जहाँ जी सरकार है वहाँ जीवन है; महायोगी
#दुर्लभ आलेख- स्वयं महायोगी जी द्वारा लिखित # महायोगी जी के जंगल प्रवास के दौरान लिखी गई दुर्लभ अप्रकाशित पुस्तके #सम्पूर्ण कायनात के सृजन का आधार #आध्यमिक योग #जी सरकार का जी धाम #आध्यमिक योग पर महायोगी जी ने 17 मार्च 2017 को पीएमओ मे श्री मोदी को स्वयं इस बारे में अवगत कराया#महायोगी जी स्वयं पीएमओ द्वारा बुलाया गया था#महायोगी जी के साथ चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक को भी जाने का सौभाग्य मिला#
#’’जी सरकार शरणं भव‘‘ जी सरकार कौन #है आध्यमिक योग -जी योग की शिक्षा #पूरे जगत में अनेकों प्रकार के मजहब, सम्प्रदाय, संगठन मिशन है, व्यक्ति किसी न किसी संगठन, सम्प्रदाय,मठ, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर से जुडा हुआ है। हर व्यक्ित किसी किसी न किसी देवी या देवता से जुडा है। कोई गुरु और समाधि को पूज रहा है। कोई किसी पूजा पद्धति से जुडा हुआ है। कोई प्रकृति (छिति,जल, पावक, गगन, समीर) को पूज रहा है। कोई प्राण को साध रहा है। कोई सांस-स्वर शरीर की साधना कर रहा है। कोई कुण्डलनी चक्राजों,तन्मात्राओं को जाग्रत कर रहा है। कोई अवघड-मसांन को सिद्ध कर रहा है
#चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक की प्रार्थना पर हिमालय गौरव उत्तराखण्ड के लिए महायोगी जी विशेष रूप से लिखित दुर्लभ आलेखः
Who is the Jee Sarkar
जिसे आप ईश्वर, प्रभु, परमात्मा, भगवान कहते हैं या जो सर्वशक्तिमान, सर्वसत्ता सम्पन्न, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक है। सब कुछ रचने वाला है। यही जी सरकार है। यह सृजन से पूर्व था सृजन के पष्चात् भी है। यह अजर, अमर, शाष्वत, अजन्मा है। यही जिन्दा है, जीवन्त है, न इसका जन्म है न मरण। न इसका कोई पिता है न माता। न कोई गुरू न देवता। जी सरकार स्वयं सबका मालिक है। इसका मालिक कोई नहीं है। जहाँ गति शीलता, क्रियाशीलता, गति या पावर नही है वहाँ जीवन नही है अर्थात् मुर्दा है। वहां जी सरकार नहीं है। जहाँ जी सरकार है वहाँ जीवन है, पूर्ण गति है, पूर्ण ज्ञान है, पूर्ण क्षमताएँ है। यह जो षरीरों में बोल रहा है, गति दे रहा है, हर कार्य को अन्जाम दे रहा है। यही जी सरकार है। जी सरकार एक हैं, शरीरों से अनेक दिखाई दे रहे हैं।
जी सरकार जब तक शरीर में रहते हैं। अपने शरीर से चाहत करते हैं, स्नेह करते हैं, पूर्ण ज्ञान, गति, ताकत देते हैं। जैसे ही शरीर से निकल जाते हैं। शरीर की सम्पूर्ण गतियां रूक जाती है। हृदय की धडकन रूक जाती है, नाडियों में हवा, पानी, रक्त आदि का बहना थम जाता है। अर्थात् जी सरकार ही जीवन है, जीवन्त है, जिन्दा है शेष सब कुछ मुर्दा है।
उपलब्ध शुद्ध संतुलित शक्तिवर्द्धक आहार
