देश का एकमात्र अदभूत मंदिर- कालहस्ती ; जहां भगवान शिव मौजूद – मूर्ति में सभी 27 नक्षत्र और 9 राशि उपस्थित है
High Light # Chandra Shekhar Joshi- For Himalayauk Newsportal
माना जाता है कि इस प्राचीन मंदिर में भगवान शिव वायु रूप में मौजूद हैं,जिनकी पूजा कालहस्तेश्वर के रूप में की जाती है। #इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मूर्ति में सभी 27 नक्षत्र और 9 राशि उपस्थित # इस मंदिर को जागृत मंदिर भी कहा जाता है # मंदिर के पूजारी मारूती शर्मा ने कहा, दरअसल यह श्री कालहस्ती मंदिर को राहू केतु षष्ठम हैं. यहां भगवान शिव और मां पार्वती के साथ राहू और केतू भी हैं# कालहस्ती मंदिर चुनिंदा सबसे खास शिव मंदिरों# जिंदगी में फिर से खुशिया और आनंद का आगमन होने लगेगा- यहां अवश्य आये
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देश में एक ऐसा मंदिर भी है जो ग्रहण के सूतक मे भी खुला रहता है. ये आंध्र प्रदेश का मशहूर कालहस्ती मंदिर है. जहां सूर्य ग्रहण के दौरान देश के सभी मंदिर 12 घंटों के लिए बंद हैं वहीं इकलौते इस मंदिर में ग्रहण के दौरान खास पूजा अर्चना की जा रही है. यह मंदिर भगवान शिव का मंदिर है. इस मंदिर में राहु और केतु की पूजा के साथ-साथ कालसर्प की भी पूजा होती है. जिनके ज्योतिष में कोई दोष है वे यहां ग्रहण के दौरान आते हैं और राहु-केतु की पूजा के बाद भगवान शिव और देवी ज्ञानप्रसूनअंबा की भी पूजा करते हैं..
सूर्य ग्रहण (Solar eclipse) के दौरान जहां देश भर के मंदिर (temple) बंद रहें वहीं एक मंदिर ऐसा भी है जो सूर्य ग्रहण के दौरान भी खुला रहता है. आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) का मशहूर कालहस्ती मंदिर सूर्य ग्रहण के दौरान भी खुला रहा जबकि बाकी सभी मंदिर 13 घंटों के लिए बंद रहते है.
इस मंदिर में भक्तों के लिए राहु केतू पूजा के अलावा यहां कालहस्तीश्वर स्वामी की अभिशेकम पूजा की जाती है. जिनके ज्योतिष में कोई दोष है वे यहां ग्रहण के दौरान आते हैं और राहू केतू पूजा के बाद भगवान शिव और देवी ज्ञानप्रसूनअंबा (मां पार्वती) की भी पूजा करते हैं. सूर्य ग्रहण के दौरान भी पूजा पाठ होने के कारण पौराणिक कथाओं में छिपे हैं. दरअसल इस मंदिर में स्थापित भगवान शिव के मूर्ति में सभी 27 नक्षत्र और 9 राशि उपस्थित हैं. भगवान शिव की मूर्ति धातु से बनी और पूरे सौलर सिस्टम को नियंत्रित करती है. प्रसिद्ध श्री कालहस्ती मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्ती शहर में स्थित है। यह दक्षिण भारत का सबसे प्रसिद्द मंदिर। बहुत ही प्रसिद्ध और मशहूर श्री कालहस्ती मंदिर तिरुपति तीर्थस्थल से काफी नजदीक है। इस मंदिर में भगवान शिव को वायु के रूप में एक कालहस्तीश्वर के रूप में पूजा जाता है।
अगर किसी इन्सान के जिंदगी में राहु केतु घुस गया तो उस इन्सान का जीवन कठिनाईयों और मुश्किलों से भर जाता है। उसे अपने रोज के निजी, सरकारी कामो में मुश्किलें आती है और उसे पैसे से भी सम्बंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस समस्या को ह्ल करने के लिए केवल एक ही उपाय बचता है वो यह की उसे काल सर्प योग की पूजा करनी चाहिए। क्यों की इस पूजा का सीधा सम्बन्ध श्री कालहस्ती से है। इसीलिए इस मंदिर में इस समस्या को ह्ल करने के लिए राहु केतु काल सर्पदोष की पूजा की जाती