सुप्रीम कोर्ट के फैसले & अन्य कारणो से मतदान से 24 घंटे पहले चौतरफा घिरी BJP
Himalayauk Bureau ; सितारो की प्रतिकूल चाल तो शुरू नही?
लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में अब सिर्फ 24 घंटे ही बचे हैं. लेकिन इससे पहले भारतीय जनता पार्टी और केंद्र सरकार को कई झटके लगे हैं. भारतीय जनता पार्टी को चुनाव आयोग ने कई झटके दिए हैं, तो वहीं मोदी सरकार को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. पहले चुनाव आयोग ने NaMo TV, दूरदर्शन पर मैं भी चौकीदार और छापेमारी पर लेकर सख्ती दिखाई और कुछ ही देर में सुप्रीम कोर्ट से राफेल मुद्दे पर सरकार को झटका लगा. राफेल डील मामले में केंद्र सरकार को झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि राफेल डील में गोपनीय दस्तावेजों की गलत तरीके से ली गई फोटोकापी के आधार पर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई होगी. इसके उलट मोदी सरकार ने यह कहकर पुनर्विचार याचिका का विरोध किया था कि जिन दस्तावेजों को याचिका का आधार बनाया जा रहा है, वे भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के तहत सबूत नहीं माने जा सकते. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की इस आपत्ति पर अपना फैसला 14 मार्च को सुरक्षित रख लिया था, लेकिन 10 अप्रैल को कोर्ट ने कहा कि इन दस्तावेजों को सुनवाई में शामिल कर सकते हैं.
कांग्रेस नेताओं के करीबियों पर आयकर विभाग की छापेमारी चुनावी मुद्दा बन गई है. वहीं चुनाव आयोग ने जांच एजेंसियों से कहा है कि वह इस तरह की छापेमारी से पहले हमसे इजाजत लें. मध्य प्रदेश में हुई छापेमारी की जानकारी भी EC को नहीं थी. बता दें कि विपक्ष आरोप लगा रहा है कि सरकार राजनीतिक फायदे के लिए इस तरह एजेंसियों का गलत इस्तेमाल कर रही है.
नरेंद्र मोदी के नाम पर बने NaMo TV पर चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई है. आयोग ने इसे एक राजनीतिक विज्ञापन माना है और भारतीय जनता पार्टी से इस पर होने वाले खर्च की जानकारी देनी की बात कही है. इतना ही नहीं इस चैनल पर चलने वाले सभी विज्ञापनों को पहले चुनाव आयोग की कमेटी को दिखाना होगा. NaMo TV पर विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को पहले ही घेरता आ रहा है, क्योंकि इसके प्रसारण के लिए किसी की इजाजत नहीं ली गई थी.
राफेल विमान सौदे में कथित घोटाले को लेकर कांग्रेस पहले ही केंद्र सरकार को घेर रही थी. मामला अदालत तक पहुंचा तो सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में सरकार को राहत दी थी, लेकिन इस पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई. ये याचिका एक अखबार में छपे कुछ दस्तावेजों के आधार पर दाखिल की गई थी, जिसे अब अदालत ने स्वीकार कर लिया है. यानी राफेल पर एक बार फिर पूरी तरह से कार्रवाई हुई थी. पिछली सुनवाई में केंद्र सरकार पर कम दस्तावेज देने का आरोप लगा था.
14 दिसंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में राफेल डील की प्रक्रिया में गड़बड़ी से इनकार किया था. अदालत ने उस वक्त डील को चुनौती देने वाली याचिकाएं खारिज कर दी थीं. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने दस्तावेजों के आधार पर इस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकाएं दायर की थीं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर बने NaMo TV पर चुनाव आयोग ने सख्ती दिखाई है. आयोग ने इसे एक राजनीतिक विज्ञापन माना है और भारतीय जनता पार्टी से इस पर होने वाले खर्च की जानकारी देनी की बात कही है. इतना ही नहीं इस चैनल पर चलने वाले सभी विज्ञापनों को पहले चुनाव आयोग की कमेटी को दिखाना होगा. NaMo TV पर विपक्ष भारतीय जनता पार्टी को पहले ही घेरता आ रहा है, क्योंकि इसके प्रसारण के लिए किसी की इजाजत नहीं ली गई थी.
अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि कोई भी इन दस्तावेजों को बिना संबंधित विभाग की इजाजत के कोर्ट में पेश नहीं कर सकता. ये दस्तावेज ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के तहत सुरक्षित हैं. सेक्शन 8(1)(ए) के तहत आरटीआई के दायरे से भी बाहर हैं. तब, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा था कि जब हम केंद्र की आपत्ति पर फैसला करने के बाद ही पुनर्विचार याचिकाओं के दूसरे पहलुओं पर सोचेंगे.
सरकारी चैनल दूरदर्शन ने 31 मार्च को भारतीय जनता पार्टी के मैं भी चौकीदार कैंपेन को लाइव दिखाया था. इस पर आयोग ने उससे जवाब मांगा है. चुनाव आयोग ने कहा है कि सरकारी चैनल को सभी पार्टियों को समान एयरटाइम कवरेज देना चाहिए. दूरदर्शन ने मैं भी चौकीदार कार्यक्रम को करीब 85 मिनट के लिए लाइव दिखाया था.
प्रशांत भूषण ने केंद्र की आपत्ति को सही नहीं बताया है. उन्होंने कहा कि केंद्र की दलील दुर्भावनापूर्ण है. सरकार ऐसे दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं कर सकती, जो पहले ही सबके सामने आ चुके हों. धारा 123 में वही दस्तावेज सुरक्षित हैं, जिनका प्रकाशन ना हो, वे सामने न आए हो. लेकिन, ये दस्तावेज पब्लिक डोमेन में है. इस मामले में डिफेंस के दस्तोवज पहले से लोगों के सामने है. केंद्र सरकार ने अब तक मामले में केस दर्ज नहीं किया.
प्रशांत भूषण ने कहा कि सीएजी रिपोर्ट सरकार ने पेश किया है. उसमें डिफेंस डील से संबंधित जानकारी है. सरकार ने खुद सीएजी रिपोर्ट को कोर्ट में पेश किया. ऐसे में उनकी ओर से पेश दस्तावेज को प्रिविलेज्ड दस्तावेज कैसे कह सकते हैं. सरकार खुद ही अपने लोगों को ऐसी जानकारी लीक करती रही है. रक्षा मंत्री की फाइल नोटिंग भी लीक की गई. 2जी मामले और कोल ब्लॉक में भी दस्तावेज पब्लिक डोमेन में आए थे. अगर दस्तावेज केस के लिए जरूरी है तो यह बात बेकार है कि उसे कैसे और कहां से लाया गया है.