भगवान श्रीकृष्‍ण उत्तराखंड में नागराज के रूप में प्रकट हुए थे

भगवान श्री कृष्ण को हम बहुत से रूप में पूजते है. कभी बांसुरी लिए मुरलीमनोहर के रूप में गोपिओं को बेचैन करते हुए तो कभी विराट रूप धारण कर शत्रु का नाश करने के लिए सुदर्शन उठा लेने वाले के रूप में…परन्‍तु -हिमालयायूके- आपको अवगत करा रहा है  श्री कृष्ण  के उस रूप से जिसके बारे में शायद आप अभी तक नही जानते होगे, वैसे हिमालयायूके समय समय पर इस तरह के विशेष व दुर्लभ आलेखों को प्रकाशित करता रहा है, नागराजा के रूप में श्री कृष्ण के इस जन्‍म स्‍थान में अनेक उन बीमारियों का भी निवारण होता है जो विज्ञान जगत में लाइलाज कही जाती है- आप जरूर जाये एक बार इस स्‍थान पर ; चन्‍द्रशेखर जोशी की एक्‍सक्‍लूसिव रिपोर्ट

PHOTO; इसी शिला पर भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए थे – चमत्‍कारिक शिला – 

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द्वारिका में डूबने के बाद भगवान श्रीकृष्‍ण देवभूमि उत्तराखंड में नागराज के रूप में प्रकट हुए थे। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला है। टिहरी जिले में स्थित सेम-सुखेम नागराजा मंदिर में नागराज के साक्षात दर्शन होते हैं। लोगों का कहना है कि द्वारिका डूबने के बाद भगवान श्रीकृष्ण यहां नागराज के रूप प्रकट हुए थे। इसी शिला पर भगवान श्री कृष्ण प्रकट हुए थे.. सेम नागराजा मन्दिर से कुछ दूरी पर सतरांजू सौड़ नाम का एक बहुत बड़ा सुंदर प्राकृतिक बुग्याल है।। यहाँ पर कृष्ण भगवान अपनी घोड़ी पर बैठकर दौड़ लगाया करते थे।। यहाँ पर उनकी घोड़ी के पैरों के निशान अभी भी देखे जा सकते हैं।।
सुन्दर सुखद सेम तव धामा,
जहाँ जाई पूरण मनकामा….
॥जय श्री सेम नागराजा॥
विद्वानों का मानना है कि द्वापर में श्री कृष्ण (नागराजा ) के रूप में यहाँ आये थे यहाँ के तत्कालीन गढपति राजा गंगू रमोला ने नागराजा मन्दिर की नीव रखी ११गते मंगशीर को प्रकटा सेम में मन्दिर बनाकर विधिवत् प्राणप्रतिष्ठा की तब से यह दिन शुभ माना जाता है तब से हर तीन साल में तीसाली मेला होता है | जो उत्तराखण्ड का प्रसिद्ध मेला माना जाता है इसमें ९ लाख सलाण तथा ७ लाख धुमाण के लोग आज भी यहाँ आकर भगवान नागराजा के दर्शन कर अपने को धन्य मानते है | जो भी मनुष्य इस दिन ( ११ गते मंगशीर ) के दिन नागराजा के दर्शन करता है उसकी मनोकामना भगवान नागराजा यथा शीघ्र पूर्ण करते है |

विशेष- कुष्‍ठ रोग का निवारण विज्ञान जगत में भी नही है परन्‍तु मान्‍यता है कि इस रोग का निवारण यहां है- 

At a height of 2903 mts., situated in the interior of the district, the temple of Nag Raja at Sem Mukhem is held in high esteem by the people of the area. Transport facilities are available up to Khamba Khal, a distance of 64 kms. from Tehri. One has to walk for about 7 kms. from the Khamba Khal to reach Sem. The temple is situated at the top of a hill about 5 kms. from the village Mukhem which is 2 kms. from the motor head of Khamba Khal. Accommodation is provided by the ‘Pandas’ of the village Mukhem . Sem Mukhem Temple is perched at an elevation of 2903 m on a hilltop. It is dedicated to the snake god, Nag Raja, and holds special significance for the local people. Tourists can reach the temple by a trek of 7 km from Khamba Khal, which is connected to Tehri by a 64 km long motorable road.
Accommodation facilities are provided to the guests by the Pandas or the temple priests of the Mukhem village, which is located at a distance of 2 km from Khamba Khal. An uphill trek of 5 km from this village leads to the Sem Mukhem Temple.

