हमें लगातार श्रेष्ठ काम करना चाहिए ; श्रीकृष्ण ने क्यो कहा था ?
उसके बाद ही दुश्मन को ललकारें#कोई व्यक्ति हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचा रहा है तो उसे उचित जवाब देना चाहिए। ऐसे लोगों को चुप करने के लिए हमें लगातार श्रेष्ठ काम करना चाहिए और उसकी बातों को गलत साबित करना चाहिए # जब दुश्मन आपसे अधिक बलशाली हो तो पहले अपने आप को इतना मजबूत बनाएं कि उससे लड़ सकें। उसके बाद ही दुश्मन को ललकारें।
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जिस तेजी से हम सफलता अर्जित कर रहे हैं उसी गति से हमारी बुराई करने वालों की संख्या भी बढ़ती है। बुराई करने वाले लोग हमारी प्रतिष्ठा पर बुरा असर डालते हैं, वे लगातार हमारा अपमान करने का प्रयास करते रहते हैं। इनसे बचने के लिए सबसे अच्छा तरीका यही है कि अपने काम से उन्हें गलत साबित करें। साथ ही, ऐसे लोगों को अधिक महत्व नहीं देना चाहिए और इन्हें नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए। महाभारत में श्रीकृष्ण और शिशुपाल के प्रसंग से हम सीख सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान करता है तो क्या करना चाहिए…
कृष्ण पूर्वजन्म में नारायण थे। इन्होंने बद्रीनाथ धाम में हजारों वर्ष तक तपस्या की थी और इन्हीं के तप से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने केदारनाथ में निवास करने का वरदान दिया था। इस बात का जिक्र गीता में स्वयं श्री कृष्ण ने अर्जुन से किया है कि, हे अर्जुन मैं पूर्वजन्म में नारायण था और तुम नर थे।
महाभारत में शिशुपाल और श्रीकृष्ण का प्रसंग काफी चर्चित रहा है। शिशुपाल श्रीकृष्ण की बुआ का पुत्र था और चेदी नगर का राजा था। श्रीकृष्ण ने शिशुपाल की माता वचन दिया था कि वे शिशुपाल की 100 गलतियां माफ करेंगे, लेकिन 100 गलतियों के बाद उसे उचित सजा अवश्य देंगे।
विदर्भराज के रुक्मी, रुक्मरथ, रुक्मबाहु, रुक्मकेस तथा रुक्ममाली नामक पांच पुत्र और एक पुत्री रुक्मिणी थी। रुक्मिणी के माता-पिता उसका विवाह श्रीकृष्ण के साथ करना चाहते थे, लेकिन रुक्मी (रुक्मिणी का बड़ा भाई) चाहता था कि उसकी बहन का विवाह चेदिराज शिशुपाल के साथ हो। अतः उसने रुक्मिणी का टीका शिशुपाल के यहां भिजवा दिया। रुक्मिणी श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी, इसलिए उसने श्रीकृष्ण को एक ब्राह्मण के हाथों संदेशा भेजा। श्रीकृष्ण भी रुक्मिणी से प्रेम करते थे और वे ये भी जानते थे कि रुक्मिणी के माता-पिता रुक्मिणी का विवाह मुझसे ही करना चाहते हैं, लेकिन बड़ा भाई रुक्मी मुझसे शत्रुता के कारण ये विवाह नहीं होने देना चाहता है। श्रीकृष्ण ने रुक्मी के विरोध के बावजूद रुक्मिणी से विवाह किया। इस विवाह को चेदिराज शिशुपाल ने अपना अपमान समझा और वह श्रीकृष्ण को शत्रु समझने लगा।
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शुभाशुभ: शुभ अंक 8, शुभ रंग काला, शुभ दिशा पश्चिम, शुभ समय सुबह 09:00 से सुबह 10:30 तक।वृश्चिक: आलस्य त्याग समय का सदुपयोग करेंगे। दिन भर प्रसन्न रहेंगे। भाग्यवृद्घि के योग हैं। नए कार्य को प्रारंभ करने के योग हैं।