है। इस कालहस्ती मंदिर में भगवान शिव के आशीर्वाद किसी भी इन्सान तकलीफ दूर हो जाती है अगर हो यहापर राहु केतु सर्प दोष निवारण दोष पूजा करता है। इस पूजा को करने से सारे ग्रह दोष दूर होते है और हम अपने हर काम को अच्छी तरीके से कर सकते है। महाशिवरात्रि को छोड़कर राहु केतु की पूजा किसी दिन सुबह 6 बजे से शाम 7 बजे तक किया जा सकता है। ऐसा माना जाता है की इस राहु केतु पूजा को अमावस्या के दिन करना अच्छा माना जाता है। राहु केतु का नाम सुनकर हम सभी डर जाते है क्यों की वो अगर हमारे ग्रह की दिशा बदल दे तो हमारी जिंदगी में बहुत बड़े बड़े संकट आते है।
हमारा जीवन चिंतामय हो जाता है। हम जो कुछ भी करते है वो सब उल्टा हो जाता है। मगर इस पर एक उपाय है जो केवल इस श्री कालहस्ती मंदिर में ही मिलता है। अगर राहु केतु से छुटकारा पाना है तो इस मंदिर में राहु केतु कल सर्प पूजा की जाए तो हमें सारी परेशानियों सेजल्द छुटकारा मिल जाता है। हमारे जिंदगी में फिर से खुशिया और आनंद का आगमन होता है। हमारे सारे काम अच्छे होने लगते है।
श्रीकालाहस्ती आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुपति शहर के पास स्थित श्रीकालहस्ती नामक कस्बे में एक शिव मंदिर है। ये मंदिर पेन्नार नदी की शाखा स्वर्णामुखी नदी के तट पर बसा है और कालहस्ती के नाम से भी जाना जाता है। दक्षिण भारत में स्थित भगवान शिव के तीर्थस्थानों में इस स्थान का विशेष महत्व है। ये तीर्थ नदी के तट से पर्वत की तलहटी तक फैला हुआ है और लगभग २००० वर्षों से इसे दक्षिणकैलाश या दक्षिणकाशी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर के पार्श्व में तिरुमलय की पहाड़ी दिखाई देती हैं और मंदिर का शिखर विमान दक्षिण भारतीय शैली का सफ़ेद रंग में बना है। इस मंदिर के तीन विशाल गोपुरम हैं जो स्थापत्य की दृष्टि से अनुपम हैं। मंदिर में सौ स्तंभों वाला मंडप है, जो अपने आप में अनोखा है। अंदर सस्त्रशिवलिंग भी स्थापित है, जो यदा कदा ही दिखाई देता है। यहां भगवान कालहस्तीश्वर के संग देवी ज्ञानप्रसूनअंबा भी स्थापित हैं। देवी की मूर्ति परिसर में दुकानों के बाद, मुख्य मंदिर के बाहर ही स्थापित है। मंदिर का अंदरूनी भाग ५वीं शताब्दी का बना है और बाहरी भाग बाद में १२वीं शताब्दी में निर्मित है।
मान्यता अनुसार इस स्थान का नाम तीन पशुओं – श्री यानी मकड़ी, काल यानी सर्प तथा हस्ती यानी हाथी के नाम पर किया गया है। ये तीनों ही यहां शिव की आराधना करके मुक्त हुए थे। एक जनुश्रुति के अनुसार मकड़ी ने शिवलिंग पर तपस्या करते हुए जाल बनाया था और सांप ने लिंग से लिपटकर आराधना की और हाथी ने शिवलिंग को जल से स्नान करवाया था। यहाँ पर इन तीनों पशुओं की मूर्तियाँ भी स्थापित हैं। श्रीकालहस्ती का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण जैसे प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। स्कंद पुराण के अनुसार एक बार इस स्थान पर अर्जुन ने प्रभु कालहस्तीवर का दर्शन किया था। तत्पश्चात पर्वत के शीर्ष पर भारद्वाज मुनि के भी दर्शन किए थे। कहते हैं कणप्पा नामक एक आदिवासी ने यहाँ पर भगवान शिव की आराधना की थी। यह मंदिर राहुकाल पूजा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
This is the picture of Srikalahasti Lord shiva Temple in the Indian state of Andhra pradesh.
