वरिष्ठ पार्टी नेताओ द्वारा मुख्यमंत्री से इस्तीफे की मांग
HIGH LIGHTS; विधान सभा में भारी बहुमत होने के बावजूद इस हार के बाद उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है. #मतदाताओं की अपेक्षाओं को नज़रंदाज़ करना बीजेपी को भारी पड़ा #गोरखपुर में 29 साल बाद पहली बार गोरक्षपीठ का वर्चस्व टूट गया #26 साल पहले 1992 में मुलायम सिंह यादव, कांशीराम से मिलने पहुंचे थे # उस समय आडवाणी का राम रथ चल रहा था #सपा नेता अलिखेश यादव (घरेलू नाम टीपू) जब बसपा सुप्रीमो से मिलने पहुंचे तो लोगों के जेहन में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की बरसों पुरानी मुलाकात ताजा हो गई. #
अभी तक सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच एक तरह से चतुष्कोणीय मुकाबला होता था, जिसका फायदा बीजेपी को मोदी लहर के दौर में मिला. हालांकि अब यदि बीजेपी को घेरने के लिए ये सभी दल एक साथ एक मंच पर आएंगे तो मामला आमने-सामने का होगा. इस चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी होगी.
बीजेपी का हिंदुत्व कार्ड विफल रहा. इसके विपरीत पिछड़ों-अति पिछड़ों, दलितों, मुसलमानों और सरकार विरोधी सवर्णों ने सपा प्रत्याशी के पक्ष में गोलबंदी दिखाई. इसको इस तरह से भी समझा जा सकता है कि गोरखपुर में 29 साल बाद पहली बार गोरक्षपीठ का वर्चस्व टूट गया. पिछले तीन दशकों से गोरखपुर की सियासत इसी पीठ के इर्द-गिर्द घूमती रही है. यहां 1989 के बाद पहली बार ऐसा हुआ है, जब मंदिर का प्रभाव नहीं दिखा. हालांकि इसी सीट से सीएम योगी आदित्यनाथ पांच बार बीजेपी के सांसद रहे हैं और हर बार उनकी जीत का अंतर बढ़ता ही गया. A Report: Only Presented by www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal+
उत्तर प्रदेश में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव के नतीजों से देश में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ संयुक्त विपक्षी मोर्चा बनाने की मुहिम में तेजी आ सकती है. जिस तरह लगभग एक साल के शासन, अपने व्यक्तिगत प्रभाव और अपनी आस्था का बार-बार स्पष्ट प्रदर्शन करने के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लोगों को यह विश्वास दिलाने में असफल रहे हैं कि लोकसभा में अपने क्षेत्र का प्रतिनिधत्व करने के लिए उनके बजाय उनकी पार्टी का कोई अन्य व्यक्ति उपयुक्त है. उसी तरह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी लोगों को यह विश्वास दिलाने में सफल रहे हैं कि ये दोनों दल ही बीजेपी के विजय रथ को रोकने में सक्षम हैं. बीजेपी के लिए यह नतीजे इसलिए भी ज्यादा चिंताजनक हैं क्योंकि इन दोनों ही क्षेत्रों में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के दो शीर्ष नेताओं की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से पांच बार सांसद रह चुके हैं और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या फूलपुर से सांसद थे. इन दोनों ही ने 2014 का लोकसभा चुनाव बड़े बहुमत से चुनाव जीता था. जहां गोरखनाथ पीठ के मुखिया योगी आदित्यनाथ का उस क्षेत्र में गहरा प्रभाव है, लेकिन अब लगता है कि मौर्या की फूलपुर से जीत केवल मोदी लहर के प्रभाव की वजह से ही संभव हुई थी. गोरखपुर से मिल रही ख़बरों के अनुसार लोगों का यही सोचना था कि यदि ‘महाराज जी’ (योगी को आम तौर पर लोग इसी नाम से जानते हैं) खुद चुनाव लड़ रहे होते तो बात अलग थी, लेकिन यदि वे लड़ाई में नहीं थे तो लोग भी अपना निर्णय लेने को स्वतंत्र थे.
अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान हमेशा विकास की बात करने वाले सपा नेता अखिलेश यादव ने गोरखपुर और फूलपुर में पार्टी की जीत के तुरंत बाद प्रेस कांफ्रेंस में सामाजिक न्याय की बात कही. उन्होंने दरअसल बसपा के साथ तालमेल के संदर्भ में यह बात कही. इसके साथ ही जोड़ा कि जातिगत संख्याबल में हम ज्यादा हैं, हम पिछड़े, गरीब लोग हैं लेकिन हमारे तालमेल को साप-छंछूदर की संज्ञा दी गई. उनकी इस बात के गंभीर सियासी निहितार्थ हैं.
दरअसल इसके असल मायने ये हैं कि अब सपा-बसपा की जोड़ी ने ‘मोदी लहर’ के साथ बीजेपी के ‘हिंदुत्व’ कार्ड की काट के रूप में जातिगत गठजोड़ तैयार करने की रणनीति बनाई है. जीत के बाद शाम को जिस ढंग से अखिलेश यादव, मायावती से मिलने के लिए गए, उससे अब इसमें ज्यादा शंका नहीं रह गई कि 2019 में यूपी में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन के रूप में बीजेपी के लिए पहाड़ जैसी चुनौती खड़ी होने वाली है.
