2 अप्रैल- ज्योतिष की भाषा में सितारो का ‘ग्रह-युद्ध’
भूकंप की आशंका जता रहे ज्योतिषी विवादों की खबरें सनसनी पैदा करेगी धनु राशि से प्रभावित नेपाल, उत्तराखंड और उत्तर-प्रदेश में अप्रैल के पहले पखवाड़े में भूकंप से जान-माल का कुछ नुकसान होने की आशंका रहेगी। हिमालयायूके न्यूज पोर्टल
ज्योतिषशास्त्र की गणना के अनुसार 2 अप्रैल को आसमान में गजब का नजारा देखने को मिलेगा। शनि और मंगल जिन्हें ज्योतिषशास्त्र में क्रूर और पाप ग्रह कहा गया है वह धनु राशि में बिल्कुल करीब यानी समान अंशों पर आ जाएंगे। ज्योतिषीय दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण घटना है। ज्योतिषशास्त्री सचिन मल्होत्रा के अनुसार देश दुनिया पर क्या होगा प्रभाव।
अप्रिय घटनाओं की स्थितियां उत्पन्न होंगी
भारतीय ज्योतिष की अपनी विशेषता है। जब दो या दो से अधिक ग्रहों का एक राशि में गोचर हो तो यह किसी भी शुभ या अशुभ योग, ऋण आदि का निर्माण करता है। साथ ही ऐसी स्थिति में दो ग्रहों का स्थान संबंध या परस्पर दृष्टि होने से ब्रह्मांड पर इसका कोई न कोई विशेष प्रभाव होना भी स्वाभाविक है। किन्हीं भी शुभ ग्रहों की युति शुभ फलदायी होती है और अशुभ ग्रहों की युति कष्टकारी होती है। ज्योतिष सिद्धांतों के अनुसार शनि और मंगल, दोनों को पाप ग्रहों की संज्ञा दी गई है और दोनों एक-दूसरे के पूर्ण शत्रु हैं। मंगल ग्रह 7 मार्च, 2018 को भारतीय समयानुसार संध्या 6.27 बजे मूल नक्षत्र के प्रथम चरण में होते हुए धनु राशि में प्रवेश करेंगे और 2 मई 2018 बाद दोपहर 4.19 तक इसी राशि में विचरण करेंगे। अत: शनि जो वर्तमान में इसी राशि में पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में गोचर कर रहे हैं इन दोनों ग्रहों की युति, संबंध और स्वभाव साथ ही दोनों नक्षत्र भी अग्नि तत्व हिंसक होने से कुछ विपरीत परिस्थितियां अर्थात इस गोचरीय काल में कुछ अप्रिय घटनाओं की स्थितियां उत्पन्न होंगी।
०७-०३-२०१८ से ०२-०५-२०१८ तक शनि और मंगल की युति धन राशि में होने जा रही है |सिंह राशि के लिए यह योग पंचम स्थान में होने जा रहा है, मंगल और शनि परस्पर विरुद्ध प्रकृति / स्वभाव के और परस्पर शत्रु ग्रह होनेसे उनका यह मिलन भारी उत्पात कारी साबित होने वाला है ; शनि और मंगल का यह युति योग सिंह राशि को क्या फल देगा ? 7 मार्च को शनि और मंगल ग्रह एक राशि में आ जाएंगे। यह महायोग 2 मई 2018 तक रहेगा यानि शनि और मंगल दो महीनों तक एक ही राशि में रहेंगे। शनि ग्रह को पापी ग्रह कहा जाता है तो वहीं मंगल आग का कारक माना जाता है। शनि पहले से ही धनु राशि में गोचर हैं और 7 मार्च की शाम 6 बजकर 30 मिनट पर मंगल भी धनु राशि में प्रवेश करेंगे। मंगल और शनि के युति से आने वाले समय में सभी राशियों पर इसका क्या असर देखने को मिलेगा
मंगल-शनि साथ हों तो व्यक्ति दु:खी, झूठ बोलने वाला, अपने वचन से फिर जाने वाला और निंदित होता है। ‘मंगल और शनि की एक भाव में युति वात और पित्त रोग देती है। परंतु उपचय भाव 3, 6, 10,11 में यह युति जातक को सर्वमान्य बनाती है और राज सम्मान देती है। ज्ञात रहे कि पापी ग्रह उपचय भाव में शुभ फल देते हैं। मेष, वृष, मिथुन, कन्या, वृश्चिक व धनु राशि वाले जातकों के लिए यह गोचर हानि देने वाला रहेगा, साथ ही कार्य स्थल पर कुछ अप्रिय घटनाओं के चलते इस काल में निराशा का दौर रहने वाला है। इस समय आप में ईर्ष्या व नकारात्मक प्रवृत्ति उभर सकती है। अत: इस राशि के जातकों को वाणी और अनियंत्रित क्रोध पर संयम बरतने की सलाह दी जाती है। उपाय के तौर पर भूमि शयन व भूमि पर बैठ कर भोजनादि करने से अशुभ प्रभाव कम होंगे।