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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय( Supreme court) ने शुक्रवार को कहा कि उसे ऐसा लगता है कि मायावती को लखनऊ और नोएडा में अपनी तथा बसपा के चुनाव चिह्न हाथी की मूर्तियां बनवाने पर खर्च किया गया सारा सरकारी धन लौटाना होगा। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने एक अधिवक्ता की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।
अधिवक्ता रवि कांत ने 2009 में दायर अपनी याचिका में दलील दी है कि सार्वजनिक धन का प्रयोग अपनी मूर्तियां बनवाने और राजनीतिक दल का प्रचार करने के लिए नहीं किया जा सकता। पीठ ने कहा, ‘‘हमारा ऐसा विचार है कि मायावती को अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिह्न की मूर्तियां बनवाने पर खर्च हुआ सार्वजनिक धन सरकारी खजाने में वापस जमा करना होगा।’’
हालांकि, पीठ ने कहा कि इस याचिका पर विस्तार से सुनवाई में वक्त लगेगा, इसलिए इसे अप्रैल को अंतिम सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया जाता है। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने पर्यावरण को लेकर व्यक्त की गयी चिंता को देखते हुये इस मामले में अनेक अंतरिम आदेश और निर्देश दिये थे। यही नहीं, निर्वाचन आयोग को भी निर्देश दिये गये थे कि चुनाव के दौरान इन हाथियों को ढंका जाये। याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि मायावती, जो उस समय उप्र की मुख्यमंत्री थीं, का महिमामंडन करने के इरादे से इन मूर्तियों के निर्माण पर 2008-09 के दौरान सरकारी खजाने से करोड़ों रूपए खर्च किये गये हैं।
राज्य के सर्वोच्च सम्मान ‘बंग विभूषण’ से सम्मानित करेंगी
कोलकाता पुलिस की ओर से इस समय सीबीआई के पूर्व निदेशक एम नागेश्वर राव के दो अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। इससे पहले दिन में ममता बनर्जी ने कहा था कि पुलिस अफसरों के मेडल केंद्र ने छीने तो वह उन्हें सर्वोच्च राज्य सम्मान दे देंगी। पिछले रविवार को कोलकाता पुलिस कमिश्नर के घर अचानक सीबीआईटीम के पहुंचने के बाद से राज्य की ममता बनर्जी सरकार केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोले हुए है। इस समय कोलकाता पुलिस की ओर से सीबीआई के पूर्व अंतरिम निदेशक एम नागेश्वर राव के दो अलग-अलग ठिकानों पर छापेमारी की जा रही है। समाचार एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक एक लोकेशन कोलकाता में है और दूसरी सॉल्ट लेक में, जहां सीबीआई के पूर्व अंतरिम निदेशक की पत्नी की कंपनी एंगेला मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड है। कोलकाता में छापेमारी को लेकर CBI के पूर्व अंतरिम डायरेक्टर राव ने ANI से कहा, ‘जो कुछ भी यह हो रहा है, सब प्रॉपेगैंडा दिखाई देता है।’ ANI ने पूर्व CBI चीफ एम नागेश्वर राव का 30 अक्टूबर 2018 को जारी किया गया बयान भी जारी किया है, जिसमें उन्होंने एंगेला मर्केंटाइल प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के साथ किसी प्रकार का लिंक होने से इनकार किया था। शुक्रवार को कोलकाता पुलिस ने इसी कंपनी पर छापा मारा और इसे राव से जोड़कर बताया जा रहा है। पिछले करीब एक हफ्ते से ममता बनाम केंद्र के तौर पर मतभेद सामने आ रहे हैं। शुक्रवार को भी दिन में एक तरफ कोलकाता पुलिस कमिश्नर शिलॉन्ग पहुंच गए, जहां सारदा स्कैम को लेकर सीबीआई उनसे पूछताछ करनेवाली है। इसके कुछ घंटे बाद ही कोलकाता पुलिस का ऐक्शन शुरू हो गया और पूर्व सीबीआई चीफ के दो ठिकानों को खंगाला जा रहा है। कुछ घंटे पहले ही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र को चेतावनी भरे लहजे में कहा था कि अगर वरिष्ठ पुलिस अफसरों के मेडल वापस लिए गए तो वह उन्हें राज्य के सर्वोच्च सम्मान ‘बंग विभूषण’ से सम्मानित करेंगी। आपको बता दें कि पिछले रविवार को कोलकाता में ममता के धरने में पहुंचे 5 वरिष्ठ अफसरों के खिलाफ केंद्र सरकार कार्रवाई करने पर विचार कर रही है। खबर है कि ममता के साथ धरने पर बैठे अधिकारियों से उनको मिले मेडल वापस लिए जा सकते हैं। इसके अलावा उन्हें केंद्र में प्रतिनियुक्ति से भी रोका जा सकता है। गौरतलब है कि उस दिन पुलिस ने कुछ देर के लिए सीबीआई अफसरों को हिरासत में भी ले लिया था और फिर केंद्र सरकार के खिलाफ ममता बनर्जी धरने पर बैठ गई थीं। ऐसे में पुलिस की छापेमारी को सीबीआई के ऐक्शन से जोड़कर देखा जा रहा है।
नई दिल्ली राफेल डील: एमके स्टालिन बोले- आजाद भारत में कभी कोई प्रधानमंत्री इस तरह के गंभीर आरोपों से नहीं घिरा – राफेल डील पर एक अखबार में छपी रिपोर्ट पर संग्राम छिड़ा है। रिपोर्ट में तत्कालीन रक्षा सचिव के एक नोटिंग के हवाले से दावा किया गया है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में समानांतर बातचीत कर रहा था। इस बारे में रक्षा मंत्रालय की ओर से इस समानांतर बातचीत पर आपत्ति और चिंता व्यक्त की गई थी
सामने आई चिट्ठी : राफेल डील पर सीधे दखल दे रहा था प्रधानमंत्री कार्यालय, मनोहर पर्रिकर ने दिया था यह जवाब अंग्रेज़ी अखबार द हिंदू की ख़बर के मुताबिक रक्षा मंत्रालय तो सौदे को लेकर बातचीत कर ही रहा था, उसी दौरान प्रधानमंत्री कार्यालय भी अपनी ओर से फ्रांसीसी पक्ष से ‘समांतर बातचीत‘ में लगा था.
राफेल पर राहुल गांधी बोले- ‘द हिंदू’ की खबर ने PM मोदी की पोल खोल दी – राहुल गांधी ने एक बार फिर से राफेल सौदे को लेकर पीएम मोदी पर हमला बोला है. राहुल ने द हिंदू की खबर को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि प्रधानमंत्री ने 30 हजार करोड़ रुपये चुराए.
द हिंदू की इस रिपोर्ट के बाद राफेल डील का मामला फिर गरमा गया है और कांग्रेस को इस मामले में सत्तारूढ़ बीजेपी को घेरने का एक और मौका मिल गया है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने द हिंदू की रिपोर्ट से साफ है कि हमारी बात सच साबित हुई. पीएम मोदी खुद इस मामले में बात कर रहे थे और वे घोटाले में शामिल हैं. राहुल गांधी ने कहा कि इस खबर ने प्रधानमंत्री की पोल खोल दी. उन्होंने कहा कि भले ही आप रॉबर्ट वाड्रा और चिदंबरम की जांच कीजिए, मगर राफेल पर भी सरकार को जवाब देना चाहिए.
समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक मके स्टालिन ने राफेल डील पर रक्षा मंत्रालय के असंतुष्टि नोट पर कहा कि पीएम मोदी सुप्रीम कोर्ट की अवमानना के दायरे में आ गए हैं। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को दिए बंद लिफाफे में, केंद्र ने पीएमओ की किसी सौदेबाज़ी का उल्लेख नहीं किया है। आजाद भारत में कभी कोई प्रधानमंत्री इस तरह के गंभीर आरोपों से नहीं घिरा है।
राज्यसभा सांसद और आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह ने राफेल डील को लेकर सीबीआई को पत्र लिखा है। आप नेता ने प्रधानमंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। पत्र में संजय सिंह ने राफेल डील में घोटाला होने का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करने की मांग की है। ‘आप’ नेता ने दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू थाना पहुंचे और शिकायत की चिट्ठी थाने को सौंपी।
उधर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पीएम मोदी और सीबीआई पर निशाना साधते हुए एक ट्वीट में कहा, ‘राफेल पर आज हुए खुलासे के बाद स्वतंत्र सीबीआई ने जैसे मेरे और कोलकाता पुलिस आयुक्त के कार्यालय पर छापेमारी की वैसे ही वह प्रधानमंत्री कार्यलय पर छापेमारी करे और राफेल से संबंधित सभी फाइलों को जब्त कर उन्हें (पीएम मोदी) गिरफ्तार करे।’
संजय सिंह ने इस मामले में सामने आए नए दस्तावेजों को आधार बनाकर सीबीआई से जांच की मांग की है। आप नेता ने कहा कि राफेल विमान की खरीद में गड़बड़ी को लेकर सीवीसी, सीबीआई और सीएजी के समक्ष पिछले साल उनके द्वारा पेश किए गए तथ्यों की एक बार फिर पुष्टि हो गई है।
आप सांसद ने नवंबर 2015 में तत्कालीन रक्षा सचिव की ‘नोटिंग (टिप्पणी)’ के हवाले से शुक्रवार को आई एक खबर को आधार बनाया और कहा, ‘इससे साफ हो गया है कि केन्द्र सरकार इस मामले की जांच को प्रभावित कर रही है।’
उन्होंने कहा, ‘राफेल लड़ाकू विमान की खरीद प्रक्रिया में आज जिस रक्षा सचिव की असहमति का मामला सामने आया है, इसके मूल में उनकी वही शिकायत ही है, जिसे वह सीवीसी से पहले सीबीआई और कैग (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक) के समक्ष पेश कर चुके हैं।’
संजय सिंह के मुताबिक राफेल मामले में केन्द्रीय प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले साल उन्हीं की शिकायत पर तत्कालीन रक्षा सचिव को इस मामले पर संज्ञान लेने के लिए कहा था। उन्होंने कहा, ‘तत्कालीन रक्षा सचिव की जिस नोटिंग की बात आज सामने आ रही है, उन्हें मेरे शिकायती पत्र पर सीवीसी ने कार्रवाई करने को कहा था।’
राज्यसभा सांसद सिंह ने कहा कि इससे राफेल डील में घोटाले को लेकर लगाए जा रहे आरोपों की पुष्टि होती है और इसमें पीएम मोदी के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। सिंह ने कहा, ‘तत्कालीन रक्षा सचिव की 24 नवंबर 2015 की नोटिंग से भाजपा नेताओं का वह दावा भी गलत साबित हो गया जिसमें राफेल सौदे में कारोबारी अनिल अंबानी को फायदा नहीं पहुंचाने की बात लगातार कही जा रही है।’
: राफेल सौदे (Rafale Deal) में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) के हस्तक्षेप के खुलासे को लेकर कांग्रेस (Congress) के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कहा है कि ‘पर्रिकर को मामले की जानकारी ही नहीं थी. उन्होंने अपना पल्ला झाड़ लिया. उन्होंने खुद को मामले से अलग कर लिया जिससे कल को कुछ हो तो उनके ऊपर कुछ न आए. हालांकि अदालत में यह बात कितनी मानी जाएगी, पता नहीं.’
उन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि पहली बार ऐसा हुआ कि किसी पीएम (PM Narendra Modi) ने खुद किसी डिफेंस नेगोशिएशन में दखल दिया. हमारी चुनौती है, कोई एक भी ऐसा दूसरा मामला दिखा दे जिसमें पीएम नेगोशिएशन में शामिल हुए हों. हमारे मन मे प्रधानमंत्री पद के लिए बहुत सम्मान है लेकिन सुबह से जैसे कागज़ात सामने आए हैं उनसे ऐसा लगता है मानो इस मामले में पीएम या पीएमओ बिचौलिए की तरह काम कर रहे हों.
