पूरे विश्व के लिए आध्यात्मिक शक्ति का एकमात्र केंद्र- अलौकिक अदभूत स्थान
कहा जाता है कि यह अरूणांचल प्रदेश तथा तिब्बत के बीच में है। जैसे की बरमूडा ट्राएंगल में कोई वस्तु अगर चली जाती है तो वह दुबारा लौट के नहीं आ सकती ठीक वैसे ही शांगरी ला घाटी के बारे में कहा जाता है। इसीलिए इसे रहस्यमई कहा गया है। Himalayauk Execlusive: Presented by Chandra Shekhar Joshi- Editor
यह घाटी भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए अध्यात्म जगत का केंद्र है। इस घाटी को एक सामान्य व्यक्ति नहीं देख सकता और न ही वहां जा सकता है। जब तक वहां रहने वाले कोई सिद्व पुरूष न चाहें तब तक। कहा तो यह तक जाता है कि पूरी चीनी सेना इस जगह को खोजते खोजते थक गई लेकिन आज तक इस क्षेत्र का पता नहीं लगा पाई है। दुनिया में धरती पर ऐसे कई स्थान हैं जो भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। शंग्रीला घाटी भी उनमें से एक है। जो चौथे आयाम से प्रभावित है। यदि इस शंग्रीला घाटी में कोई इंसान चला जाए तो वो इस तीन आयाम वाली दुनिया से गायब हो जाता है। ये घाटी तिब्बत और अरूणाचल की सीमा पर स्थित है लेकिन भू हीनता और चौथे आयाम से प्रभावित होने के कारण वह घाटी अभी भी रहस्यमयी बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि इस घाटी का सम्बन्ध किसी दूसरे लोक से है।
#www.himalayauk.org (Uttrakhand Leading Newsportal & Daily Newspaper) Mail us; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030## Special Bureau Report
इस घाटी को बिना किसी तकनीक के नहीं देख सकते। कहा जाता है कि यह घाटी चौथे आयाम अर्थात समय से प्रभावित होने के कारण रहस्यमई बनी हुई है। इस घाटी के बारे में और जानने के लिए आपको काल विज्ञान नामक किताब को पढ़ना पड़ेगा। जो कि आज भी तिब्बत के तवांग मठ के पुस्तकालय में रखी हुई है।
इस पुस्तक में लिखा हुआ गई की यह त्री आयामी दुनिया एक निश्चित स्थान समय तथा तरीके से काम करती है वहीं शांगरी ला घाटी में समय नगण्य है। इसका मतलब यह है कि अगर आप वहां जाकर रहते हैं तो आपकी आयु बहुत ही धीमी गति से बढ़ेगी। आप उसी उम्र में जितने साल चाहें जी सकते हैं।
शांगरी ला घाटी में प्राण मन और विचारों की शक्ति एक स्तर तक बढ़ जाती है। इसे हम आध्यात्मिक शक्ति का एकमात्र केंद्र कह सकते हैं। यह भी कहा जाता है कि शांगरी ला घाटी दूसरे ब्रह्माण्ड में जाने का रास्ता भी है। कहा जाता है कि कोई भी आम मनुष्य उस घाटी को देख नहीं सकता जब तक कि वहां के रहने वाले सिद्ध व्यक्ति ना चाहें।
जो लोग इस घाटी से परिचित हैं इनका कहना है कि प्रसिद्ध योगी श्यामाचरण लाहिरी के गुरु अवतारी बाबा जिन्होंने आदि शंकराचार्य को भी दीक्षा दी थी, सांगरी ला घाटी के किसी सिद्ध आश्रम में अभी भी निवास कर रहे हैं। जो कभी कभी आकाश मार्ग से चल कर अपने शिष्यों को दर्शन भी देते हैं।
कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि चीन ने भारत पे हमला भी इसी शांगरी ला घाटी की वजह से ही किया था। क्युकी उनको भरोसा था कि यह भारत में ही कहीं है। जो कि उन्हें कभी मिला ही नहीं।
वही कुछ चर्चा है कि 1933 में जेम्स हिल्टन नाम के एक लेखक ने एक काल्पनिक जगह का नाम शांगरी ला रखा था जिसे उन्होंने ने “लोस्ट होराइजन” नाम के पुस्तक में इसे दर्शाया था, जिस पर हॉलीवुड में फिल्म भी बन चुकी है।
शंग्रीला घाटी हम जैसे आम लोगों के लिए एक अनजान जगह हो सकती है। लेकिन उच्च स्तरीय अध्यात्म क्षे़त्र से जुड़े किसी भी व्यक्ति के लिए ये अनजान नहीं है। यह घाटी भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए अध्यात्म जगत का केंद्र है। इस घाटी को एक सामान्य व्यक्ति नहीं देख सकता और न ही वहां जा सकता है। जब तक वहां रहने वाले कोई सिद्व पुरूष न चाहें तब तक। कहा तो यह तक जाता है कि पूरी चीनी सेना इस जगह को खोजते खोजते थक गई लेकिन आज तक इस क्षेत्र का पता नहीं लगा पाई है। दुनिया में धरती पर ऐसे कई स्थान हैं जो भू हीनता के प्रभाव क्षेत्र में आते हैं। शंग्रीला घाटी भी उनमें से एक है। जो चौथे आयाम से प्रभावित है। यदि इस शंग्रीला घाटी में कोई इंसान चला जाए तो वो इस तीन आयाम वाली दुनिया से गायब हो जाता है। ये घाटी तिब्बत और अरूणाचल की सीमा पर स्थित है लेकिन भू हीनता और चौथे आयाम से प्रभावित होने के कारण वह घाटी अभी भी रहस्यमयी बनी हुई है। ऐसा माना जाता है कि इस घाटी का सम्बन्ध किसी दूसरे लोक से है। शंग्रीला घाटी के बारे में और अधिक जानने के लिए आप हमारा ये वीडियो देखें।
भारत में मौजूद ऐसे कौन से रहस्य है जिन्हें आज तक कोई नहीं जान पाया है?
एक बार ओशो ने जानकारी दी थी कि 1937 में तिब्बत और चीन के बीच बोकाना पर्वत की एक गुफा में 716 पत्थर के रिकार्डर मिले हैं- पत्थर के। आकार में वे रिकॉर्ड हैं। महावीर से 10 हजार साल पुराने यानी आज से कोई साढ़े 13 हजार साल पुराने। ये रिकॉर्डर बड़े आश्चर्य के हैं, क्योंकि ये रिकॉर्डर ठीक वैसे ही हैं, जैसे ग्रामोफोन का रिकॉर्ड होता है। ठीक उसके बीच में एक छेद है और पत्थर पर ग्रूव्ज है, जैसे कि ग्रामोफोन के रिकॉर्ड पर होते हैं। अब तक राज नहीं खोला जा सका है कि वे किस यंत्र पर बजाए जा सकेंगे।
लेकिन एक बात तो हो गई है- रूस के एक बड़े वैज्ञानिक डॉ. सर्जीएव ने वर्षों तक मेहनत करके यह प्रमाणित कर दिया है कि वे हैं तो रिकॉर्ड ही। किस यंत्र पर और किस सुई के माध्यम से वे पुनर्जीवित हो सकेंगे, यह अभी तय नहीं हो सका। अगर एकाध पत्थर का टुकड़ा होता तो सांयोगिक भी हो सकता है। 716 हैं। सब एक जैसे, जिनमें बीच में छेद हैं। सब पर ग्रूव्ज है और उनकी पूरी तरह सफाई धूल-ध्वांस जब अलग कर दी गई और जब विद्युत यंत्रों से उनकी परीक्षा की गई, तब बड़ी हैरान हुई। उनसे प्रति पल विद्युत की किरणें विकिरणित हो रही हैं। लेकिन क्या आदमी के आज से 12 हजार साल पहले ऐसी कोई व्यवस्था थी कि वह पत्थरों में कुछ रिकॉर्ड कर सके? तब तो हमें सारा इतिहास और ढंग से लिखना होगा।