जिस तरह से अखिलेश यादव, मायावती से मिलने पहुंचे, कमोबेश उसी अंदाज में 26 साल पहले 1992 में मुलायम सिंह यादव, कांशीराम से मिलने पहुंचे थे. उस वक्त ‘राम मंदिर’ आंदोलन चरम पर था. उस मुलाकात के एक साल के भीतर ही 1993 में दोनों दलों ने गठबंधन बनाकर चुनावी जीत हासिल की थी. उसी तरह के समीकरण एक बार फिर उभर रहे हैं, जब बीजेपी के समग्र ‘हिंदुत्व’ के कार्ड की काट के लिए सपा-बसपा एक बार फिर हाथ मिलाने पर विवश हुए हैं. इसका सीधा मतलब यादव-मुस्लिम(MY) और जाटव वोट बैंक का गठजोड़ है. इसमें बीजेपी का विरोध करने वाले अगड़े और यदि कांग्रेस को भी जोड़ दें तो यह संभावित गठबंधन बीजेपी के सामने बड़ी तगड़ी चुनौती पेश करने वाला है.
गोरखपुर में पिछले साल मेडिकल कॉलेज हुई घटना में कई बच्चों की असामयिक मौत, आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (एम्स) के स्थापना में देरी, बंद पड़े खाद कारखाने को फिर से चलवाने में देरी, गोरखपुर शहर की सुविधाओं में कोई विशेष सुधार न आना, और इस उपचुनाव में उलझे जातिगत समीकरणों का न सुलझ पाना बीजेपी के लिए हार, और योगी के लिए शर्मिंदगी का कारण बना है. यह भी उल्लेखनीय है कि योगी ने यहां से लोकसभा चुनाव तब भी जीता जब बीजेपी प्रदेश में सत्ता में नहीं थी, और अब, जबकि न केवल बीजेपी सत्ता में है बल्कि योगी खुद मुख्यमंत्री हैं. यह हार उनके लिए व्यक्तिगत झटका है. यह विरोधाभास ही है कि विधान सभा में भारी बहुमत होने के बावजूद इस हार के बाद उनके इस्तीफे की मांग की जा रही है.
इतिहास के पन्नो को टटोले तो सामने दिखता है पूरा इतिहास-
26 साल पहले 1992 में ‘राम मंदिर’ आंदोलन के दौर में पहली बार सपा नेता मुलायम सिंह यादव, तत्कालीन बसपा सुप्रीमो कांशीराम से मिलने पहुंचे थे. उस मुलाकात के एक साल के भीतर 1993 में दोनों दलों ने यूपी में चुनावी जीत हासिल की और मुलायम सिंह मुख्यमंत्री बने. आज इस बात को याद करने की दो बड़ी वजहें हैं. पहली तो यह कि बसपा के संस्थापक कांशीराम का 15 मार्च को जन्मदिन है और दूसरा बड़ी वजह यह कि यूपी के नए सियासी समीकरण एक बार फिर सपा-बसपा गठबंधन के संभावित संकेत दे रहे हैं. इसीलिए बुधवार को दिन में गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव जीतने के बाद शाम करीब सात बजे सपा नेता अलिखेश यादव (घरेलू नाम टीपू) जब बसपा सुप्रीमो से मिलने पहुंचे तो लोगों के जेहन में कांशीराम और मुलायम सिंह यादव की बरसों पुरानी मुलाकात ताजा हो गई.
इस मुलाकात के लिए लखनऊ में मायावती ने बाकायदा काली मर्सिडीज अखिलेश यादव के लिए भेजी. सूत्रों के मुताबिक जैसे ही बुधवार शाम अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस खत्म की, उसके तत्काल बाद उनके पास बीएसपी के एक बड़े नेता का फोन आया. इस बसपा नेता ने उनको बधाई देने के साथ आग्रह किया कि वह मायावती से बात करें. उसके बाद अखिलेश यादव ने मायावती से फोन पर बात की और इसके साथ ही मुलाकात का रास्ता साफ हो गया. लिहाजा मायावती ने अखिलेश यादव के विक्रमादित्य मार्ग स्थित घर पर गाड़ी भेजी. उसी में बैठकर एक किमी दूर माल एवेन्यू स्थित मायावती के घर अखिलेश यादव पहुंचे. दोनों नेताओं के बीच एक घंटे तक मुलाकात चली.
वर्ष 1993 में सपा नेता मुलायम सिंह और बसपा नेता कांशीराम ने मिलकर ‘राम लहर’ को रोकने में सफलता हासिल कर ली थी. उस दौर में जब मुलायम और कांशीराम ने गठबंधन किया था, तब सियासत का रुख अलग था. तब के दौर में मंडल आयोग ने ओबीसी वोटरों को एकजुट किया था और मुलायम सिंह यूपी में उनका निर्विवाद चेहरा थे. इसीलिए यह जातीय गठजोड़ ‘राम लहर’ को रोकने में कामयाब हो गया था.
