टेलीविजन की भूमिका इतिहास बनी, सोशल मीडिया का सफलतम प्रयोग करेगे राहुल के सिपहसालार “चकी”
डिजिटल और सामाजिक यथार्थ ने जिन नई सच्चाइयों को जन्म दिया है, उनसे सामना नहीं करने वाले की स्थिति कमजोर हो जाती है. जीवन के नए नियम सख्त हैं और इनमें शामिल है प्रौद्योगिकी इंटरफेस. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने इस सच्चाई को उसी वक्त स्वीकार कर लिया, जब उन्होंने पार्टी प्रमुख का पद ग्रहण किया. जो भूमिका इतिहास में टेलीविजन की थी, वही सोशल मीडिया की 2014 और उसके बाद रही है. गोल्डमैन सैक्स वाल स्ट्रीट के पूर्व बैंकर प्रवीण चक्रवर्ती इससे पहले यूआईएडीआई में नंदन नीलेकणि और फिर मनमोहन सिंह के पीएमओ में काम कर चुके हैं. वह अब राहुल गांधी की रणनीतिक योजना के नए सेंट्रीफ्यूज के रूप में उभरे हैं. डेटा वैज्ञानिक प्रवीण चक्रवर्ती व्हार्टन से पढ़े हैं और ‘चकी’ के नाम से अधिक जाने जाते हैं. उनका मानना है कि पुराने समय में जिस अंदाज में चुनाव लड़ा जाता था, उसका अब अस्तित्व मिट चुका है.
राहुल गांधी ने नवंबर, 2017 में कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के तुरंत बाद चकी की सेवाएं लेनी शुरू कर दीं और अगले साल मार्च में चकी पार्टी की आर्थिक प्रस्तावना ड्राफ्ट कमेटी में थे. इसके तुरंत बाद पाइलट प्रोजेक्ट के रूप में ऑपरेशन शक्ति शुरू किया गया. मकसद कार्यकर्ताओं और मतदाताओं से जुड़ना, उन्हें दो ध्रुवीय राजनीति के बारे में और कांग्रेस को नए सिरे से सजाने-संवारने के बारे में शिक्षित करना और उन्हें स्फूर्ति से भरना है. लोगों को बताया गया कि कांग्रेस एक ऐसे बड़े तंबू की तरह है, जिसमें सभी को समाने की क्षमता है और इसे पूर्ण रूप से समावेशी संगठन की तरह देखा जाना चाहिए. अब डेटा विश्लेषण विभाग के चेयरमैन चकी वह यंत्र हैं जिसे राहुल गांधी लोगों के घर में सहज रूप से दाखिल होने के लिए एक तीक्ष्ण रैम की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. जहां लोकसभा चुनाव 2014 में चुनावों में जीत की गारंटी बनकर प्रशांत किशोर उभरे थे तो इस बार कांग्रेस की ओर से प्रवीण चक्रवर्ती संभालेंगे.
‘ऑपरेशन शक्ति’ चकी के नाम से पहचाने जाने वाले व्हार्टन से पढ़े डेटा विज्ञानी प्रवीण चक्रवर्ती ने तैयार किया है जो भाजपा को घेरने के लिए कार्य करेगी। यूआईडीएआई में नंदन नीलेकणि और मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री कार्यालय में पूर्व में काम कर चुके चक्रवर्ती ने कहा, 2019 की जंग दो लाख मतदान केंद्रों पर लड़ी जाने वाली है और मुद्दे जगह के हिसाब से अलग-अलग होंगे। मेरा पूरा आउटपुट सीधे और केवल कांग्रेस अध्यक्ष के पास जाता है और फिर वह आगे के लिए निर्देश देते हैं।” चकी ने बिट्स पिलानी से पढ़ाई की और जापान में आईबीएम के साथ काम किया, माइक्रोसॉफ्ट के साथ विन्डोज 95 पर काम किया। फिर व्हार्टन से मास्टर्स करने के बाद इन्वेस्टमेंट बैंकिंग की दुनिया से जुड़े और फिर 2005 में लौटकर भारत आए। उनका मानना है कि भारत में कोई आम चुनाव नहीं होता है, यह कुछ हिस्सों का जोड़ है जिसमें 29 राज्य एक साथ चुनावों में शामिल होते हैं।
चक्रवर्ती ने कहा, “राष्ट्रीय चुनाव एक मिथक है। हमारा रुख यह है कि हर राज्य पर अलग-अलग निशाना लगाओ क्योंकि सभी की अपनी अलग समस्याएं हैं। हमारे अनवरत सर्वेक्षणों और लोगों से मिली जानकारियों ने हमें बताया कि नोटबंदी से रोजगार का संकट पैदा हुआ, इससे समाज का कोई वर्ग अछूता नहीं रहा। 8 नवंबर की रात अचानक हुए इसके ऐलान ने देश के लोगों की कमर तोड़कर रख दी।”
