9 दिसंबर की रैली तय करेगी शिवपाल का वजूद
9 दिसंबर को लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में शिवपाल की नई नवेली पार्टी की पहली रैली है.
9 दिसंबर को लखनऊ के रमाबाई अंबेडकर मैदान में शिवपाल की नई नवेली पार्टी की पहली रैली है. इस रैली के जरिए शिवपाल अपनी ताकत दिखाने की तैयारी कर रहे हैं. जिसके लिए पार्टी कमर कस रही है. शिवपाल यादव की नई पार्टी का मकसद साफ है. इस शक्ति प्रदर्शन के बाद वो अपनी पार्टी के लिए सीटों का मोलभाव करेंगे. इसके लिए वो सीटों का तालमेल करने के लिए तैयार हैं. जहां तक फॉर्मूले का सवाल है. पीएसपी एसपी से आधी सीटों की शर्त पर गठबंधन में शामिल हो सकती है.
हालांकि इस नई पार्टी के लिए एसपी-बीएसपी इतनी सीट देने के लिए तैयार होंगी ये नामुमकिन लगता है. लेकिन जिस तरह से शिवपाल यादव पेशबंदी कर रहे हैं, उसके कई मकसद हैं एक तो वो ये दिखाना चाहते हैं कि वो बीजेपी के खिलाफ गोलबंदी में शामिल थे लेकिन उनको नजरअंदाज किया गया है.
इस कारण उनको अलग रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है. इसके भी कई फायदे हैं वो ये जताना चाहते है कि वो बीजेपी के गेमप्लान का हिस्सा नहीं हैं. दूसरे वोटकटवा होने के तमगे से बच सकते हैं.
प्रदेश के सभी जिलों से भीड़ लाने की कोशिश की जा रही है. हालांकि लखनऊ के आसपास के जिलों से ज्यादा लोग जुटाने की कोशिश हो रही है. पीएसपी यानि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के लगभग सभी जिलों में संगठन बन गए है. इस नए संगठन के लोगों को टारगेट दिया गया है.
पीएसपी में ज्यादातर लोग समाजवादी पार्टी के हैं. इसलिए समाजवादी पार्टी के तरीके इन लोगों को पता है, हालांकि अभी नई पार्टी होने की वजह से भीड़ इकट्ठा करना आसान काम नहीं है. लेकिन मुकाबला समाजवादी पार्टी से है, इसलिए चुनौती मुश्किल है. पीएसपी के कार्यकर्ता उत्साहित हैं. गोंडा जिले के पीएसपी के महासचिव जमाल चौधरी का कहना है कि वो लोग तकरीबन 5000 लोगों को लेकर जाएंगे. जमाल चौधरी का कहना है कि संसाधन की कमी नहीं है. सब कार्यकर्ता मन से तैयारी कर रहे हैं. हालांकि इस तरह के दावों का टेस्ट 9 दिसंबर को होगा क्योंकि कहा जाता है कि रमाबाई अंबेडकर मैदान मायावती की रैली से ही भर पाया है.
रैली का मुख्य मकसद ताकत दिखाना है. नई पार्टी यूपी में पहली बार दमखम दिखाना चाहती है. लेकिन पार्टी के प्रवक्ता और पूर्व नौकरशाह चक्रपाणि यादव का कहना है कि प्रदेश के मुद्दों पर सभी राजनीतिक दल उदासीन है. विपक्ष भी निष्क्रिय है. इसलिए सत्ताधारी दल को जगाने के लिए पीएसपी को रैली करनी पड़ रही है. हालांकि चक्रपाणि यादव से जब सवाल किया गया कि आखिर शिवपाल यादव जब सरकार में थे तो ये सारे काम क्यों नहीं किए गए तो जवाब मिला, सरकार में थे, लेकिन कोई अधिकार नहीं था.
जाहिर है कि चचा भतीजे की लड़ाई की ओर इशारा है. हालांकि समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजीव राय का कहना है कि ऐसी रैलियों से एसपी को कोई फर्क नहीं पड़ता है, लोगों को पता है कि इसके पीछे कौन है? एसपी प्रवक्ता का इशारा बीजेपी की तरफ है
शिवपाल की राजनीतिक बिसात साफ है. एसपी-बीएसपी आरएलडी के संभावित गठबंधन में रहना मुश्किल है. ऐसे में पीएसपी 79 लोकसभा सीट पर प्रत्याशी उतारने की योजना बना रही है. सिवाय एक सीट जिसपर मुलायम सिंह यादव चुनाव लड़ेंगे. जाहिर शिवपाल के अलग लड़ने से नुकसान समाजवादी पार्टी का होने वाला है. शिवपाल की निगाह ऐसे लोगों पर है जो एसपी-बीएसपी से टिकट पाने में महरूम रह जाएं.
