सितारे डूबे होने से इज्जत दांव पर- गुजरात वि0सभा चुनाव
गुजरात विधानसभा चुनाव- में सितारे डूबे होने से इज्जत दांव पर रहेगी- ज्योतिषविदो की कुछ इस तरह से भविष्यवाणी है- कुल मिलाकर ज्योतिष अनुसार- गुजरात में भाजपा की इज्जत दांव पर है, सत्ता में वापसी का याेग नही है- हिमालयायूके न्यूज पोर्टल की विशेष रिपोर्ट-
देवउठनी एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी को विष्णु क्षीर सागर में निंद्रा अवस्था से चार माह उपरांत जागते हैं। हरि के जागने के बाद ही मांगलिक कार्य शुरू होते हैं परन्तु इस बार तारे यानि सितारे डूबे होने से श्रीहरि भगवान विष्णु के जागने के उपरांत भी मांगलिक कार्य शुरू नही हो रहे हैं, इसका दूरगामी अर्थ है, गुरु व शुक्र के अस्त के समय विवाह आदि शुभ मांगलिक कार्य करना पूर्णतः वर्जित है। शुक्र के अस्त होने पर यात्रा करने से प्रबल शत्रु भी जातक के वशीभूत हो जाता है। शत्रु से सुलह या संधि हो जाती है। शुक्रास्त काल में वशीकरण के प्रयोग शीघ्र सिद्धि देने वाले साबित होते हैं। देवगुरु बृहस्पति 12 अक्तूबर को अस्त हो गये हैं। देवगुरू बृहस्पति ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सबसे मजबूत और विशाल ग्रह माने गए हैं। इनका प्रभाव यदि कुंडली में अच्छा है तो यह उमीद से अधिक लाभ दिलाएंगे किंतु वहीं दूसरी ओर गुरु ग्रह का कमजोर होना जातक के जीवन की तमाम खुशियों को आने से पहले ही नष्ट कर देता है।
गुरु के अस्त होने पर अर्थ व्यवस्था के सुधार के लिये शासकीय स्तर पर विशेष प्रयास किये जायेंगे। धार्मिक संस्था तथा फर्जी आर्थिक संस्थाओं पर शासकीय जांच आदि का योग। फिल्म उद्योग सराफा,विलासिता से जुड़े उद्योग मे शासकीय जांच आदि का योग।
ज्योतिषशास्त्र की गोचर प्रणाली अनुसार आनेवाले दिनों में शुक्र 83 दिन तक अस्त रहेंगे। शुक्र तारा बुधवार दिनांक 29.11.17 से सोमवार दिनांक 19.02.18 तक अस्त रहेगा। इसके साथ ही देवगुरु बृहस्पति 29 दिनो तक अस्त रहेंगे। बृहस्पति गुरुवार दिनांक 12.10.17 रात 21:08 से लेकर गुरुवार दिनांक 09.11.17 तक अस्त रहेंगे। इस साल 31.10.17 देव प्रबोधिनी एकादशी से देव जागें
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तारा डूबने का अर्थ तारा के अस्त हो जाने से है। जैसे सूर्य का उदय और अस्त होना। खगोल के मुताबिक सूर्य पृथ्वी के सबसे नजदीक का तारा है जो अपने ही प्रकाश से चमकता है। अन्य ग्रह सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशित होते हैं। वैदिक ज्योतिष में गुरु एवं शुक्र ग्रह को तारा माना गया है। इनके अस्त हो जाने पर भारतीय ज्योतिष शास्त्र किसी भी प्राणी को शुभकार्य की अनुमति नहीं देता। ज्योतिष के प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख मिलता है और ऋग्वेद के अनेक मंत्र यह संकेत देते हैं कि हर बीस महीनों की अवधि के दौरान शुक्र नौ महीने प्रभात काल में अर्थात प्रातः काल पूर्व दिशा में चमकता हुआ दृष्टिगोचर होता है।
ज्योतिष शास्त्र में नौ ग्रह बताए गए हैं। यही नौ ग्रह हमारे भाग्य या किस्मत का निर्धारण करते हैं। यह नौ ग्रह हैं सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु। विज्ञान में इन ग्रहों के संबंध में अलग जानकारी दी गई है जबकि ज्योतिष में इन्हें देवताओं के समान समझा जाता है।