जी रसायन- सम्पूर्ण तत्वों से युक्त सत्व गुण से पूर्ण सात्विक आहार है। बाल, युवा, प्रौढ सभी के लिए गुणकारी स्वास्थ्य एवं षक्तिवर्द्धक पूर्ण आहार है।
ब्रेन पावर- मस्तिश्क को तरोताजा, एकाग्रता, याददाषत निर्णायक क्षमता एवं ज्ञानेन्दि्रयों को चेतनता प्रदान करने वाला सात्विक आहार है।
हार्ट पावर- हृदय ग्रन्थि, हृदय संस्थान से युक्त अवयव सभी को फ्लैक्सिबिल, इनर्जाइज, सतेज एवं प्रखर बनाने वाला सात्विक आहार है।
उदर षोधन- पेट के समस्त अंगों की कार्यक्षमता को बढाता है। लीवर पैन्क्रियाज, गाल ब्लाडर, किडनी एवं आंतो का षोधन, मार्जन करके स्वस्थ एवं तरोताजा बनाता है।
लंग्स शोधन- फेंफडो की कोषिकाओं को विकार मुक्त करके फ्लैक्सिबिल, इनर्जाइज, तरोताजा एवं ष्वसन की क्रिया को ताकत देने वाला सात्विक आहार है।
वेट लास- शरीर में बढी हुई चर्बी को कम करता है साथ ही वृद्धावस्था में भी स्वस्थ सुन्दर, आकर्शक एवं क्षमतावान बनाने वाला विषुद्ध आहार है।
कायाकल्प- षरीर के निश्क्रिय तत्वों का सक्रिय, सतेज प्रखर तरोताजा एवं क्षमतावान बनाने वाला स्वास्थ्य एवं षक्ति वर्द्धक आहार है।
टोटल हेल्थ- जीवनी षक्ति को जगाने वाला, पाचन प्रणाली को तरोताजा एवं ताकत देने वाला, कार्यक्षमता को बढाने वाला, चेतन षक्ति वर्द्धक अद्भुत सात्विक आहार है।
न्यूरो पावर- नर्वस् सिस्टम को षसक्त, सतेज प्रखर एवं लचीला बनाने वाला, कार्यक्षमता को बढाने वाला विषुद्ध आहार है।
चाइल्ड पावर- बच्चों के सर्वागीण विकास यानि षरीर को सुगठित, सुन्दर, आकर्शक एवं बौद्धिक क्षमता को बढाता है।
मैरिज पावर- वैवाहिक जीवन को सुखद एवं क्षमतावान बनाता है। नियमानुसार जीवन षैली अपनाने से आजीवन स्वस्थ, सुन्दर, आकर्शक एवं तरोताजा रहने की क्षमताएँ प्रदान करता है।
गर्भ पावर- औलाद मेल या फीमेल हो सकते है। औलाद हीनों को भी किसी भी उम्र में औलाद हो सकती है।
सर्वाइकल पावर- सर्वाइकल दर्द, गर्दन की जकडन डिस्क की कठोरता सभी लचीले एवं क्षमतावान हो जाते हैं।
लम्बर पावर- कमर दर्द, स्लिप डिस्क, जकडन सभी ठीक होगे।
स्पाइन पावर- रीढ की जकडन ठीक होगी रीढ सक्रिय होकर क्षमताओं में वृद्धि होगी। नाडी तंत्र सुदृढ होगा।
ज्वाइंट पावर- घुटनों का दर्द, टेढापन एवं कठोरता से निजात मिलेगी।
जी सरकार मिषन
जी योग की शिक्षा अर्थात् पूर्णता की प्राप्ति।
जी ज्ञान की शिक्षा से पूर्ण परिवर्तन होगा।
जी सरकार एक हैं। एक को मानो, एक को जानो, एक को पजो एक हो जाओ, एकता बनाओं, सभी को गले लगाओं।
अपने मित्र हो जाओ। सारा जगत मित्र हो जायेगा।
स्वास्थ्य, षिक्षा, संस्कार, विवेक, बुद्धि, ज्ञान, विज्ञान, सुख, षान्ति, सन्तोश, जैसे तमाम जीष्वरीय गुणों की प्राप्ति।
