बद्रीनाथ धाम के कपाट खुले, अखण्ड ज्योति के दर्शन हुए
कपाट खुलने के बाद अखण्ड ज्योति के दर्शन
चमोली 06 मई 2016 (सू0वि0) # www.himalayauk.org (Web & Print Media) Dehradun & Haridwar- CS JOSHI- EDITOR
भगवान श्री बद्रीनाथ धाम के कपाट ब्रहम बेला में शुभ मुहूर्त पर शनिवार को पूरे वैदिक मंत्रोचारण, गढवाल राइफल बैण्ड की मधुर धुन के बीच श्रृदालुओं के लिए खोल दिये गये। बद्रीनाथ मंदिर की सजावट गेदें के फूलों से की गयी थी। स्थानीय महिलाओं ने पारम्परिक नृत्य के साथ भगवान बद्रीनाथ की स्तुति की। पूर्व निर्धारित समयानुसार बद्रीनाथ धाम के कपाट आज सुबह 4ः15 बजे खोले गये। कपाटोत्घाटन के अवसर पर एक दिन पहले से ही श्रृद्वालुओं की भारी भीड़ जुटी रही। पहले दिन ही 20 हजार से अधिक यात्रियों ने भगवान बद्रीनाथ के दर्शन किये।
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महामहीम राष्ट्रपति प्रणव मुर्खजी, राज्यपाल केके पाॅल, मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, विधानसभा अध्यक्ष प्रेम चन्द्र अग्रवाल, पर्यटन एवं धर्मस्व मंत्री सतपाल महराज, उच्च शिक्षा राज्य मंत्री डा.धनसिंह रावत, विधायक महेन्द्र भटृट, सुरेन्द्र नेगी, मगन लाल शाह, मनोज रावत, जिला पंचायत अध्यक्ष मुन्नी देवी शाह, पूर्व मंत्री अमृता रावत, मंदिर समिति के मुख्य कार्यधिकारी बीडी सिंह, मण्डलायुक्त विनोद शर्मा, डीआईजी पुष्पक ज्योति, अपर आयुक्त हरक सिंह रावत, जिलाधिकारी विनोद कुमार सुमन, पुलिस अधीक्षक तृप्ती भट्ट, सेना, बीआरओ एवं जिला प्रशासन के अधिकारियों सहित कई गणमान्य नागरिकों ने कपाट खुलने के बाद अखण्ड ज्योति के दर्शन किये। महामहीम ने विधिवत पूजा अर्चना कर देश की खुशहाली की कामना की।
बद्रीनाथ धाम में महामहीम राष्टपति आगमन तथा कपाट खुलने के अवसर पर पूरे धाम कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की गयी थी। महामहीम अपने निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सुबह 8ः25 बजे भारतीय वायु सेना के विमान से माणा स्थित सेना के हैलीपैड पहुॅचे। जहाॅ उनकी आगवानी विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचन्द्र अग्रवाल, उच्च शिक्षा मंत्री धनसिंह रावत ने किया। बद्रीनाथ धाम में अखण्ड ज्योति के दर्शन करने के उपरान्त महामहीम को मंदिर समिति द्वारा स्मृति चिन्ह, अंग वस्त्र तथा गढ क्योव भेंट किया गया।
06 मई प्रातः भगवान बद्रीनाथ धाम के कपाट खुलने के अवसर पर प्रथम दर्शन भारत के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी व उनके साथ उत्तराखण्ड के राज्यपाल डाॅ0 कृष्ण कांत पाल ने किए। इस अवसर पर उनके साथ मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी उपस्थित रहे।
शनिवार तड़के सवा चार बजे बदरीनाथ धाम के कपाट खुले। वहीं, महामहिम प्रणब मुखर्जी बदरीनाथ धाम के दर्शन करने वाले पांचवें राष्ट्रपति बने।
तड़के सुबह सवा चार बजे विधि विधान के साथ बदरीनाथ धाम के कपाट आज खुल गए. बदरीनाथ में सुबह मंत्रोच्चार के साथ मंदिर के कपाट खोल दिए गए. बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड की चार धाम यात्रा विधिवत शुरू हो गई है. इस मौके पर आज राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी दर्शन करने पहुंचे हैं.
गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट पहले ही खुल चुके हैं
गंगोत्री, यमुनोत्री और केदारनाथ धाम के कपाट पहले ही खुल चुके हैं. केदारनाथ के कपाट खुलने के दिन पीएम मोदी पहुंचे थे और रुद्राभिषेक किया था. बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के पहले ही दिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहुंचे हैं. सबसे पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने बदरीनाथ के दर्शन किए थे। बदरीनाथ में भी एक मिनी राष्ट्रपति भवन है। यहां सबसे पहले देश के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने विश्राम किया था। महामहिम प्रणब मुखर्जी से पहले प्रतिभा पाटिल भी यहां विश्राम कर चुकी हैं। पांचवें राष्ट्रपति के रुप में बदरीनाथ पहुंचे महामहिम प्रणब मुखर्जी ने पूजा अर्चना से पहले राष्ट्रपति भवन में पहुंचकर विश्राम किया। फिर मंदिर के गर्भगृह में पहुंचकर पूजा-अर्चना की।
बदरीनाथ समेत उत्तराखंड के चारों धाम के दर्शन 6 महीने बंद रहते हैं
सर्दियों में भीषण ठंड और बर्फबारी की वजह से बदरीनाथ समेत उत्तराखंड के चारों धाम के दर्शन 6 महीने बंद रहते हैं. बदरीनाथ को विष्णु और लक्ष्मी का प्रिय स्थान माना जाता है. हिंदू धर्म में बदरीनाथ धाम की बड़ी मान्यता है. हर साल यहां लाखों की तादाद में भक्त पहुंचते हैं.