तिवारी ने कह कि कल चौकीदार ने हवा में खूब लाठियां चलाईं लेकिन आज सुबह चौकीदार की असलियतसामने आ गई. सरकार की तरफ से तथ्यों को छुपाने की हरसंभव कोशिश की गई, पर ये जो कम्बख्त सच है, ये उजागर हो जाता है. जब सच सामने आया तो सरकार ने घबराहट में अपने बचाव में कुछ पेपर सामने रखे. लेकिन ये पेपर पहले से भी ज्यादा फंसा रहे हैं पीएम को. नोट में साफ है कि डिफेंस मिनिस्ट्री ने कोई ऐसा इनपुट नहीं दिया था कि बैंक गारंटी की जरूरत नहीं होगी. लेकिन इसके बावजूद पीएमओ ने बैंक गारंटी के बिना समझौते की बात का भरोसा फ्रेंच अधिकारियों को कैसे और किस आधार पर दिया? कांग्रेस नेता ने कहा कि रक्षा मंत्री ने नोट में लिखा है ‘it appears’ मतलब उनको नहीं पता था कि क्या चल रहा है. वे अंदाजा लगा रहे हैं. रक्षा मंत्री ने साफ तौर पर मामले से किनारा कर लिया. जब रक्षामंत्री ने ये कहा कि आधा नोट ही प्रकाशित किया गया है, तो उनको शुक्रिया अदा करना चाहिए था न्यूज पेपर का. पूरा नोट सामने आने से तो सरकार की और किरकिरी हुई है. उन्होंने कहा कि कंफर्ट लेटर कब से प्रधानमंत्री को लिखे जाने लगे? फ्रांस की सरकार ने अगर ऐसा किया तो ये साफ दिखाता है कि उनकी नजर में नेगोशिएटर प्रधानमंत्री थे, रक्षा मंत्रालय या नेगोशिएशन कमेटी नहीं.70 साल के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ कि पीएम या उनके कार्यालय ने सीधे किसी डील में नेगोशिएट कियाहो. ऐसा लग रहा है कि प्रधानमंत्री किसी बिचौलिए कई तरह व्यवहार कर रहे थे. उन्होंने कहा कि अगर पीएम का ये मानना है कि गठबंधन महा मिलावट है तो वे तो 44 पार्टियों की महामिलावट वाले गठबंधन के सरगना हैं.
मोदी ने राज्य की बनर्जी सरकार पर जमकर हमले किए
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में रैली को संबोधित करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पश्चिम बंगाल पहुंचे है। यहां जलपाईगुड़ी में कई योजनाओं की आधारशिला रखने के बाद मोदी ने राज्य की बनर्जी सरकार पर जमकर हमले किए।
उन्होने कहा कि उत्तरी बंगाल से मेरा एक खास रिश्ता भी है और ये रिश्ता आपको भी मालूम है। ये रिश्ता चाय का रिश्ता है। आप चाय उगाने वाले हैं, मैं चाय बनाने वाला हूं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि पश्चिम बंगाल की सरकार ने माटी को बदनाम कर दिया है और मानुष को मजबूर कर दिया है। पश्चिम बंगाल अपनी कला और संस्कृति के लिए जाना जाता था और अब हिंसा और अलोकतांत्रिक रास्तों के लिए जाना जाता है।
प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की मुख्य बातें-
राजीव गांधी के समय, शाह बानो केस में कांग्रेस ने जो गलती की थी, अब वही गुनाह उसने कर दिया है। वो भूल गई है कि तीन तलाक से पीड़ित मुस्लिम महिलाओं को कितने बुरे दौर से गुजरना होता है, कितने संकटों से गुजरना होता है।
महिला अधिकारों पर झूठ बोलने वाली कांग्रेस ने अपनी असली सच्चाई भी देश के सामने रख दी है। तुष्टिकरण के लिए कांग्रेस किस हद तक जा सकती है, ये भी उसने कल फिर बता दिया है। कांग्रेस ने अब खुलकर कह दिया है कि वो तीन तलाक पर बन रहे कानून का विरोध करती है।
पूर्ण बहुमत की सरकार के कारण ही आज देश के विकास को गति मिल रही है। अगर आपने साढ़े 4 साल पहले एक मजबूत सरकार के लिए वोट नहीं दिया होता, तो दशकों से लटका भारत- बांग्लादेश सीमा विवाद आज भी नहीं सुलझ पाता।
बंगाल की सरकार द्वारा घुसपैठियों का स्वागत किया जाता है। लेकिन दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल, भाजपा के नेताओं को बंगाल आने से रोका जाता है।
आज हर उस व्यक्ति को मोदी से कष्ट है जो पूरी तरह से भ्रष्ट है। हम गरीबों को लूटने और देश की सेना को धोखा देने वालों को विदेशों से उठाके ला रहें है और महामिलावट वाले उन्हें बचाने का प्रयास कर रहें है।
मैं चिटफंड घोटाले के एक-एक पीड़ित को विश्वास दिलाता हूं कि आपको इस स्थिति में पहुंचाने वालों को कानून के दरवाजे तक पहुंचाया जायेगा। आखिर ममता दीदी चिटफंड घोटाले की जांच से आप इतना क्यों डरी हुई हैं? क्यों जिन लोगों पर जांच में लापरवाही बरतने का आऱोप है, उनके लिए धरना दे रही हैं ?
