शहाबुद्दीन जैसे दुर्दांत अपराधी की रिहाई -नीतीश अब सरेंडर की मुद्रा में
शहाबुद्दीन जैसे दुर्दांत अपराधी की रिहाई से ये साफ हो गया कि नीतीश सत्ता में बने रहने के लिए अब सरेंडर की मुद्रा में आ चुके हैं. जेल से रिहा होने के बाद शहाबुद्दीन सैकड़ों गाड़ियों के काफिले के साथ जिस रुतबे के साथ सीवान रवाना हुए उसमें भविष्य की आहट साफ तौर पर समझी जा सकती है. एनएच स्थित टोल टैक्स प्लाजा पर शहाबुद्दीन और उनके काफिले में शामिल गाड़ियां बगैर टैक्स दिये ही धड़ल्ले से निकलीं. टोल प्लाजा के प्रबंधक के पास काफिला पास करने के करीब तीन घंटे पहले ही पुलिस का फरमान आ गया था. सीवान के प्रतापपुर में एक पुलिस छापे के दौरान उनके पैतृक घर से कई अवैध आधुनिक हथियार, सेना के नाइट विजन डिवाइस और पाकिस्तानी गन फैक्ट्रियों में बने हथियार बरामद हुए थे. हत्या, अपहरण, बमबारी, अवैध हथियार रखने और जबरन वसूली करने के दर्जनों मामले शहाबुद्दीन पर हैं. अदालत ने शहाबुद्दीन को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. (www.himalayauk.org) Leading Digital Newsportal Bureau Report
बिहार में एक जमाने में खौफ का दूसरा नाम बन चुके शहाबुद्दीन ने अपराध की दुनिया में पहला कदम अस्सी के दशक में रखा था. उनके खिलाफ 1986 में जो पहला आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ था. शहाबुद्दीन ने लालू यादव की सरपरस्ती में जनता दल की युवा इकाई में कदम रखा. पार्टी में आते ही शहाबुद्दीन को अपनी ताकत और दबंगई का फायदा मिला. लालू ने उन्हें 1990 में विधान सभा का टिकट दिया. शहाबुद्दीन जीत गए. उसके बाद फिर से 1995 में चुनाव जीता. एक तो बाहुबल ऊपर से उस दौर के बिहार के सबसे कद्दावर नेता लालू का हाथ, शहाबुद्दीन का कद लगातार बढ़ता गया. उनके रुतबे को देखते हुए पार्टी ने 1996 में उन्हें लोकसभा का टिकट दिया और शहाबुद्दीन की जीत हुई. 1997 में राष्ट्रीय जनता दल के गठन और लालू प्रसाद यादव की सरकार बन जाने से शहाबुद्दीन की ताकत में और इजाफा हुआ. तब तक खौफ का दूसरा नाम बन गए थे शहाबुद्दीन. शहाबुद्दीन का आतंक इस कदर था कि उस दौर में उनके खिलाफ किसी भी मामले में कोई गवाही देने की हिम्मत नहीं जुटा पाता. सीवान जिले को वो अपनी रियासत समझने लगे थे जहां उनकी इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. दबंगई को वो आलम था कि पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी तक को नहीं बख्शते थे शहाबुद्दीन. ताकत के नशे में चूर शहाबुद्दीन पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों से भी मारपीट करने लगे थे. मार्च 2001 की घटना है जब पुलिस आरजेडी के स्थानीय नेता मनोज कुमार पप्पू के खिलाफ एक वारंट तामील करने पहुंची थी तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आए अधिकारी संजीव कुमार को थप्पड़ मार दिया था और उनके गुंडों ने पुलिस वालों की पिटाई की थी. मनोज कुमार पप्पू प्रकरण से पुलिस महकमा सकते में था. पुलिस ने मनोज और शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी करने के मकसद से शहाबुद्दीन के घर छापेमारी की थी. इसके लिए बिहार पुलिस के अलावा उत्तर प्रदेश पुलिस की मदद भी ली गई थी. छापे की उस कार्रवाई के दौरान दो पुलिसवाले समेत 10 लोग मारे गए थे. पुलिस की गाड़ियां आग के हवाले कर दी गई थी. मौके से पुलिस को तीन AK 47 राईफल बरामद हुई थी. शहाबुद्दीन और उसके साथी मौके से भाग निकले थे. इस घटना के बाद शहाबुद्दीन पर कई मुकदमे दर्ज किए गए. दो हजार के दशक तक सीवान जिले में शहाबुद्दीन एक समानांतर सरकार चला रहे थे. उनकी एक अपनी अदालत थी. जहां लोगों के फैसले हुआ करते थे. वो खुद सीवान की जनता के पारिवारिक विवादों और भूमि विवादों का निपटारा करने लगे थे.
