अद्भुत व् शीघ्र फलदायी- श्रावण मास में रुद्राभिषेक
भगवान शिव को दुखों का नाश करने वाला देवता भी बताया गया है. लघु रूद्र पूजा का सामान्य सा अर्थ यही होता है कि शिव की ऐसी पूजा जो व्यक्ति के सभी दुखों का नाश कर देती है. यजुर्वेद में कई बार इस शब्द का उल्लेख किया गया है. भगवान शिव के रूद्र रूप की पूजा से व्यक्ति को विशेष लाभ होता है ऐसा शास्त्रों में बताया गया है. शिव के इस रूप की पूजा से इंसान के कई जन्मों के कर्म भी साफ हो जाते हैं. इस महीने में शिवजी की तपस्या और पूजा पाठ से शिव जी जल्द प्रसन्न होते हैं और जीवन सफल बनाते हैं।
Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड
भगवान शिव का एक नाम रुद्र भी है। रुद्र शब्द की महिमा का गुणगान धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। यजुर्वेद में कई बार इस शब्द का उल्लेख हुआ है। रुद्राष्टाध्यायी को तो यजुर्वेद का अंग ही माना जाता है। रुद्र अर्थात रुत् और रुत् का अर्थ होता है दुखों को नष्ट करने वाला यानि जो दुखों को नष्ट करे वही रुद्र है अर्थात भगवान शिव क्योंकि वहीं समस्त जगत के दुखों का नाश कर जगत का कल्याण करते हैं।
रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारे पटक-से पातक कर्म भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है।
रूद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि-
सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका:
अर्थात् सभी देवताओं की आत्मा में रूद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रूद्र की आत्मा हैं। वैसे तो रुद्राभिषेक किसी भी दिन किया जा सकता है परन्तु त्रियोदशी तिथि,प्रदोष काल और सोमवार को इसको करना परम कल्याण कारी है | श्रावण मास में किसी भी दिन किया गया रुद्राभिषेक अद्भुत व् शीघ्र फल प्रदान करने वाला होता है |
शिव को प्रसन्न कर उनका आशीर्वाद पाने के लिए दूध से अभिषेक करें – अभिषेक के लिए तांबे के बर्तन को छोड़कर किसी अन्य धातु के बर्तन का उपयोग करना चाहिए। खासकर तांबे के बरतन में दूध, दही या पंचामृत आदि नहीं डालना चाहिए। इससे ये सब मदिरा समान हो जाते हैं। तांबे के पात्र में जल का तो अभिषेक हो सकता है लेकिन तांबे के साथ दूध का संपर्क उसे विष बना देता है इसलिए तांबे के पात्र में दूध का अभिषेक बिल्कुल वर्जित होता है। क्योंकि तांबे के पात्र में दूध अर्पित या उससे भगवान शंकर को अभिषेक कर उन्हें अनजाने में आप विष अर्पित करते हैं। पात्र में ‘दूध’ भर कर पात्र को चारों और से कुमकुम का तिलक करें
इस साल 11 अगस्त को शनिवार के दिन अमावस्या होने से यह शनैश्चरी अमावस्या कहलाएगी। इस दिन सूर्य ग्रहण भी लगने जा रहा है। हमारे शास्त्रों में शनैश्चरी अमावस्या का विशेष महत्व बताया गया है। इस पर सूर्य ग्रहण होने से शनि और पितृ दोषों से मुक्ति के लिए उपाय योग्य, विद्वान पंडितो से कराया जा सकता है, शनैश्चरी अमावस्या के दिन शास्त्रों में बताए गए उपायों को करने से शनि की साढ़ेसाती आदि के प्रभाव कम होते हैं। ऐसी मान्यता है कि यदि आप इस दिन शनि के बीज मंत्र ‘ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:’ या सामान्य मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नम:’ का जप करें और इसके बाद उड़द दाल की खिचड़ी या तिल के तेल से बने पकवान दान करें हैं तो शनि और पितृ दोषों से मुक्ति मिलती है। शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए शनिवार के दिन पीपल के पेड़ के नीचे काली बाती बनाकर सरसों तेल का दीप जलाएं। पीपल को जल और काली चिंटियों गुड़ दें तो शनि के दोषों से मुक्ति मिलती है। पीपल के पत्तों पर मिठाई रखकर पितरों का ध्यान करें तो पितृदोष भी दूर होता है। ऐसी मान्यता है कि शनि दोष से मुक्ति के लिए शनिवार के दिन चमड़े के जूते चप्पल दान करना भी अच्छा रहता है। इसके साथ आप शमी के पेड़ की भी पूजा कर सकते हैं।इस दिन लगने वाला सूर्य ग्रहण भारत में नहीं दिखेगा इसलिए इस दिन घर में शमी का पेड़ लगाना भी शुभ फलदायी रहेगा। शनैश्चरी अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ पर सात प्रकार का अनाज चढ़ाएं और इसे जरूरतमंदों में बांट दें इससे ग्रहण का दान और शनि के उपाय दोनों हो जाएंगे। इस उपाय से शनि के साथ पितृगण भी खुश होंगे।
