्रावधान
कामकाजी महिलाओं के बच्चों की देखभाल को क्रेच योजना
श्रमिकों के पुनर्वास के लिए बंधुआ श्रमिक पुनर्वास योजना
मुख्य बिंदु
वित्तीय वर्ष 2018-19 में कुल बजट का 31.55 प्रतिशत खर्च वेतन भत्ते मजदूरी में होगा खर्च।
वित्तीय वर्ष 2018 -19 के कुल बजट का 10.67 प्रतिशत ब्याज में होगा खर्च।
प्रदेश में ऑर्गेनिक हर्बल स्टेट बनाने के लिए पंद्रह सौ करोड़ रुपए का बजट में प्रावधान
विधानसभा सचिवालय में विधानसभा स्थापना हेतु धनराशि की व्यवस्था
ग़ैरसैंण में अंतर्राष्ट्रीय संसदीय अध्ययन शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना हेतु धनराशि की व्यवस्था
ईवीएम एवं वीवीपैट के लिए बजट 10 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है
भोजन माताओं को वर्दी उपलब्ध कराने के लिए तीन करोड़ रुपये की धनराशि
आशा कार्यकर्ताओं एवं एएनएम वर्कर्स के लिए दुर्घटना बीमा योजना
मेट्रो रेल निर्माण के लिए 86 करोड रुपए की धनराशि
कामकाजी महिलाओं के बच्चों के लिए देखभाल हेतु राष्ट्रीय क्रेच योजना के अंतर्गत 3 करोड़ 70 लाख धनराशि की व्यवस्था
राज्य में मातृ एवं शिशु कुपोषण रोकने के लिए 10 करोड़ 25 लाख 42 हजार की धनराशि
BPL परिवारों के मुखिया हेतु आम आदमी बीमा योजना में 11 करोड़ 37 लाख 15 हजारकी व्यवस्था
किसानों के लिए दीनदयाल उपाध्याय सहकारिता किसान कल्याण योजना के अंतर्गत 30 करोड़ की व्यवस्था
सौंग बांध परियोजना हेतु 40 करोड रुपए की व्यवस्था
नैनीताल झील के पुनर जी वितरण हेतु 5 करोड़ रुपये की व्यवस्था
राज्य में उद्यमियों को निवेश के लिए डेस्टिनेशन उत्तराखंड के आयोजन हेतु 25 करोड़ रुपए की धनराशि की व्यवस्था
प्रदेश में आर्थिक गतिविधियों पर्वतीय क्षेत्रों में पलायन रोकने के लिए ग्रोथ सेंटर की स्थापना , 15 करोड़ की धनराशि की व्यवस्था, पर्यटन बढ़ावा के लिए होम स्टे योजना को 15 करोड़ रुपए।
ग्राम्य विकास पर फोकस : 2019 तक गरीबी मुक्त होंगी 1374 ग्राम पंचायतें
बेस अस्पतालों के लिए अब तक का सर्वाधिक प्रावधान, 20 करोड़ की व्यवस्था
382.15 करोड़ के घाटे का है बजट
25 हजार युवाओं को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने टारगेट, 50 करोड़ का प्रावधान
दो साल के भीतर ऊधमसिंह नगर, हरिद्वार, देहरादून की सभी बसों को सीएनजी से चलाएंगे
मातृ पितृ तीर्थाटन योजना में पौड़ी का तड़केस्वर, रुद्रप्रयाग का कालीमठ, अल्मोड़ा का जागेश्वर, बागेश्वर का गिराड़ गौलू और बैजनाथ, पिथौरागढ़ का गंगोलीहाट भी शामिल।
उत्तराखंड बजट 2018 : त्रिवेंद्र सरकार ने किस विभाग को दिया कितना बजट,
यह त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल का दूसरा बजट है, जो आज गैंरसैंण में चल रहे विधानसभा सत्र में पेश किया गया। बजट में विभागों के मिलने वाले पैसे पर भी सबकी नजर रहती है। बताया जा रहा है सरकार के बजट में कृषि पर फोकस रहा है। उद्यान विभाग की योजनाओं ध्यान दिया गया है। आइए जानते हैं सरकार ने इस बार किस विभाग को कितना बजट दिया है।
निर्वाचन विभाग को 54 करोड़ 12 लाख का बजट
आबकारी विभाग को 26 करोड़ 98 लाख का बजट
लोक सेवा आयोग को 48 करोड़ 27 लाख का बजट
पुलिस एवं जेल विभाग को 1935 करोड़ 61 लाख 19 हजार का बजट
शिक्षा खेल एवं युवा कल्याण और संस्कृति विभाग को सात हजार 701 करोड़ 61 लाख 45 हजार का बजट
चिकित्सा एवं परिवार कल्याण विभाग को 2286 करोड़ 56 लाख 60 हजार का बजट
आवास एवं नगर विकास विभाग को 1636 करोड़ 4 लाख 34 हजार
सूचना विभाग को 86 करोड़ 46 लाख 46 हजार का बजट
कृषि विभाग को 9666 करोड़ 76 लाख 7 हजार का बजट
सहकारिता विभाग को 94 करोड़ 8 लाख 87 हजार का बजट
ऊर्जा विभाग को 319 करोड़ 93 लाख 92 हजार का बजट
लोक निर्माण विभाग को 2053 करोड़ 92 लाख 35 हजार का बजट
परिवहन विभाग को 273 करोड़ 61 लाख 53 हजार का बजट
पर्यटन विभाग को 183 करोड़ 36 लाख 58 हजार का बजट
वन विभाग को 808 करोड़ 55 लाख 40 हजार का बजट
सरकार के दूसरे बजट पर क्या क्रियान्वयन शुरू हुआ- आम जनता की समझ से परे है, जिससे राज्य में संवेदनशून्यता की स्थिति है- बेरोजगारी भत्ता बंद करना और नौकरियां आयेगी का झुनझुना देना- से राज्य में अच्छा सदेश नही गया- बेरोजगार ठगा सा महसूस कर रहे हैं-
विधानसभा में सरकार ने अवगत कराया कि उत्तराखंड में डेढ़ लाख से अधिक नौकरियां युवाओं के लिए आने वाली हैं। सिडकुल में प्रस्तावित 25 हजार करोड़ के निवेश से ये नौकरियां पैदा होंगी। राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में प्रस्तुत की गई आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। वहीं दूसरी तरफ श्रम मंत्री हरक सिंह रावत ने बताया कि राज्य में कांग्रेस सरकार के समय शुरू किया गया बेरोजगारी भत्ता बंद किया जा रहा है।
संसदीय कार्यमंत्री प्रकाश पंत ने बुधवार को विधानसभा में राज्य की पहली आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की। सदन के पटल पर रखी गई रिपोर्ट के अनुसार राज्य के सिडकुल क्षेत्रों में इस समय कुल 1836 औद्योगिक इकाइयां हैं। जिसमें से 1400 के करीब इकाइयों में उत्पादन चल रहा है। इन इकाइयों में मौजूदा समय में 25 हजार करोड़ से अधिक का निवेश प्रस्तावित है। जिससे 1.60 लाख से अधिक नौकरियां पैदा होने का अनुमान है।
बेरोजगारी भत्ता अब नहीं मिलेगा : हरक सिंह
गैरसैंण। कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू हुआ बेरोजगारी भत्ता अब नहीं मिलेगा। सदन में श्रम मंत्री हरक सिंह रावत ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी भत्ते ने युवाओं को प्रोत्साहित करने के बजाय हतोत्साहित किया। इसलिए सरकार ने सम्यक विचार करने के बाद भत्ते के बजाय युवाओ को तकनीकी रूप से दक्ष बनाने का निर्णय लिया है।
कई वर्षो से अटकी सड़क ;
दिनांक 16 मार्च 2018 को वित्त मंत्री श्री प्रकाश पन्त जी से रूद्रप्रयाग जनपद के सल्या-तुलंगा ग्रामसभा का एक शिष्टमंण्डल सड़क के सम्बन्ध में मिला। प्रतिनिधि म.डल ने माननीय वित्त मंत्री के समक्ष विगत कई वर्षो से अटकी सड़क का मुद्दा बडी प्रमुखता से रखा।ग्रामीणों द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि विभागीय एवं ठेकेदारों की लापरवाही के कारण उक्त मोटर मार्ग पर पिछले एक माह से निर्माण कार्य बन्द पडा हुआ है जबकि वर्ष 2013 की आपदा के बाद वल्र्ड बैंक द्वारा उक्त मोटर मार्ग पर डामरीकरण करने का जिम्मा लिया गया था। पिछले 4 वर्षो में इस मोटरमार्ग पर कई ठेकेदार बदले गये लेकिन अभी तक डामरीकरण का कार्य सम्पन नही हो पाया है। ग्रामी.ाों द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि यह सड़क मार्ग लगभग आठ ग्रामसभाओं का मुख्य सम्पर्क मार्ग है। रोजमर्रा के कार्यो ,एवं आर्थिक क्रियाकलापों के लिए लगभग 8 गांवों के लोग पूरी तरह से इसी मार्ग पर निर्भर हैं।
इसके अलावा
अल्मोड़ा जिले में मोटरमार्गो में बड़े गड्ढे जहां आम लोगों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। वहीं इससे वाहन दुर्घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। मोटर मार्गों में पैराफिट क्रैश बेरियर एवं चौड़ीकरण का प्रस्ताव शासन में लंबित है।
मोटर मार्गों को गड्ढामुक्त करने के अभियान में इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि जहां दुर्घटना बाहुल्य क्षेत्र हो उनका चिह्नीकरण किया जाए। साथ ही स्पीड ब्रेकर व यलो व सफेद पट्टी भी सुविधा के लिए बनाई जाए। इसके लिए आवश्यक सूचनाओं के लिए सड़कों पर जानकारी व चेतावनी के बोर्ड लगाए जाएंगे। ताकि यातायात संचालन में व्यवहारिक समस्याओं का समाधान किया जा सके। अभी इस तरफ विभाग ध्यान नहीं दे रहे, जिससे अक्सर दुर्घटनाएं होती हैं। अंधे मोड़ पर जाली या बोल्डर भी रखे जाने चाहिए। पर शून्य है सब-
