सरकार की आलोचना करने पर देशद्रोह-मानहानि नहीं; सुप्रीम कोर्ट
यदि कोई सरकार की आलोचना करने के लिए बयान दे रहा है तो वह देशद्रोह या मानहानि के कानून के तहत अपराध नहीं करता ;सुप्रीम कोर्ट (www.himalayauk.org (UK LeadingDigital Newsportal)
2014 में ही देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किये गये थे और इनके सिलसिले में 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सरकार अब तक केवल एक व्यक्ति को ही दोषी सिद्ध करा सकी है. सुप्रीम कोर्ट ने आज एक स्पष्ट संदेश में कहा कि सरकार की आलोचना करने पर किसी पर देशद्रोह या मानहानि के मामले नहीं थोपे जा सकते.
जज दीपक मिश्रा और जज यू यू ललित की पीठ ने इस मुद्दे पर आगे और कुछ कहने से दूरी बनाते हुए कहा, ‘यदि कोई सरकार की आलोचना करने के लिए बयान दे रहा है तो वह देशद्रोह या मानहानि के कानून के तहत अपराध नहीं करता. हमने स्पष्ट किया है कि आईपीसी की धारा 124 (ए) (देशद्रोह) को लागू करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पहले के एक फैसले के अनुरूप कुछ दिशानिर्देशों का पालन करना होगा.’ एक गैर सरकारी संगठन की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि देशद्रोह एक गंभीर अपराध है और असहमति को दबाने के लिए इससे संबंधित कानून का अत्यंत दुरपयोग किया जा रहा है.
उन्होंने इस संबंध में कुछ उदाहरण दिये. जिनमें कुडनकुलम परमाणु उर्जा परियोजना के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी आदि पर देशद्रोह के आरोप लगाये जाने के मामले गिनाये गये.
इस पर पीठ ने कहा,‘हमें देशद्रोह कानून की व्याख्या नहीं करनी. 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के फैसले में पहले ही स्पष्ट है.’ कोर्ट ने गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका का निस्तारण करते हुए इस अपील पर यह निर्देश देने से इंकार कर दिया कि इस आदेश की प्रति सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को भेजी जाए. इस संगठन ने देशद्रोह कानून के दुरपयोग का आरोप लगाया था.
पीठ ने कहा, ‘आपको अलग से याचिका दाखिल करनी होगी जिसमें यह उल्लेख हो कि देशद्रोह के कानून का कोई दुरपयोग तो नहीं हो रहा. आपराधिक न्यायशास्त्र में आरोप और संज्ञान मामला केंद्रित होने चाहिए, अन्यथा ये बेकार होंगे. कोई सामान्यीकरण नहीं हो सकता.’
भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत के केदारनाथ सिंह फैसले के बाद भी कानून में संशोधन नहीं किया गया और एक कांस्टेबल फैसला नहीं समझता लेकिन आईपीसी की धारा को समझता है. शीर्ष अदालत ने कहा,‘कांस्टेबलों को समझने की जरूरत नहीं है. देशद्रोह के आरोपों को लागू करते समय शीर्ष अदालत द्वारा तय दिशानिर्देशों को मजिस्ट्रेट को समझना होता है और उनका पालन करना होता है.’ अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आईपीसी की धारा 124 ए के ‘दुरूपयोग’ पर ध्यान देने के लिए शीर्ष अदालत के हस्तक्षेप की मांग की गयी थी और दलील दी गयी थी कि ‘डर पैदा करने और असहमति को दबाने’ के मद्देनजर इस तरह के आरोप गढ़े जा रहे हैं.
संगठन की याचिका में कहा गया,‘विद्वानों, कार्यकर्ताओं, विद्यार्थियों के खिलाफ देशद्रोह के मामले बढ़े हैं जिनमें सबसे ताजा मामला एमनेस्टी इंडिया पर कश्मीर पर एक चर्चा आयोजित करने को लेकर लगाये गये देशद्रोह के आरोप का है.’ उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में केंद्र और अनेक राज्य सरकारों द्वारा धारा 124 (ए) के दुरूपयोग पर ध्यान देने के लिए एक याचिका दाखिल की गयी है. इसके दुरूपयोग से छात्रों, पत्रकारों और सामाजिक रूप से सक्रिय विद्वानों का नियमित उत्पीड़न होता है.’ गौरतलब है कि बेंगलूरू पुलिस ने शनिवार को एबीवीपी की शिकायत पर एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के खिलाफ देशद्रोह के आरोप दर्ज किये थे. संगठन ने जम्मू कश्मीर में मानवाधिकारों के उल्लंघन और न्याय नहीं मिलने के आरोपों पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया था.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की एक रिपोर्ट के हवाले से याचिका में कहा गया है कि 2014 में ही देशद्रोह के 47 मामले दर्ज किये गये थे और इनके सिलसिले में 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन सरकार अब तक केवल एक व्यक्ति को ही दोषी सिद्ध करा सकी है.