आदि शंकराचार्य की साधनास्थली- जोशीमठ -ज्योतिर्मठ की ज्योति – अवैज्ञानिक विकास से बुझने के कगार पर – फरवरी 2021 में ऋषिगंगा हादसे से जोशीमठ की नींव हिल गई थी
6 JAN 2023## मान्यता है कि 815 ई. में यहीं पर आदि शंकराचार्य ने एक शहतूत के पेड़ के नीचे साधना कर ज्ञान प्राप्ति की थी. शंकराचार्य के दिव्य ज्ञान ज्योति प्राप्त करने की वजह से ही इसे ज्योतिर्मठ कहा जाने लगा. जो बाद में आम बोलचाल की भाषा में जोशीमठ कहा जाने लगा. # शंकराचार्य ने जोशीमठ में ही पहला मठ स्थापित किया था. यहीं पर शंकराचार्य ने सनातन धर्म के महत्वपूर्ण धर्मग्रन्थ शंकर भाष्य की रचना भी की. तभी से जोशीमठ हमेशा ही वेद, पुराणों व ज्योतिष विद्या का केंद्र भी बना रहा.
16 JAN 2023# HIGH LIGHT#जोशीमठ के 11 घरों में बड़ी दरार… जोशीमठ में रोजाना बढ़ती जा रही है दरारें… जोशीमठ के दो बड़े होटलों में दरारें बड़ी … जोशीमठ में अलग-अलग टीमें कर रही जमीन धंसने की जांच …# उत्तराखंड के जोशीमठ की भौगोलिक हालत ठीक नहीं है 1976 में चेतावनी जारी की गई थी # केदारनाथ से आई फ्लैश फ्लड ने पूरे उत्तराखंड को पानी-पानी कर दिया था. जोशीमठ भूकंप से ज्यादा भूस्खलन के प्रति संवेदनशील है. क्योंकि यह प्राचीन भूस्खलन का मलबा है, जिसपर कस्बा बसा है. तेज बारिश और भूकंप दोनों से होने वाले भूस्खलन से जोशीमठ और पूरा चमोली जिला तहस-नहस हो सकता है. 17 और 19 अक्टूबर 2021 को हुई भारी बारिश के बाद जोशीमठ के धंसने की तीव्रता तेज हो गई थी. जमीनों और घरों में मोटी-मोटी दरारें पड़ने लगी थीं #
चमोली जनपद में स्थित बदरीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। ऐसा माना जाता है कि यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है। #जोशीमठ पूर्व से पश्चिम की ओर जा रही रिज पर मौजूद है. यह विष्णुप्रयाग से दक्षिण-पश्चिम पर है. यहीं पर धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों का मिलन होता है. #गढ़वाल मंडल के चमोली जिले के पेनखंडा परगने में स्थित जोशीमठ का पौराणिक नाम ज्योतिर्मठ बताया जाता है. जोशीमठ कर्णप्रयाग बद्रीनाथ मार्ग पर बद्रीनाथ से 30 किमी पहले और कर्णप्रयाग से 72 किमी की दूरी पर है. यहाँ से बदरीनाथ, विष्णुप्रयाग, नीति-माणा, हेमकुण्ड साहिब और फूलों की घाटी, औली के अलावा कई अन्य धार्मिक व पर्यटन स्थलों की ओर रास्ता जाता है.
HIGH LIGHT# आदि शंकराचार्य ने की थी जोशीमठ की भविष्यवाणी #सर्दियों में बद्री विशाल का स्थान- जोशीमठ: मे क्यो प्रलय ? # सर्दियों में ब्रदीनाथ के कपाट बंद होने के बाद बद्री विशाल की मूर्ति को जोशीमठ के वासुदेव मंदिर में ही रखा जाता है. #भविष्य बद्री मंदिर के पास एक पत्थर है, जिस पर आदि शंकराचार्य द्वारा जोशीमठ की भविष्यवाणी लिखी हुई है. लेकिन आज तक इस भविष्यवाणी को कोई नहीं पढ़ सका. # चार धाम में से एक बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’। अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करना चाहिए। #जोशीमठ के मंदिर में विराजित स्टफिक से बनी भगवान नृसिंह की मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि, भगवान नृसिंह की एक बाजू साल दर साल पतली होती जा रही है. इसे लेकर कई मान्यताएं हैं.