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शुभाशुभ: शुभ अंक 1, शुभ रंग लाल, शुभ दिशा पूर्व, शुभ समय सुबह 07:30 से सुबह 09:00 तक।मीन: प्रत्येक क्षेत्र में लाभ होगा। युवावर्ग को अच्छा पार्टनर मिलेगा। नये व्यावसायिक संबंध मजबूत होंगे। अवरोधित काम जल्द हल होंगे।
शुभाशुभ: शुभ अंक 5, शुभ रंग हरा, शुभ दिशा उत्तर, शुभ समय शाम 03:00 से शाम 04:30 तक।
कुछ समय बाद जब युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ आयोजित किया। इस आयोजन में सभी प्रमुख राजाओं को आमंत्रित किया गया। चेदिराज शिशुपाल भी यज्ञ में आया था। देवपूजा के समय श्रीकृष्ण का सम्मान देखकर शिशुपाल क्रोधित हो गया और उसने श्रीकृष्ण को अपशब्द कहना शुरू कर दिए। यज्ञ में उपस्थित सभी लोगों ने शिशुपाल को समझाने की कोशिश की, लेकिन वह नहीं माना। अर्जुन और भीम शिशुपाल को मारने के लिए खड़े हो गए तो श्रीकृष्ण ने उन सभी को रोक दिया। शिशुपाल लगातार गालियां देता रहा और श्रीकृष्ण गालियां गिनते रहे। जब वह सौ अपशब्द कह चुका, तब श्रीकृष्ण ने उसे अंतिम चेतावनी दी कि अब रुक जाओ, अन्यथा परिणाम अच्छा नहीं होगा। श्रीकृष्ण के समझाने के बाद भी शिशुपाल नहीं रुका और उसने फिर से अपशब्द कहा। इसके बाद शिशुपाल के मुख से अपशब्द निकलते ही श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका मस्तक काट दिया।
इस प्रसंग से हम यह सीख ले सकते हैं कि यदि कोई हमारा अपमान करता है तो पहले उसे समझाने के पूरे प्रयास करना चाहिए। यदि लगातार समझाने के बाद भी व्यक्ति हमारे मान-सम्मान को ठेस पहुंचा रहा है तो उसे उचित जवाब देना चाहिए। ऐसे लोगों को चुप करने के लिए हमें लगातार श्रेष्ठ काम करना चाहिए और उसकी बातों को गलत साबित करना चाहिए।
एक बार की बात है श्रीकृष्ण ने अपने ऊपर रणछोड़ होने का आक्षेप भी स्वीकार कर लिया। जब महाबली मगधराज जरासन्ध ने देखा कि श्रीकृष्ण और बलराम तो भाग रहे हैं, तब वह हंसने लगा। उसे भगवान् श्रीकृष्ण और बलरामजी के ऐश्वर्य, प्रभाव आदि का ज्ञान न था। बहुत दूर तक दौडऩे के कारण दोनों भाई कुछ थक से गए। अब वे बहुत ऊंचे प्रवर्शण पर्वत पर चढ़ गए। उस पर्वत का प्रवर्षण नाम इसलिए पड़ा था कि वहां सदा ही मेघ वर्षा किया करते थे।
जब जरासन्ध ने देखा कि वे दोनों पहाड़ में छिप गए और बहुत ढूंढने पर भी पता न चला, तब उसने ईंधन से भरे हुए प्रवर्शण पर्वत के चारों ओर आग लगवा कर उसे जला दिया। जब भगवान् ने देखा कि पर्वत के छोर जलने लगे हैं, तब दोनों भाई जरासन्ध की सेना के घेरे को लांघते हुए बड़े वेग से उस ग्यारह योजन (44 कोस) ऊंचे पर्वत से एकदम नीचे धरती पर कूद आए। उन्हें जरासन्ध ने अथवा उसके किसी सैनिक ने देखा नहीं और वे दोनों भाई वहां से चलकर फिर अपनी समुद्र से घिरी हुई द्वारकापुरी में चले आए।
जरासन्ध ने ऐसा मान लिया कि श्रीकृष्ण और बलराम तो जल गए और फिर वह अपनी बहुत बड़ी सेना लौटाकर मगध देश को चला गया।इस बात की बड़ी चर्चा होती है कि भगवान युद्ध से भागे थे। आईए इस फिलॉसाफी पर चर्चा करें….। इस कहानी के माध्यम से कृष्ण हमें कूटनीति सीखा रहे हैं। वे तो भगवान थे क्या वे जरासंध से हार जाते ,नहीं? लेकिन उनका एकमात्र संदेश यह है कि जब दुश्मन आपसे अधिक बलशाली हो तो पहले अपने आप को इतना मजबूत बनाएं कि उससे लड़ सकें। उसके बाद ही दुश्मन को ललकारें।