सरकारी जमीन लेने वाले स्कूल मनमानी फीस नही बढा सकते
सुप्रीम कोर्ट के दो महत्वपूर्ण फैसलेे :फीस बढ़ाना चाहते हैं तो डीडीए की जमीन को वापस कर दीजिए.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा क्या चुनाव के दौरान वोटिंग को सबके लिए अनिवार्य बनाया जा सकता?
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दिल्ली में डीडीए की जमीन पर बने स्कूलों को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली है. सुप्रीम कोर्ट ने पब्लिक स्कूलों की याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि अगर आपने डीडीए से जमीन ली है तो आपको नियमों का पालन करना होगा. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर आप इस तरीके से फीस बढ़ाना चाहते हैं तो डीडीए की जमीन को वापस कर दीजिए.
दरअसल 19 जनवरी 2016 को दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश जारी किया था कि डीडीए की जमीनों पर बने पब्लिक स्कूलों को फीस बढ़ाने से पहले दिल्ली सरकार से इजाजत लेनी होगी. क्योंकि जमीन देने वक्त ये शर्त रखी गई थी.
पब्लिक स्कूलों ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. जानकारी के मुताबिक दिल्ली में करीब 400 स्कूल हैं जो डीडीए की जमीन पर चल रहे हैं.
#############वोटिंग को सबके लिए अनिवार्य बनाया जा सकता?
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा क्या चुनाव के दौरान वोटिंग को सबके लिए अनिवार्य बनाया जा सकता? केंद्र को चार हफ्ते में जवाब दायर करना है. सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर मांग कि गई है कि मतदान को सभी के लिए अनिवार्य बना देना चाहिए. याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा था कि अर्जेन्टीना, ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम तथा ब्राजील की तरह देश में भी हर व्यक्ति के लिए मतदान अनिवार्य कर देना चाहिए. गौरतलब है कि देश में काफी समय से अनिवार्य मतदान की मांग उठती रही है, लेकिन देश के राजनीतिक दल और बुद्धिजीवी इस व्यवस्था के बारे में एक मत नहीं हैं. विशेषज्ञों का एक धड़ा जहां मतदान को मौलिक जिम्मेदारी में जोड़ने और उल्लंघन करने पर जुर्माने की बात करता है तो दूसरा इसे लोकतंत्र के लिए व्यवहारिक नहीं मानता है.
कुछ का कहना है कि देश के प्रत्येक व्यस्क को मतदान केंद्र तक हाजिर होना जरूरी है. लेकिन वोट देना जरूरी नहीं. अगर वह सारे उम्मीदवारों को अयोग्य समझता हो तो वह वोट न दे. उधर कईयों का कहना है कि मतदान अगर अनिवार्य हो जाए तो चुनावी भ्रष्टाचार काफी घट जाएगा. वोटरों को मतदान केंद्र तक ले जाने में करोड़ों खर्च होते हैं. शराब से लेकर रुपयों तक का लालच दिया जाता है. अगर अनिवार्य हो जाए तो इससे मुक्ति मिलेगी. फिलहाल देखना यह होगा कि केंद्र इस मामले पर क्या रुख अपनाता है.
वहीं चुनाव आयोग भी एक बार सुप्रीम कोर्ट में कह चुका है कि मतदान मूल अधिकार है परन्तु अनिवार्य अधिकार नहीं है। इसीलिए इसकी पालना को मेंडेटरी नहीं बनाया जा सकता. किसी भी मतदाता को मतदान करने के लिए जबरन प्रेरित करना उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. तब याचिकाकर्ता ने गुजरात में बनाए बिल का उल्लेख करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी कि मतदान को सभी के लिए अनिवार्य बना देना चाहिए और जो भी इसका उल्लंघन करे उसके लिए सजा का प्रावधान होना चाहिए.