मेरी छवि जैसी थी, वैसी ही रहेगी. मेरे नेता लालू हैं. तेजस्वी बच्चा है. नीतीश परिस्थितियों के सीएम हैं. मास लीडर लालू हैं. नीतीश को कौन पूछता है. बीस सीटें नहीं जितवा सकते. शराबबंदी अंधा कानून है. राजनीति में सक्रियता और बढ़ेगी. ये बोल हैं 13 साल बाद जेल से बाहर आए साहेब के, शहाबुद्दीन उर्फ साहेब.
शहाबुद्दीन के जेल से बाहर आने के दिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बिहार से बाहर झारखंड में हैं. कहा, प्रतिक्रिया देना मुनासिब नहीं. महत्वहीन है ये सब. लेकिन उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कुछ और मानते हैं. शहाबुद्दीन के बाहर आने को वो नया दौर बता रहे हैं. अब सवाल ये है कि नीतीश कब तक भागेंगे. पलायनवाद इस बार विकल्प ही नहीं है. नीतीश और उनकी पार्टी को जवाब देना ही होगा. बिहार के भागलपुर जेल से निकलते ही बाहुबली शहाबुद्दीन को वीआईपी ट्रीटमेंट मिलने की खबरे भी आने लगी हैं. मामला मुजफ्फरपुर से जुड़ा है जहां एनएच स्थित टोल टैक्स प्लाजा पर शहाबुद्दीन और उनके काफिले में शामिल गाड़ियां बगैर टैक्स दिये ही धड़ल्ले से निकलीं.
गाड़ियों की संख्या कितनी थी इसका अंदाजा टोल प्लाजा के कर्मचारी भी नहीं लगा सके. जेल से निकले शाहबुद्दीन के काफिला में शामिल चार पहिया वाहनें एनएच पर पूरी तरह से बिना रोक टोक के चली. एनएच पर गाड़ियों से टैक्स वसूलने के लिए बनाये गये टोल प्लाजा के कर्मियों और प्रबंधकों की भी हिम्मत काफिले में शामिल गाड़ियों से टैक्स वसूलने की नहीं हुई. मुजफ्फरपुर में तो बकायदा मनियारी थाना पुलिस ने एन एच 28 पर काजीइंडा के पास लगाये गये टोल प्लाजा के प्रबंधक को कहकर टॉल फ्री करवा दिया. टोल प्लाजा के प्रबंधक के पास काफिला पास करने के करीब तीन घंटे पहले ही पुलिस का फरमान आ गया था.
प्लाजा के प्रबंधक के मुताबिक किसी वीआईपी की सूचना पर जाम की स्थिति से बचने के लिए कभी-कभी बिना टैक्स लिये ही गाड़ियों को जाने दिया जाता है. लेकिन इस बार पुलिस ने जेल से निकले शाहबुद्दीन का नाम लिया जिनके काफिले में सैकड़ों गाड़ियां थीं.