अखिलेश यादव और मायावती के लिए परिस्थतियां अब अलग हैं. यह सही है कि गोरखपुर और फूलपुर में सपा, बीएसपी के तालमेल के चलते दो सीटें जीतने में कामयाब हुई लेकिन यह भी सही है कि 2014 लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ के सामने बसपा का जहां खाता नहीं खुला था, वहीं अखिलेश की पार्टी केवल परिवार की सीटें ही बचाने में कामयाब हो पाई. इसके बाद 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में एक बार फिर मोदी लहर चली और भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला. दरअसल अभी तक सपा, बसपा, कांग्रेस और बीजेपी के बीच एक तरह से चतुष्कोणीय मुकाबला होता था, जिसका फायदा बीजेपी को मोदी लहर के दौर में मिला. हालांकि अब यदि बीजेपी को घेरने के लिए ये सभी दल एक साथ एक मंच पर आएंगे तो मामला आमने-सामने का होगा. इस चुनौती से निपटने के लिए बीजेपी को अपनी रणनीति नए सिरे से बनानी होगी.
www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
Avilable in FB, Twitter, Whatsup Groups & All Social Media
Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030 CS JOSHI- EDITOR IN CHIEF
वही दूसरी ओर अपने बयानों को लेकर सुर्खियों में रहने वाले गिरिराज सिंह ने कहा, ‘अररिया केवल सीमावर्ती इलाका नहीं है. यह केवल नेपाल और बंगाल से जुड़ा नहीं है. एक कट्टरपंथी विचारधारा को उन्होंने जन्म दिया है.’ गिरिराज ने आगे कहा, ‘यह सिर्फ बिहार के लिए खतरा नहीं है, बल्कि देश के लिए खतरा होगा. अररिया अब आतंकवादियों का गढ़ बनेगा.’
नई दिल्ली : बिहार उपचुनाव में अररिया लोकसभा सीट पर आरजेडी से मिली हार पर भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने तीखी टिप्पणी की है. उन्होंने गुरुवार (15 मार्च) को कहा कि ‘अररिया अब आतंकवादियों का गढ़ बनेगा.’
अररिया केवल सीमावर्ती इलाका नहीं- सिंह
उन्होंने कहा कि ‘अररिया केवल सीमावर्ती इलाका नहीं है. यह केवल नेपाल और बंगाल से जुड़ा नहीं है. एक कट्टरपंथी विचारधारा को उन्होंने जन्म दिया है.’ गिरिराज ने आगेे कहा, ‘यह सिर्फ बिहार के लिए खतरा नहीं है, बल्कि देश के लिए खतरा होगा. अररिया अब आतंकवादियों का गढ़ बनेगा.
बिहार की लोकसभा और विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव की मतगणना में अररिया लोकसभा सीट और जहानाबाद विधानसभा सीट राजद की झोली में गई हैं, जबकि भभुआ से भाजपा उम्मीदवार ने जीत हासिल की. अररिया से राजद प्रत्याशी सरफराज आलम ने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी भाजपा प्रत्याशी प्रदीप सिंह को 61788 मतों से पराजित किया. सरफराज को 509334 मत प्राप्त हुए और प्रदीप सिंह ने 447546 मत हासिल किए.
उपचुनाव में अररिया लोकसभा सीट पर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) की जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) नेता और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने विवादित टिप्पणी की हैं. गिरिराज सिंह ने कहा कि आरजेडी की जीत के बाद अररिया आतंकी संगठन आईएसआईएस का गढ़ बन जाएगा. केंद्रीय मंत्री के इस बयान पर आरजेडी नेता राबड़ी देवी और हिन्दुस्तान आवामी मोर्चा (हम) के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने बीजेपी और सीएम नीतीश कुमार पर पलटवार किया है.
पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी ने कहा, ‘पूरे देश के आतंकवादी बीजेपी के दफ्तर में बैठते हैं. जनता ने जवाब दे दिया है, इसलिए बौखलाए हुए हैं, बिहार और उत्तर प्रदेश की जनता रास्ता दिखा रही है. जुबान को वश में रखें, अररिया की जनता से माफी मांगे, वरना 2019 में जनता माफ नहीं करेगी.’
एनडीए से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए जीतन राम मांझी ने कहा, ‘सरकार से अनुरोध है कि किसी प्रकार की बात नहीं हो, सरकार एहतियात बरते. वहां पर सिर्फ मुसलमान ही तो नहीं रह रहे हैं, अनुसुचित जाति सहित और भी जाति के लोग रह रहे हैं. वहां कहां ISIS का गढ़ हा गया है?’
उपचुनाव के प्रचार के दौरान बिहार बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और सांसद नित्यानंद राय ने अररिया लोकसभा उपचुनाव के राजद उम्मीदवार सरफराज आलम के बारे में कहा कि वह अगर चुनाव जीतेंगे तो वहां आतंकी गुट आईएसआई (ISI) का अड्डा बन जाएगा. इसके बाद नित्यानंद राय के खिलाफ अररिया में शिकायत दर्ज हो गई है. नित्यानंद के ऊपर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप है.