रामलीलाओ को बढावा देने में हरीश रावत का बहुमूल्य योगदान
# हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की प्रस्तुति #यूं तो इन दिनों हर जगह रामलीलाओं का मंचन हो रहा है. मगर कुमाऊं में होने वाली रामलीला की बात ही कुछ और है#
उत्तराखण्ड में रामलीलाओ को बढावा देने, उन्हें उत्साहित देने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने विशेष योजनाये बनाई- रामलीलाओ को विशेष अनुदान दिये गये, वह स्वयं रामलीलाओ में जाकर जनता जनार्दन से मिलते थे, पात्रो से मिलते थे, उनकी कुशल क्षेम पूछते थे, रामलीला के आयोजन में किसी भी तरह की कमी आने पर वह सहयोग देते थे- निसंदेह उत्तराखण्ड में रामलीलाओ को बढावा देने में हरीश रावत को बहुमूल्य योगदान भूलाया नही जा सकता- चन्द्रशेखर जोशी मुख्य सम्पादक हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की विशेष रिपोर्ट
FILE PHOTO CAPTION; तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत पर्वतीय रामलीला कमेटी, धर्मपुर देहरादून के आयोजन में-
राम के वजूद पे, हिंदोस्तां को नाज- शायर इकबाल ने कहा
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम इस देश का इतिहास ही नहीं बल्कि एक संस्कृति और मर्यादा का प्रतीक हैं, एक जीता जागता आदर्श हैं। इस राष्ट्र की हजारों वर्ष की सनातन परम्परा के मूलपुरुष हैं। हिन्दुस्थान का हर व्यक्ति, चाहे पुरुष हो, महिला हो, किसी प्रांत या भाषा का हो उसे राम से, रामकथा से जो लगाव है, उसकी जितनी जानकारी है, जितनी श्रद्धा है और किसी में भी नहीं है। भगवान् राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं। राम राष्ट्र की आत्मा हैं।
संविधान निर्माताओं ने भी संविधान की प्रथम प्रति में लंका विजय के बाद पुष्पक विमान में बैठकर जाने वाले श्रीराम, माता जानकी व लक्ष्मण जी का चित्र दिया है। संविधान सभा में तो सभी मत-मतान्तरों के लोग थे। सभी की सहमति से ही चित्र छपा है। उस प्रथम प्रति में गीतोपदेश करते भगवान् श्रीकृष्ण, भगवान् बुद्ध, भगवान् महावीर आदि श्रेष्ठ पुरूषों के चित्र हैं। ये हमारे राष्ट्रीय महापुरुष हैं।
मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम का रहीम, रसखान व जायसी से लेकर इकबाल जैसे मुस्लिम कवियों ने भी अपने काव्यों में गुणगान तथा उनकी प्रशंसा की है। हिन्दुस्तानियों के लिए भगवान राम का अस्तित्व अविवादित है। ”सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा“ जैसा अमर गीत लिखने वाले शायर इकबाल, भगवान राम के अस्तित्व को स्वीकार करते हुए स्वयं कहते हैं-है राम के वजूद पे, हिंदोस्तां को नाज। अहले नजर कहते हैं जिसको इमाम-ए-हिंद।।
समाजवादी विचारधारा के सुप्रसिद्ध, भारतीय विद्वान् डॉ० राममनोहर लोहिया जी ने कहा है ‘राम कृष्ण शिव हमारे आदर्श हैं। राम ने उत्तर दक्षिण जोडा और कृष्ण ने पूर्व पश्चम जोडा। अपने जीवन के आदर्श इस दृष्टि से सारी जनता राम, कृष्ण, शिव की तरफ देखती है। राम मर्यादित जीवन का परमोत्कर्ष हैं, कृष्ण उन्मुक्त जीवन की सिद्धि हैं और शिव यह असीमित व्यक्तित्व की संपूर्णता है। हे भारत माता ! हमें शिव की बुद्धि दो, कृष्ण का हृदय दो और राम की कर्मशक्ति, एकवचनता दो।
राम कथा युग-युग से अटल चली आ रही है, इसमें कोई संदेह नहीं है। और यह राम कथा केवल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे ऐशिया में शताब्दियों से लोगों के आदर्श का केन्द्र है। पिछले ५ से ६ दशकों से इस कथा ने युरोप, अमेरिका और आस्ट्रे्लिया तक के लोगों को नई दिशा दी है। लंदन और न्यूयार्क की गलियों में सिर मुंडा कर तन्मय भाव से “हरे राम-हरे राम” का कीर्तन करते हुए गोरों को देखा जा सकता है। राम त्रेता में पैदा हुए थे परन्तु आज भी देश की एकता और अखण्डता के लिए रामचरित्र मानस अनुकरणीय कार्य ळें
यूं तो इन दिनों हर जगह रामलीलाओं का मंचन हो रहा है. मगर कुमाऊं में होने वाली रामलीला की बात ही कुछ और है. यहां की रामलीला भीमताल के एक स्थानीय ज्योतिषी पण्डित रामदत्त के लिखे रामचरित मानस के नाटक पर खेली जाती है. जिसमें शास्त्रीय संगीत पर आधारित रागों और धूनों पर संवाद अदायगी की जाती है. वक्त के मुताबिक इनमें कईं बदलाव आए फिर भी लोगों के बीच रामलीला की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है.
जी हां दशहरे में हर जगह रामलीला का मंचन आम होता है. लेकिन यहां की रामलीला अपने आप में खास है. यहां की रामलीला साहित्य कला और संगीत के संगम की तरह है. अवधी भाषा के लिखे छन्द राग रागिनियों पर आधारित संगीत की बानगी पेश कर रही है. जो की मैदानी इलाकों की रामलीलाओं से बिलकुल अलग है. रामलीलाओं के कलाकार भी इसमें बदलाव कर दर्शकों को जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें कलाकारों का अभिनय बदलते दौर में भी कुमाऊंनी रामलीला के मंचन को जीवंत बनाये हुए है.
इस रामलीला के मंचन से पहले दो महीनों तक कलाकारों को पूरी तालिम दी जाती है, इसके बाद मंच पर अभिनय करना होता है. लेकिन आज इन्टरनेट और टीवी के नाटक सीरीयलों के दौर में भी रामलीला की अहमियत में कमी नहीं आई है. जिसका इन्तजार कुमाऊं के हर व्यक्ति को रहता है. यही कराण भी है कि ये रामलीला आज भी दर्शक जोड़ी है. हांलाकि कलाकारों की कमी भी रामलीला के मंचन में एक बड़ी कठिनाई है.
पिछले 25 सालों से रामलीला में अभिनय कर रहे कैलाश जोशी का कहना है कि पहाडों की रामलीला मैदान की रामलीला से भिन्न है. क्योंकि मैदानी इलाकों में खेली जाने वाली रामलीला सिर्फ डायलाग पर खेली जाती है. जबकि पहाडों में रामलीला के मंचन में चौपाई छन्द दोहे सब कुछ होता हैं. जिसके चलते यहां की गायन शैली काफी भिन्न है.
वहीं मंच निर्देशक मुकेश जोशी का कहना है की पिछले सालों में कलाकारों को जुटाने में काफी दिक्कतें आ रही हैं. पहले एक रोल के लिये 20 लोग आते थे, लेकिन अब एक व्यक्ति मिलना ही भारी है. मुकेश जोशी मानते है की टीवी और सोशल मीडिया के चलते लोगों का रूझान रामलीला में कम तो हुआ है, लेकिन वो पूरी मेहनत से इस परम्परा को निभा रहे हैं.