श्री हनुमान जी का जन्मोत्सव 19 अप्रैल ;कलिकाल के 12 परम भक्त हुए
हनुमान जी का प्राकट्य चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था. वहीं, कुछ लोग मानते हैं कि इनका अवतरण छोटी दीपावली को हुआ था. हनुमान जी के जन्मोत्सव पर हनुमान जी की विशेष पूजा उपासना करने का प्रावधान है. ऐसा करके हम अपने जीवन में आने वाली तमाम बाधाओं को दूर कर सकते हैं. इस दिन विशेष तरह के प्रयोगों से हम ग्रहों को भी शांत कर सकते हैं. शिक्षा, विवाह के मामले में सफलता, कर्ज और मुकदमे से मुक्ति के लिए यह दिन अति विशेष होता है. इस बार श्री हनुमान जी का जन्मोत्सव 19 अप्रैल को मनाया जाएगा श्री राम के मंत्र “राम रामाय नमः” का जाप करें. फिर हनुमान जी के मंत्र “ॐ हं हनुमते नमः” का जाप करें. हनुमान जी के सामने चमेली के तेल का दीपक जलाएं. हनुमान जी को गुड़ का भोग लगाएं. इसके बाद हनुमान चालीसा का 11 बार पाठ करें. हनुमान जी को रेशम का एक लाल धागा भी अर्पित करें. हनुमान जयंती के दिन बजरंग बली को बना हुआ बनारसी पान चढ़ाना चाहिए। बनारसी पत्ते का बना हुआ पान चढ़ाने से भी हनुमानजी की कृपा प्राप्त होती है। इस पान में केवल कत्था, गुलकंद, सौंफ, खोपरे का बुरा और सुमन कतरी डलवाएं। यह पान एकदम ताजा, मीठा और रसभरा होना चाहिए। ध्यान रहे कि पान में चूना, तंबाकू एवं सुपारी नहीं डलती है। राशि के अनुसार कौन सी उपासना & तुलसीदासजी का शीघ्र फलदायक चमत्कारिक Hanuman Bahuk स्तोत्र |
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा के दिन हनुमान जयंती मनाई जाती है। हनुमान जी का जन्म सुबह 4 बजे मां अंजना की कोख से हुआ। वे भगवान शिव के 11वें अवतार हैं, जो वानरदेव के रूप में इस धरती पर रामभक्ति और राम कार्य सिद्ध करने के लिए अवतरित हुए। हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी हैं। हनुमानजी की मूर्तियों पर सिन्दूर और चांदी का वर्क चढ़ाया जाता है। हनुमान जयंती के दिन शाम के समय दक्षिणमुखी हनुमान मूर्ति के सामने शुद्ध होकर हनुमानजी के चमत्कारिक मंत्रों का जाप किया जाए तो यह बहुत फलदायी होता है। इस दिन मनोकामना पूर्ति के लिए हनुमान जी को पान का बीड़ा जरूर चढ़ाना चाहिए।
हनुमान जयंती के दिन हनुमान जी के मंदिर जाएं और बजरंगबली का कोई भी सरल मंत्र या हनुमान चालीसा का पाठ करें। हनुमान जी पर गुलाब की माला चढ़ाएं। हनुमान जी को खुश करने का यह सबसे सरल उपाय है। हनुमान मंदिर में एक सरसों के तेल का और एक शुद्ध घी का दीपक जलाएं और हनुमान जी का पाठ करें। पैसों की तंगी से जूझ रहे है तो हनुमान जयंती के दिन पीपल के 11 पत्ते पर श्रीराम का नाम लिखें। हनुमान जी को विशेष पान का बीड़ा चढ़ाएं। इसमें सभी मुलायम चीजें डलवाएं, जैसे खोपरा बूरा, गुलकंद, बादाम कतरी आदि।
हनुमानजी आज भी सशरीर धरती पर मौजूद हैं। कलिकाल में हनुमानजी की भक्ति ही उत्तम और फलदायी है। जो भक्त नित्य हनुमानजी की प्रार्थना, पूजा या आराधना करता है, उसे स्वयं ही अनुभव होता है कि हनुमानजी उसके आसपास उपस्थित हैं और वे उसकी रक्षा कर रहे हैं। यूं तो हनुमानजी के लाखों भक्त हैं लेकिन कलिकाल के 12 परम भक्त हुए है।
1. माधवाचार्यजी- माधवाचार्यजी का जन्म 1238 ई. में हुआ था। माधवाचार्यजी प्रभु श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। यही कारण था कि एक दिन उनको हनुमानजी के साक्षात दर्शन हुए थे। संत माधवाचार्य ने हनुमानजी को अपने आश्रम में देखने की बात बताई थी।
2. श्री व्यास राय तीर्थ- श्री व्यास राय तीर्थ का जन्म कर्नाटक में 1447 में कावेरी नदी के तट पर बन्नूर में हुआ था। विजयनगर के महान सम्राट श्री कृष्णदेवराय के गुरु श्री व्यास राय तीर्थ हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने देशभर में घुमकर देश की रक्षा के लिए 732 वीर हनुमान मंदिर स्थापित किए। उन्होंने श्री हनुमान पर प्रणव नादिराई, मुक्का प्राण पदिराई और सद्गुण चरित लिखा।