द्वाराहाट में खस्ताहाल द्वाराहाट-सुरईखेत मोटरमार्ग विभाग के लिए बजट खपाने का जरिया बन चुका है। पिछले दो वषरें से रोड में पैच वर्क के नाम पर लाखों रुपये खर्च के हालात जस के तस बने हुए हैं। ग्रामीणों के डामरीकरण की मांग के बावजूद विभाग फिर से पेंच वर्क के नाम पर गड्ढ़ों में मिट्टी डाल इतिश्री कर रहा है। आक्रोशित ग्रामीणों ने सड़क में डामरीकरण की मांग करते हुए आंदोलन की चेतावनी दी है।
द्वाराहाट से सुरईखेत तक करीब 18 किमी सड़क का सफर लोगों के लिए जी का जंजाल बन चुका है। रोड पर पड़े गड्ढ़ों में सुरक्षित सफर आसान नहीं है। इन गड्ढों में कई दोपहिया वाहन चालक चोटिल भी हो चुके हैं। लंबे समय से डामरीकरण की माग कर रहे ग्रामीणों के गुस्से को शात करने के लिए लोनिवि 2017 में दो बार पैचवर्क का कार्य भी किया। लेकिन हालात जस के तस हैं। गत दिनों बीडीसी बैठक में मामला उठा तो विभाग ने फिर पेंच वर्क का कार्य आरंभ कर दिया है। पेंच वर्क के नाम पर बजट की बाजीगरी की जानकारी मिलते ही क्षेत्र के ग्रामीणों का पारा चढ़ गया। उन्होंने पेंच वर्क के नाम पर गड्ढ़ों में मिट्टी डालने के बजाय पूरी सड़क में डामरीकरण की मांग कर डाली। मामले को लेकर हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन मुख्यमंत्री को भेजा। साथ ही चेतावनी भी दी इस बार पूरी सड़क पर डामरीकरण नहीं किया गया तो आदोलन के लिए बाध्य होंगे। ज्ञापन भेजने वालों में प्रतिमा देवी, बीना फुलारा, तुलसी फुलारा, गंगा देवी, तारा बिष्ट, बसंती देवी, हेमा देवी, जन सरोकार मंच संयोजक मोहन काडपाल, प्रकाश जोशी, शेखर फुलारा, दिनेश काडपाल, रणजीत सिंह, लक्ष्मण सिंह, प्रकाश राम, जगदीश सिंह, मोहन राम, भुवन काडपाल व नवीन सिंह आदि शामिल हैं।
वही गढवाल के
चमोली जनपद के देवाल विकासखंड के कोटेडा गांव के लिए बनने वाले मोटर मार्ग सर्वे को बदलने की मांग को लेकर ग्रामीणों ने देवाल बाजार में जुलूस निकाल विरोध दर्ज किया। बाद में ग्रामीणों ने बीडीओ कार्यालय के बाहर अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया।
इस मौके पर आयोजित बैठक में ग्रामीणों ने कहा कि पीएमजीएसवाइ ने पूर्व में जो सर्वे किया वह गलत है। यह सर्वे ग्रामीणों को विश्वास में लिए बिना किया गया है। ऐसे में सर्वे को निरस्त कर नये सिरे से सर्वेक्षण कार्य किया जाना चाहिए। ग्राम प्रधान कोटेडा खडगराम के नेतृत्व में ग्रामीण देवाल विकासखंड मुख्यालय पहुंचे। जहां उन्होंने बाजार में पीएमजीएसवाइ के खिलाफ नारेबाजी की। जुलूस विभिन्न स्थानों से होते हुए विकासखंड कार्यालय प्रांगण पहुंचा। जहां नारेबाजी कर विरोध जताया और अनिश्चितकालीन धरना शुरू कर दिया। पूर्व प्रधान राजुली देवी ने कहा कि पीएमजीएसवाइ ने चौड़ गांव को जाने वाले मोटर मार्ग से गांव का सर्वे किया गया है। जो पूरी तरह गलत है। इसलिए सर्वे को निरस्त कर पुन: देवाल-खेता मोटर मार्ग के किमी 15 घिंघराण तोक से जूहा कोटेडा होते हुए कोटीपार तक सर्वे किया जाना चाहिए। इससे ग्रामीणों को भी सुविधा मिलेगी। पूर्व प्रमुख देवीदत्त कुनियाल ने धरना स्थल पहुंच ग्रामीणों की मांग को समर्थन दिया। धरना प्रदर्शन में ताराराम, दरबान राम, भवानराम, केसी राम, सुजान सिंह, नंदन राम, चंद्री राम, खुशीराम, गुलाबराम, चंदन राम, मोहन राम, रामीराम, रमेश राम, दौलत राम, गोविंद राम आदि मौजूद थे।
सड़क की दशा
पिथौरागढ जनपद के डीडीहाट नगर की आंतरिक आठ किमी सड़क की दशा साढ़े छह करोड़ रु पये खर्च करने के बाद भी नहीं सुधरी है। सड़क के मध्य बने गड्ढे दुर्घटना को न्यौता दे रहे हैं तो उखड़ रहा डामर गुणवत्ता की पोल खोल रहा है।
डीडीहाट नगर की आंतरिक 8.36 किमी सड़क की मरम्मत, सुधारीकरण, डामरीकरण का कार्य वर्ष 2014 से चला। लोनिवि की एडीबी विंग ने 6.53 लाख की लागत से सड़क के सुधारीकरण और डामरीकरण का कार्य किया। डामरीकरण के बाद सड़क को लोनिवि को हस्तांतरित किया जाना था। एडीबी ने अपना कार्य पूरा कर दिया है परंतु सड़क लोनिवि को हस्तांतरित नहीं की गई है। सुधारी गई सड़क में नगर के मध्य डीडीहाट -दूनाकोट मार्ग में बना गड्ढा विभाग की कार्यप्रणाली की पोल खोल रहा है। बीच सड़क में बने इस गड्ढे को तक पाटा नहीं गया । जो दुर्घटना का कारण बना हुआ है।
इसके अलावा सड़क में बिछाया गया डामर उखड़ने लगा है। जिससे कुछ स्थानों पर सड़क पहले जैसी ही दलदल हो चुकी है। एडीबी ने अपना कार्य तो पूरा दिखा दिया है परंतु इसे लोनिवि को हस्तांतरित नहीं किया है। जिसके कारण सड़क में बने गड्ढे को पाटने का कार्य भी नहीं हो पा रहा है। आम जनता सड़क को लोनिवि का मान कर लोनिवि से इसे पाटने की मांग कर रही है तो दूसरी तरफ लोनिवि एडीबी द्वारा अभी तक सड़क उन्हें हस्तांतरित नहीं करने का रोना रो रहा है। इस नाटक का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। हाट के सरपंच धन ंिसंह कफलिया और दीवान कन्याल ने दस दिन के भीतर सड़क में बने गड्ढों को नहीं पाटे जाने और उखड़ चुके डामर को दुबारा नहीं बिछाए जाने पर सड़क पर उतरने की धमकी दी है।
बेरीनाग: लछिमा से नाचनी मोटर मार्ग को वित्तीय स्वीकृति देने की मांग को लेकर ग्रामीणों का आमरण अनशन सातवें दिन भी जारी रहा। ग्रामीणों ने मांग पूरी नहीं होने तक आंदोलन जारी रखने का एलान किया है। आमरण अनशन पर बैठने से पूर्व ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि सड़क की मांग को लेकर अब आर-पार की लड़ाई लड़ी जाएगी। किसी भी तरह के झूठे आश्वासन में कतई नहीं आया जाएगा। सातवें दिन के आंदोलन में 65 वर्षीय मान सिंह कार्की लगातार तीसरे दिन भी आमरण अनशन पर डटे रहे। इससे पूर्व लगातार चार दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे बसंत बल्लभ की हालत को देखते हुए प्रशासन ने उन्हें जबरन अनशन से उठा लिया था। सातवें दिन देवीदत्त पाठक, मोहन चंद्र पाठक, प्रकाश पाठक, नंदा बल्लभ पाठक, घनश्याम पाठक आदि ग्रामीणों ने अनशनकारियों के समर्थन में धरना दिया।
ऊर्जा विभागों के घोटाले त्रिवेेन्द्र द्वारा आम जनता को दिखाये सपने को तोड़ सकते हैं.
ऊर्जा के तीनों महकमों में हो रहे घोटालों का पर्दाफाश कभी हो न सका-
सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती है प्रदेश में 24 घंटे बिजली देना. प्रदेश का यूपीसीएल को हर साल करोड़ों की बिजली खरीदनी पड़ती है. ऊर्जा के तीनों महकमों में हो रहे घोटालों का पर्दाफाश करना. प्रदेश के दूरस्थ गांवों तक बिजली पहुंचाने के लिए वन विभाग से सहमति बनाना. प्रदेश में छोटी-बड़ी करीब 474 जल विद्युत परियोजना बननी थीं, जिनमें से मात्र 80 परियोजना ही बिजली उत्पादन कर रही हैं. प्रदेश की 39 जल विद्युत निर्माणाधीन परियोजनाओं पर सुप्रीम कोर्ट की रोक लगी है. करीब 40 जल विद्युत परियोजनाओं की डीपीआर तैयार है लेकिन इन पर काम कब शुरू होगा पता नहीं. 23 परियोजनाओं की डीपीआर तक नहीं बनी है. करीब 292 परियोजनाओं का अभी धरातलीय सर्वे भी होना है. साफ़ है कि सरकार की चुनौतियों का ग्राफ किए गए कार्यों से अधिक हैं. त्रिवेंद्र सरकार को प्रदेश को अगर ऊर्जा प्रदेश के नाम को सार्थक करना है तो बंद पड़ी परियोजनाओं को शुरू करवाना होगा और यह ध्यान रखना होगा कि ऊर्जा विभागों के घोटाले इस सपने को तोड़ सकते हैं.