आज पश्चिम बंगाल में एक ऐसी मुख्यमंत्री हैं जो गरीबों की मेहनत से जुटाई पाई-पाई को लूटने वालों के साथ खड़ी हैं। देश के इतिहास में ये पहली बार देखा गया है कि कोई मुख्यमंत्री हज़ारों गरीब लोगों को लूटने वालों के पक्ष में दिन-दहाड़े धरने पर बैठ जाए।
टीएमसी सरकार की तमाम योजनाओं के नाम पर बिचौलियों का अधिकार है। दीदी, दिल्ली जाने के लिए परेशान हैं और बंगाल के गरीब और मध्यम वर्ग को सिंडिकेट के गठबंधन से लुटने के लिए छोड़ दिया है।
पश्चिम बंगाल में हिंसा का दौर जो दशकों से चल रहा है, वो खत्म होना चाहिए या नहीं? बंगाल के युवाओं को खून-खराबे से आज़ादी मिलनी चाहिए या नहीं ?
लोकसभा चुनाव 2019 से पहले कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल ने भोपाल में आभार सम्मेलन रैली को संबोधित किया है। राहुल ने कहा कि लोकसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस पार्टी ऐतिहासिक काम करने जा रही है। हिंदुस्तान ‘गारंटी इनकम’ देने वाला पहला देश होगा। जानिए उनके भाषण की मुख्य बातें-
कांग्रेस पार्टी ने निर्णय लिया है कि हिंदुस्तान अपने लोगों को गारंटी इनकम देने जा रहा है।
रक्षा मंत्रालय के अफसर कहते हैं कि नरेन्द्र मोदी ने रक्षा मंत्रालय को बिना बताये फ्रांस की सरकार से राफेल सौदे में समानांतर बातचीत की।
कांग्रेस पार्टी का कार्यकर्ता बब्बर शेर है। जनता को जोड़ने का काम, कमलनाथ जी को मुख्यमंत्री बनाने का काम कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने किया है।
किसान ने हमें कहा कि अनिल अंबानी को 30 हजार करोड़ रुपये दिये, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी को 35 हजार करोड़ रुपये दिये, विजय माल्या को 10 हजार करोड़ रुपये दिये तो हमारा कर्जा माफ क्यों नहीं हो रहा।
कांग्रेस पार्टी का कोई भी नेता और कार्यकर्ता इस बात को न भूले कि मालिक जनता है। ज्ञान जनता में है। हमारा काम जनता का आदेश सुनने का है।
छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस पार्टी चुनाव जीती। सबने कहा कि ये कांग्रेस पार्टी की सरकार है मगर ये मध्य प्रदेश के युवाओं, किसानों, महिलाओं, गरीबों, मजदूरों की भी सरकार है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने आते ही किसानों की कर्ज माफ़ी से काम शुरू किया और प्रदेश के लोगों से किया हर वादा एक के बाद एक पूरा हो रहा है।
भाजपा के कैडर नहीं है तीन दर्जन से अधिक प्रत्याशी
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन दर्जन से अधिक (41) ऐसे लोगों को प्रत्याशी बना सकती है जो भाजपा के कैडर नहीं है. इसका मतलब हुआ कि ऐसे 41 लोगों को लोकसभा का टिकट दिया जाएगा जो कुछ समय पहले ही भाजपा में शामिल हुए हैं या फिर शामिल होने की कगार पर हैं.