पौराणिक मान्यता है कि जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। बदरीनाथ स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था।
पुराणों अनुसार भूकंप, जलप्रलय और सूखे के बाद गंगा लुप्त हो जाएगी और इसी गंगा की कथा के साथ जुड़ी है बद्रीनाथ और केदारनाथ तीर्थस्थल की रोचक कहानी। भविष्य में नहीं होंगे बद्रीनाथ के दर्शन, क्योंकि माना जाता है कि जिस दिन नर और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे, बद्रीनाथ का मार्ग पूरी तरह बंद हो जाएगा। भक्त बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे। पुराणों अनुसार आने वाले कुछ वर्षों में वर्तमान बद्रीनाथ धाम और केदारेश्वर धाम लुप्त हो जाएंगे और वर्षों बाद भविष्य में भविष्यबद्री नामक नए तीर्थ का उद्गम होगा। यह भी मान्यता है कि जोशीमठ में स्थित नृसिंह भगवान की मूर्ति का एक हाथ साल-दर-साल पतला होता जा रहा है। जिस दिन यह हाथ लुप्त हो जाएगा उस दिन ब्रद्री और केदारनाथ तीर्थ स्थल भी लुप्त होना प्रारंभ हो जाएंगे।
भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किमी की दूरी पर स्थित बद्रीनाथ शिखर कि ऊंचाई 7,138 मीटर है। बद्रीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बद्रीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है।
बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध अनुयायी तिब्बत जाते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए थे। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से इस मूर्ति को पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति फिर स्थानान्तरित की गई। और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की।
जोशीमठ के नीचे की जमीन को अलकनंदा-धौलीगंगा मिलकर काट रही हैं. वह भी डाउनस्ट्रीम में. रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला से लगातार मलबा नदी में जाता रहता है जिसकी वजह से नदी का बहाव कई जगहों पर बाधित होता देखा गया है. इसके अलावा हाथी पर्वत से गिरने वाले बड़े-बड़े पत्थर भी अलकनंदा के बहाव को बाधित करते हैं जोशीमठ-औली रोड पर कई जगहों पर दरारें और गुफाएं बनते हुए देखी गई हैं. बारिश के पानी के बहाव की वजह से मिट्टी खिसकने की वजह से पत्थर भी लुढ़के हैं. जिनसे ऊपरी हिस्से में दरारें बन गई हैं. इन बड़े पत्थरों के खिसकने की वजह से नीचे के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए खतरा बना रहता है
जोशीमठ में विष्णु भगवान को समर्पित एक लोकप्रिय मंदिर है. इसके अतिरिक्त नरसिंह, वासुदेव, नवदुर्गा आदि के मंदिर भी यहाँ पर हैं. मान्यता है कि जोशीमठ के नरसिंह मंदिर की पूजा-अर्चना किये बगैर बद्रीनाथ की यात्रा अधूरी ही रह जाती है. इस मंदिर में भगवन नरसिंह की काले पत्थर से बनी मूर्ति प्रतिष्ठित है.
पौराणिक कथाओं और यहां की लोक कथाओं के अनुसार यहां नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया था। कहते हैं कि भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग और विश्राम हेतु एक उपयुक्त स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उस वक्त यह स्थान भगवान शंकर और पार्वती का निवास स्थान था। ऐसे में विष्णु के एक युक्ति सोची।
एक दिन शिव और पार्वती भ्रमण के लिए बाहर निकले और जब वे वापस लौटे तो उन्होंने द्वार पर एक नन्हे शिशु को रोते हुए देखा। माता पार्वती की ममता जाग उठी। वह उस शिशु को उठाने लगी तभी शिव ने रोका और कहा कि उस शिशु को मत छुओ। पार्वती ने पूछा क्यों? शिव बोले यह कोई अच्छा शिशु नहीं है। सोचो यह यहां अचानक कैसे और कहां से आ गया? दूर तक कोई इसके माता पिता नजर नहीं आते। यह कोई बच्चा नहीं बल्की मायावी लगता है।
लेकिन माता पार्वती नहीं मानी और वह बच्चे को उठाकर घर के अंदर ले गई। पार्वती ने बच्चे को चुप कराया और उसे दूध पिलाया। फिर वह बच्चे को वहीं सुलाकर शिव के साथ नजदीक के एक गर्म झरने में स्नान करने के लिए चली गई। जब वे दोनों वापस लौटे तो उन्होंने देखा की घर का दरवाजा अंदर से बंद था।
पार्वती ने शिव से कहा कि अब हम क्या करें? शिव ने कहा कि यह तुम्हारा बालक है। मैं कुछ नहीं कर सकता। अच्छा होगा कि हम कोई नया ठिकाना ढूंढ लें, क्योंकि अब दरवाज नहीं खुलने वाला है और मैं बलपूर्वक इस दरवाजे को नहीं खोलूंगा। कहते हैं कि शिव और पार्वती वह स्थान छोड़कर केदारनाथ चले गए और वह बालक जो भगवान विष्णु थे वहीं जमे रहे। इस तरह भगवान विष्णु ने जबरन बद्रीनाथ को अपना विश्राम स्थान बना लिया।
जब भगवान विष्णु ध्यानयोग में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु और उनका घर हिम में पूरी तरह डूबने लगा। यह देखकर माता लक्ष्मी का व्याकुल हो उठी। तब उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जाएगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ (बदरीनाथ) के नाम से जाना जाएगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
चार धाम में से एक बद्रीनाथ के बारे में एक कहावत प्रचलित है कि ‘जो जाए बदरी, वो ना आए ओदरी’। अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है, उसे पुन: उदर यानी गर्भ में नहीं आना पड़ता है। मतलब दूसरी बार जन्म नहीं लेना पड़ता है। शास्त्रों के अनुसार मनुष्य को जीवन में कम से कम दो बार बद्रीनाथ की यात्रा जरूर करना चाहिए।
सर्दियों में ब्रदीनाथ के कपाट बंद होने के बाद बद्री विशाल की मूर्ति को जोशीमठ के वासुदेव मंदिर में ही रखा जाता है.