हनुमानजी की पूजा करने से शनि दोष से हो रही पीड़ा से भी शांति मिलती है। तभी से शनिवार के दिन तेल चढ़ाने की परंपरा की शुरुआत मानी जाती है। इसके साथ ही ऐसा माना जाता है कि हनुमानजी के भक्तों को शनिदेव की कुदृष्टि कभी नहीं झेलनी पड़ती है।
लघु रुद्र पूजा के बारे में कि क्या होती है लघु रुद्र पूजा, यह कैसे की जाती है और इस लघु रुद्र पूजा के करने से क्या लाभ मिलता है।
रुद्राष्टाध्यायी को यजुर्वेद का अंग माना जाता है। वैसे तो भगवान शिव अर्थात रुद्र की महिमा का गान करने वाले इस ग्रंथ में दस अध्याय हैं लेकिन चूंकि इसके आठ अध्यायों में भगवान शिव की महिमा व उनकी कृपा शक्ति का वर्णन किया गया है। इसलिये इसका नाम रुद्राष्टाध्यायी ही रखा गया है। शेष दो अध्याय को शांत्यधाय और स्वस्ति प्रार्थनाध्याय के नाम से जाना जाता है। रुद्राभिषेक करते हुए इन सम्पूर्ण 10 अध्यायों का पाठ रूपक या षडंग पाठ कहा जाता है।
वहीं यदि षडंग पाठ में पांचवें और आठवें अध्याय के नमक चमक पाठ विधि यानि ग्यारह पुनरावृति पाठ को एकादशिनि रुद्री पाठ कहते हैं। पांचवें अध्याय में “नमः” शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का नाम नमक और आठवें अध्याय में “चमे” शब्द अधिक प्रयोग होने से इस अध्याय का नाम चमक प्रचलित हुआ। दोनों पांचवें और आठवें अध्याय पनरावृति पाठ नमक चमक पाठ के नाम से प्रसिद्ध हैं। एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ को लघु रूद्र कहा जाता है। वहीं लघु रुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को महारुद्र तो महारुद्र के ग्यारह आवृति पाठ को अतिरुद्र कहा जाता है। रुद्र पूजा के इन्हीं रुपों को कहता है यह श्लोक-
रुद्रा: पञ्चविधाः प्रोक्ता देशिकैरुत्तरोतरं ।
सांगस्तवाद्यो रूपकाख्य: सशीर्षो रूद्र उच्च्यते ।।
एकादशगुणैस्तद्वद् रुद्रौ संज्ञो द्वितीयकः ।
एकदशभिरेता भिस्तृतीयो लघु रुद्रकः।।
रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:
यानि भगवान शिव सभी दु:खों को नष्ट कर देते हैं। सबसे बड़ा और अहम कारण रुद्र पूजा का यही है कि इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। रुद्रार्चन से मनुष्य के पातक एवं महापातक कर्म नष्ट होकर उसमें शिवत्व उत्पन्न होता है और भगवान शिव के आशीर्वाद से साधक के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं।
इसमें में रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री के ग्यारह आवृति पाठ किया जाता है। इसे ही लघु रुद्र कहा जाता है। यह पंच्यामृत से की जाने वाली पूजा है। इस पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। प्रभावशाली मंत्रो और शास्त्रोक्त विधि से विद्वान ब्राह्मण द्वारा पूजा को संपन्न करवाया जाता है। इस पूजा से जीवन में आने वाले संकटो एवं नकारात्मक ऊर्जा से छुटकारा मिलता है।
Presented by- हिमालयायूके- हिमालय गौरव उत्तराखण्ड
Leading Digital Newsportal & DAILY NEWSPAPER)
Publish at Dehradun & Haridwar, Available in FB, Twitter, whatsup Groups & All Social Media ; Mail; himalayauk@gmail.com (Mail us) whatsup Mob. 9412932030; ; H.O. NANDA DEVI ENCLAVE, BANJARAWALA, DEHRADUN (UTTRAKHAND)
CHANDRA SHEKHAR JOSHI- EDITOR
हिमालयायूके में सहयोग हेतु-
Yr. Contribution: HIMALAYA GAURAV UTTRAKHAND A/C NO. 30023706551 STATE BANK OF INDIA; IFS Code; SBIN0003137