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार धरती से देखने पर किन्ही दो ग्रहों के आकाश में अत्यंत निकट होने को ज्योतिष की भाषा में ‘ग्रह-युद्ध’ कहा जाता है। मेदिनी ज्योतिष के 1500 वर्ष पुराने ग्रन्थ बृहत्संहिता में आचार्य वराहमिहिर ने ग्रह युद्ध को विस्तार से समझाया है। सूर्य और चन्द्रमा को छोड़कर पांच तारा ग्रहों (मंगल, बुध, गुरु,शुक्र और शनि) का परस्पर अंशों और क्रांति में निकट आने पर युद्ध होता है। जब इन पांच तारा ग्रहों में से कोई दो अंश और क्रांति में सामान हों तो आकाश में उनके बिम्ब एक दूसरे में समाते हुए प्रतीत होते हैं।
बृहत् संहिता के अनुसार मंगल और शनि में ग्रह युद्ध होने पर राजाओं में युद्ध होता है और शस्त्र धारण करने वालों को कष्ट होता है। मंगल और शनि का धनु राशि में ग्रह युद्ध और भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि धनु को युद्ध और कोदंड (राज सत्ता) की राशि कहा जाता है। इस ग्रह युद्ध के प्रभाव से आने वाले कुछ दिनों में अमेरिका, चीन, भारत सहित दुनिया के बड़े देशों में ‘व्यापार युद्ध’ तेज़ होने की संभावना है।
मकर लग्न और मकर राशि से प्रभावित चीन के 12 वें घर में हो रहा यह ग्रह-युद्ध विशेष रूप से उसे हानि पहुंचाएगा। चीन अमेरिका के साथ व्यापार प्रतिबंधों और भारत के साथ सीमा-विवाद में अधिक आक्रामक रुख लेने लगेगा। अमेरिका और चीन के द्वारा परस्पर एक दूसरे पर निर्यात शुल्क लगाने से वैश्विक मंदी की आहट सुनाई देने लगेगी।
वृषभ लग्न की आजाद भारत की कुंडली में शनि-मंगल के अष्टम भाव धनु में ग्रह-युद्ध में उलझनों से बड़ी रेल दुर्घटनाओं, अग्निकांड, किसी बड़े नेता की मृत्यु और केंद्र-सरकार में विवादों की खबरें सनसनी पैदा करेगी। धनु राशि से प्रभावित नेपाल, उत्तराखंड और उत्तर-प्रदेश में अप्रैल के पहले पखवाड़े में भूकंप से जान-माल का कुछ नुकसान होने की आशंका रहेगी।
शनि-मंगल के ग्रह-युद्ध के समय दक्षिण-क्रांति में रहने से पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में भूकंप के लिए संवेदनशील देशों जैसे पेरू, मेक्सिको, अर्जेंटीना आदि में भी भूकंप का खतरा रह सकता है। अग्नि तत्व की राशि धनु में पीड़ा होने से अप्रैल के महीने में अप्रत्याशित रूप से तेज गर्मी पड़ेगी और जंगलों में आग लगने की घटनाएं सामान्य से अधिक होगी। शनि के मंगल के द्वारा पीड़ित होने से पेट्रोल-डीजल के दामों में वृद्धि होगी तथा शेयर बाजार में कुछ समय के लिए तेजी के बाद बिकवाली के चलते भारी गिरावट देखी जाएगी।
दोनों ग्रहों का आपस में विपरीत होना विश्व में अशांति, अमंगल, भय आदि की परिस्थितियां घटित होंगी। हमारे ज्योतिष शास्त्रों में इन दोनों ग्रहों की युति को द्वंद्व योग की संज्ञा दी गई है अर्थात खून-खराबा, प्राकृतिक आपदाओं व अमंगल घटनाएं घटित होने का संकेत है, शास्त्रों में मंगल को शक्ति, हठ, भूमि, सेना, खून, विस्फोट, आग आदि का कारक माना गया है जबकि दूसरी ओर शनि को आलस्य, न्याय, भूमि के अंदर से निकलने वाले गैस आदि पदार्थ, धरती का कम्पन और तोड़-फोड़ व शत्रु आदि व्यक्ति का कारक माना गया है। जब कभी भी ब्रह्मांड में इन दोनों ग्रहों का स्थान, दृष्टि संबंध बना है तो भूमि पर विनाशकारी भूकम्प हुए हैं व प्राकृतिक विपदाएं, कृषि संबंधी व अमानवीय विस्फोटक घटनाएं घटित हुई हैं। यदि हम पिछले सौ-दो सौ वर्षों में घटित भूकम्पों, व प्राकृतिक आपदाओं का आकलन करें तो पाएंगे कि इन दोनों ग्रहों का पूर्ण योगदान रहा है।
