सीने में धड़कता हुआ दिल हो तो- बच्चे को गौर से देखो; कान्हा नज़र आएँगे
11 August 2020# Himalayauk Newsportal Bureau # High Light श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व इस वर्ष बेहद खास है. जन्माष्टमी पर इस साल दो शुभ योग बन रहे हैं. सर्वार्थ सिद्धि योग के अलावा जन्माष्टमी पर बुध और सूर्य के इकट्ठे होने से बुधादित्य राजयोग भी बन रहा है. इस शुभ घड़ी में किए गए कार्यों में निश्चित तौर पर सफलता मिलती है. दूसरा, मंगल पर शनि की दृष्टि होने से कई राशियों को लाभ होगा. जन्माष्टमी पर बुधादित्य राजयोग कुछ राशियों को महालाभ देगा. प्रस्तुत आलेख विश्व के तमाम कान्हाओ को समर्पित है
हिंदुस्तान की जंगे आज़ादी का बड़ा नाम थे मौलाना हसरत मोहानी जिन्होंने इंक़लाब ज़िंदाबाद का नारा गढ़ा था। उन्हीं मोहानी साहब ने किशन को हज़रत कृष्ण नाम से पुकारा और कहा:
हसरत की भी क़बूल हो मथुरा में हाज़िरी सुनते हैं आशिक़ों पे तुम्हारा करम है ख़ास।
वह ‘कृष्ण कन्हैया’ नाम की अपनी मक़बूल नज़्म में कहते हैं- ये पैकरे तनवीर, ये कृष्ण की तस्वीर। अगर 18वीं सदी के नज़ीर अकबराबादी ने कृष्ण की तारीफ़ में ख़ूब क़सीदे गढ़े तो जदीद शायर निदा फ़ाजली ने बेधड़क फ़रमाया:
वृंदावन के कृष्ण कन्हैया अल्ला हू बंसी राधा गीता गय्या अल्ला हू।
रसखान से लेकर ख़ुमार बाराबंकवी और बेकल उत्साही तक सब के सब कृष्ण के मुरीद रहे। लेकिन कमाल तो यह कि इस लंबी लिस्ट में हफ़ीज़ जालंधरी का भी नाम शामिल है। वह तो पाकिस्तानी हो गए थे और उन्होंने ही पाकिस्तान का राष्ट्र गान लिखा। लेकिन कृष्ण तो उनके ज़ेहन में जैसे हमेशा-हमेशा के लिए चस्पा थे।
क्या संजोग है कि हज़रत मूसा की तरह कान्हा का भी जन्म ख़तरों के साये में हुआ। पैदा होते ही दोनों के क़त्ल हो जाने का अंदेशा था लेकिन दोनों ही तमाम पहरों को धोखा देते हुए क़ातिल हाथों से बच निकले। यह भी करिश्माई संजोग है कि दोनों का साथ नदियों ने दिया, उनके भाग निकलने का रास्ता बनाया। नन्हें कन्हैया अपने माँ-बाप से बिछड़ गए लेकिन हज़रत मूसा की तरह उन्हें भी ममता से भरपूर गोद मिली। यशोदा मय्या ने उन्हें सीने से लगा लिया, अपना बच्चा बना लिया। अपने बचपन में कन्हैया बहुत नटखट थे। गोपियों को तंग किया करते थे, उनके मटके फोड़ देते थे, माखन चुराते थे, डाँट खाते थे, और प्यार भी पाते थे। सीने में धड़कता हुआ दिल हो तो हर बच्चे में कान्हा नज़र आएँगे और तब यह दुख और शर्म की बात लगेगी कि हमारे आस-पड़ोस के, देश और दुनिया के तमाम कान्हा मथुरा के कान्हा जैसे ख़ुशनसीब नहीं। वे ख़तरों के बीच पैदा होते हैं, ख़तरों के बीच जीते हैं। भूख, अभाव और भुखमरी से गुज़रते हैं, कुपोषित रहते हैं, तिल-तिल कर मरते हैं। बाल मज़दूरी पर पाबंदी है और यह ग़ैर क़ानूनी है, तो क्या? ऐसे बच्चों की संख्या बहुत ज़्यादा है जिनके सामने पेट भरने के लिए मज़दूरी के सिवा कोई चारा नहीं। उन बच्चों की भी संख्या कम नहीं जिन्हें गुनाह की दुनिया में या जिस्मफ़रोशी के धंधे में धकेल दिया जाता है।
हर कहीं बच्चों के साथ मारपीट या बदसलूक़ी जैसे आम बात में शुमार हो चुकी है। उनकी आह और कराह अनसुनी रह जाती है। यह बहुत बड़ा अन्याय है, अधर्म और महापाप है। इसके लिए समाज ज़िम्मेदार है। लेकिन हाँ, बच्चों के बेरौनक़ चेहरों के लिए सबसे बड़ा और सबसे पहला गुनाहगार निज़ाम है।
तमाम बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लाने की तैयारी करना है। सभी बच्चे मुस्कराना चाहते हैं। यह तभी होगा जब उन्हें जीने का, विकास का, सहभागिता का और सुरक्षा का अधिकार हासिल होगा। इसे पक्का करने की जद्दोजहद में उतरना सही मायनों में कान्हा की पैदाइश का जश्न मनाना है। नहीं भूलना चाहिए कि कृष्ण की ज़िंदगी बिना थके, बिना डरे ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी से मुठभेड़ करते रहने की बेहतरीन दास्तान है।
आज देश में कान्हा की शिक्षा के हालात क्या है.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की 75वें दौर (2017 से जून 2018) की रिपोर्ट- ‘भारत में शिक्षा पर पारिवारिक सामजिक उपभोग के मुख्य संकेतक, जो नवंबर 2019 में जारी हुई, के आंकड़ो को देखें तो हमें शिक्षा में ग्रामीण-शहरी क्षेत्र और महिला-पुरुष और क्षेत्रीय विषमताओं का एहसास होगा. गांव, जहां देश की 70% जनसंख्या रहती है, वहां 15 साल से ऊपर की 41.2% महिलाऐं निरक्षर हैं, तो 20.4% प्राथमिक स्तर तक ही पढ़ाई कर पाती है. ग्रामीण पुरुषों में 22.2 निरक्षर हैं, तो 21.2 सिर्फ प्राथमिक स्तर पढ़े-लिखे हैं. सब जानते हैं कि गांव के स्कूल में प्राइमरी होना मतलब नाममात्र का साक्षर. इसका मतलब लगभग 60% ग्रामीण महिलाओं और 42% ग्रामीण पुरुषों को आज भी लिखना पढ़ना नहीं आता. इस देश में 90% बच्चे कॉलेज के स्तर तक आते-आते अपनी पढ़ाई छोड़ देते हैं. इसी रिपोर्ट के अनुसार देश में 15 साल से ऊपर की उम्र के सिर्फ 10.6% लोग ही स्नातक या उससे ऊपर तक पढ़े-लिखे हैं. ग्रामीण व्यक्तियों में यह प्रतिशत 5.7 है, तो शहरी व्यक्तियों में यह 21.7 है. वही ग्रामीण महिलाओं में यह 3.9 प्रतिशत है, तो पुरुषों में 7.4 प्रतिशत