3. तुलसीदासजी- तुलसीदासजी का जन्म 1554 ईस्वी में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को हुआ था। तुलसीदासजी जब चित्रकूट में रहते थे, तब जंगल में शौच करने जाते थे। वहीं एक दिन उन्हें एक प्रेत नजर आया। उस प्रेत ने ही बताया था कि हनुमानजी के दर्शन करना है तो वे कुष्ठी रूप में प्रतिदिन हरिकथा सुनने आते हैं। तुलसीदासजी ने वहीं पर हनुमानजी को पहचान लिया और उनके पैर पकड़ लिए। अंत में हारकर कुष्ठी रूप में रामकथा सुन रहे हनुमानजी ने तुलसीदासजी को भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसीदासजी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमानजी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा- ‘चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर/ तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।’
4. राघवेन्द्र स्वामी- 1595 में जन्मे रामभक्त राघवेन्द्र स्वामी माधव समुदाय के एक गुरु के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उनके जीवन से अनेक चमत्कारिक घटनाएं जुड़ी हुई हैं। उनके बारे में भी कहा जाता है कि उन्होंने भी हनुमानजी के साक्षात दर्शन किए थे। वे भी हनुमानजी के परम भक्त थे। उन्होंने 1671 में मंत्राल्यम में तुंगभद्रा नदी के तट पर जीवा समाधि में प्रवेश किया।
5. भद्राचल रामदास– 1620 में जन्मे और 1688 में ब्रह्मलीन भद्राचल रामदास का पूर्व नाम गोपन था। गोपन अब्दुल हसन तान शाह के दरबार में तहसीलदार थे। उन्हें एक महिला के स्वप्न के आधार पर भद्रगिरि पर्वत से राम की मूर्तियां मिलीं। तब उन्होंने खम्माम जिले के भद्राचलम में गोदावरी नदी के बाएं किनारे पर उक्त मूर्ति की स्थापना कर एक भव्य मंदिर बनवा दिया।
बाद में जब बादशाह अब्दुल हसन तान शाह को यह पता चला कि गोपन ने शाही खजाने से धन का उपयोग किया है, तो उन्होंने उसे पकड़वाकर गोलकोंडा की एक अंधेरी जेल में डाल दिया। एकांत में भी भगवान राम और हनुमान के प्रति गोपन की भक्ति निर्विवाद थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी प्रार्थनाओं का जवाब जल्द ही मिल गया, जब भगवान राम ने तान शाह के सपने में दर्शन दिए और शाही खजाने से लिए गए धन को चुका दिया। राजा को बहुत बुरा लगा और उसने गोपन को जेल से रिहा कर फिर से तहसीलदार के रूप में उनकी नियुक्ति बहाल कर दी।
6. समर्थ रामदास- समर्थ स्वामी रामदास का जन्म रामनवमी 1608 में गोदा तट के निकट ग्राम जाम्ब (जि. जालना) में हुआ। वे हनुमानजी के परम भक्त और छत्रपति शिवाजी के गुरु थे। महाराष्ट्र में उन्होंने रामभक्ति के साथ हनुमान भक्ति का भी प्रचार किया। हनुमान मंदिरों के साथ उन्होंने अखाड़े बनाकर महाराष्ट्र के सैनिकीकरण की नींव रखी, जो राज्य स्थापना में बदली। कहते हैं कि उन्होंने भी अपने जीवनकाल में एक दिन हनुमानजी को देखा था। 1608–1681 को समर्थ रामदासजी ने देह का त्याग कर दिया।
7. छत्रपति शिवाजी- 1627 में जन्मे और 1680 में ब्रह्मलीन छत्रपति शिवाजी महान मराठा योद्धा थे जिन्होंने बीजापुर के मुगलों, तुर्कों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों, डचों और फ्रांसीसियों से लड़ाई की। वे श्री हनुमान और माता तुलजा भवानी के परम भक्त थे। उनके गुरु समर्थ रामदास के बारे में पहले ही ऊपर लिखा जा चुका है। शिवाजी को साहसी, निडर, विनम्र, बुद्धिमान, महत्वाकांक्षी, अनुशासित, एक विशेषज्ञ रणनीतिकार, एक अच्छा संगठक और दूरदर्शी के रूप में जाना जाता है।
8. संत त्यागराज- 1767 में जन्मे और 1847 में ब्रह्मलीन संत त्यागराज श्रीराम और हनुमानजी के परम भक्त थे। ऐसा माना जाता है कि उन्होंने 6 करोड़ बार श्रीराम के थारका नाम का पाठ किया और थिरुवियारु के थिरुमंजना स्ट्रीट पर अपने घर के सामने सीता देवी, लक्ष्मण और श्री अंजनेय के साथ श्रीराम के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त किया था।