भगवान श्री कृष्ण को हम बहुत से रूप में पूजते है. कभी बांसुरी लिए मुरलीमनोहर के रूप में गोपिओं को बेचैन करते हुए तो कभी विराट रूप धारण कर शत्रु का नाश करने के लिए सुदर्शन उठा लेने वाले के रूप में…मधुसूदन के अनेक रूपों में एक स्वरूप ‘नागाराजा’ का भी है जिसका टिहरी के सेम मुखेम में पूजन होता है जनश्रुतियों के साथ-साथ धार्मिक ग्रन्थों में भी इसका उल्लेख मिलता है
जनपद टिहरी गढ़वाल की प्रताप नगर तहसील में समुद्र तल से तकरीबन 7000 हजार फीट की ऊंचाई पर भगवान श्रीकृष्ण के नागराजा स्वरूप का मंदिर है जहां प्राचीन काल से भगवान कृष्ण नागराजा के नाम से पूजे जाते हैं कहा जाता है की श्री कृष्ण नागवेश में केदारी कांठा होते हुए चमियाला चौंरी से नैपड गांव आए थे इसीलिए गढ़वाली जागरों में भगवान कृष्ण को नौछमी नारायण (छदम वेश बदलने वाला) भी कहा जाता है पुराणों में कहा गया है कि राक्षस राज वाणासुर ने कृष्ण के नाती प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध को हिमालय में बंदी बनाया था
श्री कृष्ण ने अपनी दस करोड़ महानारायणी सेना के साथ वाणासुर से युद्ध किया था.इस युद्ध से घबराकर वाणासुर ने भगवान शिव की तपस्या की थी, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने स्वयं युद्ध में उतरकर अपने भक्त की रक्षा की थी भगवान शंकर ने क्रोधित होकर जब अपने सभी दिव्यारु को वैष्णवी शक्ति के सामने नष्ट होते देखा तो प्रलयकारी अमोघ दिव्यशक्ति त्रिसिरा को महानारायणी सेना पर फेंक दिया भगवान शिव की इस शक्ति से कृष्ण चिन्ता में डूब गए कृष्ण ने त्रिसिरा शक्ति के भय से अपने आपको नागरूप में बदल दिया और केदारखंड आ गए. मन्दिर का सुन्दर द्वार १४ फुट चौड़ा तथा २७ फुट ऊँचा है। इसमें नागराज फन फैलाये हैं और भगवान कृष्ण नागराज के फन के ऊपर वंशी की धुन में लीन हैं। मन्दिर में प्रवेश के बाद नागराजा के दर्शन होते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में नागराजा की स्वयं भू-शिला है। ये शिला द्वापर युग की बतायी जाती है। मन्दिर के दाँयी तरफ गंगू रमोला के परिवार की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं। सेम नागराजा की पूजा करने से पहले गंगू रमोला की पूजा की जाती है
नागराज एक संस्कृत शब्द है जो कि नाग तथा राज (राजा) से मिलकर बना है अर्थात नागों का राजा। यह मुख्य रूप से तीन देवताओं हेतु प्रयुक्त होता है – अनन्त (शेषनाग), तक्षक तथा वासुकि। अनन्त, तक्षक तथा वासुकि तीनों भाई महर्षि कश्यप, तथा उनकी पत्नी कद्रु के पुत्र थे जो कि सभी साँपों के जनक माने जाते हैं। मान्यता के अनुसार नाग का वास पाताललोक में है।
सबसे बड़े भाई अनन्त भगवान विष्णु के भक्त हैं एवं साँपों का मित्रतापूर्ण पहलू प्रस्तुत करते हैं क्योंकि वे चूहे आदि जीवों से खाद्यान्न की रक्षा करते हैं। भगवान विष्णु जब क्षीरसागर में योगनिद्रा में होते हैं तो अनन्त उनका आसन बनते हैं तथा उनकी यह मुद्रा अनन्तशयनम् कहलाती है। अनन्त ने अपने सिर पर पृथ्वी को धारण किया हुआ है। उन्होंने भगवान विष्णु के साथ रामायण काल में राम के छोटे भाई लक्ष्मण तथा महाभारत काल में कृष्ण के बड़े भाई बलराम के रूप में अवतार लिया। इसके अतिरिक्त रामानुज तथा नित्यानन्द भी उनके अवतार कहे जाते हैं।
छोटे भाई वासुकि भगवान शिव के भक्त हैं, भगवान शिव हमेशा उन्हें गर्दन में पहने रहते हैं। तक्षक साँपों के खतरनाक पहलू को प्रस्तुत करते हैं, क्योंकि उनके जहर के कारण सभी उनसे डरते हैं।
गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के थानगढ़ तहसील में नाग देवता वासुकि का एक प्राचीन मंदिर है। इस क्षेत्र में नाग वासुकि की पूजा ग्राम्य देवता के तौर पर की जाती है। यह भूमि सर्प भूमि भी कहलाती है। थानगढ़ के आस पास और भी अन्य नाग देवता के मंदिर मौजूद है।
देवभूमि उत्तराखण्ड में नागराज के छोटे-बड़े अनेक मन्दिर हैं। वहाँ नागराज को आमतौर पर नागराजा कहा जाता है। सेममुखेम नागराज उत्तराखण्ड का सबसे प्रसिद्ध नागतीर्थ है। यह उत्तराकाशी जिले में है तथा श्रद्धालुओं में सेम नागराजा के नाम से प्रसिद्ध है। एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर डाण्डा नागराज पौड़ी जिले में है।
तमिलनाडु के जिले के नागरकोइल में नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। इसके अतिरिक्त एक अन्य प्रसिद्ध मन्दिर मान्नारशाला मन्दिर केरल के अलीप्पी जिले में है। इस मन्दिर में अनन्त तथा वासुकि दोनों के सम्मिलित रूप में देवता हैं।
केरल के तिरुअनन्तपुरम् जिले के पूजाप्पुरा में एक नागराज को समर्पित एक मन्दिर है। यह पूजाप्पुरा नगरुकावु मन्दिर के नाम से जाना जाता है। इस मन्दिर की अद्वितीयता यह है कि इसमें यहाँ नागराज का परिवार जिनमें नागरम्मा, नागों की रानी तथा नागकन्या, नाग राजशाही की राजकुमारी शामिल है, एक ही मन्दिर में रखे गये हैं।

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