मनुष्य के संपूर्ण विकास में सूर्य


ॐ सः सूर्याय नमः

आदित्य, भास्कर या भगवान सूर्य की महिमा का बखान शब्दों में करना बहुत मुश्किल है। मनुष्य के संपूर्ण विकास में सूर्य की रोशनी का कितना महत्व है, इसे साइंस भी मानता है। सूर्य सौरमंडल का मुख्य प्रतिनिधि तारा है इसलिए एस्ट्रोलॉजी में इसका माहात्म्य भी सबसे अधिक है। मनुष्य सहित सभी जीवों पर सूर्य की रश्मियां अपना गहरा असर छोड़ती हैं। इन किरण रश्मियों से मनुष्य का भाग्य बहुत ज्यादा प्रभावित होता है।

यदि किसी इंसान के जन्म समय पर सूर्य की स्थिति कमजोर होती है तो जीवनभर उसका भाग्य डांवाडोल ही रहता है। सूर्य की अशुभ भावों में मौज़ूदगी जातक से  पद-प्रतिष्ठा, वैभव, संपत्ति आदि छीन लेती है। ऐसे में उचित ज्योतिषीय उपायों का प्रयोग करना चाहिए ताकि सूर्य के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाकर जिंदगी में सफलता पाई जा सके। 

भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, लकड़ी मिर्च घास हिरन शेर ऊन स्वर्ण आभूषण तांबा आदि का भी कारक है। मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। शरीर में पेट आंख ह्रदय चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है। और इस ग्रह से आंख सिर रक्तचाप गंजापन एवं बुखार संबन्धी बीमारी होती हैं। सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनाव सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन ६ माह का होता है। ६ माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है, और ६ माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केशरिया माना जाता है। धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है। यह पुरुष ग्रह है। इससे आयु की गणना ५० साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम द्रिष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है। सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनिऔर शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा ६ साल की होती है। सूर्य गेंहू घी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है। और वनस्पति जगत में लम्बे पेड का कारक सूर्य है। मेष के १० अंश पर उच्च और तुला के १० अंश पर नीच माना जाता है। सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर ० अंश से लेकर १० अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है। सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका का फ़ारसी नाम सुरैया है। और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम ’अ’ ई उ ए अक्षरों से चालू होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है। इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है।

  सूर्य किन बातों का प्रतिनिधित्व करता है, किन-किन वस्तुओं का कारक है।

ये तो सभी जानते हैं कि सूर्य एक तारा है जिसका स्वयं का प्रकाश है। अत्याधिक तप्त होने के कारण सूर्य का प्रभाव पृथ्वी पर सर्वाधिक पड़ता है। इसलिए मनुष्य के लिए इसकी उपयोगिता भी सबसे अधिक होती है।

सूर्य का कारकत्व उन सभी बातों पर प्रभाव डालता है जिसका प्राण और सूक्ष्म तत्व से संबध होता है। सूर्य यश-प्रतिष्ठा-वैभव का सर्वोत्तम प्रतीक है। सूर्य पिता का भी कारक है। यानि ऐसी बातें जो पोषण के लिए जिम्मेदार हैं, उनका भी कारक सूर्य है।

सूर्य की नकारात्मक ऊर्जा मनुष्य को हर क्षेत्र में पीछे धकेल देती है। इसलिए सूर्य के प्रभाव को बढ़ाने के लिए अग्रलिखित उपाय आवश्यक हैं:

1.  गुरुजनों, बुजुर्ग एवं माता-पिता की जितनी ही सेवा की जाएगी सूर्य का बल भी उतना ही अधिक बढ़ेगा।

2.  किसी योग्य रत्नविद द्वारा सुझाए भार का माणिक्य सोने की अंगूठी में बनवाकर अनामिका अंगुली में रविवार को धारण करें। इसके विकल्प के रूप में गार्नेट उपरत्न भी धारण कर सकते हैं।

3.  सूर्य को जल देते हुए प्रतिदिन 108 बार निम्नलिखित मंत्र का जप करें:

ॐ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात (रविवार से  शुरू करें)।

4.  गाय को गेहूं और गुड़ मिलाकर खिलाएं या हर रविवार को किसी ब्राह्मण को गेहूं का दान करें। 

ज्योतिष विद्याओं में अंक विद्या भी एक महत्वपूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा हमथोडे समय में ही प्रश्न कर्ता के उत्तर दे सकते है।] अंक विद्या में “१” का अंकसूर्य को प्राप्त हुआ है। जिस तारीखको आपका जन्म हुआ है, उन तारीखों में अगरआपकी जन्म तारीख १,१०,१९,२८, है तो आपका भाग्यांक सूर्य का नम्बर “१”ही माना जायेगा.इसके अलावा जो आपका कार्मिक नम्बर होगा वह जन्म तारीख,महिना, और पूरा सन जोड़ने केबाद जो प्राप्त होगा, साथ ही कुल मिलाकर अकेले नम्बर को जब सामने लायेंगे, और वह नम्बर एक आताहै तो कार्मिक नम्बर ही माना जायेगा।  जिन लोगों के जन्मतारीख के हिसाब से “१” नम्बर ही आता है उनके नाम अधिकतर ब, म, ट, और द से ही चालू होतेदेखे गये हैं। अम्क १ शुरुआती नम्बर है, इसके बिना कोई भी अंक चालूनहीं हो सकता है। इस अंक वाला जातक स्वाभिमानी होता है, उसके अन्दर केवल अपनेही अपने लिये सुनने की आदत होती है। जातक के अन्दर ईमानदारी भी होती है, और वह किसी के सामनेझुकने के लिये कभी राजी नहीं होता है। वह किसी के अधीन नहीं रहना चाहता है और सभीको अपने अधीन रखना चाहता है। अगर अंक १ वाला जातक अपने ही अंक के अधीन होकर यानीअपने ही अंक की तारीखों में काम करता है तो उसको सफ़लता मिलती चली जाती है। सूर्यप्रधान जातक बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होता है। वहअपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उसे नहीं आता है। वहसरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज केप्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बनालेता है। सूर्यप्रधान जातक में कुछ बुराइयां भी होतीं हैं। जैसे अभिमान,लोभ,अविनय,आलस्य,बाह्य दिखावा,जल्दबाजी,अहंकार, आदि दुर्गुण उसके जीवन में भरेहोते हैं। इन दुर्गुणों के कारण उसका विकाश सही तरीके से नहीं हो पाता है। साथ हीअपने दुश्मनो को नहीं पहिचान पाने के कारण उनसे परेशानी ही उठाता रहता है। हर काममें दखल देने की आदत भी जातक में होती है। और सब लोगों के काम के अन्दर टांग अडानेके कारण वह अधिक से अधिक दुश्मनी भी पैदा कर लेता है।

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