दीवाली का आध्यात्मिक पहलू – संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
दीवाली का आध्यात्मिक पहलू – संत राजिन्दर सिंह जी महाराज
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दीवाली व रोशनी के इस त्यौहार के दिन सभी लोग दीये, मोमबत्ती व लैम्प आदि जलाकर रोशनी करते हैं। यह पर्व प्रभु राम और सीता के १४ वर्ष के बनवास के पश्चात अयोध्या मं उनके आगमन पर मनाया जाता है। भारत में इस त्यौहार पर सभी लोग अपने घरों व दुकानों आदि को साफ कर सजाते हैं। यह शरद ऋतु के आगमन का भी प्रतीक है। खुशियों के इस त्यौहार को सभी लोग एक दूसरे को मिठाईयाँ बाँटकर व मिलजुल कर मनाते हैं।
रोशनी के प्रतिक दीवाली के त्योहार का एक आध्यात्मिक पहलू भी है जोकि हमें समझाता है कि हमारे अंदर भी प्रभु की ज्योति विद्यमान है और जिसका अनुभव हम अपनी आत्मा के द्वारा कर सकते हैं।
यह प्रत्येक मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है कि वह अपने जीवन में ही प्रभु की ज्योति को अनुभव करे और वापिस पिता-परमेश्वर में जाकर लीन हो और यह तभी संभव है जब हमारे अंतर में प्रभु को पाने के लिए तडप उत्पन्न हो। पिता-परमेश्वर ने जब हमें इस संसार में भेजा तो वापिस जाने का रास्ता भी हमारे लिए बनाया। उन्होंने प्रत्येक व्यक्ति को कुछ स्वतंत्र अधिकार दिए हैं। यदि हममें से कोई भी उन्हें यह कहे कि हमें हमारे घर वापिस ले चलो तो वे हमारी ये पुकार जरूर सुनेंगे लेकिन हमारी यह प्रार्थना किसी के दवाब में न हो।
जिस प्रकार अगर एक अमीर आदमी अपनी दौलत को बाँटना चाहे तो वह हरेक को नहीं देता बल्कि वह इंतजार करता है और जो लोग उससे इस दौलत को मांगते हैं, वह केवल उन्हीं को बाँटता है। जैसे एक डॉक्टर केवल उसी मरीज को ठीक करता है, जो उसके पास अपनी बीमारी को लेकर आता है और उससे उस बीमारी को ठीक करने के लिए प्रार्थना करता है। ठीक इसी प्रकार पिता-परमेश्वर के पास हम सबके लिए रूहानी खजाने हैं। अगर वे उन्हें प्रदान करें जो इसकी इच्छा ही न रखते हों तो वे शायद उस खजाने को स्वीकार नहीं करेंगे और न ही इसके महत्त्व को पहचानेंगे क्योंकि उन्होंने इसके लिए कभी प्रार्थना की ही नहीं। पिता-परमेश्वर तब तक हमारा इंतजार करते हैं जब तक कि हम उनसे मांगते नहीं। एक बार अगर हमारे अंदर प्रभु-प्रेम को पाने की तडप पैदा हो गई तो वे अवश्य ही उसे पाने के लिए हमारी सहायता करेंगे।
केवल मनुष्य चोले में ही हम अपनी आत्मा का मिलाप परमात्मा में करा सकते हैं लेकिन कुछ ही ऐसे खुशकिस्मत लोग होते हैं जो कि अपने जीवन में इस उद्देश्य को पूरा करते हैं। हम सब प्रभु-प्रेम की इस मस्ती को पा सकते हैं। आईए हम मानव जीवन के इस सुनहरे अवसर को न गंवाएं और अपना ध्यान अंतर्मुख कर प्रभु की ज्योति को अपने अंदर जलाएं। जिस प्रकार हम दीवाली पर मोमबत्तियँा आदि जलाते हैं, ठीक इसी प्रकार हम ध्यान-अभ्यास पर बैठें और अपने अंतर में प्रभु की ज्योति के प्रकाश का अनुभव करें
अपने ध्यान को अंतर्मुख करने की ध्यान-अभ्यास की यह विधि बहुत ही सरल है, जिसमें हम अपने शरीर को शांत कर, अपना ध्यान दो आँखों के बीच ’शिवनेत्र‘ पर एकाग्र करने के साथ-साथ अपने विचारों को सुमिरन के जरिये शांत करते हुए अपने अंदर प्रभु की ज्योति को जलाते हैं, जिसके द्वारा हमारी आत्मा अंदर के रूहानी मंडलों में सफर कर परमात्मा में लीन हो जाती है।
आइये, दीवाली के इस पावन पर्व को केवल बाहरी रूप से रोशन कर हम इसका आनंद न उठाएं बल्कि रोजाना हम ध्यान-अभ्यास म समय दें ताकि हम हमारे अंतर में जल रही प्रभु की ज्योति का अनुभव करें और रोजाना दीवाली के इस त्यौहार को अपने अंतर में मनाएं तथा सदा-सदा के सुख-चैन व शांति को पाएं।
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