लालटेन युग में जीने को विवश हैं।
प्रखंड देवाल के घेस, हिमनी, बलाण क्षेत्र के लोगों को वैसे बिजली के दर्शन दूर से ही होते हैं। ग्रामीणों के आंदोलन के बाद उरेड़ा से घेस घरगाड़ गदेरे में 100 किलोवाट लघु जल विद्युत परियोजना निर्माण को 2007 में स्वीकृति दी। 1.04 करोड़ की लागत से बने इस लघु जल विद्युत परियोजना ने उत्पादन शुरू किया। जिससे गांव में सार्वजनिक स्थान पर विद्युत सप्लाई भी दी गई। परियोजना से घेस, बियारतोली, घरग्वाड़ों, डो¨लगधार, सुनाऊं, बलाण, हिमनी आदि गांवों में विद्युत पहुंचाई गई। लेकिन 2013 में आई आपदा से यह लघु जल विद्युत परियोजना का पावर हाउस, नहर, डायवर्जन बह गया और सप्लाई लाइन भी क्षतिग्रस्त हो गई। जल विद्युत परियोजना के पुनर्निर्माण को लेकर आपदा में उरेड़ा विभाग की ओर से प्रस्तावित किया गया। इसके लिए आइआइटी रुड़की से सर्वे भी कराया गया। लेकिन आइआइटी रुड़की ने जल विद्युत परियोजना के पुन: निर्माण को तकनीकी रूप से अनुचित बताया। उरेड़ा ने जिला प्रशासन के निर्देशों पर इसे यूपीसीएल को दे दिया गया। क्षेत्र में चार हजार से अधिक उपभोक्ताओं ने ऊर्जा निगम से गांव की लाइन को जोड़ने की मांग की है। इसके बावजूद भी ग्रामीणों की समस्या का निस्तारण नहीं हो पाया है।
वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते दिनों घेस, हिमनी में छात्रों से बातचीत में 2013 से बिजली गुल होने की बात सामने आने के बाद 25 दिनों में यहां लाइन सुचारु करने का भरोसा दिलाया।
गोपेश्वर में हिमनी, बलाण क्षेत्र में वर्ष 2013 की आपदा के बाद से हुई बिजली गुल पांच सालों बाद भी नहीं जुड़ पाई है।
उरेड़ा का घरगाड़ में बनी लघु जल विद्युत परियोजना आपदा में बह गई थी। तब जिला प्रशासन के निर्देशों व आइआइटी रुड़की की रिपोर्ट के बाद ऊर्जा निगम को सौंप दिया गया था। भूपाल ¨सह कुंवर, अवर अभियंता, उरेड़ा चमोली
उरेड़ा के जल विद्युत परियोजना से गांव में विद्युत का बल्ब तो जला था। लेकिन यह पूरे गांव के लिए पर्याप्त नहीं था। आपदा के बाद यह परियोजना भी बह गई। विद्युतीकरण को लेकर कई बार शासन प्रशासन से मांग की गई।
गोपेश्वर के घाट विकासखंड के कुरुड़ माणखी मोटर मार्ग पर पीएमजीएसवाइ की ओर से भूस्खलन वाले स्थान पर फेज टू का निर्माण कराने से ग्रामीणों में नाराजगी है। ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को ज्ञापन देकर मोटर मार्ग पर पुन: सर्वेक्षण कराने की मांग की है। ग्रामीणों का कहना है कि कुरुड़ माणखी मोटर मार्ग पीएमजीएसवाइ कर्णप्रयाग की ओर से बनाया जा रहा है। पांच वर्ष पूर्व मोटर मार्ग पर कार्य प्रारंभ किया गया था। सड़क निर्माण में जिन काश्तकारों की भूमि काटी गई। उसका मुआवजा आज तक नहीं दिया गया है। जिससे काश्तकारों में रोष व्याप्त है। कहा कि नाप भूमि के सर्वेक्षण में भी कई खामियां सामने आयी है। ग्रामीणों ने कहा कि निर्माण एजेंसी ने वर्तमान समय में फेज टू का निर्माण कर रही है। लेकिन कई स्थानों पर चौड़ीकरण व स्क्रबर, कॉजवे, नाली निर्माण किए बिना ही जीएसबी प्राइम कोट एवं टाप कोट किया जा रहा है। इससे वाहनों की आवाजाही में भी दिक्कतें हो रही हैं। बताया कि 2013 में आपदा से सड़क को भी नुकसान पहुंचा था। जिस जगह मौजूदा सड़क का निर्माण किया जा रहा है। वह भूस्खलन वाला क्षेत्र है। ऐसे में अगर यहां सड़क निर्माण किया गया तो इससे सड़क व गांव को भी खतरा पैदा हो सकता है।
थल में न्याय की देवी कोटगाड़ी मंदिर क्षेत्र से लगे तीन गांवों में विद्युत आपूर्ति ठप
थल में न्याय की देवी कोटगाड़ी मंदिर क्षेत्र से लगे तीन गांवों में विगत पांच दिनों से विद्युत आपूर्ति ठप है। शिकायत के बाद भी विभाग का इस ओर कोई ध्यान नहीं जा रहा है। इससे क्षेत्र की करीब तीन हजार की आबादी को अंधेरे में रात बिताने को मजबूर होना पड़ रहा है। ग्रामीणों ने रविवार को ऊर्जा निगम के खिलाफ प्रदर्शन कर अविलंब आपूर्ति बहाल नहीं करने पर उग्र आंदोलन की धमकी दी है। कोटगाड़ी क्षेत्र में प्रदर्शन करते हुए ग्रामीणों ने कहा कि पांच रोज पूर्व कोटगाड़ी, मदीगांव व झाजरी को जोड़ने वाला विद्युत ट्रांसफार्मर फूंक गया था। जिसकी सूचना तत्काल ऊर्जा निगम को दी गई। पांच दिन बीतने के बाद भी ऊर्जा निगम का कोई कर्मचारी अभी तक क्षेत्र में नहीं पहुंचा है। विद्युत नहीं होने से सबसे ज्यादा प्रभाव बोर्ड परीक्षार्थियों की पढ़ाई पर पड़ रहा है। परीक्षार्थी लैंप, मोमबत्तियों के सहारे पढ़ाई करने को मजबूर हैं। वहीं, प्रसिद्ध सिद्धपीठ कोटगाड़ी मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को भी बगैर विद्युत के खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। क्षेत्र में जंगली जानवरों का भी भय बना रहता है। लाइट नहीं होने से ग्रामीण सांझ ढलते ही घरों में कैद हो जाते हैं। ग्रामीणों ने कहा कि यदि अतिशीघ्र ट्रांसफार्मर को ठीक नहीं किया गया तो वह ऊर्जा निगम के खिलाफ मोर्चा खोल देंगे। प्रदर्शन करने वालों में बब्लू पाठक, बसंत पाठक, कमलेश जोशी, जीवन राम, कैलाश पाठक, विनय पाठक, पीसी पाठक, रमेश जोशी, चंचल आदि शामिल रहे।
बेरीनाग: लछिमा-नाचनी सड़क को पूरा किए जाने की मांग को लेकर आमरण अनशन में बैठे अनशनकारी की हालत शनिवार को बिगड़ गई। प्रशासन ने अनशनकारी को जबरन अस्पताल में भर्ती करा दिया। इससे गुस्साए क्षेत्र के एक 65 वर्षीय वृद्ध ने आमरण अनशन शुरू कर दिया।
कुपोषण की चपेट और अस्पतालो की स्थिति-
किशोर तेजी से कुपोषण की चपेट में आ रहे हैं। राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत किए सर्वे में यह बात सामने आई है। इसकी एक वजह किशोरों का ज्यादा जंक फूड खाना और पौष्टिक आहार कम लेना भी है। मोबाइल का इस्तेमाल की देर रात तक जगना भी शरीर के विकास में बाधा डाल रहा है। सिविल अस्पताल रुड़की में राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम के तहत किशोरों की काउंस¨लग की जाती है। ताकि उन्हें शारीरिक परिवर्तन के बारे में बताया जा सके। इसके अलावा इस कार्यक्रम के तहत किशोरों को अच्छे स्वास्थ्य, पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित किए जाने और कैरियर संबंधी जानकारी भी दी जाती है। काउंसि¨लग और विभिन्न मेडिकल जांच आदि के बाद उन्होंने पाया कि 184 किशोर-किशोरियों में 102 ऐसे थे, जिनका शारीरिक विकास आयु के हिसाब से नहीं हो रहा था। उनमें खून की कमी थी। वजन भी उम्र के मुताबिक औसत नहीं मिला है। इनमें से ज्यादातर किशोर दूध और अन्य पौष्टिक पदार्थों का सेवन नहीं करते हैं। बल्कि इसके उलट वह जंक फूड ज्यादा खाने के शौकीन हैं। इसके अलावा मोबाइल पर गेम आदि के कारण यह रात को देर से सोते हैं। इसी कारण यह किशोर ज्यादा तंदुरुस्त नहीं हैं। कुछ की आंखों की रोशनी भी कम है।
रुड़की सिविल अस्पताल में आई यूनिट नहीं होने की वजह से मरीजों और चिकित्सकों को परेशानी हो रही हैं। मरीजों को आंखों के ऑपरेशन के लिए हरिद्वार ले जाना पड़ रहा है। प्रदेश के बड़े अस्पतालों की फेहरिस्त में शहर का सिविल अस्पताल भी शामिल हैं। यहां पर दो नेत्र रोग विशेषज्ञ हैं, लेकिन इसके बाद भी मरीजों को आंखों के आपरेशन के लिए जिला अस्पताल ले जाया जाता है। सिविल अस्पताल में आई यूनिट नहीं होने की वजह से यह परेशानी हो रही है। यहां आंखों के आपरेशन के लिए आधुनिक उपकरण नहीं है। इस कारण अस्पताल में जो नेत्र रोगी आता है। चिकित्सक उसकी जांच कराने के बाद यदि आपरेशन की जरूरत होती है तो उसे जिला अस्पताल ले जाते हैं। सिविल अस्पताल में चार दिन पहले भगवानपुर क्षेत्र के महेश्वरी गांव निवासी श्याम ¨सह उपचार के लिए आया था। उसे आंखों से बहुत कम दिखाई दे रहा था। नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. महेश खेतान ने उसकी आंखों की जांच की। जांच में उसकी आंखों में मोतिया¨बद आया। डॉ. महेश खेतान ने बताया कि सिविल अस्पताल में आपरे¨टग माइक्रोस्कोप समेत अन्य संसाधनों की कमी है। इसकेचलते वह आपरेशन के लिए मरीज को हरिद्वार जिला अस्पताल ले गए। मरीज का आपरेशन पूरी तरह से सफल रहा है।
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में कृषि ऋण माफ करने की घोषणा की थी। सरकार बनने के बाद इस ओर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है
पिथौरागढ में कृषि ऋण माफ करने की मांग को लेकर पूर्व में किए गए आंदोलन पर कोई अमल नहीं होने से गुस्साए किसानों ने गुरुवार को जिला मुख्यालय में जुलूस निकालकर प्रदर्शन किया। किसानों ने अविलंब कृषि ऋण माफ नहीं करने पर उग्र आंदोलन की धमकी दी है।