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बदरीनाथ मंदिर , जिसे बदरीनारायण मंदिर भी कहते हैं, अलकनंदा नदी के किनारे उत्तराखंड राज्य में स्थित है। यह मंदिर भगवान विष्णु के रूप बदरीनाथ को समर्पित है। यह हिन्दुओं के चार धाम में से एक धाम भी है। ऋषिकेश से यह २९४ किलोमीटर की दूरी पर उत्तर दिशा में स्थित है।
ये पंच-बदरी में से एक बद्री हैं। उत्तराखंड में पंच बदरी, पंच केदार तथा पंच प्रयाग पौराणिक दृष्टि से तथा हिन्दू धर्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। दरीनाथ उत्तर दिशा में हिमालय की उपत्यका में अवस्थित हिन्दुओं का मुख्य यात्राधाम माना जाता है। मन्दिर में नर-नारायण विग्रह की पूजा होती है और अखण्ड दीप जलता है, जो कि अचल ज्ञानज्योति का प्रतीक है। यह भारत के चार धामों में प्रमुख तीर्थ-स्थल है। प्रत्येक हिन्दू की यह कामना होती है कि वह बदरीनाथ का दर्शन एक बार अवश्य ही करे। यहाँ पर शीत के कारण अलकनन्दा में स्नान करना अत्यन्त ही कठिन है। अलकनन्दा के तो दर्शन ही किये जाते हैं। यात्री तप्तकुण्ड में स्नान करते हैं। यहाँ वनतुलसी की माला, चने की कच्ची दाल, गिरी का गोला और मिश्री आदि का प्रसाद चढ़ाया जाता है। बदरीनाथ की मूर्ति शालग्रामशिला से बनी हुई, चतुर्भुज ध्यानमुद्रा में है। कहा जाता है कि यह मूर्ति देवताओं ने नारदकुण्ड से निकालकर स्थापित की थी। सिद्ध, ऋषि, मुनि इसके प्रधान अर्चक थे। जब बौद्धों का प्राबल्य हुआ तब उन्होंने इसे बुद्ध की मूर्ति मानकर पूजा आरम्भ की। शंकराचार्य की प्रचार-यात्रा के समय बौद्ध तिब्बत भागते हुए मूर्ति को अलकनन्दा में फेंक गए। शंकराचार्य ने अलकनन्दा से पुन: बाहर निकालकर उसकी स्थापना की। तदनन्तर मूर्ति पुन: स्थानान्तरित हो गयी और तीसरी बार तप्तकुण्ड से निकालकर रामानुजाचार्य ने इसकी स्थापना की। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हुई, तो यह 12 धाराओं में बंट गई। इस स्थान पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से विख्यात हुई और यह स्थान बदरीनाथ, भगवान विष्णु का वास बना। भगवान विष्णु की प्रतिमा वाला वर्तमान मंदिर 3,133 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और माना जाता है कि आदि शंकराचार्य, आठवीं शताब्दी के दार्शनिक संत ने इसका निर्माण कराया था। इसके पश्चिम में 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बदरीनाथ शिखर कि ऊँचाई 7,138 मीटर है। बदरीनाथ में एक मंदिर है, जिसमें बदरीनाथ या विष्णु की वेदी है। यह 2,000 वर्ष से भी अधिक समय से एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान रहा है। पौराणिक कथाओं और यहाँ की लोक कथाओं के अनुसार यहाँ नीलकंठ पर्वत के समीप भगवान विष्णु ने बाल रूप में अवतरण किया। यह स्थान पहले शिव भूमि (केदार भूमि) के रूप में व्यवस्थित था। भगवान विष्णुजी अपने ध्यानयोग हेतु स्थान खोज रहे थे और उन्हें अलकनंदा नदी के समीप यह स्थान बहुत भा गया। उन्होंने वर्तमान चरणपादुका स्थल पर (नीलकंठ पर्वत के समीप) ऋषि गंगा और अलकनंदा नदी के संगम के समीप बाल रूप में अवतरण किया और क्रंदन करने लगे। उनका रुदन सुन कर माता पार्वती का हृदय द्रवित हो उठा। फिर माता पार्वती और शिवजी स्वयं उस बालक के समीप उपस्थित हो गए। माता ने पूछा कि बालक तुम्हें क्या चहिये? तो बालक ने ध्यानयोग करने हेतु वह स्थान मांग लिया। इस तरह से रूप बदल कर भगवान विष्णु ने शिव-पार्वती से यह स्थान अपने ध्यानयोग हेतु प्राप्त कर लिया। यही पवित्र स्थान आज बदरीविशाल के नाम से सर्वविदित है। जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं। कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।
जहाँ भगवान बदरीनाथ ने तप किया था, वही पवित्र-स्थल आज तप्त-कुण्ड के नाम से विश्व-विख्यात है और उनके तप के रूप में आज भी उस कुण्ड में हर मौसम में गर्म पानी उपलब्ध रहता है।
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