हिन्दू धर्म के महानतम धर्मगुरु माने जाने वाले आदि शंकराचार्य द्वारा ही जोशीमठ में पहला ज्योर्तिमठ स्थापित किया गया था. इन दिनों जोशीमठ के जमीन धंसने के कारण यह चर्चा में है और लोगों के मन में बस एक ही सवाल है कि जोशीमठ का क्या होगा. इसका कारण यह है कि जोशीमठ केवल एक स्थान नहीं है, बल्कि यह समानत धर्म से जुड़ा धार्मिक प्रतीक है, जिससे लोगों की आस्थ और श्रद्धा जुड़ी हुई है.
जोशीमठ को आदि शंकराचार्य के कारण जाना जाता है. कहा जाता है कि 8वीं सदी में शंकराचार्य ने जोशीमठ में तपस्या की थी. शंकराचार्य ने भारत में बने चार मठों में पहले मठ की स्थापना यहीं की थी. इसके बाद से ही इस स्थान को ज्योर्तिमठ कहा जाने लगा. लेकिन जोशीमठ का धार्मिक इतिहास शंकराचार्य से भी काफी पुराना है.
धार्मिक व पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की पुकार पर नृसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर दिया. लेकिन भगवान नृसिंह का गुस्सा शांत नहीं हुआ. उनके गुस्से को शांत करने के लिए प्रह्लाद ने मां लक्ष्मी के कहने पर फिर से जप-तप किया. प्रह्लाद के जप के प्रभाव से भगवान नृसिंह का गुस्सा शांत हुआ और इसके बाद वे शांत रूप में जोशीमठ में विराजमान हुए. यहां भगवान नृसिंह का मंदिर भी है.
जोशीमठ के मंदिर में विराजित स्टफिक से बनी भगवान नृसिंह की मूर्ति को लेकर कहा जाता है कि, भगवान नृसिंह की एक बाजू साल दर साल पतली होती जा रही है. इसे लेकर कई मान्यताएं हैं.
स्कंद पुराण के केदारखंड के सनत कुमार संहिता में लिखा गया है कि, भगवान नृसिंह के मूर्ति के हाथ की ये भुजा जिस दिन टूटकर गिर जाएगी, तब नर पर्वत और नारायण पर्वत आपस में मिल जाएंगे और बद्रीनाथ जाने का रास्ता भी बंद हो जाएगा. इसके बाद भगवान बद्री विशाल भविष्य बद्री में पूजे जाएंगे. यह स्थान बद्रीनाथ से 19 किलोमीटर दूर तपोवन में है.
जोशीमठ से विशेष धार्मिक महत्व तो जुड़ा ही है. इससे जुड़ी पौराणिक कहानी के अनुसार, पांडवों ने जब राजपाट का त्याग कर स्वर्ग जाने का निश्चय किया तो उन्होंने जोशीमठ से ही पहाड़ों का रास्ता चुना.
बद्रीनाथ के पास पांडुकेश्वर को पांडवों का जन्म स्थान बताया जाता है. बद्रीनाथ के बाद माणा गांव पार कर एक शिखर आता है जिसे स्वर्गारोहिणी कहा जाता है. यहीं से पांडवों ने युधिष्ठिर का साथ छोड़ना शुरू किया और आखिर में एक कुत्ता ही युधिष्ठिर के साथ स्वर्ग तक गया था. इसी पौराणिक कथा के कारण जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है.
हालांकि वास्तविक तौर पर जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि जोशीमठ को पार करने के बाद फूलों की घाटी पड़ती है और औली की शुरुआत हो जाती है, जिसकी सुंदरता स्वर्ग के समान है. इस कारण भी जोशीमठ को स्वर्ग का द्वार कहा जाता है.
आदि शंकराचार्य ने की थी जोशीमठ की भविष्यवाणी
भविष्य बद्री मंदिर के पास एक पत्थर है, जिस पर आदि शंकराचार्य द्वारा जोशीमठ की भविष्यवाणी लिखी हुई है. लेकिन आज तक इस भविष्यवाणी को कोई नहीं पढ़ सका.
पौराणिक कथाओं और यहां की लोक कथाओं के अनुसार यहां नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया था। लेकिन, यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उनकी आवाज सुनकर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो गया। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप पहुंचे। माता पार्वती ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से जाना जाता है। जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा।
जहां भगवान बदरीनाथ ने तप किया, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
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