पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त ने सूचना का अधिकार में बदलाव की तैयारी पर सवाल उठाये
सूचना का अधिकार कानून, 2005 में सुधार की तैयारी- पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने कानून में बदलाव के कदम पर सवाल उठाए हैं।
लोकसभा के आने वाले मानसून सत्र में होने वाले कामकाज के बुलेटिन से एक बिल को बाहर रखा गया है। इस बिल के बारे में कोई भी अतिरिक्त जानकारी नहीं दी गई है। जिस बिल में परिवर्तन होना है, उसका नाम सूचना का अधिकार कानून, 2005 है। द टेलीग्राफ के मुताबिक, 18 जुलाई से शुरू होने जा रहे सत्र में 18 बिल परिचय, ध्यानाकर्षण और पास करने के लिए पेश किए जाएंगे। 17 बिल को ‘ई’ कैटेगरी यानी कि नए पेश किए जाने वाले बिलों की श्रेणी में डाला गया है। कुछ जानकारी या कुछ रूपरेखा इन सभी के साथ दी गई है, या फिर जीएसटी कानून में बदलाव की स्थिति में साझेदारों की सलाह की सूचना भी दी गई है।
हालांकि सूचना का अधिकार बिल संशोधन विधेयक, 2018, में उद्देश्य के कॉलम में कानून गठन के बारे में सिर्फ इतना ही लिखा है,”सूचना का अधिकार कानून, 2005 में सुधार करना।” इस घटना ने न सिर्फ आरटीआई एक्टिविस्ट बल्कि आरटीआई का उपयोग करने वाले लोगों को भी निराश किया है। ये कार्मिक मंत्रालय, लोक शिकायत और पेंशन विभाग ने जानकारियां लेने वालों को भी मुश्किल हालातों से गुजरना ही होगा।
सरकारी अधिकारियों ने भी कानून में होने जा रहे बदलावों की प्रकृति के बारे में जानकारी साझा करने से इंकार कर दिया है। इसके साथ ही अधिकारी सरकार की उस नीति पर भी बात नहीं कर रहे हैं जो 2014 से पहले तक लागू थी।
सरकारी अधिकारियों ने भी कानून में होने जा रहे बदलावों की प्रकृति के बारे में जानकारी साझा करने से इंकार कर दिया है। इसके साथ ही अधिकारी सरकार की उस नीति पर भी बात नहीं कर रहे हैं जो 2014 से पहले तक लागू थी।
बता दें कि 2014 से पहले ये अनिवार्य था कि सरकार कोई कानून या उसके तहत आने वाले कानून बनाने से पहले उसे जनता के सामने 30 दिनों तक चर्चा या फिर टिप्पणी के लिए रखेगी। इसके साथ ही मिली टिप्पणियों को संबंधित मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध करवाया जाता था, ये सारी प्रक्रिया बिल को मंजूरी के लिए कैबिनेट को भेजने से पहले जरूर तौर पर की जाती थी।
पूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेष गांधी ने कानून में बदलाव के कदम पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने ट्वीट करके कहा,”हमारे पास दुनिया का सबसे अच्छा आरटीआई कानून है। किसी को भी उसमें बदलाव करने की कोई जरूरत नहीं है। हमें सिर्फ उसे बेहतर तरीके से लागू करने के बारे में ध्यान से सोचना चाहिए।”
सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग 250 वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में शासकीय गोपनीयता अधिनियम 1923 बनया, जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकर हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी। वर्ष 2002 में संसद ने ’सूचना की स्वतंत्रता विधेयक(फ्रिडम आॅफ इन्फाॅरमेशन बिल) पारित किया। इसे जनवरी 2003 में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(यू.पी.ए.) की सरकार ने न्युनतम साझा कार्यक्रम में किए गए अपने वायदो तािा पारदर्शिता युक्त शासन व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए 12 मई 2005 में सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 संसद में पारित किया, जिसे 15 जून 2005 को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अन्ततः 12 अक्टूबर 2005 को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया। इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक 2002 को निरस्त कर दिया गया।