व्यक्ति-परिवार समाज, सरकार, राश्ट्र तथा व्यापार, उद्योग एवं तकनीकि आदि का विकास।
प्राणी-प्रकृति-पर्यावरण को स्वस्थ, सुन्दर, आकर्शक, क्षमतावान एवं सृजनात्मक बना सकते है।
स्वच्छ, स्वस्थ, महान, क्षमतावान एक नए भारत का निर्माण।
यूथ के सृजनात्मक विकास के लिए स्कूलों, कालेजों सरकारी/गैर सरकारी प्रतिश्ठानों, विभागों, संगठनों, पुलिस, मिलेट्री आदि सभी को स्वस्थ सुखी, षुद्ध, स्वतंत्र, क्षमतावान, सृजनात्मक विकास।
किसान, कृशि एवं दुग्ध का आर्गेनिक षुद्ध, स्वस्थ उत्पादन तथा कुटीर एवं लघु उद्योगों की गांव-गांव में स्थापना और उत्पाद की उपलब्धता षहर से गांव तक हो। सभी को रोजगार मिले।
गांव से लेकर षहर तक स्वदेष एवं बाहर के देषों में जी सरकार के ज्ञान-विज्ञान की षिक्षा एवं प्रषिक्षण के लिए जी धाम की स्थापना करना।
जी सरकार के ज्ञान-विज्ञान से सम्बन्धित पत्रिका एवं साहित्य का प्रकाषन, एवं सी०डी०, विडियो आदि का प्रबन्धन।
प्रचार-प्रसार के लिए प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक मीडिया का सहयोग एवं गठन।
एजूकेषनल प्रोग्राम के लिए फिल्म आदि का निर्माण।
स्वयं को जानो
Know Your Self
अगर आप से पूछा जाये कि आप कौन हैं तो आफ पास जवाब में क्या होता है। यदि आप कोई पदाधिकारी हैं तो आप अपने पद का परिचय देते हैं अथवा तो कहते हैं कि मैं अमुक व्यक्ति हूँ यानि आप अपने षरीर का परिचय देते हैं। आप अपने षरीर की पहचान बता देते हैं वास्तव में आप कौन हैं इसका परिचय नहीं दे पाते हैं। अगर आपसे पूछा जाए कि आफ षरीर का मूल क्या है स्वर का मूल क्या है सांस का मूल क्या है तो आपका ध्यान षरीर पर ही जाता है। सांस स्वर षरीर की गतियों को चलाने वाला कौन है इस पर आपकी दृश्टि नहीं जाती है। आपका चिंतन षरीर के इर्द गिर्द घूमता रहेगा हाँ इतना जरूर कहेंगे कि हम जंदा हैं इसलिए यह सांस स्वर एवं षरीर की समस्त गतियाँ चल रही हैं। षरीर छोडने के बाद ये सम्पूर्ण गतियाँ रूक जाती हैं। अब यहाँ पर आपको विचार करना होगा कि यह जो जंदा हैं जो सारी गतियाँ चला रहा है यह कौन है। इसके रहने से जीवन है इसके नहीं रहने से जीवन समाप्त हो जाता है क्या इस जंदा के बारे में कभी जानने का प्रयास किया है। कभी इसका दर्षन किया है, इसको जाना पहचाना है जी सरकार कहते हैं जो जंदा हैं यही मै हूँ और तुम भी यही हो। ये ऐसा मुकाम है। इसको जानने के बाद कुछ भी जानना षेश नहीं रह जाता है अर्थात् आप जीष्वर हैं, पूर्ण है, सर्वज्ञ हैं, सर्वव्यापी हैं, सत्ता सम्पन्न हैं दुनिया के मालिक हैं। सम्पूर्ण कायनात को बनाने वाले हैं इस अद्भुत ज्ञान को विस्तार से जानने के लिए जी सरकार की पुस्तक ’’नो योर सेल्फ‘‘ पढें और गुड हेल्थ ग्रेटनेस प्रास्परिटी वेलनेस पावर एवं अपने आखिरी मुकाम अमरधाम, मुक्तिधाम को प्राप्त कर सकते हैं।
