राजस्व परिषद व राजस्व विभाग की सांठगांठ से हुआ अनोखा खेल
वर्ष २०१७ में हुए उत्तराखण्ड विधानसभा चुनावो में आचार संहिता लागू हो चुकी थी और तहसीलदारो और नायब तहसीलदारो की कमी को देखते हुए तदर्थ तौर पर नियुक्तियां की गयी, जो एक वर्ष के लिए यानि मात्र ३६४ दिन के लिए अस्थाई तौर पर की गयी थी, परन्तु यही से सूबे की नौकरशाही ने शानदार खेल खेला। सूबे की टॉप नौकरशाही द्वारा गैरकानूनी रूप से बिना आदेश के यह नियुक्तियां आज तक सुचारू चलायी जा रही है। राजस्व परिषद व राजस्व विभाग की सांठगांठ से यह तर्द्थ नियुक्तियां चल रही है, बिना अधिकार पदासीन २२ तहसीलदार और ८६ नायब तहसीलदार सूबे के राजस्व के भाग्य विधाता बने हुए है, जो पूर्णतया नियमविरुद्व इन पदो पर जमे हुए है।
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देहरादून राजधानी के अन्तर्गत डोईवाला तहसील में कार्यरत तहसीलदार की नियुक्ति भी सवाल खडा करती है। चर्चा है कि तहसीलदार के रूप में कार्यरत अधिकारी तहसीलदार पद के लिए पात्र ही नही है, वह नायब तहसीलदार भी नही बनाये जा सकते, क्योकि उनके द्वारा कानूनगो का विधिवत प्रशिक्षण तक प्राप्त नही किया गया है, जिस कारण उनको तहसीलदार के पद पर नही तैनात किया जा सकता, परन्तु उनको मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड की विधानसभा क्षेत्र में किस कारणवश तैनात किया गया है, चारो ओर जबर्दस्त जनचर्चा है।
गत वष राजस्व परिषद, उत्तराखण्ड द्वारा दिनांक २४ जून २०१६ को एक आदेश सं० १७०७/रा०प०-त०ना०ता०/ तदर्थ प्रोन्नति/२०१६ जारी किया गया था जिसके अनुसार तहसीलदारो की नितांत कमी को देखते हुए सीधी भर्ती के २२ नायब तहसीलदारो को रिक्त पडे तहसीलदारो के पदो पर पूर्णतया अस्थाई व्यवस्था में एक वर्ष से अनधिक अवधि के प्रतिबंध के साथ तदर्थ रूप से पदोन्नति देकर नियुक्त किया गया था और उक्त आदेश में यह भी स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया था कि उक्त तदर्थ नियुक्ति पूर्णतया अस्थाई है। ज्ञात हो कि उक्त आदेश राजस्व परिषद के आयुक्त एवं सचिव विजय कुमार ढौडियाल द्वारा जारी किये गये थे। गौरतलब है कि २३ जून २०१७ को निष्प्रभावी हुए उक्त आदेश के बावजूद भी शून्य हो चुके सभी उक्त प्रोन्नत नायब तहसीलदार-तहसीलदार के रूप में कार्यरत है और प्रशासकीय व शासकीय कार्यो के अलावा गैरकानूनी रूप से न्यायालय तहसीलदार के रूप में न्यायाधीश का कार्य देख विचाराधीन मामलो को अनाधिकार निस्तारित करते चले आ रहे हैं, यह सवालो के घेरे में है। इस का जिम्मेदार कौन है, बडा सवाल खडा हो गया है।