इस मंदिर को जागृत मंदिर भी कहा जाता है क्यों की खुद भगवान शिव एक यहाँ पर प्रकट हुए थे। वो किस लिए प्रकट हुए इसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है।
बात उस समय की है सभी भगवान शिव के लिंग की पूजा करने में व्यस्त थे और अचानक ही भगवान के शिव लिंग से खून बहना शुरू हो गया था। खून इतना बह रहा था की रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। इस दृश्य को देखकर वहा खड़े सब लोग डर गए मगर वहापर इस दृश्य को देखकर कन्नापा ने अपनी एक आँख निकालकर भगवान के शिवलिंग के सामने रख दे और वो अपनी दूसरी आख निकलने ही वालाथा की उतने में खुद भगवान शिव वहा प्रकट हुए और उन्होंने कन्नापा को ऐसा करने से रोका। तभी से इस मंदिर में भगवान शिव निवास करते है।
श्री कालहस्ती मंदिर यहापर आने वाले शिवभक्त के लिए काफी जाना जाता है और भगवान भी भक्तों को जीतना चाहिए उससे भी अधिक आशीर्वाद देकर खुश करते है। इस मंदिर में शैव पंथ के नियमो का पालन किया जाता है। मंदिर के पुजारी हर रोज भगवान की पुरे रस्म और रिवाज के साथ पूजा करते है। मंदिर में पुरे दिन में चार बार पूजा की जाती है सुबह 6 बजे कलासंथी, 11 बजे उचिकलम, शाम 5 बजे सयाराक्शाई और रात में 7:45 से 8:00 बजे के दौरान एक बार फिर सयाराक्शाई की जाती है। 120 फीट (37 मी) उचाई वाला गोपुरम और 100 स्तंभ वाला मंडप भी सन 1516 में राजा कृष्णदेवराय ने ही बनवाये थे। सफ़ेद पत्थर में बनवाई गयी भगवान शिव की मूर्ति बिलकुल शिवलिंग के सामने ही बनाई गयी है और वो हाती की सोंढ की तरह ही दिखती है।
मंदिर जो है वो दक्षिण की दिशा में है लेकिन मंदिर का जो पवित्र स्थान है वो पश्चिम की दिशा में है। यह मंदिर पहाड़ी के निचले हिस्से में बनवाया गया है लेकिन कुछ का मानना है इस मंदिर को मोनोलिथिक पहाड़ी में ही बनवाया गया है। वहापर पत्थर से बनाये हुए 9 फीट (2।7मी) विनायक का मंदिर भी है। इस मंदिर में बहुत ही कम दिखने वाली वल्लभ गणपति, महालक्ष्मी गणपति, और सहस्र लिंगेश्वर की भी मुर्तिया है। वहापर कालहस्ती सायरा की पत्नी ग्यानाप्रसनाम्मा का भी बड़ा मंदिर है। मंदिर में कासी विश्वनाथ, अन्नपूर्णा, सूर्यनारायण, सद्योगनपति और सुब्रमन्य की भी मुर्तिया दिखाई देती है। वहापर बड़े बड़े सद्योगी मंडप और जल्कोती मंडप भी है। वहापर सूर्य पुष्करानी और चन्द्र पुष्करानी नाम के दो बड़े पानी के तालाब भी है।
यहां का समीपस्थ हवाई अड्डा तिरुपति विमानक्षेत्र है, जो यहाँ से बीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मद्रास-विजयवाड़ा रेलवे लाइन पर स्थित गुंटूर व चेन्नई से भी इस स्थान पर आसानी से पहुँचा जा सकता है। विजयवाड़ा से तिरुपति जाने वाली लगभग सभी रेलगाड़ियां कालहस्ती पर अवश्य रुकती हैं। आंध्र प्रदेश परिवहन की बस सेवा तिरुपति से छोटे अंतराल पर इस स्थान के लिए उपलब्ध है।