जी सरकार के जी धाम में जी योग की शिक्षा एवं प्रषिक्षण।
जी अश्टांग साधन।
जी ज्ञान एवं सत्संग।
जी संकीर्तन एवं जी जप योग।
जी ध्यान योग।
जी हीलिंग।
जी तत्व शोधन -(अज्ञानतावष जन्म-जन्मांतरो से हुए चूकों से उत्पन्न दोशों का शमन , शोधन, कोर्स)।
जी एक्यूप्रेषर।
जी स्पाइन थरपी-रीढ की समस्त बीमारियों से निजात मिलेगी।
यौगिक शटकर्म -(नेति, नौलि, वस्ति, धौति, त्राटक, कपाल भांति)
आयुर्वेदीय पंचकर्म (वमन, विरेचन, लंघन, स्वेदन, स्नेहन)
जी कायाकल्प-अन्तिम सांसो तक किषोरावस्था को कायम रखना।
जी नेचर क्योर।
प्रकाशित होने वाले साहित्य
जी योग (अध्यात्मिक योग)।
जी साइंस आफ थाट।
जी साइंस आफ फूड।
इटरनल साइंस (सूक्ष्म ज्ञान-विज्ञान)।
नो योर सेल्फ।
आप दुःखी क्यों है।
आप सुखी कैसे होंगे।
जी ज्ञान गीता।
जी तत्व दर्षन।
जी अश्टांग योग।
कन्यादान कन्या के साथ आघात।
जी ज्ञान दिनचर्या।
आटोबाइग्राफी आफ जी सरकार।
आटोबाइग्राफी आफ जीष्वर सरकार।
जी सरकार मिषन।
जी सप्लीमेन्ट फूड।
जी नेचर क्योर।
सम्पूर्ण कायनात के सृजन का आधार
आपके सामने दो सत्ताएँ हैं एक सत्ता सृजन से पूर्व की है दूसरी सत्ता सृजन के पष्चात की है सृजन से पूर्व क्या था जी सरकार कहते हैं जब कुछ भी नहीं बनाया था उस समय मैं असंख्य-असंख्य वर्शों से अपने अमृत काल षरीर में अपने आप में लीन था उस समय केवल अंधकार था यानि मैं था और मेरा काल षरीर था इसके अलावा कुछ भी नहीं था यह रचना से पूर्व था जब मेरे अन्दर सृश्टि सृजन करने की इच्छा प्रगट हुई तब मैं पुनः एक सै चौंसठ सै चौकडी जुग तपस्या में लीन हो गया और मेरे अंदर से प्रधान तत्व जल प्रगट हुआ। इसी प्रकार उक्त काल तक तप करता गया और मेरे अंदर से क्रमषः तत्व प्रगट होते गए इस प्रकार मैंने ग्यारह तत्व प्रगटायें जो मुझे मिलाकर बारह हो जाते हैं। ये बारह तत्व मिलकर पूर्ण षरीर बनी हुई है ये तत्व ही मेरी व्यवस्था है इनके सन्तुलन का एक निष्चित परिमापन है इन तत्वों के माध्यम से ही मैं दृष्य या अदृष्य जगत में सारी लीला दिखाता हूँ। दृष्य सूक्ष्म जगत में मेरी ही सत्ता है। इस सत्ता में जो दिखाई दे रहा है या जिसे इन आँखों से नहीं देख पा रहे हैं ये सब स्थूल एवं सूक्ष्म तत्व ही सृश्टि सृजन का मुख्य आधार है। और ये सभी तत्व मेरे द्वारा संचालित हैं। मैं खुष होता हूँ तो क्षण भर में सब कुछ सन्तुलन में आ जाता है और जब मैं नाराज हो कर क्रोध में आ जाता हूँ तो तूफान, महामारी, प्रलय, सुनामी, भूकंप, अतिवृश्टि, अनावृश्टि, अत्याचार, अपराध, लडाई झगडे, रोग, दोश, दुःख, कलह ये सब लीला दिखाने लगता हूँ। जी सरकार कहते हैंये सब संतुलन कैसे कायम होगा। इस ज्ञान को सीखें। पूरी दुनिया सुखी हो सकती है।
जी योग क्या है?