वही दूसरी ओर १५ अक्टूबर २०१६ को उत्तराखण्ड राजस्व परिषद द्वारा पारित आदेश सं० ३८९६ के अनुसार आगामी विधानसभा सामान्य निर्वाचन-२०१७ को देखते हुए जनहित एवं कार्यहित में राजस्व निरीक्षको/ रजिस्ट्रार कानूनगो एवं वन पंचायत निरीक्षको को जिनके द्वारा उत्तराखण्ड अधीनस्थ राजस्व कार्यपालक (नायब तहसीलदार) सेवा नियमावली- २००९ के अनुसार दिनांक ०१-०७-२०१६ से पूर्व इस पद पर विर्निदिष्ट अर्हकारी सेवा पूर्ण कर ली है, को नायब तहसीलदार के रिक्त पद पर पूर्णतया अस्थाई व्यवस्था के नियमित प्रोन्नति/तैनाती होने अथवा एक वर्ष से अनधिक अवधि (३६४ दिन) जो भी पहले हो, तक के लिए प्रतिबंधर के साथ तदर्थ नियुक्ति के रूप में ५९ लोगो की नियुक्ति की गयी थी, जिसे बिना किसी सूचना के स्वतः ही समाप्त माना जायेगा, का भी उल्लेख उक्त आदेश में किया गया था और गढवाल व कुमायूं मण्डलो मे तदथ प्रोन्नति पूर्णतया अस्थाई के रूप में की गयी थी।
उक्त नियुक्ति आदेश भी १४ अक्टूबर २०१७ को निष्प्रभावी हो चुका है, परन्तु माननीय आज भी नायब तहसीलदारो के रूप में शासकीय/प्रशासकीय कार्यो के अलावा न्यायिक कार्यो को भी गैरकानूनी रूप से अंजाम देते चले आ रहे हैं। इसी प्रकार एक और आदेश दि० ५ नवम्बर २०१६ पत्रांक सं० ४१६८ के अनुसार २३ लोगो की सूची के साथ उपरोक्तानुसार ३६४ दिनों के पूर्णतया अस्थाई प्रोन्नति व तदर्थ नियुक्ति के रूप मे सशर्त नायब तहसीलदार के पदो पर नियुक्त किया गया था जो आज भी अवैध व अनुचित रूप से पदारूढ है उक्त आदेश श्री एस० रामास्वामी अध्यक्ष राजस्व परिषद उत्तराखण्ड द्वारा जारी किये गये।
ज्ञात हो कि उत्तराखण्ड में ११० तहसीलो और १८ उपतहसीलो के लिए ११२ पद ही शासन द्वारा सृजित है तथा नायब तहसीलदार के १५२ पद नियमानुसार है, जिन पर वन-बाई-वन के अनुपात से सीधी भर्ती के ७६ तथा प्रोन्नति वाले ७६ राजस्व निरीक्षको, रजिस्ट्रार कानूनगो एवं वन पंचायत निरीक्षको की प्रोन्नति होकर स्थाई नियुक्ति होनी है परन्तु २०१२ से २०१७ तक के लगभग ११६ प्रोन्नतियां अधिकारियो की अनदेखी व निष्क्रियता के कारण प्रविष्टियां (ए०सी०आर०) न भेजे जाने के कारण लंबित पडी हुई है, जिससे इनके अधिकारो का हनन हो रहा है।
राजस्व परिषद द्वारा प्रविष्टियां न भेजे जाने पर प्रोन्नत का इंतजार कर रहे अनेक कर्मचारी रिटायर हो गये, परन्तु उत्तराखण्ड में भाजपा सरकार ने भी इस ओर कोई सकारात्मक कदम नही उठाया। कुछ मीडियाकर्मियां द्वारा अध्यक्ष राजस्व परिषद के संज्ञान में भी यह मामला लाया गया परन्तु नतीजा शून्य ही रहा। राजस्व परिषद के सचिव द्वारा बरती गयी लापरवाही और जारी आदेशो के प्रभावी व निष्प्रभावी होने की दशा में अब शासन और सरकार क्या उस क्षति की भरपाई कर पायेगी, बडा सवाल खडा हो गया है।
राजस्व मंत्रालय व शासन द्वारा बनाई गयी नायब तहसीलदार सेवा नियमावली २००९ दिनांकित १३ फरवरी २००९ के नियम १७ का भी अनुपालन नही किया जा रहा है तथा न ही वर्तमान में भी प्रभावी उत्तर प्रदेश अधीनस्थ राजस्व कार्यकारी (तहसीलदार) सेवा नियमावली १९६ के पात्रता की शर्तो के भाग ४ अर्हताये में उल्लिखित प्रावधानो का, कि नियम ५ में विनिर्दिष्ट व्यवस्था जिसमें कहा गया है कि जिन्होने उस वर्ष पहली जुलाई को जिस वर्ष चयन किया जाए, अपने मूल पद पर मौलिक और या स्थानापन्न रूप में कुल मिलाकर कम से कम चार वर्ष की सेवा पूरी कर ली हो, बढाया जा सकता है, की भी अनदेखी की जा रही है और डेढ वर्ष में पदोन्नितयां दे दी गयी