9. श्री रामकृष्ण परमहंस- 1836 में जन्मे और 1886 में ब्रह्मलीन स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी हनुमानजी के परम भक्त थे। हालांकि उनकी प्रसिद्धि काली के भक्त के रूप में ज्यादा थी, क्योंकि वे मंदिर के पुजारी थे। कहते हैं कि श्री रामकृष्ण परमहंस ने हनुमानजी की भक्ति इस चरमता के साथ की थी कि उक्त भक्ति के चलते उनकी रीढ़ में से लगभग एक पूंछ निकलने लगी थी। दरअसल, रामकृष्ण परमहंस ने धर्म के सभी मार्गों की पद्धति से भक्त करके सत्य को जानने का कार्य किया था।
10. स्वामी विवेकानंद- 1863 में जन्मे और 1902 में ब्रह्मलीन स्वामी विवेकानंद को सभी जानते हैं। रामकृष्ण परमहंस के शिष्य स्वामी विवेकानंद अपने शिष्यों और दर्शकों को हनुमानजी की कहानी से प्रेरित करते थे। हनुमानजी उनके बचपन के आदर्श और नायक थे। उन्होंने अपने शिष्य शरतचंद्र चक्रवर्ती को सलाह दी थी कि वे जीवन में श्री हनुमानजी के आदर्शों का पालन करें।
11. शिर्डी के सांईं बाबा- ऐसी मान्यता है कि दत्तात्रेय के अवतार माने जाने वाले अक्कलकोट स्वामी, महाराष्ट्र के मनमाड़ रेलवे स्टेशन से 16 किलोमीटर दूर पाथरी में श्री सांईं बाबा के रूप में 27 सितंबर 1938 में पुनर्जन्म लेते हैं। एक जीवनी के अनुसार श्री शिर्डी सांईं बाबा का जन्म भुसारी परिवार में हुआ था जिनके पारिवारिक देवता कुम्हार बावड़ी के श्री हनुमान थे, जो पाथरी के बाहरी इलाके में थे।
सांईं बाबा पर हनुमानजी की कृपा थी। सांईं बाबा प्रभु श्रीराम और हनुमान की भक्ति किया करते थे। उन्होंने अपने अंतिम समय में राम विजय प्रकरण सुना और 1918 में देह त्याग दी। इसके कई प्रमाण हैं कि शिर्डी के सांईं बाबा हनुमानजी के भक्त थे। 1926 को पुट्टपर्थी में जन्मे सत्य सांईं बाबा भी हनुमान भक्त थे।
12. नीम करोली बाबा– नीम करोली बाबा का वास्तविक नाम लक्ष्मीनारायण शर्मा था। उत्तरप्रदेश के अकबरपुर गांव में उनका जन्म 1900 के आसपास हुआ था। उन्होंने अपने शरीर का त्याग 11 सितंबर 1973 को वृंदावन में किया था। बाबा नीम करोली हनुमानजी के परम भक्त थे और उन्होंने देशभर में हनुमानजी के कई मंदिर बनवाए थे। नीम करोली बाबा के कई चमत्कारिक किस्से हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि हनुमानजी उन्हें साक्षात दर्शन देते थे।
इस दिन आपकी राशि के अनुसार कौन सी उपासना शुभ है।
मेष राशि: एकमुखी हनुमंत कवच का पाठ करें तथा हनुमान जी पर बूंदी चढ़ाकर गरीब बच्चों में बांटें।
वृष राशि: रामचरितमानस के सुंदर-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर मीठा रोट चढ़ाकर बंदरों को खिलाएं।
मिथुन राशि: रामचरितमानस के अरण्य-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर पान चढ़ाकर गाय को खिलाएं।
कर्क राशि: पंचमुखी हनुमंत कवच का पाठ करें तथा हनुमानजी पर पीले फूल चढ़ाकर जल में प्रवाहित करें।
सिंह राशि: रामचरितमानस के बाल-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर गुड़ की रोटी चढ़ाकर भिखारी को खिलाएं।
कन्या राशि: रामचरितमानस के लंका-कांड का पाठ करें तथा हनुमान मंदिर में शुद्ध घी के 6 दीपक जलाएं।
तुला राशि: रामचरितमानस के बाल-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर खीर चढ़ाकर गरीब बच्चों में बांटें।
वृश्चिक राशि: हनुमान अष्टक का पाठ करें तथा हनुमानजी पर गुड़ वाले चावल चढ़ाकर गाय को खिलाएं।
धनु राशि: रामचरितमानस के अयोध्या-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर शहद चढ़ाकर खुद प्रसाद रूप में खाएं।
मकर राशि: रामचरितमानस के किष्किन्धा-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर मसूर चढ़ाकर मछलियों को डालें।
कुंभ राशि: रामचरितमानस के उत्तर-कांड का पाठ करें तथा हनुमानजी पर मीठी रोटियां चढ़ाकर भैसों को खिलाएं।
मीन राशि: हनुमंत बाहुक का पाठ करें तथा हनुमानजी के मंदिर में लाल रंग की ध्वजा या पताका चढ़ाएं।
hanuman bahuk हनुमान बाहुक :-
छप्पय
सिंधु तरन, सिय-सोच हरन, रबि बाल बरन तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ॥
गहन-दहन-निरदहन लंक निःसंक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान मान-मद-दवन पवनसुव
॥
कह तुलसिदास सेवत सुलभ सेवक हित
सन्तत निकट ।
गुन गनत, नमत, सुमिरत जपत समन सकल-संकट-विकट ॥१॥