शनि-मंगल की यह अशुभ युति सभी राशि वालों को प्रभावित करेगी इसलिए ज्योतिष शास्त्र में कुछ उपाय सुझाए गए हैं, जिन्हें करके ग्रह दोषों को कम किया जा सकता है। शनि-मंगल की युति प्रारंभ होने के दिन यानी 7 मार्च के योग समाप्ति होने तक यानी 2 मई तक हर दिन शिवलिंग पर कच्चे दूध में गुलाब का फूल डालकर अर्पित करें। शनि-मंगल की पीड़ा से मुक्ति के लिए हनुमान मंदिर में हर दिन या शनिवार, मंगलवार को गुड़ और चने का नैवेद्य लगाएं। प्रत्येक शनिवार को हनुमान जी को आंक के पत्तों पर राम-राम लिखकर माला अर्पित करें। गलवार को हनुमानजी को मीठा पान भेंट करें। मंगलवार-शनिवार को पीपल के वृक्ष में कच्चा दूध-जल अर्पित करें। गरीबों, अनाथों को यथासंभव भोजन करवाएं।
ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की गतिशीलता
ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की गतिशीलता का जीवन में घटित होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं में बड़ा महत्व है। इन घटनाओं के आकलन के लिए 27 नक्षत्रों, 9 ग्रहों व 12 राशियों को आधार बनाया गया है। राशियों व ग्रहों के अपने-अपने गुण व धर्म हैं जिसके आधार पर ज्योतिषीय कथन तय होते हैं। पूर्ण ब्रह्माण्ड 360 अंशों में विभाजित है। इसमें 12 राशियों मे से प्रत्येक राशि के 30 अंश हैं। इस प्रकार ये राशियां पूरे ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व करती हैं। सभी 9 ग्रह प्रत्येक राशि में अपनी-अपनी गति से प्रवेश कर 30 डिग्री पार कर दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं। प्रत्येक ग्रह की गति व राशि की 30 डिग्री को पार करने की समय सीमा अलग-अलग होती है। ग्रहों की इस गतिशीलता को गोचर कहा गया है जिसका सामान्य अर्थ है मौजूदा समय में ग्रहों की राशिगत स्थिति क्या है। सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु व केतु इन नौ ग्रहों में सबसे तेज गति चंद्र की है। चंद्रमा एक राशि में कोई 54 घंटे (सवा दो दिन) रह कर दूसरी राशि में प्रवेश कर जाता है। जबकि शनि को एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने के लिए 30 माह यानी ढाई वर्ष का समय लगता है।
इसी प्रकार सूर्य को सामान्यतः 30 दिन, मंगल डेढ़ से तीन माह, बुध 27 दिन, गुरु 12 माह, शुक्र डेढ़ से दो माह तथा राहु व केतु 18 माह में एक राशि से दूसरी राशि में गतिमान होते हैं। नौ ग्रहों में सूर्य व चंद्र ही ऐसे दो ग्रह हैं जो कभी वक्री (विपरीत गति) नहीं होते, जबकि राहु व केतु सदैव वक्री गति से ही चलते हैं। मंगल, बुध, गुरु, शुक्र व शनि ग्रह कई बार सीधी गति से चलते हुए वक्री होकर पुनः सीधी गति पर लौटते हैं। ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को आत्मा का तो चंद्र को मन का कारक माना गया है। मंगल युद्ध, शौर्य व नेतृत्व का कारक है तो गुरु शिक्षा, अध्यात्म व धर्म का प्रतिनिधि है। शुक्र सुंदरता, शारीरिक गठन व भोग-विलास का कारक है तो शनि न्याय व दंड के साथ प्रतिशोध मनोवृत्ति व विलंबता का प्रतिनिधित्व करता है। राहु आलस्य, अस्थिरता, उदर रोग व कूटनीति तथा केतु मानसिक अस्थिरता, लेखन, हतोत्साहितता व शोध कार्यों का कारक है।
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