हमारी कुंडली में शुक्र का विशेष स्थान रहता है। इसके शुभ प्रभाव से व्यक्ति सुंदर और आकर्षक व्यक्तित्व वाला होता है। कुण्डली में नौ ग्रह अपना समय आने पर पूरा प्रभाव दिखाते हैं। वैसे अपनी दशा और अन्तरदशा के समय तो ये ग्रह अपने प्रभाव को पुष्ट करते ही हैं लेकिन 22 वर्ष की उम्र से इन ग्रहों का विशेष प्रभाव दिखाई देना शुरू होता है। जातक की कुण्डली में उस दौरान भले ही किसी अन्य ग्रह की दशा चल रही हो लेकिन उम्र के अनुसार ग्रह का भी अपना प्रभाव जारी रहता है।25 से 28 वर्ष – यह शुक्र का काल है। इस काल में जातक में कामुकता बढती है। शुक्र चलित लोगों के लिए स्वर्णिम काल होता है और गुरू और मंगल चलित लोगों के लिए कष्टकारी। मंगल प्रभावी लोग काम से पीडित होते हैं और शुक्र वाले लोगों को अपनी वासनाएं बढाने का अवसर मिलता है। इस दौरान जो लव मैरिज होती है उसे टिके रहने की संभावना अन्य कालों की तुलना में अधिक होती है। शादी के लिहाज से भी इसे उत्तम काल माना जा सकता है।
वही मंगलवार दि॰ 31.10.17 को कार्तिक शुक्ल ग्यारस के उपलक्ष्य में देवउठनी एकादशी अर्थात प्रबोधिनी एकादशी । आषाढ़ शुक्ल एकादशी को देव शयन करते हैं व कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उठते हैं। अतः इसे देवोत्थान कहते हैं। इस दिन विष्णु क्षीर सागर में निंद्रा अवस्था से चार माह उपरांत जागते हैं। विष्णु के शयन के चार माह में सभी मांगलिक कार्य निषेध होते हैं। हरि के जागने के बाद ही मांगलिक कार्य शुरू होते हैं। नारायण ने लक्ष्मी से कहा मैं प्रति वर्ष चातुर्मास वर्षा ऋतु में शयन करूंगा। उस समय सर्व देवताओं को अवकाश होगा। मेरी यह निंद्रा अल्पनिंद्रा व प्रलयकालीन महानिंद्रा कहलाएगी। यह योगनिंद्रा भक्तों हेतु परम मंगलकारी रहेगी। जो लोग मेरे शयन व उत्थापन में मेरी सेवा करेंगे, मैं उनके घर में तुम्हारे सहित निवास करूंगा।
गुरु एवं शुक्र के उदयास्त के संबंध में वैदिक साहित्य से भी यह ज्ञात होता है कि गुरु दो से तीन माह तक शुक्र के आसपास ही घूमा करता था। इस अवधि में गुरु कुछ दिनों तक शुक्र के अत्यधिक निकट रहता है लेकिन शुक्र की अपनी स्वाभाविक तेज गति के कारण गुरु पीछे रह जाता है और शुक्र पूर्व दिशा की ओर बढ़ते हुए आगे निकल जाता है जिसका परिणाम यह होता है कि शुक्र ग्रह का पूर्व दिशा की ओर उदय होता है। इस अस्तोदय की कार्य प्रणाली के पूर्व इतना जरूर निश्चित रहता है कि कुछ समय तक ये दोनों ग्रह साथ-साथ रहते हैं। शुक्र का अर्थ सींचने वाला है। इसके बल के अनुरूप ही पुरुष वीर्यशाली या वीर्यहीन होता है। जब शुक्र ग्रह पृथ्वी के दूसरी ओर चला जाता है तब इसे शुक्र का अस्त होना या डूबना कहते हैं।
गुरु व शुक्र के अस्त के समय विवाह आदि शुभ मांगलिक कार्य करना पूर्णतः वर्जित है। इसी तरह स्वयंवर के लिए भी गुरु व शुक्र के अस्त का समय त्याज्य माना गया है। कोई व्यक्ति पुनर्विवाह करे तो गुरु व शुक्र के अस्त, वेध, लग्न शुद्धि, विवाह विहित मास आदि का कोई दोष नहीं लगता। संक्रामक/गंभीर रोगों की स्थिति में रोगी की जीवन रक्षा हेतु औषधि निर्माण, औषधियों का क्रय आदि एवं औषधि सेवन के लिए गुरु और शुक्र के अस्तकाल का विचार नहीं किया जाता है।