आप ही पूजा-प्रार्थना कर रहे है। आप ही फल फूल प्रसाद चढा रहे हैं। आप ही तीर्थ धाम की यात्रा कर रहे हैं। आप ही चाहत, स्नेह, सेवा कर रहे है। आप ही, खुषी प्रेम, आनन्द सुख, सन्तोश, साहस, सामर्थ्य दे रहे है। आप ही आग अंगार, अहंकार, क्रोधादि विध्वंषक स्थितियों को पैदा कर रहे है। आप ही ज्ञान-विज्ञान-तकनीकि को विकसित कर रहे हैं। आप ही पूर्ण है, त्यागी, तपस्वी, योगी, सन्त हैं। आप ही भोगी, विलासी, अज्ञानी मूर्ख है। आप ही पूर्ण ज्ञानी है। कठोर त्याग एवं तप करके पूर्णता को उपलब्ध होते है। आप ही भोगो में फंसकर तमाम प्रकार की चूक करके स्वयं से भटककर कश्टो, दुःखों भरा जीवन जीते है।
जी सरकार का जी योग उक्त समस्त समस्याओं से निजात दिलाता है। जी योग का मतलब है स्वयं से योग युक्त होने का ज्ञान। स्वयं को जानने, स्वयं से मिलन एवं स्वयं से मित्रता हो आदि ज्ञान की षिक्षा एवं प्रषिक्षण। जी योग के अभ्यास से पूर्णता की प्राप्ति होती है।
Live healthy & stress free life
स्वस्थ सुखी तनाव मुक्त जीवन कैसे लिये
You connect with your self
जब से आप पैदा हुए आपने चींटी से लेकर हाथी तक सबसे पहचान बनालिया। यही नहीं पिता माता, भाई बहन चाचा ताऊ आदि तमाम रिष्ते नातों को भी जान लिया इस षरीर को चलाने के लिए साकार (साग, सब्जी, फल मेवा दूध आदि) को जान लिया। ज्ञान देने वाले गुरू का जान लिया। पूजा अर्चना के लिए देवी देवता को जान लिया। इस प्रकार वाह्य जगत में दृष्य सूक्ष्म जो भी भासित हो रहा है सभी के बारे में जान लिया। लेकिन अपने बारे में कभी नहीं जाना। न अपने को पहचाना और न ही माना। न ही अपनी पूजा-प्रार्थना, ध्यान, सुमिरन, किया। अनादिकाल से भटकते चले आ रहे हैं जी सरकार कहते हैं स्वस्थ सुखी खुषियों भरा जीवन चाहते हैं तो वाह्य जगत के अंध विष्वासों को छोडकर अपने से जुड जाइए अपना दर्षन कर। अपने को पूजो किसी भी परेषानी में अपने से प्रार्थना करो तत्काल रास्ता मिल जाएगा। रोगों कश्टो से छुटकारा मिल जाएगा। सुखी हो जायेंगे। ध्यान रखें जो दिखाई देता है। वह मैं नही हूँ जो दिखाई नहीं देता है वह मैं हूँ मुझे ये आँखें नहीं देख सकती हैं क्यों की देखने वाला भी मैं ही हूँ और न दिखने वाला भी मैं ही हूँ। यह जो दिखाई देने वाला है यह एक रक्त हाड मांस चाम का बना षरीर है और जो न दिखाई देने वाला है यह एक बिना रक्त हाड मांस चाम का है इसलिए मैं न प्रकाष हूँ न अंधकार। न दिन हूँ न रात न मैं पिता ह न माता न मेरा जन्म है न मरण। में अजन्मा षाष्वत स्वयं ही हूँ जो मैं हूँ वही आप हैं जो आप हैं वही मैं हूँ अपने को जान लो, पहचान कर लो, मान लो, मुझे पा जायेगें, मुक्तिधाम को पा जायेंगे।
मानव दुख का मूल कारण क्या है