किसान संगठन के बैनर तले रामलीला मैदान सदर से शुरू हुआ जुलूस सिमलगैर, नया बाजार, केएमओयू स्टेशन से टकाना होते हुए कलेक्ट्रेट पहुंचा। इस दौरान किसानों ने सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी कर प्रदर्शन किया। किसानों ने कहा कि भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में कृषि ऋण माफ करने की घोषणा की थी। सरकार बनने के बाद इस ओर कोई कदम नहीं उठाया जा रहा है। संगठन के अध्यक्ष सुभाष चंद्र जोशी ने कहा कि विगत वर्ष सूखा और ओलावृष्टि के कारण किसानों की फसल को भारी नुकसान पहुंचा है। सरकार ने मुआवजा राशि देना तो दूर नुकसान का सर्वे तक नहीं कराया और अब किसानों से जबरन ऋण वसूली की जा रही है। उन्होंने कहा कि सत्ता के नशे में चूर भाजपा सरकार किसानों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रही है। किसानों का उत्पीड़न किया जा रहा है। जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसके बाद किसानों ने जिलाधिकारी के माध्यम से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर कहा कि यदि अविलंब किसानों का ऋण माफ नहीं किया तो जिले के समस्त किसान परिवार को साथ लेकर सड़कों पर उतरने को बाध्य होंगे। किसानों ने आगामी 20 मार्च को नगर में फिर से एक विशाल जुलूस निकालने का एलान किया है। जुलूस प्रदर्शन में संगठन के संरक्षक शंकर राम कोहली, महेश कोठारी, ज्ञानी राम, बीडी कोहली, जगदीश विश्वकर्मा, दीवानी राम, जगदीश प्रसाद, मनी राम, चनी राम, चंचल सिंह बोहरा, गोविंद कफलिया, लक्ष्मण राम, प्रेम कुमार, धनी राम, चंद्री राम आदि शामिल रहे।
पिथौरागढ़ में कृषि ऋण की वसूली के लिए दबाव बढ़ाए जाने से नाराज किसानों ने बुधवार को प्रदेश सरकार के खिलाफ प्रदर्शन किया। किसानों ने कहा कि कृषि ऋण माफी का अपना वायदा पूरा नहीं करने वाली सरकार अब वसूली के नाम पर उनका उत्पीड़न कर रही है जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
भयंकर पेयजल संकट-
प्रदूषित पानी को लेकर नगर में आक्रोश बना है। जल संस्थान के अधिकारियों से लेकर पेयजल मंत्री , मुख्यमंत्री यहां तक कि पीएमओ कार्यालय तक की गई है। जल संस्थान द्वारा तत्काल समस्या का समाधान नहीं कर पाने के कारण लोगों को कई दिनों तक प्रदूषित पानी पीना पड़ा है। जिसके चलते अब नगर में लोग सरकारी पेयजल योजना का पानी पीने से कतराने लगे है।
पिथौरागढ़ नगर की आपूर्ति करने वाली एशिया की सबसे ऊंचाई वाली पंपिंग पेयजल योजना की पाइप लाइन पैंतालीस वर्षों से नहीं बदली गई है। जर्जर हो चुकी पाइप लाइन में हो रहा लीकेज पानी को प्रदूषित करने का प्रमुख कारण बना है। वहीं लगभग डेढ़ माह पूर्व ठूलीगाड़ पंपिंग पेयजल योजना में कुछ दिनों तक जल प्रदूषण का का कारण सीवर मिलना रहा।
घाट पंपिंग पेयजल योजना वर्ष 1972 से कार्य कर रही है। इस योजना में 12 इंच, 10 इंच, छह इंच और तीन इंच के पाइप लगे हैं। पैंतालीस सालों से इन पाइपों से ही आपूर्ति हो रही है। पाइपों की हालत बेहद खराब है। कई पाइप सड़ चुके हैं तो कई स्थानों पर लीकेज हो रहा है। जमीन में दबे इन पाइपों से होने वाले लीकेज के चलते कीचड़ सीधे टैंकों तक पहुंच रहा है। नए वर्ष की शुरु आत से नगर में प्रदूषित जल की आपूर्ति गंभीर बनी है।
तात्कालिक प्रदूषित जल का कारण लगभग 15 दिन पूर्व लोनिवि के निकट के मुख्य टैंक में की गई लापरवाही रही है। इस टैंक में सीपेज हो गया था जिसके चलते पानी टैंक से लीकेज होने लगा। इसके उपचार के लिए टैंक में डाला जाने वाला कैमिकल और चूना डाला गया। एक तरफ यह किया गया दूसरी तरफ जल संस्थान के कर्मियों को इसकी जानकारी तक नहीं दी गई। जलकल कर्मियों ने पानी खोल दिया। जबकि इस पानी को टैंक से बाहर निकाल कर फिर सफाई के बाद भरना था। इस बड़ी भूल से नलों में प्रदूषित पानी घरों तक पहुंच गया।
पिथौरागढ़ नगर में कई जल संयोजन वॉश आउट पाइप लाइन से दिए गए हैं। वॉश आउट पाइप लाइन टैंक की जड़ से बनाई जाती है। इस लाइन का कार्य टैंकों की सफाई के लिए होता है। टैंक में जड़ से दो फीट ऊपर से बिछाई गई लाइन से ही संयोजन दिए जाते हैं। जिसके चलते वॉश आउट पाइप लाइन में जमा गंदगी नलों से घरों तक पहुंच गई ।
जनता का जल संस्थान की योजनाओं से मोहभंग
पिथौरागढ़ मेें पेयजल प्रदूषित होने के कारण जनता का जल संस्थान की योजनाओं से मोहभंग हो चुका है। नगर के पश्चिमी छोर पर स्थित महादेव धारे से पानी भरने के लिए अचानक भीड़ बढ़ चुकी है। धारे से पानी भरने आए लोग काफी नाराज नजर आए। यहां पर मौजूद पार्वती देवी ने बताया कि नलों में आ रहे गंदे पानी को देखते हुए अब पीने का मन नहीं कर रहा है। विक्रम सिंह ने नलों में आए गंदे पानी को लेकर काफी गुस्से में नजर आए। उनका कहना था कि इसके लिए जल संस्थान जिम्मेदार है। धारे पर पानी भरने आए मुकेश ने कहा कि नलों में लगातार गंदा पानी आने से अब विश्वास तक नहीं हो रहा है।
बेरीनाग: हजेती से वर्षायत गांव को जोड़ने के लिए बनाई गई चार किमी सड़क पर 19 वर्षो बाद भी डामरीकरण नहीं हो पाया है। ग्रामीण धूल और कीचड़ की समस्या से परेशान हैं। कई बार मांग करने के बाद भी डामरीकरण की पहल नहीं होने से खिन्न ग्रामीण अब सड़कों पर उतरने को तैयार हैं।
वर्ष 1999 में हजेती-हतवाल गांव- वर्षायत सड़क का निर्माण कराया गया था। मानकों के अनुसार इस सड़क निर्माण के तीन वर्षो के भीतर इस सड़क पर डामरीकरण हो जाना था, लेकिन डामरीकरण नहीं हुआ। बरसात के दिनों में क्षेत्र की आबादी कीचड़ से तो गर्मियों में धूल की समस्या से परेशान रहती है। कई बार मांग करने के बाद भी विभाग ने डामरीकरण के लिए कोई पहल नहीं की है। इससे क्षेत्र के लोगों में गहरा आक्रोश है। क्षेत्रवासियों ने कहा है कि सड़क निर्माण के लिए जिन किसानों की भूमि ली गई थी उन्हें भी आज तक मुआवजा नहीं दिया गया है। डामरीकरण और मुआवजे की मांग को लेकर क्षेत्रवासियों ने आंदोलन की चेतावनी दी है।
चम्पावत में गर्मी के शुरू होते ही पानी की कमी ; बडी समस्या
चम्पावत में गर्मी के शुरू होते ही पानी की कमी सभी के समस्या बनने लग जाती है। खासकर कि पर्वतीय क्षेत्रों में। जनपद में प्रतिदिन लगभग छह से सात मिलियन लीटर पानी प्रयोग किया जाता है। लेकिन गर्मी के दिनों मंं इतने पानी की पूर्ति नहीं हो पाती है। भीषण गर्मी में पानी के जल स्रोतों में 60 से 70 प्रतिशत की गिरावट आ जाती है। जनपद के मैदानी क्षेत्र की अपेक्षा पर्वतीय क्षेत्र में पेयजल समस्या बहुत अधिक है। पर्वतीय क्षेत्रों में अधिकांश पेयजल की व्यवस्था प्राकृतिक स्रोतों से ही है क्योंकि जो भी पेयजल योजनाएं हैं वह प्राकृतिक स्रोतों से ही जुड़े हुए हैं। जनपद में 243 पेयजल योजनाएं हैं जिनसे 437 ग्राम, तोक व तीन नगर क्षेत्रों को पानी मिलता है। चम्पावत में गर्मियों में इन स्रोतों में पानी की 60 से 70 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। अभी से ही जल स्रोतों का जल स्तर घटने लगा है और पानी की सप्लाई में कमी आ रही है। मैदानी क्षेत्र टनकपुर, बनबसा में पेयजल के लिए ट्यूबवेल के द्वारा पानी उपलब्ध होता है इसके अलावा वहां पर्वतीय क्षेत्रों की अपेक्षा भूमिगत जल का स्तर भी ऊपर है। फिर भी जिन क्षेत्रों में पानी की कमी होती है वहां टैंकरों से पानी पहुंचाया जाता है। लोहाघाट के नगर क्षेत्र में पेय जल के लिए चौड़ी पंपिंग योजना से पानी सप्लाई किया जाता है तथा सुई ग्राम सभा में सुई पेयजल योजना से आठ गांवों को पानी उपलब्ध होता है।
प्राकृतिक स्रोतों, गधेरों पर निर्भर
छह माह पूर्व बुंगा-कोटाई क्षेत्र को जोड़ने वाली डाबरी जोशी पेयजल योजना में पाइप लाइन क्षतिग्रस्त हो गई थी। पाइप लाइन क्षतिग्रस्त होने से क्षेत्र के लगभग 60 परिवारों की पेयजल आपूर्ति बाधित हो गई। छह माह से भी अधिक का समय बीतने के बाद भी पाइप लाइन ठीक नहीं की गई है। जिस कारण ग्रामीणों को खासी परेशानी उठानी पड़ रही है। नलों में पानी नहीं आने से ग्रामीणों को प्राकृतिक स्रोतों, गधेरों पर निर्भर होना पड़ रहा है। लगातार गिरते जा रहे तापमान के कारण ठंड के मौसम में पानी जुटाना ग्रामीणो के लिए मुसीबत बन गया है। ग्रामीणों ने कहा कि इस संदर्भ में कई बार जलसंस्थान के अधिकारियों को लिखित व मौखिक रू प से सूचना दे दी गई है, मगर अभी तक इस ओर कोई कार्रवाई नहीं हो सकी है। जिला मुख्यालय से सटा क्षेत्र होने के बाद भी अधिकारी क्षतिग्रस्त स्थल तक पहुंचने की जहमत तक नहीं उठा रहे हैं। ग्रामीणों ने कहा कि यदि इसी तरह उनकी अनदेखी हुई तो उन्हें मजबूरन सड़कों पर उतरने को बाध्य होना पड़ेगा।
देश को पानी उपलब्ध कराने वाले पहाड़ खुद प्यासे
देश को पानी उपलब्ध कराने वाले पहाड़ खुद प्यासे हैं। सीमांत जिले में तो प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी काली नदी बहती है और उसकी दर्जनों हिमनदों से निकलने वाली सहायक नदियों के बाद जिले की शहर और गांव प्यासे हैं। शहरों की स्थिति बेहद खराब है । कुछ नगरीय क्षेत्रों में स्थिति भयावह हो चुकी है। जहां मांग के अनुरु प एक तिहाई पानी ही उपलब्ध हो पा रहा है। जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ नगर पेयजल की समस्या से जूझ रहा था। नगर के लिए नवनिर्मित आंवलाघाट पंपिंग पेयजल योजना वरदान साबित हो चुकी है। आंवलाघाट पंपिंग पेयजल योजना की क्षमता 12 एमएलडी की है। जिसमें छह एमएलडी पानी चलने लगा है। नगर में पूर्व की योजनाओं से छह एमएलडी पानी मिल रहा था। इधर अब छह एमएलडी पानी मिलने से नगर के प्रत्येक व्यक्ति को सौ लीटर पानी मिलने लगा है। इस योजना के तहत आगामी माहों में और छह एमएलडी पानी मिलने के बाद नगर सहित आसपास के गांवों की प्यास बुझ जाएगी।
