यह रहस्यमय तांत्रिक मन्दिर, अघोर साधकों के लिये & मन्दिर में प्रविष्ट होते ही रोगों का अपने आप ही नाश, वही मूर्ति, जिसने रावण को अजातशत्रु बना दिया था। जिसके बारे में ये दावा होता है कि इसके एक दर्शन से जाने-अनजाने दुश्मनों का नाश हो जाता है।
21 Nov. 22 निकुंबला का यह रहस्यमय तांत्रिक मन्दिर, यहा केवल अघोर साधकों के लिये यह स्थान रात्रि विशेष के लिये निश्चित है #माँ निकुंबला भवानी ने प्रसन्न हो कहा कि मेरा तांत्रिक अभिषेक कर मुझे खप्पर बलि पूजा देकर जाने पर सारे शत्रुओं का संहार करने की शक्ति प्राप्त हो जाएगी,,, #यह रहस्य मय मन्दिर में प्रविष्ट होते ही आपके शरीर के सारे रोगों का अपने आप ही नाश# रामायण में रावण के पुत्र निकुम्बाला ने देवों के देव इंद्र पर विजय प्राप्त करने हेतु इस उग्र देवी की पूजा की थी| इस विजय के पश्चात उसे ‘इंद्रजीत’ कहा जाता था अर्थात जिसने इंद्र को जीता हो| इस प्रकार निकुम्बाला प्रत्यंगिरा देवी का यज्ञ समस्त प्रयासों में विजय प्राप्त करने के लिए किया जाता है।# मध्यप्रदेश के बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर बैतूल बाजार गांव में स्थित
रामायण में लिखा है कि रावण की लंका अपराजेय थी क्योंकि रावण ने लंका को कुछ ऐसी शक्तियों से बांध दिया था, जिसे भेदना खुद देवताओं के बस में भी नहीं था। ज्योतिष की मानें तो ये मंगल का स्थान है। इस मंदिर की शक्तियों को आम इंसानों से छिपाकर रखा जाता है। वही मूर्ति, जिसने रावण को अजातशत्रु बना दिया था। जिसके बारे में ये दावा होता है कि इसके एक दर्शन से जाने-अनजाने दुश्मनों का नाश हो जाता है।
By Chandra Shekhar Joshi Chief Editor www.himalayauk.org (Leading Web & Print Media) Publish at Dehradun & Haridwar. Mail; himalayauk@gmail.com Mob. 9412932030
रावण कुलदेवी माँ भवानी निकुंबला शक्ति पीठ यह स्थान मध्यप्रदेश के बैतूल जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर बैतूल बाजार गांव में स्थित है जैसा कि माँ निकुंबला का सम्बंध रावण कुल से है किंतु रावण से ज्यादा इस स्थान पर रावण पुत्र मेघनाथ यानी इंद्रजीत का सम्बंध माँ से है
माँ के स्थान पर मेघनाथ की भी प्रतिष्ठा माँ के सामने है इंद्रजीत इन्ही की साधना कर बैतूल से आगे पाताल कोट के रास्ते पाताल लोक गया था और वहां उसने दैत्य गुरु शुक्राचार्य जी को प्रसन्न कर लिया तब दैत्यगुरु शुक्राचार्य ने मेघनाथ को दिक्षा दी एवं उसे माँ निकुंबला की साधना करने को कहा और गुप्त मंत्र और विधि भी बताई
विष्णु अवतार श्री रामचंद्र जी को इसका आभास हो गया कि अगर निकुंभला देवी इस यज्ञ के बाद जागृत हो उठीं तो वह समस्त वानर सेना का विनाश कर देगी और उनके साथ चलने वाली योगिनियां उनके योद्धाओं का खून पी जाएंगी। इस शंका के चलते उन्होंने अपने परम भक्त हनुमान, बाली पुत्र अंगद आदि को उसका यज्ञ भंग कर देने की आज्ञा दी। श्री राम की आज्ञा का पालन करते हुए दोनों योद्धा अपने प्रमुख वानर यूथपालों को लेकर उस गुप्त जगह पर छद्म वेश धारण करके पहुंच गए और महा पराक्रमी इंद्रजीत का यज्ञ अनुष्ठान पूरा होने से पहले ही भंग कर दिया। अगर मेघनाद का वह यज्ञ पूरा हो जाता तो श्री राम का लंका पर विजय पाना कठिन हो जाता।
मेघनाथ ने माँ निकुंबला की साधना पूरी की तब भवानी प्रसन्न हो कर उसे एक रथ का वरदान दिया और कहा कि जब जब तुम्हें युद्ध में जाना हो तो मेरा तांत्रिक अभिषेक कर मुझे खप्पर बलि पूजा देकर इस रथ पे सवार होगा तो तुझे सारे शत्रुओं का संहार करने की शक्ति प्राप्त हो जाएगी और तुझे कोई पराजित नही कर सकता
आज भी माँ भवानी निकुंबला का साल के कुछ विशेष दिनों में तांत्रिक अभिषेक और हवन पूजन सम्पन्न होता है, यह रहस्य मय मन्दिर में प्रविष्ट होते ही आपके शरीर के सारे रोगों का अपने आप ही नाश होने लगता है
माँ के अभिषेक का जल लोग अपने सांथ ले जाते हैं दूर दूर से लोग माँ के दर्शन को आते है न किंतु यहां केवल दिन में दर्शन कर सकते हैं
मध्यप्रदेश के बैतूल जिलामुख्यालयसे 6 किलोमीटर दूर प्राचीन मंदिरों कीनगरी बैतूल बाजार के भवानीपुरा में एक मन्दिर ऐसा भी है जंहा निकुंबला देवीविराजमान है |जोकि रावण मेघनाथ के कुल से सबन्ध रखती है
निकुंबला का यह रहस्य मय मन्दिर में प्रविष्ट होते ही आपके शरीर के सारे रोगों का अपने आप ही नाश होने लगता है एवं रात्रि में इस स्थान पे रुकने की आज्ञा किसी को नही है केवल अघोर साधकों के लिये यह स्थान रात्रि विशेष के लिये निश्चित है
बल्लू बाबा जो कि मां के भक्त है साथ ही मा के मन्दिर की व्यवस्था सम्भालते है इनका कहना है कि माँ की मूर्ति में इतनी शक्ति है कि मूर्ति को देखने पर नजर नही ठहरती है साथ ही मां के रूप में बदलाव भी दिखाई देता है” मां के इस मंदिर में अघोर साधक अपनी साधना पूरी करते है| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बैतूल जिला किसी समय दण्डकारण्य क्षेत्र था जिसका राजा रावण पुत्र मेघनाद था । और इसी वजह से रावण की कुलदेवी माँ निकुम्भला का मंदिर यहां होना एक महत्वपूर्ण घटना है । इसलिए मेघनाथ यंहा पूजनीय है होली के समय जिले में मेघनाथ की पूजा कर उसकी याद में मेला भी लगाया जाता है/ भगवान राम से युद्ध के समय रावण के पुत्र मेघनाद ने इस मंदिर में माँ निकुम्भला की कठिन साधाना कि थी जिसके बाद माँ निकुम्भला ने उन्हें वरदान भी दिया था। इस मंदिर में रोजाना माँ निकुम्भला की महाआरती के साथ ही मेघनाद का भी पूजन होता है । रावण की कुलदेवी माँ निकुम्भला की चरण पादुकाओं को लंका ले जाकर वहां उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी की गई थी ।