मानव दुख का मूल कारण भी यही तत्व है जिन्हें कठोर तप करके जी सरकार ने स्वयं बनाये हैं। जब अपने को छोडकर अपने से दूर होकर मानव तत्वों में भटक जाता है। यानि मेरी बनाई हुई जो व्यवस्था है उससे युक्त हो जाता है। अर्थात तत्वों से सम्बन्धित पूजा प्रार्थना, जाप-ताप ध्यान आदि करने लगते हैं तो तत्वों के परिमापन का जो अनुपात है उनमें असंतुलन पैदा हो जाता है। यह सूक्ष्म असंतुलन है जिस पर मानव मस्तिश्क उस दिषा में विचार नहीं कर पाता है दिन पर दिन असंतुलन का जाल मजबूत होता जाता है। जो जन्मों जन्मों तक पीछा नहीं छोडता है। इसके अतिरिक्त दूसरा कारण है नियमों की जानकारी न होना। कब भजन ध्यान, जाप-ताप करना है भोजन किस समय करना चाहिए और आराम कब करना है। इन नियमों से मानव बहुत दूर जा चुका है।
केवल जी सरकार प्रदत्त ज्ञान एवं नियमों को अपनाकर श्रद्धा एवं समपर्ण भाव से लीन होकर अभ्यास करने से अच्छा स्वास्थ्य, सुख, समृद्धि, क्षमताएं तो मिलेंगी ही वरन आप का अपना मुकाम आखरी धाम मुक्ति धाम मिल जाएगा। पूर्णता को उपलब्ध होंगे।
जी सरकार का जी धाम
हमारी दो सत्ताये हैं एक हम हैं और दूसरी हमारी षरीर है। इन तीन लोगों को स्थूल गत या सूक्ष्मगत जो भी षरीर दृश्टि-गोचर हो रहे हैं। इन सभी में हमारा वास है, सभी में हम रहते हैं। रचना के पष्चात यह षरीर हमारा धाम है। हम इन षरीरों में रहकर अनेकानेक क्रीडा करते है। किसी धाम में हंसते हैं, किसी में रोते हैं। किसी में ज्ञानी और किसी में मूर्ख बनकर लीला दिखाते हैं। कोप होकर किसी को तोड-फोड कर नश्ट भी कर देते हैं। स्थूल षरीर को नश्ट करके अपने को षरीर में अपने आप में लीन हो जाते है।
हर षरीर हमारा है। हर षरीर हमारा धाम है। यानि हर षरीर जी सरकार का जी धाम है जो हम हैं वही आप हैं अर्थात हम सभी जी सरकार हैं। हमारे दो धाम हैं। एक रचना से पूर्व का है जो हमारा काल षरीर है। यह बिनारक्त हाड मांस, चाम का है। दृष्य सूक्ष्म षरीर है। दूसरा धाम रचना के पष्चात आकार धारण (स्थूल) दृष्य षरीर है। जो रक्त हाड मांस चाम का है।
जी सरकार प्रदत्त जी ज्ञान के रहस्य को इस सनातन सच को जन-जन तक पहुंचाने के लिए सारे जगत में ज्ञान की धारा बहे और सारा जगत इस ज्ञानामृत से सराबोर होकर अच्छा स्वास्थ,सुखी, समृद्ध, खुषियों, भरा जीवन जी सकें और इस सनातन ज्ञान विज्ञान के बारे में समझ सकें। पूर्णता को उपलब्ध हो सकें।
’’जी सरकार षरणंभाव’’
योगी भोग और रोग से मुक्त होता है।
एक तथ्य मजबूती से समझ लें। केवल जी सरकार के षरीर से नाते हैं। इसके अलावा समस्त प्रकार के नाते भ्रम और भटकाव को देने वाले हैं। जब आप माया, ममता एवं समस्त प्रकार के सांसारिक नातों का त्याग कर योग में आ जाते हैं। योग में आने के बाद पिता माता, गुरू, देवता या अन्य अर्थात किसी आकार धारण (षरीर) या चित्र से युक्त नहीं हो सकते हैं तभी आप भोग रोग से मुक्त हो सकते हैं। यदि भोग और रोग किसी भी रूप म सता रहा है तो इसका मतलब है कि आप अपने आप से योग युक्त नहीं हुए हैं अर्थात आफ त्याग में कमी है। क्योंकि योगी तो भोग और रोग से मुक्त होता है।