स्वर्न-सैल-संकास
कोटि-रवि तरुन तेज घन ।
उर विसाल भुज दण्ड चण्ड नख-वज्रतन
॥
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन ।
कपिस केस करकस लंगूर, खल-दल-बल-भानन ॥
कह तुलसिदास बस जासु उर मारुतसुत
मूरति विकट ।
संताप पाप तेहि पुरुष पहि सपनेहुँ
नहिं आवत निकट ॥२॥
झूलना
पञ्चमुख-छःमुख भृगु मुख्य भट असुर
सुर, सर्व सरि समर समरत्थ सूरो ।
बांकुरो बीर बिरुदैत बिरुदावली, बेद बंदी बदत पैजपूरो ॥
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह जासुबल, बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो ।
दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत रजपूत रुरो ॥३॥
घनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गए भानुमन, अनुमानि सिसु केलि कियो फेर फारसो
।
पाछिले पगनि गम गगन मगन मन, क्रम को न भ्रम कपि बालक बिहार सो
॥
कौतुक बिलोकि लोकपाल हरिहर विधि, लोचननि चकाचौंधी चित्तनि खबार सो।
बल कैंधो बीर रस धीरज कै, साहस कै, तुलसी सरीर धरे सबनि सार सो ॥४॥
भारत में पारथ
के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनि
कुरुराज दल हल बल भो ।
कह्यो द्रोन भीषम समीर सुत महाबीर, बीर-रस-बारि-निधि जाको बल जल भो ॥
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु
लागि, फलँग फलाँग हूतें घाटि नभ तल भो ।
नाई-नाई-माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा
जो हैं, हनुमान देखे जगजीवन को फल भो ॥५॥
गो-पद पयोधि
करि, होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निःसंक पर पुर गल बल भो ।
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही
उखारि कर, कंदुक ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल
भो ॥
संकट समाज असमंजस भो राम राज, काज जुग पूगनि को करतल पल भो ।
साहसी समत्थ तुलसी को नाई जा की
बाँह, लोक पाल पालन को फिर थिर थल भो
॥६॥
कमठ की पीठि
जाके गोडनि की गाड़ैं मानो, नाप के भाजन
भरि जल निधि जल भो ।
जातुधान दावन परावन को दुर्ग भयो, महा मीन बास तिमि तोमनि को थल भो
॥
कुम्भकरन रावन पयोद नाद ईधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो ।
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान, सारिखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल
भो ॥७॥
दूत राम राय को
सपूत पूत पौनको तू, अंजनी को नन्दन
प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय-सोच-समन, दुरित दोष दमन, सरन आये अवन लखन प्रिय प्राण सो ॥
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो ।
ज्ञान गुनवान बलवान सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो ॥८॥
दवन दुवन दल
भुवन बिदित बल,
बेद जस गावत बिबुध बंदी छोर को ।
पाप ताप तिमिर तुहिन निघटन पटु, सेवक सरोरुह सुखद भानु भोर को ॥
लोक परलोक तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को
।
राम को दुलारो दास बामदेव को
निवास। नाम कलि कामतरु केसरी किसोर को ॥९॥
महाबल सीम महा
भीम महाबान इत,
महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को ।
कुलिस कठोर तनु जोर परै रोर रन, करुना कलित मन धारमिक धीर को ॥
दुर्जन को कालसो कराल पाल सज्जन
को, सुमिरे हरन हार तुलसी की पीर को ।
सीय-सुख-दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को ॥१०॥
रचिबे को बिधि
जैसे, पालिबे को हरि हर, मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो ।
धरिबे को धरनि, तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु पोषिबे को हिम भानु
भो ॥
खल दुःख दोषिबे को, जन परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को मोदक दुदान भो
।
आरत की आरति निवारिबे को तिहुँ
पुर, तुलसी को साहेब हठीलो हनुमान भो
॥११॥
सेवक स्योकाई
जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल
सूलपानि नवै नाथ नाँक को ।
देवी देव दानव दयावने ह्वै जोरैं
हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को
॥
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को
।
सब दिन रुरो परै पूरो जहाँ तहाँ
