उत्तराखण्ड ;आई0ए0एस0 के पास 16 करोड़ की संपत्ति – हरकत में आया शासन
मोदी सरकार का फरमान, संपत्ति घोषित करें IAS अफसर, वर्ना रुक जाएगा प्रमोशन – उत्तराखण्ड में धन कुबेर बने अधिकारियो ने हवा में उडाया फरमान# उत्तराखण्ड के एक आई0ए0एस0 के पास 16 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति # समाचार पत्रो में प्रकशित होते ही सनसनी मच गयी, # तुरंत हरकत में आये मुख्य सचिव ने 2 निर्देश दिये कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का 31 जनवरी तक विगत वर्ष का वार्षिक सम्पत्ति विवरण दाखिल करे # सरकारी कर्मचारियों के विरूद्ध प्रचलित अनुशासनिक कार्यवाही को समयबद्ध रूप से निस्तारित हो-#और यह दोनो ही निर्देश उत्तराखण्ड में हवा हवाई है# उत्तराखण्ड में आई0ए0एस0 शासन में योजना का निर्माता है तो विभाग का मुखिया के नाते उस धनराशि को खर्च करने का असली हकदार# ऐसे में खुद अंदाजा लगाया जा सकता है- कि हालात कैसे होगें- यही कारण है कि उत्तराखण्ड में असंख्य घोटाले है, फरियादी जाये तो जाये कहां- उससे एफिडेविट, नोटरी, साक्ष्य मांग कर घुमा फिरा दिया जाता है;
सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग में आपको कुछ भी विभागीय अधिकारियो को अवगत कराना है तो आपको पहले एफिडेविट नौटरी करके तथा खुद साक्ष्य लाकर देने पर ही प्रारम्भिक जांच का नियम बना रखा है, उत्तराखण्ड रक्षा अभियान के संयोजक हरिकिशन किमोटी ने बताया कि उनसे नोटरी करके लाने तथा साक्ष्य लाने पर ही जांच करने की बात कही-
जबकि मुख्य सचिव निर्देश देते हैं कि सरकारी कर्मचारियों के विरूद्ध प्रचलित अनुशासनिक कार्यवाही को समयबद्ध रूप से निस्तारित करें।
वही दूसरी ओर
देहरादून 14 मार्च, 2018(ब्यूरो)
मुख्य सचिव श्री उत्पल कुमार सिंह ने अपर मुख्य सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग, प्रमुख सचिव कार्मिक विभाग, प्रमुख सचिव गृह विभाग को जारी पत्र में निर्देश दिये है कि अखिल भारतीय सेवा के अधिकारियों का 31 जनवरी तक विगत वर्ष का वार्षिक सम्पत्ति विवरण दाखिल किया जाना अनिवार्य है।
उन्होंने जारी निर्देश में कहा है किऐसे अधिकारी जिनके द्वारा निर्धारित समय के अन्तर्गत अपना वार्षिक सम्पत्ति विवरण दाखिल नहीं किया है, उनकी सूची सतर्कता विभाग को 31 मार्च तक से उपलब्ध करा दें ताकि उन अधिकारियों का विजिलेंस क्लियरेंस निर्गत करते समय संज्ञान लिया जा सकें। उन्होंने निर्देश में उल्लिखित किया है कि भारत सरकार द्वारा अपने आदेशों में यह स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी अखिल भारतीय सेवा के अधिकारी द्वारा निर्धारित समयान्तर्गत वार्षिक सम्पत्ति विवरण प्रदान नही किया जाता है तो उसका विजिलेंस क्लियरेंस जारी नही किया जायेगा। उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि यदि किसी अधिकारी का विजिलेंस क्लियरेंस निर्गत नहीं होता है तो उसके पदोन्नति, अन्य राज्य प्रतिनियुक्ति, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति, विदेश यात्रा एवं लम्बे प्रशिक्षण पर जाने संबंधी मामले प्रभावित हो सकते है।
31 जनवरी तक विगत वर्ष का वार्षिक सम्पत्ति विवरण दाखिल करने की एक वार्षिक परंपरा है वही यह आदेश केन्द्र सरकार की ओर से एक वार्षिक परंपरा है और यह डीओपीटी के 4 अप्रैल, 2011 के निर्देश के अनुसार है, जिसके मुताबिक, ‘आईपीआर को समय पर प्रस्तुत करने में विफल रहने का नतीजा सतर्कता मंजूरी को खारिज कर देगा.’ अधिकारी ने कहा, ‘जो लोग समय पर संपत्ति का विवरण नहीं जमा करते हैं, उन्हें विदेशी पोस्टिंग सहित केंद्र सरकार के किसी भी पद के लिए अयोग्य माना जाएगा.’ डीओपीटी के अनुसार, देश भर में 5,004 भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी काम कर रहे हैं.