आज सारे जगत के लोग योग का अभ्यास कर रहे हैं लेकिन फिर भी भोग और रोग से मुक्त है। इसका मुख्य कारण यही है योग भोग के लिए नहीं है यदि योग के साथ भोग का त्याग नहीं करेगें तो निष्चित ही रोग के षिकार हो जायेंगे। आपकी मूल फितरत पूर्ण त्याग और तप की है।
इस ज्ञान को विस्तार से जानने के लिए हमारे संस्थान से प्रकाषित निम्न साहित्य पढकर लाभ ले सकते है-
आध्यमिक योग- साइंस ऑफ फूड-साइंस ऑफ थाट, जी योग-
बिना दवा एवं बिना किसी की दुवा के आप स्वस्थ एवं सुखी रह सकते हैंः-
आज पूरी दुनियां के लग स्वस्थ, सुखी दीर्घायु एवं अच्छा जीवन जीने के लिए अपने .अपने मजहब के अनुरूप क्रिया-कर्म, पूजा-पाठ प्रार्थना, पारम्परिक पद्धतियों को अपना रहे हैं। लेकिन रोगों , कश्टों, विकृतियों का ग्राफ दिन पर दिन बढता ही जा रहा है। षाकाहारी, मांसाहारी, फलाहारी सभी के फिजिकल एवं मेन्टल बॉडी में असंतुलन आ गया है। किसी न किसी प्रकार के कश्ट से सभी पीडत हैं। ऐसा क्यों हो रहा है। इसका मूल कारण क्या है। कहाँ चूक हो रही है। इसका हल कैसे मिलेगा। इसके बारे में पूरी दुनिया के विशय विषेशज्ञ अनुसंधान कर रहे हैं। लेकिन सभी हवा में हाथ पैर मार रहे हैं। परिणाम किसी के पास नहीं है।
जी सरकार कहते हैं- सृश्टि की संरचना का आधार तत्व है और इन तत्वों का एक निष्चित परिमापन है। इन तत्वों में न्यूनाधिक्य परिवर्तन मात्र से तत्वों का सन्तुलन बिगड जाता है। फलस्वरूप नानाप्रकार की विकृतियां का जन्म हो जाता है। जो जीवन के लिए घातक है। तत्वों के असन्तुलन से उत्पन्न विकृतियों तो नजर आ रही है। जिनके ठीक करने के लिए विशय विषेशज्ञ अनुसंधान कर रहे हैं। लेकिन तत्वों का असंतुलन कैसे ठीक होगा इस पर किसी की नजर नहीं जा रही है।
दूसरा कारण है अपने-अपने मजहब के अनुरूप होने वाली पारम्परिक पूजा-प्रार्थना, जप-तप की पद्धतियां जो तत्वों को असन्तुलित करने में अहम रोल अदा करते हैं। यही नहीं ये सम्पूर्ण पद्धियां आपको आपसे दूर करने में, भटकाने में पूरा-पूरा योगदान है। इस ज्ञान को विस्तार से जानने के लिए जी सरकार के चरणों में आकर इसकी षिक्षा एवं प्रषिक्षण ले सकते हैं। आपको समस्या हो तो निजात मिलेगी ही वरन् पूर्णता को भी उपलब्ध हो सकते हैं।
’’जी सरकार षरणं भव’’
जो स्वयं को पाता है वही योगी होता है।