पुराने या मरम्मत किए गए मकान में गृह प्रवेश हेतु गुरु एवं शुक्र के अस्त काल का विचार नहीं किया जाता अर्थात जीर्णोद्धार वाले मकान बनाने के लिए गुरु व शुक्र अस्त काल में प्रवेश कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि शुक्र के अस्त होने पर यात्रा करने से प्रबल शत्रु भी जातक के वशीभूत हो जाता है। शत्रु से सुलह या संधि हो जाती है। शुक्रास्त काल में वशीकरण के प्रयोग शीघ्र सिद्धि देने वाले साबित होते हैं। गुरु व शुक्र के उदय काल में ही वास्तु शांति कर्म करना शुभ माना जाता है, अस्त काल में नहीं।
नारायण बलि कर्म गुरु व शुक्र के अस्त काल में करना त्याज्य माना गया है। वृक्षारोपण का कार्य गुरु और शुक्र के अस्त काल में करने से अशुभ लेकिन उदय काल में करने से शुभ फल देता है। शपथ ग्रहण मुहूर्त का विचार करते समय गुरु व शुक्र की शुद्धि आवश्यक होती है, अतएव इन दोनों के अस्त काल में शपथ ग्रहण करना वर्जित है। बच्चों का मुंडन संस्कार इन दोनों ग्रहों के अस्त काल में करना वर्जित है। देव प्रतिष्ठा गुरु व शुक्र के अस्त काल में करनी चाहिए। यात्रा हेतु शुक्र का सामने और दाहिने होना त्याज्य है। वधू का द्विरागमन गुरु व शुक्र के अस्त काल में वर्जित है। यदि आवश्यक हो तो दीपावली के दिन ऋतुवती वधू का द्विरागमन इस काल में कर सकते हैं। राष्ट्र विप्लव, राजपीड़ावस्था, नगर प्रवेश, देव प्रतिष्ठा, एवं तीर्थयात्रा के समय नववधू को द्विरागमन के लिए शुक्र दोष नहीं लगता। वृद्ध व बाल्य अवस्था रहित शुक्रोदय में मंत्र दीक्षा लेना शुभ माना जाता है। प्रसूति स्नान के अलावा अन्य शुभ कार्यों में भी इन दोनों ग्रहों का अस्त काल वर्जित है।
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र———
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र को शुभ ग्रह माना गया है | ग्रह मंडल में शुक्र को मंत्री पद प्राप्त है| यह वृष और तुला राशियों का स्वामी है |यह मीन राशि में उच्च का तथा कन्या राशि में नीच का माना जाता है | तुला 20 अंश तक इसकी मूल त्रिकोण राशि भी है |शुक्र अपने स्थान से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है और इसकी दृष्टि को शुभकारक कहा गया है |जनम कुंडली में शुक्र सप्तम भाव का कारक होता है |शुक्र की सूर्य -चन्द्र से शत्रुता , शनि – बुध से मैत्री और गुरु – मंगल से समता है | यह स्व ,मूल त्रिकोण व उच्च,मित्र राशि –नवांश में ,शुक्रवार में , राशि के मध्य में ,चन्द्र के साथ रहने पर , वक्री होने पर ,सूर्य के आगे रहने पर ,वर्गोत्तम नवमांश में , अपरान्ह काल में ,जन्मकुंडली के तीसरे ,चौथे, छटे ( वैद्यनाथ छटे भाव में शुक्र को निष्फल मानते हैं ) व बारहवें भाव में बलवान व शुभकारक होता है | शुक्र कन्या राशि में स्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति विशेष के कारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर भी शुक्र बलहीन हो जाते हैं। शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव जातक के वैवाहिक जीवन अथवा प्रेम संबंधों में समस्याएं पैदा कर सकता है। महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर बुरे ग्रहों का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन प्रणाली को कमजोर कर सकता है तथा उनके तुस्राव, गर्भाशय अथवा अंडाशय पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है जिसके कारण उन्हें संतान पैदा करनें में परेशानियां आ सकतीं हैं। शुक्र शारीरिक सुखों के भी कारक होते हैं तथा संभोग से लेकर हार्दिक प्रेम तक सब विषयों को जानने के लिए कुंडली में शुक्र की स्थिति महत्त्वपूर्ण मानी जाती है।