इन पैराशूट प्रत्याशियों में दूसरी पार्टियों से भाजपा में शामिल हुए राजनेता, फिल्म जगत के लोग तथा साहित्य और शिक्षा क्षेत्र के प्रमुख लोग होंगे. भाजपा सूत्रों का कहना है कि पिछले पौने पांच साल के दौरान समाज के विभिन्न क्षेत्रों के लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा की नीतियों की वजह से पार्टी से प्रभावित हुए हैं. मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राजनीति को लेकर सकारात्मक बदलाव आया है.
शिक्षा, कला, फिल्म, खेल, लेखन आदि क्षेत्रों के लोग राजनीति में आना चाह रहे हैं. भाजपा के एक नेता कहते हैं कि पौने पांच साल में ऐसे 100 से ज्यादा लोग पार्टी की सदस्यता ले चुके हैं. उन्हें औपचारिक रूप से पार्टी में शामिल किया गया है. ज्यादातर लोग ऐसे हैं जो पार्टी में रह कर काम करना चाह रहे हैं. ऐसे लोग यदि चुनाव जीत कर संसद पहुंचते हैं तो राजनीति को लेकर देश का भरोसा खासकर युवाओं का भरोसा बढ़ेगा. इसलिए लगभग तीन दर्जन लोगों को लोकसभा चुनाव में भाजपा अपना प्रत्याशी बनाने पर विचार कर रही है.
पार्टी के एक नेता कहते हैं कि अभी तक छवि यह थी कि अपने क्षेत्रों के प्रसिद्ध लोग सिर्फ राज्यसभा में स्थान बना सकते हैं. वह भी मनोनीत श्रेणी के तहत ही. इस छवि को तोड़ना जरूरी है. लोकसभा में भी ऐसे लोग चुन कर आ सकते हैं और चुन कर आना चाहते हैं यह पिछले पौने पांच साल में राजनीति में मोदी की वजह से बदलाव आया है. भाजपा ऐसे लोगों के लिए जमीन मुहैया कराएगी.
आसान नहीं प्रियंका की राह
भाजपा के आक्रामक हिंदुत्व के एजेंडे से निबटने के लिए कांग्रेस की रणनीति स्पष्ट नहीं-
यह प्रियंका के लिए अग्निपरीक्षा की घड़ी है क्योंकि पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में, वह प्रधानमंत्री मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों की संयुक्त क्षमता को चुनौती देंगी. दरअसल, प्रधानमंत्री की सीट वाराणसी और योगी का गढ़ गोरखपुर भी पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही पड़ता है. यही वजह है कि दिल्ली के जीसस ऐंड मेरी कॉलेज से पढ़ी मनोविज्ञान की स्नातक प्रियंका को—चुनाव से ठीक 100 दिन पहले इस क्षेत्र का प्रभार सौंपा गया है. प्रियंका के आने के बाद कांग्रेस को भाजपा से अपना पुराना वोट बैंक वापस मिलने की उम्मीद दिख रही है. कहा जा रहा है कि ब्राह्मण समुदाय विभिन्न वजहों से मोदी सरकार से कुछ खफा चल रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी (अत्याचार निवारण) अधिनियम के ‘सख्त’ प्रावधानों में कुछ रियायत दी थी पर मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया. इसके अलावा राज्य प्रशासन में ठाकुर समुदाय का प्रभाव बहुत बढ़ा है. ऐसी वजहों से ब्राह्मण खफा हैं.