ताहि, जाके है भरोसो हिये हनुमान हाँक
को ॥१२॥
सानुग सगौरि
सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन
राम जानकी ।
लोक परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी ॥
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे
सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की ।
बालक ज्यों पालि हैं कृपालु मुनि
सिद्धता को,
जाके हिये हुलसति हाँक हनुमान की
॥१३॥
करुनानिधान
बलबुद्धि के निधान हौ, महिमा निधान
गुनज्ञान के निधान हौ ।
बाम देव रुप भूप राम के सनेही, नाम, लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौ
॥
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक बेद बिधि के बिदूष हनुमान हौ
।
मन की बचन की करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजान हौ
॥१४॥
मन को अगम तन
सुगम किये कपीस,
काज महाराज के समाज साज साजे हैं
।
देवबंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं
।
बीर बरजोर घटि जोर तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने साधु खल गन गाजे हैं
।
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे
मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे
हैं ॥१५॥
सवैया
जान सिरोमनि हो हनुमान सदा जन के
मन बास तिहारो ।
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा केहि
कारन खीझत हौं तो तिहारो ॥
साहेब सेवक नाते तो हातो कियो सो
तहां तुलसी को न चारो ।
दोष सुनाये तैं आगेहुँ को होशियार
ह्वैं हों मन तो हिय हारो ॥१६॥
तेरे थपै उथपै
न महेस, थपै थिर को कपि जे उर घाले ।
तेरे निबाजे गरीब निबाज बिराजत
बैरिन के उर साले ॥
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटै
मकरी के से जाले ।
बूढ भये बलि मेरिहिं बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले ॥१७॥
सिंधु तरे बड़े
बीर दले खल,
जारे हैं लंक से बंक मवासे ।
तैं रनि केहरि केहरि के बिदले अरि
कुंजर छैल छवासे ॥
तोसो समत्थ सुसाहेब सेई सहै तुलसी
दुख दोष दवा से ।
बानरबाज ! बढ़े खल खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवासे ॥१८॥
अच्छ विमर्दन
कानन भानि दसानन आनन भा न निहारो ।
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन से कुञ्जर
केहरि वारो ॥
राम प्रताप हुतासन, कच्छ, विपच्छ, समीर समीर दुलारो ।
पाप ते साप ते ताप तिहूँ तें सदा
तुलसी कह सो रखवारो ॥१९॥
घनाक्षरी
जानत जहान हनुमान को निवाज्यो जन, मन अनुमानि बलि बोल न बिसारिये ।
सेवा जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये
॥
अपराधी जानि कीजै सासति सहस
भान्ति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिये
।
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू
के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये
॥२०॥
बालक बिलोकि, बलि बारें तें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि
न्यारिये ।
रावरो भरोसो तुलसी के, रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो विचारिये ॥
बड़ो बिकराल कलि काको न बिहाल
कियो, माथे पगु बलि को निहारि सो
निबारिये ।
केसरी किसोर रनरोर बरजोर बीर, बाँह पीर राहु मातु ज्यौं पछारि
मारिये ॥२१॥
उथपे थपनथिर
थपे उथपनहार,
केसरी कुमार बल आपनो संबारिये ।
राम के गुलामनि को काम तरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये
॥
साहेब समर्थ तो सों तुलसी के माथे
पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये ।
पोखरी बिसाल बाँहु, बलि, बारिचर पीर, मकरी ज्यों पकरि के बदन बिदारिये ॥२२॥
राम को सनेह, राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिये ।
मुद मरकट रोग बारिनिधि हेरि हारे, जीव जामवंत को भरोसो तेरो भारिये
॥
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम
पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै विचारिये
।
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर
क्यों न, लंकिनी ज्यों लात घात ही मरोरि
मारिये ॥२३॥
लोक परलोकहुँ