कांग्रेस गब्बर सिंह टैक्स (जीएसटी) पर अपनी मोर्चेबंदी को लेकर काफी उत्साहित है क्योंकि उसे लगता है कि यह सफल रही है। वे नरेंद्र मोदी को चुनौती देना चाहेंगे लेकिन दृढ़ प्रधानमंत्री के लोगों से जुड़ाव के कौशल पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। इस पेचीदा नैरेटिव के बीच, कांग्रेस अर्थव्यवस्था पर फोकस रखने जा रही है क्योंकि उसे लगता है कि अर्थव्यवस्था की हालत बुरी है।
उन्होंने कहा कि कांग्रेस के चुनाव अभियान के अगुवा ‘रोजगार की कमी, किसानों के लिए दाम की समस्या, लघु एवं सूक्ष्म उद्योग के लिए सर्वाधिक कम मांग (जिसके लिए नोटबंदी जिम्मेदार है) होंगे जिनसे अर्थव्यवस्था पर और इसकी खराब हालत ने कैसे सभी पर असर डाला है, इस पर फोकस वापस लाया जा सकेगा।’
कांग्रेस का मनोबल इस वक्त काफी बेहतर स्थिति में है। जीत से मदद मिलती है और तीन राज्यों की जीत सोने पे सुहागा के समान है। कांग्रेस के अभियान में नवीन तत्व डाले गए हैं, लोगों से जुड़ाव के इसके रुख में एक ताजापन है।
भाजपा ने 2014 के आम चुनाव में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कुल 65 में से 62 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इन राज्यों में अभी संपन्न चुनाव के डेटा के हिसाब से अगर आज चुनाव हो तो भाजपा इनमें से पचास सीट हार जाएगी। लेकिन, तय ही है कि राज्यों के चुनाव, उप चुनाव और आम चुनाव अलग-अलग मुद्दों पर लड़े जाते हैं।
आम चुनाव के साथ-साथ तीन राज्यों आंध्र प्रदेश, ओडिशा और शायद जम्मू एवं कश्मीर में विधानसभा चुनाव होने हैं।
आम चुनाव के तुरंत बाद, महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में विधानसभा चुनाव होंगे।
कांग्रेस ने 2009 के आम चुनाव में 206 सीटें जीती थीं और सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। लेकिन, दिसंबर 2013 तक अगर तमाम राज्यों में हुए चुनावों के डेटा पर नजर डाली जाए तो सीट की यह संख्या घटकर 106 रह गई थी।
ऐसे में कांग्रेस अगर मई 2014 में घटकर 44 सीट पर आ गई तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं थी क्योंकि उसके आधार का व्यापक स्तर पर क्षरण हुआ था। ऐसा ही कोई लिटमस टेस्ट भाजपा का इंतजार नहीं कर रहा है।
चुनाव अब स्थानीय होने जा रहे हैं और जो भूमिका इतिहास में टेलीविजन की थी, वही सोशल मीडिया की 2014 और उसके बाद रही है. हाल तक कांग्रेस की पुरानी पीढ़ी जिसे बकवास मानती थी, उत्तर और मध्य के तीन राज्यों में डिजिटल उपकरणों के इस्तेमाल और डेटा विश्लेषण के कन्सेप्ट से हासिल उपलब्धि के प्रमाण ने 24, अकबर रोड की मानसिकता बदल दी है. डेटा के इस्तेमाल की एक मिसाल कांग्रेस के वाररूम से राजस्थान के भेर गांव की एक लाइव विजिट कही जा सकती है, जहां केवल 2146 मतदाता हैं, दो बूथ हैं, 321 घर हैं और जहां नौ राम, तीन चंद्र और एक मोहम्मद हैं. इन परिवारों की आय, इनकी सदस्य संख्या, मोबाइल नंबर आदि तत्परता से समानुक्रमित होते हैं और फिर इन्हें फैलाया जाता है. ऐसे ही नागौर में और फिर राजस्थान में, ऐसी ही मैपिंग विधानसभा चुनावों के लिए की जाती है.
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