जिले के गंगोलीहाट, बेरीनाग और डीडीहाट तीन तहसीलों में पेयजल संकट सबसे गंभीर है। जहां पर मांग के अनुरू प काफी कम पानी मिल रहा है। तीनों तहसीलों के कस्बों में स्थिति नगरों से अधिक खराब है। डीडीहाट में समस्या के निराकरण के लिए बनाई जा रही पंपिंग पेयजल योजना अधर में लटकी है , बेरीनाग के लिए योजना की घोषणा भर हैं। गंगोलीहाट में पंपिंग पेयजल योजना पर्याप्त पानी उपलब्ध कराने में अक्षम साबित हो रही है।
चम्पावत जनपद के अनेक क्षेत्रों में गर्मी बढ़ने के साथ-साथ पेयजल का संकट भी बढ़ना शुरू हो गया है। पर्वतीय क्षेत्रों में अभी से पानी की कमी होने से लोग परेशान हो रहे हैं। जहां एक ओर वर्षा न होने से हर साल किसानों को फसल का काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर पेयजल के स्तर में भी कमी आ रही है।
गर्मी के मौसम में पेयजल एक बहुत बड़ी समस्या बन जाती है। इस बार बारिस कम होने के कारण यह संकट और बढ़ने की संभावना है। जनपद के अनेक क्षेत्रों में अभी से लोगों को पानी पूर्ण मात्रा में नहीं मिल पा रहा है। कहीं कहीं पर तो कई पेयजल लाइनों में पानी आना बंद हो गया है। हालांकि अभी लोगों का कार्य चल जा रहा है। लेकिन अभी तो गर्मी की शुरुआत हो रही है। इससे आगे आने वाले महीनों का अंदाजा लगाया जा सकता है। जब मई जून में भीषण गर्मी पड़नी शुरू हो जाती है। इस वर्ष वर्षा में आई कमी के कारण पेयजल स्रोतों के जल स्तर में कमी आने से निकट माह में भीषण समस्या होने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
लोहाघाट मेें पाटी विकास खंड के भिंगराड़ा बाजार में तीन दिनों से रोला खोला पेयजल योजना से पानी न आने के कारण जल संकट गहरा गया है। जिसके चलते लोगों को क्वैराली नदी से पानी ढोकर गुजारा करना पड़ रहा है।
क्षेत्र के ग्रामीण दीपक शर्मा, उमेश भट्ट, दनेश चंद्र, हरीश गिरी, प्रकाश कुंवर, हेमा भट्ट, जानकी देवी, उमेदी देवी आदि लोगों को कहना है कि आसपास में कोई स्रोत न होने के कारण डेढ़ किमी दूर जाकर क्वैराली नदी से पानी लाना पड़ रहा है। तीन दिनों से अचानक पेयजल लाइन में पानी कम होने के कारण नलों में बूंद-बूंद कर पानी टपक रहा है। क्षेत्र के ग्रामीणों ने शीघ्र जल संस्थान से पेयजल लाइन को दुरुस्त करने की मांग की है। ऐसा न होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है।
कई गांवों में पेयजल संकट
नौगांव प्रखंड के धारी कलोगी क्षेत्र के कई गांवों में पेयजल संकट गहराने लगा है। पानी की भारी किल्लत से लोगों को दो चार होना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि गर्मी बढ़ने के साथ-साथ इन गांवों में पेयजल किल्लत बहुत अधिक बढ़ गयी है।
नौगांव ब्लॉक में इस समय सबसे अधिक परेशानी धारी, कलोगी के बजलाड़ी, तेड़ा, छुड़ी, नरयूंका, पमाड़ी, मानड़गांव, तियां, कफनोल समेत क्षेत्र दस से अधिक गांवों में है। प्राकृतिक जल स्त्रोत के सूख जाने के कारण जनवरी माह से यहां समस्या शुरू हो गई थी। ग्रामीण बताते है कि ऐसे में हैंडपंप या प्राकृतिक स्त्रोत से भी दिन भर में बारी लगा कर एक बार ही पानी मिल पा रहा है। यदि हालत यहीं रहे तो आने वाले दिनों में क्षेत्र के लोगों को मिलों दूर पानी का इंतजाम करना होगा। बजलाड़ी गांव में लगे दो हैंडपंप में से एक खराब होने पर एक पंप के भरोसे लोगों की पेयजल आपूर्ति चल रही है। क्षेत्र पंचायत सदस्य कफनोल केदार ¨सह, वीर सिंह चौहान, वादर ¨सह, बचन ¨सह, राजवीर ¨सह आदि का कहना है कि पेयजल आपूर्ति करने वाली जल संस्थान की लाइनों प्राकृतिक जल स्त्रोत सूख जाने के कारण यहां समस्या उत्पन्न हो रखी है। ग्रामीणों की शासन-प्रशासन से यह भी मांग है कि यदि यमुना नदी से जरड़ा खंड होते हुए लिफ्ट पं¨पग योजना सरकार स्वीकृत करती है तो इससे लगभग क्षेत्र के 20 गांवों को इसका फायदा मिलेगा।
जनवरी माह से यहां समस्या शुरू
नौगांव ब्लॉक में इस समय सबसे अधिक परेशानी धारी, कलोगी के बजलाड़ी, तेड़ा, छुड़ी, नरयूंका, पमाड़ी, मानड़गांव, तियां, कफनोल समेत क्षेत्र दस से अधिक गांवों में है। प्राकृतिक जल स्त्रोत के सूख जाने के कारण जनवरी माह से यहां समस्या शुरू हो गई थी। ग्रामीण बताते है कि ऐसे में हैंडपंप या प्राकृतिक स्त्रोत से भी दिन भर में बारी लगा कर एक बार ही पानी मिल पा रहा है। यदि हालत यहीं रहे तो आने वाले दिनों में क्षेत्र के लोगों को मिलों दूर पानी का इंतजाम करना होगा। बजलाड़ी गांव में लगे दो हैंडपंप में से एक खराब होने पर एक पंप के भरोसे लोगों की पेयजल आपूर्ति चल रही है। क्षेत्र पंचायत सदस्य कफनोल केदार ¨सह, वीर सिंह चौहान, वादर ¨सह, बचन ¨सह, राजवीर ¨सह आदि का कहना है कि पेयजल आपूर्ति करने वाली जल संस्थान की लाइनों प्राकृतिक जल स्त्रोत सूख जाने के कारण यहां समस्या उत्पन्न हो रखी है। ग्रामीणों की शासन-प्रशासन से यह भी मांग है कि यदि यमुना नदी से जरड़ा खंड होते हुए लिफ्ट पं¨पग योजना सरकार स्वीकृत करती है तो इससे लगभग क्षेत्र के 20 गांवों को इसका फायदा मिलेगा।
96 हजार लोग प्राकृतिक जलस्त्रोतों पर ही निर्भर
लोहाघाट में बाराकोट विकास खंड के चौमेल में जल संकट से परेशान लोगों ने बाजार में पोस्ट के समीप खाली बर्तनों को रखकर प्रदर्शन किया। और शीघ्र पेयजल लाइन, खराब पडे़ हैंडपंपों को ठीक करने की मांग की गई। ऐसा नहीं होने पर आंदोलन की चेतावनी दी है। मौके पर मौजूद ग्रामीण भूपाल सिंह, अमित बिष्ट, मनोज सिंह, अर्जुन सिंह, मीना देवी, आशा बिष्ट, गोविंदी देवी, श्याम सिंह, संजय सिंह , सुनीता देवी, रेखा बिष्ट आदि का कहना कि स्वजल से गांव के लिए लगभग दस वर्ष पूर्व बनी पेयजल लाइन में दो माह से पानी नहीं आ रहा है। बाजार में आठ से दस पोस्ट तो खड़े किए गए है। उनसे भी पानी नहीं टपक रहा है। जिस कारण गांव में निवास करने वाले 70 परिवारों की एक हजार से अधिक की आबादी को दिनरात मील दूर से पानी सिर पर ढोना पड़ रहा है। वहां भी भीड़ अधिक होने के कारण उन्हें समय से पानी नहीं मिल पा रहा है। उन्होंने शीघ्र पेयजल लाइन सहित बाजार में लगे दोनों हैंडपंपों को ठीक करने की मांग की है।
बागेश्वर मेें साल भर में 365 दिन होते हैं और इतनी ही पानी की योजनाएं जिले में संचालित हैं। लेकिन इसके बाद भी जिले में करीब 96 हजार लोग प्राकृतिक जलस्त्रोतों पर ही निर्भर है। वहीं अधिकांश पेयजल योजनाओं के क्षतिग्रस्त होने से लोगों को पानी के लिए इधर-उधर नाचना पड़ता है। पेयजल निगम व जलसंस्थान पानी की योजनाएं जरूर बना रहा है लेकिन इन योजनाओं से सभी की प्यास नहीं बुझ रही है। ढाई लाख की आबादी वाले बागेश्वर शहर में करीब 40 प्रतिशत लोग नौले व धारे के भरोसे हैं। जिले में करीब 250 धारे व 450 नौले हैं। लोगों को दूर जाकर नौलों व धारों से पानी लाना पड़ता है। महिलाएं और बच्चे दिनभर इसी काम में अपना काफी समय खर्च करते हैं।
गरुड़ में दो नदियों के बावजूद भी टीटबाजारवासी प्यासे हैं। लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। जल संस्थान की लापरवाही का खामियाजा उपभोक्ताओं को भुगतना पड़ रहा है। आक्रोशित लोगों और व्यापार संघ टीटबाजार ने प्रदेश के पेयजल मंत्री को ज्ञापन भेजकर उग्र आंदोलन की चेतावनी दी है।
व्यापार संघ टीटबाजार के ग्रामीणों को कहा कि टीटबाजार के एक ओर गरुड़ नदी तो दूसरी ओर गोमती नदी बहती है। दो नदियों के बावजूद भी लोग प्यासे हैं। उन्होंने कहा कि टीटबाजार के पास ही भकुनखोला और बैजनाथ गांव हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बैजनाथ है। साथ ही प्रसिद्ध बैजनाथ मंदिर हैं। यहां प्रतिदिन देशी-विदेशी सैलानी आते रहते हैं। लेकिन पेयजल की कोई व्यवस्था नहीं है। जबकि बिल पूरे माह का लिया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जब आधे माह ही पेयजल आपूíत की जा रही है तो फिर जल संस्थान उपभोक्ताओं से पूरे माह का बिल क्यों वसूल रहा है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कई बार उन्होंने जल संस्थान के अवर अभियंता से लिखित और मौखिक रुप से शिकायत दर्ज की लेकिन वे कतई सुनने को तैयार नहीं हैं। उन्होंने दो इंच के स्थान पर चार इंच की पाइप लाइन लगाए जाने, मूल में छोटा टैंक बनाए जाने और पानी का वितरण समान रुप से किए जाने मांग भी की। चेतावनी देते हुए कहा कि यदि एक सप्ताह के भीतर पेयजल आपूíत सुचारु नहीं की गई तो वे जल संस्थान कार्यालय का घेराव कर उग्र आंदोलन करने को बाध्य होंगे। ज्ञापन भेजने वालों में देवेंद्र आर्या, बलवंत रावत , सुंदर रावत आदि पदाधिकारी शामिल थे।