शुक्र का प्रबल प्रभाव जातक को रसिक बना देता है तथा आम तौर पर ऐसे जातक अपने प्रेम संबंधों को लेकर संवेदनशील होते हैं। शुक्र के जातक सुंदरता और एश्वर्यों का भोग करने में शेष सभी प्रकार के जातकों से आगे होते हैं। शरीर के अंगों में शुक्र जननांगों के कारक होते हैं तथा महिलाओं के शरीर में शुक्र प्रजनन प्रणाली का प्रतिनिधित्व भी करते हैं तथा महिलाओं की कुंडली में शुक्र पर किसी बुरे ग्रह का प्रबल प्रभाव उनकी प्रजनन क्षमता पर विपरीत प्रभाव डाल सकता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए। शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिजाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।
प्रमुख ज्योतिष ग्रंथों के अनुसार शुक्र सुन्दर ,वात –कफ प्रधान , अम्लीय रूचि वाला ,सुख में आसक्त , सौम्य दृष्टि,वीर्य से पुष्ट ,रजोगुणी ,आराम पसंद, काले घुंघराले केशों वाला ,कामुक,सांवले रंग का तथा जल तत्व पर अधिकार रखने वाला है |शुक्र एक नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। शुक्र मीन राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं जो बृहस्पति के स्वामित्व में आने वाली एक जल राशि है।
मीन राशि में स्थित शुक्र को उच्च का शुक्र भी कहा जाता है। मीन राशि के अतिरिक्त शुक्र वृष तथा तुला राशि में स्थित होकर भी बलशाली हो जाते हैं जो कि इनकी अपनी राशियां हैं। कुंडली में शुक्र का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को शारीरिक रूप से सुंदर और आकर्षक बना देता है तथा उसकी इस सुंदरता और आकर्षण से सम्मोहित होकर लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं तथा विशेष रूप से विपरीत लिंग के लोग। शुक्र के प्रबल प्रभाव वाले जातक शेष सभी ग्रहों के जातकों की अपेक्षा अधिक सुंदर होते हैं। शुक्र के प्रबल प्रभाव वालीं महिलाएं अति आकर्षक होती हैं तथा जिस स्थान पर भी ये जाती हैं, पुरुषों की लंबी कतार इनके पीछे पड़ जाती है। शुक्र के जातक आम तौर पर फैशन जगत, सिनेमा जगत तथा ऐसे ही अन्य क्षेत्रों में सफल होते हैं जिनमें सफलता पाने के लिए शारीरिक सुंदरता को आवश्यक माना जाता है। भारतीय वैदिक ज्योतिष में शुक्र को मुख्य रूप से पति या पत्नी अथवा प्रेमी या प्रेमिका का कारक माना जाता है। कुंडली धारक के दिल से अर्थात प्रेम संबंधों से जुड़ा कोई भी मामला देखने के लिए कुंडली में इस ग्रह की स्थिति देखना अति आवश्यक हो जाता है। कुंडली धारक के जीवन में पति या पत्नी का सुख देखने के लिए भी कुंडली में शुक्र की स्थिति अवश्य देखनी चाहिए। शुक्र को सुंदरता की देवी भी कहा जाता है और इसी कारण से सुंदरता, ऐश्वर्य तथा कला के साथ जुड़े अधिकतर क्षेत्रों के कारक शुक्र ही होते हैं, जैसे कि फैशन जगत तथा इससे जुड़े लोग, सिनेमा जगत तथा इससे जुड़े लोग, रंगमंच तथा इससे जुड़े लोग, चित्रकारी तथा चित्रकार, नृत्य कला तथा नर्तक-नर्तकियां, इत्र तथा इससे संबंधित व्यवसाय, डिज़ाइनर कपड़ों का व्यवसाय, होटल व्यवसाय तथा अन्य ऐसे व्यवसाय जो सुख-सुविधा तथा ऐश्वर्य से जुड़े हैं।