ऐसे मजबूत उम्मीदवार शिवपाल यादव को बैठे-बिठाए मिल सकते हैं लेकिन सवाल ये है कि ये सभी अपनी मूल पार्टी से अलग होकर नई पार्टी का परचम उठाने के लिए तैयार होंगे, जिसमें रिस्क ज्यादा है. हालांकि शिवपाल का खेल इन बागियो पर ज्यादा टिका है. वहीं कई छोटे दलों से संभावित गठबंधन के लिए बातचीत हो रही है, जिसमें बहुजन क्रांति दल जैसी पार्टियां भी हैं. समाजवादी पार्टी की बुनियाद एमवाई यानी मुस्लिम-यादव समीकरण पर है. यही वोट पार्टी का बेस है. इसके अलावा जो सोशल इंजीनियरिंग मुलायम सिंह यादव ने की थी उसमें बीजेपी ने सेंध लगा दी है. बीजेपी ने बीएसपी के गैर जाटव वोट में ठीक सेंधमारी की है. शिवपाल मुस्लिम यादव वाले समीकरण में तो सेंध लगाने की कोशिश कर रहे हैं. इसके अलावा गुर्जर और सैनी जैसी जातियों को भी पीएसपी से जोड़ने की कवायद हो रही है.
हालांकि समाजवादी पार्टी से कोई बड़ा नेता अभी पीएसपी में शामिल नहीं हुआ है लेकिन कई इलाकाई नेता पीएसपी से जुड़ रहे हैं. इस हफ्ते ही पटियाली की पूर्व एसपी विधायक जीनत खान पीएसपी में आ गई हैं. मुरादाबाद बरेली से कई बड़े यादव नेता पार्टी में पहले से हैं. यही नहीं छोटे दलों को जोड़कर जातीय समीकरण दुरुस्त करने की तैयारी है.
शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के संस्थापक हैं. मुलायम सिंह के साथ समाजवादी पार्टी को खड़ा करने में योगदान है. हालांकि चचा भतीजे के राजनीतिक महत्वकांक्षा की लड़ाई में भतीजे की जीत हुई. शिवपाल ने अलग रास्ता अख्तियार किया है. समाजवादी पार्टी पर अखिलेश यादव की पकड़ मज़बूत हुई है. अब वही सर्वेसर्वा हैं. लेकिन शिवपाल के दिल में कसक है.
शिवपाल की नई पार्टी का दो मकसद है-एक अपने आपको स्थापित करना दूसरे एसपी को राजनीतिक नुकसान पहुंचाना. लेकिन एसपी-बीएसपी के प्रस्तावित गठबंधन में गैर बीजेपी वोट बांटना आसान काम नहीं है. इसमें डेंट लगाना मुश्किल है. शिवपाल यादव की यूएसपी इसमें है कि वो कितना खेल बिगाड़ सकते हैं.
शिवपाल यादव पर बीजेपी से नजदीकी के आरोप लग रहे हैं. इसके पीछे कई तर्क दिए जा रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य की बीजेपी सरकार ने मुलायम सिंह, मायावती, अखिलेश यादव के बंगले खाली करवा लिए. मायावती का खाली बंगला शिवपाल यादव को अलॉट कर दिया, जिसके बाद से ही बीजेपी से मिलीभगत का आरोप लग रहा है.
सेक्युलर अलांयस वाला राजनीतिक पैंतरा इसका जवाब माना जा रहा है. शिवपाल यादव की पार्टी तभी मजबूत हो सकती है जब पीएसपी ये साबित करने में कामयाब हो जाए कि वो बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए नहीं है. तब अखिलेश यादव का नुकसान भी ज्यादा करने में कामयाबी मिल सकती है. शिवपाल यादव की नई पार्टी से फायदा बीजेपी को हो सकता है. जो सेंधमारीं वो समाजवादी पार्टी के वोट में करेंगे, उससे एंटी बीजेपी वोट कई हिस्से में बंटेगा. बीजेपी को उम्मीद है कि एसपी के गढ़ इटावा, फिरोजाबाद, संभल, मैनपुरी, कन्नौज में शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी को ठीक ठाक नुकसान पहुचा सकते हैं.
बीजेपी की यूपी में सरकार है. पार्टी ने अपना दल के साथ 2014 में मिलकर 73 सीट जीती थीं. जिसमें 71 बीजेपी के पास हैं. जाहिर है बीजेपी को मात देने के लिए एसपी-बीएसपी को एक साथ आना पड़ रहा है. बिना इकट्ठा हुए बीजेपी को हराना मुश्किल है. एकजुट होने का असर गोरखपुर फूलपुर और कैराना में दिखाई दिया है. इन तीन उपचुनाव में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा है.
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