ऑनलाइन याचिका को मिला समर्थन: इस बारे में शनिवार (14 जुलाई) को प्रधानमंत्री के लिए आॅनलाइन याचिका भी शुरू की गई है। इस याचिका पर 24 घंटे के भीतर 15 हजार से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर किए हैं। याचिका में कई आरटीआई एक्टिविस्ट ने कहा,”आपने भारत के लोगों से भ्रष्टाचार मुक्त भारत का वादा किया था। लोगों को लोकतंत्र में भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए सबसे ताकतवर हथियार सूचना का अधिकार कानून मिला है। लेकिन ये जानकर दुख और चिंता हो रही है कि आपकी सरकार ने सूचना का अधिकार कानून को हतोत्साहित करने वाले परिवर्तन लाने का फैसला किया है।”
सूचना अधिकार का अर्थः———- इसके अन्तर्गत निम्नलिखित बिन्दु आते है- 1. कार्यो, दस्तावेजों, रिकार्डो का निरीक्षण। 2. दस्तावेज या रिकार्डो की प्रस्तावना। सारांश, नोट्स व प्रमाणित प्रतियाँ प्राप्त करना। 3. सामग्री के प्रमाणित नमूने लेना। 4. प्रिंट आउट, डिस्क, फ्लाॅपी, टेप, वीडियो कैसेटो के रूप में या कोई अन्य इलेक्ट्रानिक रूप में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सूचना का अधिकार अधिनियम् 2005 के प्रमुख प्रावधानः 5- समस्त सरकारी विभाग, पब्लिक सेक्टर यूनिट, किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता से चल रहीं गैर सरकारी संस्थाएं व शिक्षण संस्थान आदि विभाग इसमें शामिल हैं। पूर्णतः से निजी संस्थाएं इस कानून के दायरे में नहीं हैं लेकिन यदि किसी कानून के तहत कोई सरकारी विभाग किसी निजी संस्था से कोई जानकारी मांग सकता है तो उस विभाग के माध्यम से वह सूचना मांगी जा सकती है। 6- प्रत्येक सरकारी विभाग में एक या एक से अधिक जनसूचना अधिकारी बनाए गए हैं, जो सूचना के अधिकार के तहत आवेदन स्वीकार करते हैं, मांगी गई सूचनाएं एकत्र करते हैं और उसे आवेदनकर्ता को उपलब्ध कराते हैं। 7- जनसूचना अधिकारी की दायित्व है कि वह 30 दिन अथवा जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टे के अन्दर (कुछ मामलों में 45 दिन तक) मांगी गई सूचना उपलब्ध कराए। 8- यदि जनसूचना अधिकारी आवेदन लेने से मना करता है, तय समय सीमा में सूचना नहीं उपलब्ध् कराता है अथवा गलत या भ्रामक जानकारी देता है तो देरी के लिए 250 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से 25000 तक का जुर्माना उसके वेतन में से काटा जा सकता है। साथ ही उसे सूचना भी देनी होगी। 9- लोक सूचना अधिकारी को अधिकार नहीं है कि वह आपसे सूचना मांगने का कारण नहीं पूछ सकता। 10- सूचना मांगने के लिए आवेदन फीस देनी होगी (केन्द्र सरकार ने आवेदन के साथ 10 रुपए की फीस तय की है। लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, बीपीएल कार्डधरकों को आवेदन शुल्क में छुट प्राप्त है। 11- दस्तावेजों की प्रति लेने के लिए भी फीस देनी होगी। केन्द्र सरकार ने यह फीस 2 रुपए प्रति पृष्ठ रखी है लेकिन कुछ राज्यों में यह अधिक है, अगर सूचना तय समय सीमा में नहीं उपलब्ध कराई गई है तो सूचना मुफ्त दी जायेगी। 