नौले व धारे से पानी ढोने पर मजबूर
बागेश्वर में पानी की समस्या बढ़ने लगी है। जिससे लोगों को दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। लोग नौले व धारे से पानी ढोने पर मजबूर हैं। जखेड़ा पेयजल योजना से बड़े क्षेत्र में पानी की आपूíत जल संस्थान करता है। लेकिन बीते 10 दिनों से पानी नहीं आने के कारण लोगों की परेशानी बढ़ गई है। योजना से गरूड़, द्यांगण, आरे, कठायतबाड़ा, नदीगांव, मजियाखेत आदि क्षेत्रों में आपूíत की जाती है। ऐसे में लोग पानी के लिए परेशान हैं। सपना तिवारी, रजनी, कविता बिष्ट, ममता नेगी, मंजू बिष्ट आदि ने व्यवस्था दुरुस्त करने की मांग की है। नई बस्ती में पानी की समस्या से से लोग परेशान है। पानी के लिए उन्हें धारे व हैंडपंप के सहारे रहने को मजबूर होना पड़ रहा है। क्षेत्रवासियों ने चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्द समस्या का समाधान नही हुआ तो उग्र आंदोलन के लिए बाध्य होना पड़ेगा। नई बस्ती के 20 से अधिक परिवार पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। यहां पानी आता ही नहीं हैं। विभाग भी यहां पानी पहुंचाने में असमर्थ दिखाई दे रहा है। पानी के इन यहां के लोगों को धारों व हैंडपंप के सहारे रहना पड़ता हैं। सुबह यहां के लोग पानी के लिए लंबी लाइन लगा देते है। फिर एक-एक कर पानी भरते हैं। लंबे समय से वह ऐसा ही कर रहे हैं। क्षेत्रवासियों ने बताया कि यहां कुछ लोगों के पास पानी के कनेक्शन है लेकिन उनमें पानी नही आता है। कई बार इस संबंध में विभागीय अधिकारियों को बताया जा चुका है लेकिन अभी तक समस्या का समाधान नहीं हुआ। जिससे नगरवासी अपने को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।
आजादी के सात दशक बाद भी गांव में अभी तक सड़क नहीं पहुंची
उत्तरकाशी जनपद में चिन्यालीसौड़ ब्लॉक के ग्राम पंचायत मांडियासारी में सड़क निर्माण की मांग को लेकर गांव के ग्रामीणों का पांचवें दिन शासन-प्रशासन के खिलाफ नागराजा मंदिर परिसर में धरना प्रदर्शन जारी रहा। गुरुवार को सत्यभामा, सुलोचना देवी, प्रमिला, शर्तमा देवी और मनमोहन ¨सह क्रमिक अनशन पर बैठे रहे। मांडियासारी गांव में शासन-प्रशासन स्तर से शीघ्र सड़क निर्माण को स्वीकृति दिलाने को ग्रामीणों ने जिलाधिकारी डॉ. आशीष चौहान को ज्ञापन सौंपा। जल्द समस्या का समाधान नहीं होने पर ग्रामीणों ने 20 मार्च से आमरण अनशन की चेतावनी दी है।
गुरुवार को ग्राम मांडियासारी के ग्रामीणों ने सड़क निर्माण की मांग को लेकर शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। ग्रामीणों ने कहा कि आजादी के सात दशक बाद भी गांव में अभी तक सड़क नहीं पहुंची है। गांव के ग्रामीण गांव में मूलभूत समस्याओं के लिए तरस रहे हैं। केंद्र और प्रदेश सरकार विभिन्न जिलों के गांवों में सड़क बना रही है, लेकिन सीमांतवर्ती क्षेत्र होने के कारण प्रदेश सरकार क्षेत्र की उपेक्षा कर रही है।
इस मौके पर सोबत ¨सह, मेहरबान ¨सह, शर्मिला देवी, रणवीर ¨सह, खुशाल ¨सह, उदय ¨सह, दरव्यान ¨सह, धीरज ¨सह, भजनलाल, प्रवीण नाथ, विशन ¨सह, बालेंद्र ¨सह, गो¨वद ¨सह रावत, जगदीप शाह, र¨वद्र ¨सह रावत, मनीष रावत, बनीता रावत, उत्तम ¨सह, पमिता रावत, संजीव कुमार आदि मौजूद थे।
उत्तरकाशी के सीमांतवर्ती जिले के डुंडा ब्लॉक अंतर्गत मांडियासारी गांव में सड़क की मांग को लेकर दूसरे दिन भी धरना जारी रहा। ग्रामीणों ने शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए आक्रोश जताया। मांग पूरी नहीं होने पर ग्रामीणों ने 16 मार्च से क्रमिक अनशन और 20 मार्च से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करने की चेतावनी दी है।
ग्रामीणों का कहना है कि ब्रह्मखाल-मांडियासारी मोटर मार्ग के लिए कई बार शासन-प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है। लेकिन प्रदेश सरकार विकास के नाम पर क्षेत्र की उपेक्षा कर रही है। एक ओर मोदी सरकार गांव को सड़क से जोड़ने की योजना बना रही है, वहीं दूसरी ओर गांव के ग्रामीण आजादी के बाद से सड़क सुविधा से महरूम हैं। इस मौके पर पूरण सिंह बिष्ट, विनीता रावत, रामलाल शाह, रविंद्र सिंह रावत, इलमा देवी, ममता, शकुंतला, ललीता, जलमा, विगुली देवी, धीरज सिंह, रणवीर सिंह, अनीता, मनीषा, सावित्री, उत्तम सिंह, सुलोचना आदि मौजूद थे।
उत्तरकाशी के सीमांतवर्ती जिले के डुंडा ब्लॉक अंतर्गत मांडियासारी गांव में आजादी के सात दशक बाद भी सड़क नहीं पहुंची है। गांव में सड़क नहीं होने से ग्रामीणों को करीब 5 किमी की पैदल दूरी नापनी पड़ रही है। गांव तक सड़क निर्माण की मांग को लेकर गांव के ग्रामीण कई बार शासन-प्रशासन स्तर पर गुहार लगा चुके हैं, लेकिन अफसोस आज तक किसी का ध्यान ग्रामीणों की समस्या की ओर नहीं गया।
रविवार को ग्रामीणों का सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने शासन-प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। गुस्साए ग्रामीणों ने ग्राम मांडियासारी स्थित नागराजा मंदिर परिसर में शासन-प्रशासन के खिलाफ जमकर नारेबाजी करते हुए आक्रोश जताया। मांग पूरी नहीं होने पर ग्रामीणों ने 16 मार्च से क्रमिक अनशन और 20 मार्च से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल करने की चेतावनी दी है। गुस्साए ग्रामीणों ने कहा कि ब्रह्मखाल- मांडियासारी मोटर मार्ग के लिए कई बार शासन प्रशासन को अवगत कराया जा चुका है। इस मौके पर पूरण ¨सह बिष्ट, विनीता रावत, रामलाल शाह, र¨वद्र ¨सह रावत, इलमा देवी, ममता, शकुंतला, ललीता, जलमा, विगुली देवी, धीरज ¨सह, रणवीर ¨सह, अनीता, मनीषा, सावित्री, उत्तम ¨सह, सुलोचना आदि मौजूद थे।
जनता के प्रति उपेक्षित रवैये के कारण जन का तंत्र से विश्वास उठने लगा
उत्तरकाशी में लचर प्रणाली और जनता के प्रति उपेक्षित रवैये के कारण जन का तंत्र से विश्वास उठने लगा है। ताजा मामला पोखरी सड़क निर्माण की मांग कर रहे ग्रामीणों का है। एनआइएम बैंड से पोखरी के लिए स्वीकृत सड़क निर्माण की मांग को लेकर पोखरी के ग्रामीण ने विश्वनाथ मंदिर में पुरोहित के माध्यम से भगवान शिव को ज्ञापन दिया। इस मौके पर ग्रामीणों मंदिर के आगे ज्ञापन पढ़ा और भगवान काशी विश्वनाथ के जयकारे लगाए। ग्रामीणों ने कहा कि वे 2004 से सड़क निर्माण की मांग कर रहे हैं। लेकिन प्रशासन हाईकोर्ट के आदेश के बाद भी सड़क का निर्माण नहीं करवा रहा है। जिसके बाद ग्रामीणों को भगवान के दर आना पड़ा।
ग्रामीणों का दल विश्व प्रसिद्व विश्वनाथ मंदिर में पहुंचा। ग्रामीणों ने पुरोहित राकेश नौटियाल को भगवान विश्वनाथ के नाम लिखा ज्ञापन दिया। ज्ञापन में ग्रामीणों ने सड़क निर्माण न होने से ग्रामीणों की व्यथा के बारे में लिखा। साथ ही विश्वनाथ से कामना करते हुए कहा कि उत्तरकाशी में बैठे अधिकारियों सदबुद्धि दे तथा काम करने की शक्ति प्रदान करे।
जिला मुख्यालय के निकट के गांव पोखरी गांव को जोड़ने के लिए 800 मीटर सड़क की स्वीकृति वर्ष 2004 में हुई थी। इस सड़क के लिए शासन से 11 लाख की धनराशि भी स्वीकृत हुई। लेकिन इस सड़क को लेकर डांग के ग्रामीणों ने विरोध शुरू किया। डांग के ग्रामीणों का कहना था कि पोखरी जाने वाली सड़क से उनका जंगल समाप्त हो रहा है तथा गांव के ऊपर भूस्खलन का भी खतरा है। सड़क न बनाने को लेकर ग्रामीणों ने हाईकोर्ट में रिट दायर की। लेकिन, हाईकोर्ट ने रिट को खारिज कर दी। सड़क निर्माण के आदेश दिए। लेकिन, उसके बाद भी सड़क का निर्माण नहीं हुआ। 24 जनवरी को पोखरी के ग्रामीणों ने अपने बच्चों सहित उत्तरकाशी बाजार में जुलूस निकाला था। इसके साथ ही ग्रामीणों ने क्रमिक अनशन शुरू किया। लेकिन उसके बाद भी सड़क का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाया। पोखरी के ग्रामीणों का दल विश्वनाथ मंदिर में पहुंचा। ग्रामीणों ने पुरोहित राकेश नौटियाल को भगवान विश्वनाथ के नाम लिखा ज्ञापन दिया। ज्ञापन में ग्रामीणों ने सड़क निर्माण न होने से ग्रामीणों की व्यथा के बारे में लिखा। साथ ही विश्वनाथ से कामना करते हुए कहा कि उत्तरकाशी में बैठे अधिकारियों सदबुद्धि दे तथा काम करने की शक्ति प्रदान करे। ज्ञापन देने वालों बलवीर ¨सह कैंतुरा, शूरवीर ¨सह नेगी, विक्रम ¨सह नेगी, बचन ¨सह कैंतुरा, जमन ¨सह राणा, किशन ¨सह राणा, शीशपाल कैंतुरा, पूर्व ब्लाक प्रमुख सुधा कैंतुरा, दलवीर ¨सह कैंतुरा, दशरथ ¨सह नेगी, सतवीर, नारायणी देवी, उषा देवी, सुनीता देवी, सुमिता नेगी, सतवीर राणा, अदिति नेगी आदि मौजूद थे।