तिलोक न विलोकियत, तोसे समरथ चष
चारिहूँ निहारिये ।
कर्म, काल, लोकपाल, अग जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये ॥
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो, देव दुखी देखिअत भारिये ।
बात तरुमूल बाँहूसूल कपिकच्छु
बेलि, उपजी सकेलि कपि केलि ही उखारिये ॥२४॥
करम कराल कंस
भूमिपाल के भरोसे, बकी बक भगिनी
काहू तें कहा डरैगी ।
बड़ी बिकराल बाल घातिनी न जात कहि, बाँहू बल बालक छबीले छोटे छरैगी ॥
आई है बनाई बेष आप ही बिचारि देख, पाप जाय सब को गुनी के पाले परैगी
।
पूतना पिसाचिनी ज्यौं कपि कान्ह
तुलसी की, बाँह पीर महाबीर तेरे मारे मरैगी ॥२५॥
भाल की कि काल
की कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिषम पाप
ताप छल छाँह की ।
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट
की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह
की ॥
पैहहि सजाय, नत कहत बजाय तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह
की ।
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की
॥२६॥
सिंहिका सँहारि
बल सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि
मारि बाटिका उजारी है ।
लंक परजारि मकरी बिदारि बार बार, जातुधान धारि धूरि धानी करि डारी
है ॥
तोरि जमकातरि मंदोदरी कठोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महतारी है ।
भीर बाँह पीर की निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है ॥२७॥
तेरो बालि केलि
बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि
सक्र रवि राहु की ।
तेरी बाँह बसत बिसोक लोक पाल सब, तेरो नाम लेत रहैं आरति न काहु की
॥
साम दाम भेद विधि बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी चोर साहु
की ।
आलस अनख परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की
॥२८॥
टूकनि को घर घर
डोलत कँगाल बोलि,
बाल ज्यों कृपाल नत पाल पालि पोसो
है ।
कीन्ही है सँभार सार अँजनी कुमार
बीर, आपनो बिसारि हैं न मेरेहू भरोसो
है ॥
इतनो परेखो सब भान्ति समरथ आजु, कपिराज सांची कहौं को तिलोक तोसो
है ।
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि कोसो है
॥२९॥
आपने ही पाप
तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह
बेदन कही न सहि जाति है ।
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि
किये, बादि भये देवता मनाये अधीकाति है
॥
करतार, भरतार, हरतार, कर्म काल, को है जगजाल जो न मानत इताति है ।
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो
राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति
है ॥३०॥
दूत राम राय को, सपूत पूत वाय को, समत्व हाथ पाय को सहाय असहाय को ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के धाय को
॥
एते बडे साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को ।
थोरी बाँह पीर की बड़ी गलानि
तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को ॥३१॥
देवी देव दनुज
मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव
जेते चेतन अचेत हैं ।
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान
बाग, राम दूत की रजाई माथे मानि लेत
हैं ॥
घोर जन्त्र मन्त्र कूट कपट कुरोग
जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं ।
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे
तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत
हैं ॥३२॥
तेरे बल बानर
जिताये रन रावन सों, तेरे घाले
जातुधान भये घर घर के ।
तेरे बल राम राज किये सब सुर काज, सकल समाज साज साजे रघुबर के ॥
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरिहर के ।
तुलसी के माथे पर हाथ फेरो कीस
नाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के ॥३३॥
पालो तेरे टूक
को परेहू चूक मूकिये न, कूर कौड़ी दूको
हौं आपनी ओर हेरिये ।
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे
दोष, पोषि तोषि थापि आपनो न अव डेरिये
॥