भागलपुर जेल से सीवान के लिए निकले शाहबुद्दीन के काफिले में कई लाल बत्ती लगी गाड़ियां भी शामिल थीं. काफिले में राजद और सपा के झंडे लगी कई गाड़ियां थीं साथ ही पंचायत प्रतनिधियों के बोर्ड लगे सैकड़ों गाड़ियों का काफिला शहाबुद्दीन के साथ था.
शहाबुद्दीन कोई छुटभैया नेता नहीं हैं. चार बार सांसद रहे हैं. इसलिए महत्वहीन बताना सच्चाई को झुठलाना है. इस लिहाज से लालू स्पष्ट रहे हैं और उनकी पार्टी भी. जेल में रहते साहेब को कार्यसमिति का सदस्य बना दिया. लालू ने खुलेआम साहेब का बचाव किया. तब भी नीतीश चुप थे. कारण था, राजद का आंतरिक मामला था. इसे ही बहाना बना लिया. पर अब साहेब गरज रहे हैं, नीतीश पर सीधा हमला किया है. नीतीश जी, हल्की मुस्कान आपकी मजबूरी है. मान लीजिए, टीस लिए कब तक चुप्पी साधेंगे. शहाबुद्दीन की राय वही है, जो राजद की है. राजद के मतदाताओं की है, पर नीतीश की राय क्या है? जेडीयू की राय क्या है? इसे जाहिर करना ही होगा. बगलें झांकने से नीतीश अपना नुकसान करेंगे. आज साहेब के बोल सुनने के बाद उनका वोटर ठगा महसूस कर रहा होगा. नीतीश मीडिया को ठग सकते हैं. पर, अपने वोटरों को नहीं. जेडीयू का अदना कार्यकर्ता भी जवाब के इंतजार में है. उसे ठगा महसूस कराना आत्मघाती साबित होगा. महागठबंधन की बुनियाद में बीजेपी विरोध था. लालू की मजबूरी थी. उन्हें बिहार की राजनीति में जिंदा होना था. इसीलिए बीजेपी से गठबंधन तोड़ने के बावजूद नीतीश ताकतवर नेता रहे. लालू को उनका लोहा मानना पड़ा.
ज्यादा सीटें लाकर भी लालू ने सीएम की कुर्सी पर नीतीश को स्वीकार किया. लेकिन सरकार में वो हावी रहे और हैं भी. संघर्ष स्वतंत्र वजूद बनाए ऱखने का है. ये नीतीश के मजबूत रहते मुमकिन ही नहीं है. इसे राजद और लालू समझते हैं, इसलिए नीतीश को कमजोर करना जरूरी है. इस पर अमल भी हो रहा है. लालू इसीलिए तो नीतीश को पीएम मटीरियल बताते हैं. वो चाहते हैं कि 2019 में नीतीश पीएम प्रोजेक्ट हों और बिहार में सीएम की कुर्सी खाली हो जाए.
इस दिशा में शहाबुद्दीन भी एक मोहरा है, वह भी जांचा परखा हुआ. लालू के सिपहसालार के तौर पर साहेब इसे साबित भी कर चुके हैं. इसलिए पूरी पार्टी साहेब के साथ है.उधर जेडीयू खेमा सन्न है. एक जमानती रिहाई महागठबंधन की चूलें हिला सकती है. अपराधमुक्त बिहार का नारा नीतीश का सबसे धारदार हथियार रहा है, लेकिन लालू से गलबहिंया करने के बाद शक पैदा हुए थे. सरकार के शुरुआती छह महीनों में इसे बल मिला. पर साहेब की जमानती रिहाई इस हथियार को कुंद कर सकती है.
बानगी रिहाई के ठीक बाद देखने को मिली. नारे लगे, जेल के ताले टूट गए, सरकार के साहेब छूट गए. मतलब नारे के पीछे भी नीतीश को घेरा गया. सरकार के साहेब कौन? ये नीतीश को वोटर जानना चाहता है. सरकार किसकी? ये सबको पता है.