बागेश्वर जनपद कपकोट के सात गांवों के लोग बीते सात साल से सड़क के इंतजार में हैं। लेकिन विभागीय ढिलाई के चलते सड़क का काम अटका पड़ा है। जिससे क्षेत्रवासियों में आक्रोश व्याप्त है। रिखाड़ी-बाछम मोटर रोड में धूरबैंड से बदियाकोट तक सड़क का निर्माण रुका हुआ है। 10.7 किमी लंबी इस सड़क का टेंडर और रोड क¨टग भी हो चुकी है। जिला पंचायत सदस्य भागीरथी देवी ने बताया कि विकास के पैमाने में सड़क बहुत आवश्यक है। साल 2011 में रोड क¨टग के बाद भी क्षेत्र की जनता के साथ अन्याय हो रहा है। उन्होंने कहा कि यदि शीघ्र सड़क का निर्माण कार्य आगे बढ़ाया नहीं गया तो वह आंदोलन को बाध्य होंगे।
बागेश्वर में सड़क का निर्माण कार्य नहीं होने से करीब सात गांवों की चार हजार की आबादी प्रभावित हो रही है। जिसमें सोराग, तीख, दौला, किलपारा, कालू, बदियाकोट व कुआरी आदि हैं। सड़क में सो¨लग व डामरीकरण नहीं होने से पत्थरों के ऊपर से गाड़ियां चल रही हैं। रबैंड से बदियाकोट तक जाने वाली सड़क का महत्व कई तरह से है। पर्यटन स्थल रूपकुंड की ट्रै¨कग के लिए यह एक प्रमुख मार्ग है। चमोली, गढ़वाल जाने के लिए भी यह प्रमुख मार्ग है। सड़क के अधूरे काम से पर्यटकों को भी खासी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
पौराणिक मंदिर आज भी अंधेरे में; सरकार का कोई ध्यान नही इन ऐतिहासिक मंदिरो की ओर
मल्लाड़ेश्वर महादेव मंदिर कई गांवों का एक मात्र शिव मंदिर होने के साथ ही प्राचीन मंदिर भी है यहां लोग न्याय की गुहार लगाने आते हैं और उन्हें न्याय मिलता है। मान्यता है क न्याय के देवता विराजमान हैं मंदिर में , मंदिर के बाहर शिव के रक्षक के रूप में अष्ट भैरव विराजमान हैं जो उत्तराखंड में काशी विश्वनाथ के अलावा यहीं पर विद्यमान हैं। जिस कारण यह मंदिर न्याय का मंदिर माना जाता है। कहा जाता है कि गोलू देवता भी इन्हीं का अंश हैं। इसके अलावा मंदिर में रथवाहिनी देवी माँ भगवती, प्राचीन धूने के अंश के स्प में गोरखनाथ भी यहां विराजमान हैं। स्कंदपुराण व मानसखंड में मल्लाडेश्वर व अखिल तारिणी के साक्ष्य मिलते है। चम्पावत मे स्कंदपुराण व मानसखंड में उल्लेखित मुख्यालय से लगभग सात किमी की दूरी पर स्थित प्राचीन मल्लाडेश्वर महादेव मंदिर 12 गांवों से घिरा हुआ है। तीज त्योहारों, पर्व आदि पर ग्रामीणों द्वारा यहां भंडारा, बैठक आदि का आयोजन किया जाता है, अष्टभैरव पर्व पर विशेष कार्यक्रम होते हैं तथा माघ मास में स्नान करने वालों का यहां तांता लगा रहता है। लेकिन क्षेत्र का यह पौराणिक मंदिर आज भी अंधेरे में हैं। विभाग की लापरवाही के चलते आज तक मंदिर में नहीं बिजली नहीं पहुंची। जबकि ग्रामीण कई बार इसकी मांग उठा चुके हैं। मल्लाडे़श्वरमहादेव मंदिर को सतयुगी मंदिर माना जाता है, इसे मनलागेश्वर भी कहते हैं। जो 12 गांवों के बीचोंबीच कानीगाढ़ के किनारे स्थित है। इस मंदिर को पुराणों में सप्त ऋषियों में से एक माना जाता है। यहां शिव का मंदिर गुफा में विराजमान हैं। 12 गांवों का एकमात्र शिव मंदिर अब तक अंधकार में है। यहां अभी तक भी विद्युत लाइन नहीं पहुंची है जिस कारण यहां प्रकाश व्यवस्था नहीं है। मंदिर में कई पर्व, त्योहारों में भंडारा, पूजा पाठ व स्नाल के लिए लोगों की भीड़ रहती है। नवरात्रि में मंदिर में जागर लगता है तथा देव-डांगर यहां स्नान के लिए आते हैं। इसलिए ग्रामीणों ने यहां स्नानगृह भी बनवाए हैं। मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए तथा रात्रि में प्रकाश की आवश्यकता को देखते हुए ग्रामीण कई बार प्रशासन से मंदिर में विद्युत व्यवस्था, धर्मशाला आदि उपलब्ध कराने की मांग कर चुके हैं लेकिन मंदिर में विद्युत व्यवस्था को लेकर अभी तक प्रशासन ने कोई सुध नहीं ली।
मल्लाडेश्वर महादेव मंदिर सल्ला, सिमल्टा, कांडा, कठाड़, कमैला, नगर गांव, शक्तिपुर, बलानीबुंगा, चौकी, धौन सौंज, फुंगर, मौटी, जायड़ा, वदेली, मैटी, बलानीबुंगा, सिमन टॉक, लिस्ता, लटोली आदि गांव का एक मात्र शिव मंदिर है।
मंदिर में विद्युत प्रकाश व्यवस्था नहीं है जिला पंचायत से दस साल पहले एक सोलर लाइट मिली थी। जो केवल दो घंटे तक जलती है।
उत्तराखण्ड की केदारघाटी में कई पौराणिक रहस्य आज भी छिपे हुए हैं. भगवान जाख नर रुप में अवतरित होकर दहकते हुए अंगारों में नृत्य करते हैं
उत्तराखण्ड की केदारघाटी में कई पौराणिक रहस्य आज भी छिपे हुए हैं. यहां कई तीर्थ स्थल ऐसे हैं जो प्रचार प्रसार के अभाव में अपनी विश्वस्तरीय पहचान नहीं बना पा रहे हैं. ऐसा ही एक स्थल है जहां पर भगवान जाख नर रुप में अवतरित होकर दहकते हुए अंगारों में नृत्य करते हैं और उसके गवाह बनते है हजारों भक्त. रुद्रप्रयाग गौरीकुण्ड राजमार्ग के गुप्तकाशी कस्बे से करीब 5 किमी दूर जाखधार में हर वर्ष बैशाखी के दूसरे दिन एक बड़ा घार्मिक अनुष्ठान होता है. इस आयोजन में हजारों की तादाद में श्रद्धालु उमड़ते हैं. जाखधार में भगवान जाख देवता का मन्दिर है. मान्यता है कि सम्वत 1111 में यहां पर भगवान का प्राकटय हुआ था. प्राचीन किवंदन्तियों के अनुसार यहां के स्थानीय चरवाहे भेड़ बकरियों के साथ जंगल गए थे जहां पर उन्हें एक अलग सा पत्थर का टुकड़ा दिखाई दिया. चरवाहे ने पत्थर को अपनी घास की कण्डी में यह समझ कर रख लिया कि भेड़ो की ऊन को साफ करने के काम आएगा. घर वापसी पर वह पत्थर भारी हो गया और कण्डी पर लगी डोरी टूट गई और पत्थर जाखधार में ही स्थापित हो गया. बाद में चरवाहे के सपने में भगवान जाखराज ने दर्शन दिए और वहां पर विराजमान होने की बात कही. जाखदेवता को यक्षराज भी कहा जाता है. और वर्षा के देवता के तौर पर भी इनको जाना जाता है. कोई इन्हें शिव स्वरुप मानता है तो कोई उन्हें विष्णु स्वरुप मानता है. स्थानीय पुजारी कहते हैं कि जब भगवान यक्षराज दहकते हुए अंगारों में नृत्य करते हैं तो वह नारायण स्वरुप रहते हैं अन्यथा वह शिव स्वरुप हैं. बैशाखी के दिन से ही पूरी परंपराओं और विधान के अनुसार जंगल से भारी लकड़ियां इक्कठा की जाती हैं और उनको प्रज्वलित किया जाता है स्थानीय बांझ पेड़ की इन लकड़ियां के जलते हुए अंगारों से इतनी तेज आंच आती है कि कोई भी इनके सामने खड़ा नहीं रह सकता है. भगवान के नर रुप में अवतरित पश्वा कई बाद्यय यन्त्रों की थापों पर आवेशित होकर अर्घनग्न शरीर के साथ इस कुण्ड में प्रवेश करते हैं और नृत्य करते हैं कई बार तो भगवान पांच बार कुण्ड में प्रवेश करते हैं मगर इस बार भगवान ने सिर्फ एक बार प्रवेश किया है जिसको लेकर स्थानीय लोग देवता की नाराजगी बताते हैं.
वैशाख होने वाले इस आयोजन को लेकर लोगों में काफी उत्साह रहता है और यही कारण है कि भगवान के नारायण स्वरुप को देखने के लिए यहां पर हजारों की तादाद में श्रद्धालु पहुंचते हैं बाद में उसी अग्नि कुण्ड की राख को प्रसाद के रुप में अपने घरों को ले जाते हैं.
विशेष परम्परा लिये यह क्षेत्र सरकार की उपेक्षा का शिकार है-
स्वास्थ्य सेवायेेे- – अस्पतालो में दूसरे शहर के अस्पताल जाने की सलाह दी जाती है बस
चंपावत, प्रसव पीड़िता कराहती रही और चिकित्सक उसे भर्ती की करने की बजाए दूसरे अस्पताल जाने की सलाह देते रहे। चिकित्सक का तर्क था कि अस्पताल में आपरेशन थियेटर नहीं है, इसलिए डिलीवरी नहीं कराई जा सकती। पांच घंटे तक गुहार लगाने के बाद परिजन महिला को लेकर पिथौरागढ़ रवाना हुए, लेकिन आधे रास्ते में ही डिलीवरी हो गई। जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं।
घटना ग्राम मोहनपोखरी, फुंगर निवासी रेखा देवी पत्नी कैलाश राम को परिजन तड़के साढ़े चार बजे जिला चिकित्सालय लेकर आए। ड्यूटी पर मौजूद डॉक्टर और नर्स ने महिला को दूसरे चिकिल्सालय ले जाने की सलाह दे डाली। परिजनों का आरोप है कि महिला का चेकअप किया बिना चिकित्सक ने कहा दिया कि डिलीवरी आपरेशन से होगी और यहां आपरेशन थियेटर नहीं है।
सुबह साढ़े नौ बले तक परिजन अस्पताल के स्टाफ की मिन्नतें करते रहे। आरोप है कि सीएमएस डॉ. आरके खंडड़ी ने परिजनों को बताया कि महिला की स्थिति गंभीर है और उसमें खून की कमी है, महिला की उम्र ज्यादा है। निराश परिजन महिला को निजी वाहन से पिथौरागढ़ ले जाने लगे। रास्ते में महिला का दर्द तेज हो गया। साथ आई गांव की महिलाओं ने सुबह 10.41 बजे वाहन में प्रसव कराया। पिथौरागढ़ पहुंचने पर महिला को जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया गया। जहां डॉक्टर ने बताया जच्चा-बच्चा दोनों स्वस्थ्य हैं।
माँ मनिला क्षेत्र – एक सोचनीय बिषय; सरकारी बेरूखी के कारण आज ये क्षेत्र अपनी पहचान के लिए लालायित