अँबु तू हौं अँबु चूर, अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब अवलंब मेरे तेरिये ।
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम
पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिये ॥३४॥
घेरि लियो
रोगनि, कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धाई है ।
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम मूल मलिनाई है ॥
करुनानिधान हनुमान महा बलवान, हेरि हँसि हाँकि फूंकि फौंजै ते
उड़ाई है ।
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़
राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआई है ॥३५॥
सवैया
राम गुलाम तु ही हनुमान गोसाँई
सुसाँई सदा अनुकूलो ।
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू पितु
मातु सों मंगल मोद समूलो ॥
बाँह की बेदन बाँह पगार पुकारत
आरत आनँद भूलो ।
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं
दरबार परो लटि लूलो ॥३६॥
घनाक्षरी
काल की करालता करम कठिनाई कीधौ, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे
।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति
दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे ॥
लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि
बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ
तावरे ।
भूतनि की आपनी पराये की कृपा
निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे ॥३७॥
पाँय पीर पेट
पीर बाँह पीर मुंह पीर, जर जर सकल पीर
मई है ।
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है ॥
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि
बारे हीतें,
ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है ।
कुँभज के किंकर बिकल बूढ़े
गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है ॥३८॥
बाहुक सुबाहु
नीच लीचर मरीच मिलि, मुँह पीर
केतुजा कुरोग जातुधान है ।
राम नाम जप जाग कियो चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान है
॥
सुमिरे सहाय राम लखन आखर दौऊ, जिनके समूह साके जागत जहान है ।
तुलसी सँभारि ताडका सँहारि भारि
भट, बेधे बरगद से बनाई बानवान है ॥३९॥
बालपने सूधे मन
राम सनमुख भयो,
राम नाम लेत माँगि खात टूक टाक
हौं ।
परयो लोक रीति में पुनीत प्रीति
राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं ॥
खोटे खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक
हौं ।
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल
गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं ॥४०॥
असन बसन हीन
बिषम बिषाद लीन,
देखि दीन दूबरो करै न हाय हाय को
।
तुलसी अनाथ सो सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को
॥
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को ।
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि फूटि निकसत लोन राम राय को ॥४१॥
जीओ जग जानकी
जीवन को कहाइ जन,
मरिबे को बारानसी बारि सुर सरि को
।
तुलसी के दोहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे
ठाँऊ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि
को ॥
मो को झूँटो साँचो लोग राम कौ कहत
सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को
।
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को ॥४२॥
सीतापति साहेब
सहाय हनुमान नित,
हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै ।
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर
कै ॥
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि की जै तुलसी को जानि जन फुर
कै ।
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर
कै ॥४३॥
कहों हनुमान
सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर
सों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोष मई, बिरची बिरञ्ची सब देखियत दुनिये ॥
माया जीव काल के करम के सुभाय के, करैया राम बेद कहें साँची मन
गुनिये ।
तुम्ह तें कहा न होय हा हा सो
बुझैये मोहिं,
हौं हूँ रहों मौनही वयो सो जानि
लुनिये ॥४४॥