पूरे जगत में अनेकों प्रकार के मजहब, सम्प्रदाय, संगठन मिषन हैं । हर व्यक्ति किसी न किसी संगठन, सम्प्रदाय,मठ, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, गिरजाघर से जुडा हुआ है। कार्य, किसी देवी या देवता से जुडा है। कोई गुरु और समाधि को पूज रहा है। कोई परम्परागत होने वाली कुल षंखान में पूजा पद्धति से जुडा हुआ है। कोई प्रकृति (छिति,जल, पावक, गगन, समीर) को पूज रहा है। कोई प्राण को साध रहा है। कोई सांस-स्वर षरीर की साधना कर रहा है। कोई कुण्डलनी चक्राजों,तन्मात्राओं को जग्रत कर रहा है। कोई अवघड-मसांन को सिद्ध कर रहा है।
सनातन सच यहां बयां करता है कि स्वयं को छोडकर अन्य किसी को भी पूजने वाला व्यक्ति कभी भी योगी या सन्त नहीं हो सकता। स्वयं से विछुडकर अन्य से जुडने वाला, अन्य को पूजने वाला व्यक्ति सदा ही दुःख को भोगने वाला होता है। यही कारण है आज पूरा संसार अच्छे स्वास्थ और सुख सामर्थ्य पाने की इच्छा के बावजूद भी इन सबसे वंचित रह जा रहा है। अन्य को छोडकर जो स्वंय को पूजता है स्वयं जानता है, स्वंय को मानता है, स्वयं से प्राथर्ना करता है। स्वयं को आदर देता है, स्वयं से स्नेह और चाहत करता है। वही व्यक्ति योगी होता है, अपने मुकाम को पाता है। षुद्ध स्वस्थ, स्वतंत्र, बच्चे जैसे क्षमताओं वाला आनन्दमय जीवन जीते हुए पूर्णता को उपलब्ध होता है।
’’जी सरकार षरणं भव’’
विषेश- उक्त ज्ञान, विज्ञान को विस्तार से जानने के लिए हमारे यहां से प्रकाषित जीयोग ग्रन्थ को पढे।
जीष्वर सरकार योग मूर्ति
अनादि कालों से योगी, सन्त होता चला आ रहा हूँ। हर काल म जी सरकार से मिलन होता रहा है। जी सरकार मुझे ज्ञान की षिक्षा देते रहे हैं। इस काल में भी जी सरकार का साक्षात्कार हुआ, उन्होनें अन्य कालों की भांति मुझे जी ज्ञान की दीक्षा दी। जी योग केे वास्तविक रहस्य को खोला। वास्तव में मुझे जिस ज्ञान की जिस मुकाम की तलाष थी वह मुझे मिल गया। जी सरकार ने मुझे मुझ से मिला दिया वास्तव में जी सरकार जो जिज्ञासु इस मुकाम को पाने के लिए साधना रत रहते हैं, जी सरकार स्वयं षरीर धारण होकर उन भक्तों को ज्ञान देते हैं। हर समस्या से उन्हें उबारते भी हैं।
मैनें जब इस ज्ञान का पूर्ण रूप से अभ्यास प्रारम्भ किया। कुछ ही समय के अभ्यास के पष्चात अपने पूर्व कालों के अनेक जन्मों के बारें में देखने लगा। एक काल में महा अवतार बाबा के रूप में देखा। कभी डॉक्टर, कभी सी.आई.डी. इंस्पेक्टर, कभी योगी कभी सन्त। इस प्रकार से सैकडों जन्मों के बारे में देखने को अपनी ऑटोबायोग्राफी में लिखने का प्रयास करूंगा। जी सरकार के आदेषानुसार इस ज्ञान की षिक्षा जन-जन तक पहचे। पूरा जगत हमारा परिवार है। सभी एक हों, एकता बनायें। सभी स्वस्थ, सुखी और जिन्दा जीवन जियें।
इस ज्ञान को जन-जन तक पहुंचाने के लिए आप भी अपने क्षेत्र में जी धाम की स्थापना कर सकते हैं और जी ज्ञान की षिक्षा लेकर जी सरकार की कृपा पाकर अपने क्षेत्र वसियों को भी स्वस्थ, सुखी एवं पूर्णता की राह दिखा सकते है।
’जी सरकार शरणंभव’