12- यदि कोई लोक सूचना अधिकारी यह समझता है कि मांगी गई सूचना उसके विभाग से सम्बंधित नहीं है तो यह उसका कर्तव्य है कि उस आवेदन को पांच दिन के अन्दर सम्बंधित विभाग को भेजे और आवेदक को भी सूचित करे। ऐसी स्थिति में सूचना मिलने की समय सीमा 30 की जगह 35 दिन होगी। 13- लोक सूचना अधिकारी यदि आवेदन लेने से इंकार करता है। अथवा परेशान करता है। तो उसकी शिकायत सीधे सूचना आयोग से की जा सकती है। सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई सूचनाओं को अस्वीकार करने, अपूर्ण, भ्रम में डालने वाली या गलत सूचना देने अथवा सूचना के लिए अधिक फीस मांगने के खिलाफ केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर सकते है। 14- जनसूचना अधिकारी कुछ मामलों में सूचना देने से मना कर सकता है। जिन मामलों से सम्बंधित सूचना नहीं दी जा सकती उनका विवरण सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 में दिया गया है। लेकिन यदि मांगी गई सूचना जनहित में है तो धारा 8 में मना की गई सूचना भी दी जा सकती है। जो सूचना संसद या विधानसभा को देने से मना नहीं किया जा सकता उसे किसी आम आदमी को भी देने से मना नहीं किया जा सकता। 15- यदि लोक सूचना अधिकारी निर्धारित समय-सीमा के भीतर सूचना नहीं देते है या धारा 8 का गलत इस्तेमाल करते हुए सूचना देने से मना करता है, या दी गई सूचना से सन्तुष्ट नहीं होने की स्थिति में 30 दिनों के भीतर सम्बंधित जनसूचना अधिकारी के वरिष्ठ अधिकारी यानि प्रथम अपील अधिकारी के समक्ष प्रथम अपील की जा सकती है। 16- यदि आप प्रथम अपील से भी सन्तुष्ट नहीं हैं तो दूसरी अपील 60 दिनों के भीतर केन्द्रीय या राज्य सूचना आयोग (जिससे सम्बंधित हो) के पास करनी होती है। विश्व पांच देशों के सूचना के अधिकार का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए पांच देशों स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको तथा भारत का चयन किया गया और इन देशों के कानून, लागू किए वर्ष, शुल्क, सूचना देने की समयावधि, अपील या शिकायत प्राधिकारी, जारी करने का माध्यम, प्रतिबन्धित करने का माध्यम आदि का तुलना सारणी के माध्यम से किया गया है। देश स्वीडन, कनाडा, फ्रांस, मैक्सिको, भारत कानून संविधान कानून द्वारा संविधान संविधान कानून द्वारा लागू वर्ष 1766 1982 1978 2002 2005 शुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्क निशुल्क शुल्क द्वारा सूचना देने की समयावधि तत्काल 15 दिन 1 माह 20 दिन 1 माह या (जीवन व स्वतंत्रता के मामले में 48 घण्टा) अपील/ शिकायत प्राधिकारी न्यायालय सूचना आयुक्त संवैधानिक अधिकारी द नेशन कमीशन आॅफ ऐक्सेस टू पब्लिक इन्फाॅरर्मेशन विभागीय स्तर पर प्रथम अपीलीय अधिकारी अथवा सूचना आयुक्त/मुख्य सूचना आयुक्त केन्द्रीय या राज्य स्तर पर। जारी करने का माध्यम कोई भी कोई भी किसी भी रूप में इलेक्ट्रानिक रूप में सार्वजनिक आॅफलाईन एवं आनलाईन प्रतिबन्धित सूचना गोपनीयता एवं पब्लिक रिकार्ड एक्ट 2002 सुरक्षा एवं अन्य देशों से सम्बन्धित सूचनाएँ मैनेजमंट आॅफ गवर्नमेण्ट इन्फाॅरमेशन होल्डिंग 2003 डाटा प्रोटेक्शन एक्ट 1978 ऐसी सूचना जिससे देश का राष्ट्रीय, आंतरिक व बाह्य सुरक्षा तथा अधिनियम की धारा 8 से सम्बन्धित सूचनाएँ।
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