सरकारी बेरूखी के कारण आज ये क्षेत्र अपनी पहचान के लिए लालायित है। प्राकृतिक सौन्दर्यता से भरपूर ये क्षेत्र आजादी के ७० साल बाद भी अपने आप को ढूढ़ रहा है। कुमाऊँ और गढ़वाल के बॉर्डर में सिथत अल्मोड़ा जनपद के सुदूर ग्रामीण क्षेत्र में चीड़ के वृक्षों से आच्छादित ऊँची पहाड़ी के ढलान पर बसे मानिला क्षेत्र अपने आप में अत्यंत रमणीक स्थान है यहाँ पर दो माँ के मंदिर हैं- मल्ला मानिला और तल्ला मानिला । कुछ वर्ष पूर्व तक जब उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश का एक भाग था, तब तक यह क्षेत्र सदियों पुरानी अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता , आपसी प्यार ,भाईचारा को यथावत बनाये रखे रहा था परंतु उत्तराखंड के सृजनोपरांत क्षेत्र में शहरीकरण की ऐसी होड़ लगी कि आज मानिला क्षेत्र जनबिहीन हो गया है। घटती आबादी, दिन-प्रतिदिन पलायन , क्षेत्र में पानी की कमी,अत्याधुनिक स्कूलों का न होना , आज तक भी अस्पतालों का न होना और क्षेत्र में गावों को जोड़ने के लिए सड़कों का न होना मनिला क्षेत्र को जनविहीन बनाते गए। आज सिथति ऐसी है कि पुरे क्षेत्र में गांव के गांव खाली हो गए है। पूरा क्षेत्र बीरान हो गया है। यद्यपि पर्वत शिखर पर स्थित मानिला मंदिर अपनी विशिष्ट स्थिति के कारण आज भी अपनी प्राकृतिक सौन्दर्यता पूर्ववत सँजोये हुए है।
इस बिरानी के बाद भी तल्ला मानिला मंदिर और मल्ला मानिला मंदिर अपनी नैसर्गिक आभामंडल में यथावत है। अपनी इस धरोहर को बचाये रखने के लिए क्षेत्र के समाजसेवी समय समय पर बिभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाते रहते है पर प्रश्न ये उठता है कि क्या सचमुच हम वो खेतों कि हरयाली, बैलों के घुगरों की आवाज , वो आमा -बुबू का प्यार ,वो खो-खो कबड्डी का खेल , वो रातों का जागरण , वो काका -काकी गावों का प्यार वापस ला पायगे। आज जो सबसे सोचनीय बात है वो ये है की क्या ये गाव फिर आबाद होंगे ? सरकारी बेरूखी के कारण आज ये क्षेत्र अपनी पहचान के लिए लालायित है। प्राकृतिक सौन्दर्यता से भरपूर ये क्षेत्र आजादी के ७० साल बाद भी अपने आप को ढूढ़ रहा है।
डा दिनेश लखचौरा
9811406034
UTTRAKHAND स्वास्थ्य की स्थिति बद्तर
नीति आयोग ने दो दिन पहले दिल्ली में हेल्दी स्टेट्स प्रोग्रेसिव रिपोर्ट जारी की। इसमें जिन राज्यों में स्वास्थ्य की स्थिति बद्तर है, उनमें डेढ़ दशक पहले बना उत्तराखंड भी शामिल है। इस खराब प्रदर्शन का सबसे बड़ा कारण अदूरदर्शी नेताओं और लापरवाह अधिकारियों की ओर से स्पष्ट स्वास्थ्य नीति नहीं बनाया जाना है। दूसरा बड़ा कारण प्रदेश में 70 फीसद डॉक्टरों की कमी है। मैन पावर और सुविधाओं की कमी का फायदा सरकार के नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए फर्जी डिग्री वाले झोलाछाप उठा रहे हैं। जिन्होंने शहरी क्षेत्रों की बस्तियों से लेकर पर्वतीय क्षेत्रों के कोने-कोने में पैठ बना रखी है।
बागेश्वर में आज भी ग्रामीण मरीजों को डोली में बैठाकर अस्पताल ले जाते हैं। ये बिडंबना है स्वतंत्रता सेनानियों के गावों की। यहां आजादी के बाद से आज तक एकाद सड़क नहीं बन पाई। यहां आज भी लोग आदिम युग में जी रहे हैं। तहसील के कई गांव ऐसे हैं जिन्होंने स्वतन्त्रता संग्राम में प्रमुख भूमिका निभाई और इसके लिए कई बहादुरों ने अपनी जान भी गवाईं। देश आजाद हुआ तो चुने गए जन प्रतिनिधियों ने इन गांवों को ओर अपना मुंह मोढ़ लिया। फलस्वरूप ये गांव आज तक यातायात की सुविधा से ही नहीं जुड़ पाए हैं।
गरुड़ के सिल्ली, मटेना, जिनखोला और बंड के कई सपूतों ने स्वतन्त्रता संग्राम आंदोलन में अपनी जान देश पर न्यौछावर कर दी। सात दशक बाद भी इन गांवों को यातायात की सुविधा नहीं मिल सकी है। ग्रामीण इसके लिए लंबे समय से मांग उठा रहे हैं। लोकसभा के चुनाव हों या फिर विधानसभा के चुनाव प्रत्येक प्रत्याशी इन गांवों की दुर्दशा पर आंसू बहाना नहीं भूलता है। यातायात सुविधा न होने के कारण इन गांवों के लोग 108 आपातकालीन सेवा का लाभ भी नहीं ले पाते हैं। कई किलोमीटर पैदल चलकर इन गांवों के लोग आज भी मरीज को डोली में लिटाकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बैजनाथ ले जाते हैं।
मटेना की प्रधान शकुंतला कांडपाल, जिनखोला की प्रधान नरुली देवी, बंड के प्रधान नंदन सिंह, कोटुली के प्रधान कैलाश चंद्र, क्षेत्र पंचायत सदस्य प्रेमा नेगी, हेम चंद्र पांडे, कैलाश पांडे आदि ने ब्लॉक मुख्यालय से शीघ्र इन गांवों को सड़क बनाने की मांग की है।
स्वास्थ्य
बागेश्वर में जिला मुख्यालय स्थित मंडलसेरा में पूर्व सैनिकों को स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए इसीएचएस केंद्र खोला गया। लेकिन चिकित्सकों की भारी कमी से पूर्व सैनिकों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा हैं। उन्होंने इसीएचएस केंद्र में चिकित्सकों की जल्द भर्ती करने की मांग की है। हुआ। इसका मकसद था कि पूर्व सैनिकों व उनके आश्रितों को बेहतर सुविधा मिल सके। जिले में 40 हजार से अधिक पूर्व सैनिक व उनके आश्रित रहते हैं। लेकिन चिकित्सकों के अभाव में उन्हें जिला अस्पताल या दूरस्थ क्षेत्रों के अस्पतालों में ही इलाज कराने को मजबूर होना पड़ता हैं। केंद्र में न तो विशेषज्ञ चिकित्सक है और न स्त्रीरोग विशेषज्ञ। केंद्रों में चिकित्सकों के नहीं होने से उन्हें बाहर के केंद्रों में इलाज को मजबूर होना पड़ता हैं। केंद्र में प्रतिदिन करीब 100 से अधिक ओपीडी होती हैं। लेकिन कम संसाधनों में ही केंद्र का संचालन किया जा रहा हैं। केंद्र में तीन एंबुलेंस का प्रस्ताव हैं। जो आपातकाल में अपनी सेवाएं दे सकें। लेकिन अभी तक एंबुलेंस केंद्र के पास नहीं हैं। जिससे दूर दराज से अस्पताल में इलाज कराने को आने वाले मरीजों को प्राइवेट टैक्सियों में आना पड़ता हैं।
जहां एक ओर राज्य सरकार जिले में जेनेरिक दवाओं का केंद्र नहीं खोल पाई है वहीं इसीएचएस केंद्र पूर्व सैनिकों को यह सुविधा दे रहा हैं। पूर्व सैनिकों को केंद्र से जेनेरिक दवाइयां मिलती हैं। उन्हें बाहर से महगी दवाएं नहीं लेनी पड़ती हैं।
राजधानी देहरादून के निकटवर्ती क्षेत्रो में स्वास्थ्य की स्थिति ; विकास के सारे दावे धरे के धरे
राजधानी देहरादून के निकटवर्ती क्षेत्र कालसी में सड़क स्वीकृत होने के बावजूद 21वीं सदी में प्रदेश की राजधानी से सटे कालसी ब्लॉक के सड़क विहीन गांवों के लोग डंडी-कंडी पर मरीज को लेकर 30 किमी का पैदल सफर कर अस्पताल पहुंच रहे हैं। ऐसे में सरकारों की ओर से किए गए विकास के सारे दावे धरे के धरे रह जाते हैं। यह कहानी है फाइलों में स्वीकृत बेवड़धार-लुहन बैंड मोटर मार्ग की, जिसका वर्ष 1975 में सर्वेक्षण हुआ था। सर्वेक्षण के बाद 13 गांव के लोगों को सड़क से जुड़ने का सपना सच होता नजर आया था। लेकिन, अफसोस आज 42 साल बीतने के बाद भी यह सड़क क्षेत्र के सात हजार ग्रामीणों के सपनों से धरातल पर नहीं उतर पाई है।
उत्तराखंड में आज भी कई गांव सड़क विहिन
सड़क को विकास का सबसे बड़ा पैमाना माना जाता है। लेकिन, उत्तराखंड में आज भी कई गांव सड़क विहिन हैं। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकारें भी इन गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए ईमानदारी से प्रयास करती नजर नहीं आ रही हैं। इसका एक उदाहरण कालसी तहसील क्षेत्र का बेवड़ाधार-लुहन बैंड मोटर मार्ग है। शासन से स्वीकृति के बाद वर्ष 1975 में मोटर मार्ग के लिए सर्वेक्षण कार्य किया गया। लेकिन, सड़क सर्वे से आगे नहीं बढ़ पाई। नतीजतन, क्षेत्र के 13 गांव आज भी सड़क सुविधा को तरस रहे हैं।
भालनू भातली खेड़ा, असायता, भोड़ा, काहा, नेहरा, पुनाहा, कम्हरोड़ा आदि गांवों में सड़क सुविधा नहीं होने से लोगों को कई मुसीबतों से रोजाना दो-चार होना पड़ता है। मरीजों को आज भी यहां डंडी-कंडी के सहारे 20 से 30 किमी की पैदल दूरी नापकर सड़क तक लाया जाता है, जहां से उन्हें गाड़ी से अस्पताल पहुंचाया जाता है। जबकि, काश्तकारों को अपनी नकदी फसल मंडी तक लाने के लिए घोड़े खच्चरों का सहारा लेना पड़ता है। जिससे उन्हें अतिरिक्त किराया चुकाना पड़ता है और आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है।
42 वर्षों में सड़क के नाम पर विभाग ने एक पत्थर तक नहीं रखा। गांवों के बुजुर्ग हो चुके लोग निराश होकर कहते हैं, अब तो लगता नहीं कि जीते जी गांव तक सड़क देख पाएंगे। ग्रामीण बताते हैं कि सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने के बावजूद निर्माण कार्य शुरू नहीं होने से अब वे निराश हो चुके हैं। सात हजार की आबादी को दिक्कतें झेलनी पड़ रही है।
42 पेज का यह उत्तराखण्ड सरकार का रिपोर्ट कार्ड है जिसमें सम्पूर्ण सूबे की स्थिति को बारीकी से दिखाया गया है, इस रिपोर्ट कार्ड को तैयार करने में काफी मेहनत और समय लगा हेैैजिससे हम उत्तराखण्ड की वास्तविक स्थिति आपके समक्ष रख सके है- उत्तराखण्ड की वास्तविक स्थिति देखने के लिए राजधानी देहरादून में एयरकंडीशन कमरो से बैठ कर नही देखी जा सकती, या पर्यटक बनकर उत्तराखण्ड में घूमने से नही मिलती- उसके लिए धरातल पर कार्य करने की आवश्यकता होती है- बडा अफसोस का विषय है- कि वर्तमान सरकार का रिपोर्ट कार्ड निराश करने वाला है- जिस जोशोखरोस के साथ त्रिवेन्द्र सरकार को जनता ने अपना समर्थन और सहयोग दिया था, उस पर वह खरे नही उतर पा रहे हैं, नौकरशाही के भरोसे बैठे मुखिया धरातल से दूर होते जा रहे है-
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