केंद्र सरकार ने सभी आईएएस अधिकारियों से जनवरी अंत तक अपनी संपत्ति का ब्योरा जमा कराने को कहा है और उन्हें चेतावनी दी है कि पदोन्नति और विदेशी पोस्टिंग के लिए उन्हें अपेक्षित दिशानिर्देशों का पालन करते हुए सतर्कता मंजूरी प्राप्त करना आवश्यक है. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने अपने आदेश में केंद्र सरकार के सभी विभागों, राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में उनके साथ काम करने वाले आईएएस अधिकारियों को निर्देश देने के लिए कहा है कि वे 31 जनवरी, 2018 तक अपनी अचल संपत्ति का ब्योरा (आईपीआर) जमा कराएं.
मुख्य सचिव श्री उत्पल कुमार सिंह ने समस्त अपर मुख्य सचिव, समस्त प्रमुख सचिव, समस्त सचिव, प्रभारी सचिव तथा समस्त विभागाध्यक्षों को निर्देश दिये है कि सरकारी कर्मचारियों के विरूद्ध प्रचलित अनुशासनिक कार्यवाही को समयबद्ध रूप से निस्तारित करें।सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के महानिदेशक तथा शासन में प्रभारी सचिव डा0 पंकज पाण्डे ने अपने संबंधित विभाग में शिकायत करने पर नौटरी करके तथा खुद साक्ष्य लाकर देने पर ही प्रारम्भिक जांच का अघोषित नियम बना रखा है, उत्तराखण्ड रक्षा अभियान के संयोजक हरिकिशन किमोटी ने बताया कि उनसे सूचना एवं लोक सम्पर्क विभाग के महानिदेशक ने उनसे अपने शिकायत नोटरी करके लाने तथा साक्ष्य लाने पर ही जांच करने की बात कही-
वही दूसरी ओर मुख्य सचिव श्री सिंह ने पत्र में लिखा है कि अनुशासनिक कार्यवाही के मामलों में समय सारणी का कड़ाई से अनुपालन नहीं किया जा रहा है। अनुशासनिक कार्यवाही के मामले में विलम्ब होने से इस बात की पर्याप्त सम्भावना बनी रहती है कि सम्बन्धित आरोपों को सिद्ध कर सकने वाले साक्ष्य ही मिट जाएं और दोषी सरकारी सेवक दण्ड पाने से बच जाये। साथ ही अनुशासनिक जांच के लम्बे समय तक चलते रहने से आरोपित सरकारी सेवक के पदोन्नति आदि के सेवा सम्बन्धी मामले लम्बे समय तक लम्बित रहते हैं, जिससे आरोपित सरकारी सेवक में कुंठा उत्पन्न होती है और काडर मैनेजमेंट में भी समस्याएं उत्पन्न होती है।
मुख्य सचिव ने पत्र में उल्लिखित किया है कि अनुशासनिक कार्यवाही के समयबद्ध निस्तारण हेतु कार्मिक विभाग द्वारा विभिन्न शासनादेशों के माध्यम से समय सारिणी निर्धारित करते हुए प्रत्येक अनुशासनिक कार्यवाही का अनुश्रवण करने की व्यवस्था निर्धारित की गयी है जिसमें अनुशासनिक कार्यवाही का रजिस्टर तैयार किये जाने, कार्यवाहियों के समयबद्ध निस्तारण सुनिश्चित करने, उनके अनुश्रवण हेतु नोडल अधिकारी नामित किये जाने, समय-सारिणी का पालन न करने वाले अधिकारी के विरूद्ध विभागाध्यक्ष द्वारा प्रत्येक माह सचिव स्तर पर आख्या प्रस्तुत करने और जिन प्रकरणों में विलम्ब दुष्टिगोचर हो उसकी आख्या मुख्य सचिव स्तर पर भेजे जाने का प्राविधान है।
मुख्य सचिव ने अपर मुख्य सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग, प्रमुख सचिव कार्मिक विभाग, प्रमुख सचिव गृह विभाग को जारी पत्र में यह भी उल्लिखित किया है कि वे अपने नियंत्राणाधीन समस्त विभगाों के शासन स्तर एवं विभागीय स्तर पर प्रचलित अनुशासनिक कार्यवाही के समयबद्ध निस्तारण हेतु नोडल अधिकारी नामित करते हुए प्रकरणों की स्वयं समीक्षा कर लें तथा लम्बित रहने के कारणों को दूर करते हुए उनका निस्तारण कर लें तथा संबंधित त्रैमासिक सूचना निर्धारित प्रारूप पर सतर्कता विभाग को 31 मार्च, 30 जून, 30 सितम्बर एवं 31 दिसम्बर तक उपलब्ध करा दें।
14 मार्च 2018 को उत्तराखण्ड राज्य में उस समय सनसनी मच गयी जब समाचार पत्रों की सुर्खियां बनी कि उत्तराखंड के आईएएस अफसर के पास एक करोड के तो हीरे है, और आयकर विभाग को यह सब पता है,
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार-
