देश सैन्य भूल कर चुका हैं- मोदी जी की सधी हुई प्रतिक्रिया
श्रीकृष्ण ने कहा था शांति हमेशा युद्ध से अच्छी होती है. भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी वक्त जंग की संभावना को लेकर जोक बनाये जा रहे हैं कि अभी कनागत चल रहे हैं, आदि आदि परन्तु युद्व शुरू होना कोई अच्छी खबर नहीं हो सकती. हालांकि मोदी जी ने चुनाव से पहले पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार पर ‘कमज़ोर सरकार’ कहते हुए निशाना भी साधा था परन्तु मोदी जी की सधी हुई प्रतिक्रिया आ रही है, जो उचित भी हैं, इससे पहले भी देश सैन्य भूल कर चुका हैं, संसद पर हमले के बाद ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के नाम पर सीमा पर जिस तरह से फौज का जमावड़ा रहा, वह सबसे बड़ी सैन्य भूल थी, पूर्व एडमिरल सुशील कुमार ने तो ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के नाम पर सरहद पर सेना के जमावड़े को बिना ‘सैन्य उद्देश्य के एक राजनीतिक उद्देश्य’ बताया था. www.himalayauk.org (Newsportal)
करगिल युद्ध के दौरान सरकार ने जो किया, वह ज़रूरी था इसके अलावा भारत ने पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध और फिर करगिल की जंग लड़ी है परन्तु अभी सिर्फ पाकिस्तान को ‘सबक’ सिखाने के लिए जंग के जाल में फंसना उचित नही कहा जा सकता, भारत को पाकिस्तान जैसे बीमारू और आतंकवादी देश से निबटने के लिए वैश्विक मंच पर अपनी साख मजबूत करनी होगी. भारत अंतरराष्ट्रीय मंचों में अब भी अपने पक्ष में समर्थन जुटा सकता है और पाकिस्तान को अलग-थलग कर सकता है. लंबी रणनीति के तहत भारत की यही सोच होगी. यह सब करने के लिए भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा और सामाजिक असमानता और शिशु मृत्युदर से लड़ने के साथ बेरोज़गारी और जनसंख्या की समस्या उसके सामने खड़ी है. पाकिस्तान के साथ जंग के जाल में फंसने के लिए वही लोग उकसा रहे हैं, जो इस कड़वी सच्चाई से अनजान हैं या इसे देखना नहीं चाहते या खोखले राष्ट्रवाद से उन्हें सुकून मिलता है.
पीएम मोदी ने कोझीकोड में रैली को संबोधित करते हुए पाकिस्तान पर हमला बोला था। पीएम मोदी ने कहा था कि पाकिस्तान के लोगों को अपने नेताओं से कहना चाहिए कि भारत और पाकिस्तान ने एक साथ ही आजादी पाई थी लेकिन भारत सॉफ्टवेयर एक्सपोर्ट करता है और हमारा देश आतंकी एक्सपोर्ट करता है। उन्होंने कहा कि भारत कभी भी उरी आतंकी हमले को नहीं भूल ससकता। साथ ही उन्होंने पाकिस्तान को चुनौती दी कि अगर वे युद्ध चाहते हैं तो गरीबी और समाज की अन्य बुराईयों के खिलाफ लड़ें। पाकिस्तानी लेखक और विश्लेषक तारिक फतेह ने कहा कि ‘पाकिस्तान के लिए गरीबी बहुत जरूरी है। कोई उच्च वर्ग गरीबों के शोषण का आनंद कैसे उठा सकता है। वहां का सत्ता करने वाला वर्ग नहीं चाहेगा कि गरीबी खत्म हो क्योंकि गरीबी खत्म हुई तो सत्ता खत्म हो जाएगी।’ यह पाकिस्तान ही है जो ब्लैलमेल और आतंक एक्सपोर्ट करने पर निर्भर है। वह सऊदी अरब की फंडिंग के जरिए आतंकी हमले करके यूएस, चीन और यूरोपियन यूनियन को ब्लैकमेल करता है। उस धरती पर रहने वाले बदकिस्मत हैं कि पंजाबी मिलिट्री मुल्ला माफिया लोग बलूचियों, सिंधियों और पश्तूनों पर नियंत्रण कर रहे हैं।’
जम्मू-कश्मीर के उरी में पिछले हफ्ते हुए आतंकवादी हमले में 18 सैनिकों के शहीद होने के बाद से ही देशभर में माहौल गर्म है. पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आवाजें लगातार तेज हो रही हैं. इस बीच एक सुझाव यह भी आया कि हमें भारत से होकर पाकिस्तान जाकर उसके ज्यादातर भूभाग में सिंचित करने वाली सिंधु नदी के पानी को रोक देना चाहिए. यह सुझाव देते हुए कहा गया कि इससे पाकिस्तान पर भारत के विरुद्ध ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बनेगा.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पिछले हफ्ते कहा, ‘किसी भी संधि में दोनों पक्षों की तरफ से सद्भावना और आपसी विश्वास जरूरी होता है.’
अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों के बीच भी बनी रही. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा कि अब समय आ गया है जब हमें इस संधि पर फिर से विचार करना चाहिए. यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘भारत ने इस संधि की हर एक बात को माना है. लेकिन आप संधि के प्रावधानों को मित्र देश के साथ संधि के रूप में देख रहे हैं, दुश्मन राष्ट्र के रूप में नहीं. भारत को दो काम करने चाहिए. एक तो सिंधु जल समझौते को खत्म कर देना चाहिए और दूसरा पाकिस्तान से सर्वाधिक तरजीह वाले राष्ट्र का दर्जा वापस ले लेना चाहिए.’
लेकिन अगर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत एकतरफा इस संधि को तोड़ता है तो इसमें जोखिम भी है.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ जी. पार्थसारथी कहते हैं, ‘यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका मतलब है कि भारत अकेले इसे खत्म नहीं कर सकता. ऐसा हुआ तो इसका मतलब यह होगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.’ उन्होंने चेताया कि इससे न केवल भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा, बल्कि इससे एक विशेष देश चीन भी गुस्सा हो जाएगा.
बता दें कि सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.
उत्तर-पूर्वी भारत में बहने वाली नदी ब्रह्मपुत्र का उद्गम भी चीन में ही है और यह वहां यारलुंग जांग्बो के नाम से जानी जाती है, जो भारत से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है. इस नदी के पानी के सहारे ही भारत और बांग्लादेश में करोड़ों लोग हैं.
भारत में तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट के टेम्पा जामल्हा का कहना है कि भारत को अपना अगला कदम बड़ी ही सावधानी से उठाना चाहिए. चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी पर 11 बड़े बांध बना रहा है और वह भारत के हितों को चोट पहुंचाने की स्थिति में है.
सिंधु जल समझौता करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुआ था.
इस समझौते के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम की ओर बहने वाली 6 नदियों में से तीन (सतलुज, व्यास और रावि) पर भारत का पूरा अधिकार है, जबकि पाकिस्तान को झेलम, चेनाव और सिंधु नदियों का पानी लगभग बेरोक-टोक के मिलता है.