उत्तराखंड का एक आईएएस अफसर आयकर विभाग की रडार पर है। अफसर के पास 16 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति और करीब एक करोड़ रुपये के हीरे होने की जानकारी मिली है। इनकम टैक्स ने प्राथमिक जांच भी पूरी कर ली है। अब आगे की कार्रवाई के लिए वरिष्ठ अफसरों से इजाजत ली जाएगी।
आयकर विभाग के सूत्रों के मुताबिक उत्तराखंड सरकार में अपर सचिव पद पर तैनात आईएएस अफसर के यूपी निर्माण निगम के एक अधिकारी और एक ठेकेदार के साथ गहरे संबंध रहे हैं। अफसर के परिवार के सदस्यों की ठेकेदार की फर्म में भी हिस्सेदारी भी बताई जा रही है। पिछले साल आयकर ने जब निर्माण निगम के अफसरों और ठेकेदार के खिलाफ कार्रवाई की थी तो मामले में एक आईएएस अफसर का सुराग मिला। इसके बाद आयकर ने आईएएस अफसर के खिलाफ प्राथमिक जांच शुरू की।
बताया जा रहा है कि जांच में अफसर के पास 16 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति होने का पता चला है। अफसर के परिवारवालों के नाम पर भी कई संपत्ति अर्जित की गई। अफसर के विभाग से जुड़े कांट्रेक्टरों ने उनके परिवारवालों को लाखों की रकम खातों में दी है। हालांकि आयकर को पड़ताल के दौरान बताया गया कि यह रकम कर्ज में ली गई है। जांच में पता लगा है कि आईएएस अफसर के पास करीब एक करोड़ रुपये के हीरे हैं।
इसके अलावा देहरादून शहर के बीचों-बीच में भी करोड़ों रुपये की कोठी किसी और के नाम पर दर्ज है। आयकर ने प्राथमिक जांच रिपोर्ट उच्चाधिकारियों को भेज दी है। सूत्रों की मानें तो रिपोर्ट के तथ्यों के आधार पर आगे की कार्रवाई की अनुमति मिलती है तो कई बेनामी संपत्तियां सामने आएंगी। उत्तर प्रदेश निर्माण निगम के वरिष्ठ अधिकारी से जुड़े मामले की जांच घेरे में राज्य के रिटायर्ड वरिष्ठ नौकरशाह का नाम भी सामने आया है। बताया जा रहा है आयकर को जांच में पता चला है कि रिटायर्ड आईएएस को एक साल के भीतर पांच करोड़ रुपये अलग-अलग स्रोत से दिए गए। इसके अलावा कई दूसरी परियोजनाओं में भी रिटायर्ड अफसर की हिस्सेदारी का सुराग लगा है।
सोशल मीडिया में छाया हुआ है- यह घोटाला-
एनएच 74 घोटाला उत्तराखंड का सबसे बड़ा घोटाला इसी कारण बना-
एक्सपर्ट अधिबक्ताओ के अनुसार षड्यंत्र की योजना किसने बनाई, षड्यंत्रकारी जो कितने भी ऊंचे पद पर क्यो न हो, 120बी की धारा के तहत “आपराधिक षड्यंत्र” के तहत केस दर्ज हो सकता है, NH 74 जमीन घोटाले पर जहां SIT निष्पक्ष और बिना दबाव के जांच करने का दंभ भर वाह-वाही बटोर रही है वंही चर्चाओं का भी बाजार गर्म है की बड़े अधिकारियों और सत्ता के करीबियों पर हाथ डालने से कतरा रही हैचर्चा है कि क्या सिर्फ SDM तक के अधिकारियों की मिलीभगत से इतने बड़े घोटाले को अंजाम दे दिया गया , कुछ नेताओं का नाम भी खूब उछला था मगर उन पर कोई कारवाही होते दिख नहीं रही है रसूखदारों पर क्या SIT वाकई नरमी बरत रही है, या बड़े अधिकारियों पर हाथ डालने से गुरेज कर रही है यह तो SIT या फिर बड़े अधिकारी जानते होंगे
इतना तो कम से कम तय है की SDM तक के अधिकारी मिल्कर अकेले तो इतने बड़े घोटाले को अंजाम नहीं दे सकते क्यों नही खगाली जा रहे बडे अधिकारी की कुंडली, सवाल उठ रहा है कि बडे अधिकारी के बिना क्या छोटा अधिकारी सूबे का सबसे बडा घोटाला कर सकता है, बड़ा सवाल ये भी है
अब देखना है की चर्चाएं सही निकलती हैं या फिर SIT दूध का दूध और पानी का पानी कर पाने में सफल हो पाती है:
वही इस केस में विद्वान अधिबक्ताओ का यह मानना है कि उत्तराखण्ड के इस सबसे बडे घोटाले को व्यर्थ नही जाने देना चाहिए, देवभूमि उत्तराखंड में घोटालेबाजो को मुकाम तक पहुचा कर अपने कर्तब्य को अंजाम दे, देवभूमि अपने प्रधानमंत्री से इस मामले का संज्ञान लेने का भी निवेदन करती ,
गूगल में NH74 सर्च करने पर सारा केस सामने निकल आएगा,
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