2014 में, कांग्रेस ने यूपी की 80 में से सिर्फ दो लोकसभा सीटें जीतीं और जीतने वाले दोनों ही नेहरू-गांधी परिवार के सदस्य थे—रायबरेली में सोनिया गांधी और अमेठी में राहुल गांधी. यूपी, जो अक्सर तय करता है कि दिल्ली में सरकार किसकी बनेगी, वहां भाजपा और समाजवादी पार्टी (सपा)-बहुजन समाज पार्टी (बसपा) गठबंधन के अलावा प्रियंका के नेतृत्व में तीसरी ताकत के रूप में उभर रही कांग्रेस के बीच, कांटे की त्रिकोणीय टक्कर होने की उम्मीद है.
अपनी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का महासचिव नियुक्त करके कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ा दांव चल दिया है. प्रियंका गांधी पूर्वी उत्तर प्रदेश की जिक्वमेदारी संभालेंगी. इसके साथ ही लखनऊ के माल एवेन्यू में मौजूद प्रदेश कांग्रेस कार्यालय प्रियंका की अगुवानी के लिए संवरने लगा. प्रदेश अध्यक्ष के नए कार्यालय से सटे एक बंद पड़े बड़े कमरे को तैयार करने में सबसे ज्यादा ध्यान लगाया जा रहा है. इसी कमरे में 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले चुनावी रणनीतिकार और अब जनता दल यूनाइटेड के नेता प्रशांत किशोर की टीम बैठती थी. इसी सबसे बड़े कमरे को प्रियंका के सचिवालय के रूप में ढाला जा रहा है.
प्रियंका गांधी का राजनीति में प्रवेश राहुल गांधी के कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की योजना का हिस्सा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद से ही राहुल गांधी संकेत दे रहे थे कि पार्टी के दोबारा खड़े होने की राह उन राज्यों से होकर गुजरती है जहां लोकसभा की अधिक सीटें हैं. मसलन, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र. इसके लिए सबसे पहली जरूरत है संगठन को मजबूत करने की, जो कि लंबे वक्त का काम है. राहुल गांधी संगठन में बदलाव के लिए धीमी लेकिन ठोस रणनीति पर काम करते हुए जीत के इंतजार में थे. बगैर कामयाबी हासिल किए प्रियंका की एंट्री को राहुल के नेतृत्व की विफलता और पार्टी की ओर से इसकी स्वीकारोक्ति के रूप में देखा जाता. लिहाजा, हाल में तीन हिंदीभाषी राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद संगठन में प्रियंका की एंट्री का उपयुक्त मौका मिला.
उनकी नियुक्ति के बाद राहुल ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि उनका काम लंबे समय के लिए है न कि सिर्फ 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी के लिए सीटें जीतना. कांग्रेस के एक राज्यसभा सांसद का कहना है, ”80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश में मजबूत हुए बगैर कोई भी पार्टी भारत में राज करने की बात नहीं सोच सकती. प्रियंका युवा, आकर्षक व्यक्तित्व की धनी और तरोताजा चेहरा हैं. लंबे समय में उनसे यूपी में जीत की उम्मीद है. वे कांग्रेस को फिर मजबूत करने की योजना का हिस्सा हैं.”
राहुल राज्यों में पार्टी को मजबूत करने पर जोर देते हैं और मानते हैं कि हर राज्य के लिए एक ही रणनीति कारगर नहीं है. यही वजह है कि पार्टी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन में शामिल नहीं हुई. हालांकि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर पर 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी और भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष के हिमायती हैं. कांग्रेस के बहुत सारे जमीनी कार्यकर्ता पहले ही राहुल से कह चुके थे कि सपा-बसपा गठबंधन में 10 सीटों के साथ जूनियर पार्टनर बनने से पार्टी को भारी नुक्सान होगा.
वैसे, भाजपा को नुकसान पहुंचाने की ताकत रखने वाले गठबंधन को राहुल आहत नहीं करना चाहते थे. ऐसे में कांग्रेस को ऐसे नेता की तलाश थी जो न केवल कार्यकर्ताओं में ऊर्जा भर दे बल्कि भगवा पार्टी से नाराज और सपा-बसपा को वोट देने के अनिच्छुक लोगों को एकजुट कर सके. इस काम के लिए प्रियंका से बेहतर कोई नहीं है. राहुल का कहना है, ”हम यथासंभव अखिलेश यादव और मायावती के साथ मिलकर काम करेंगे. साथ ही कांग्रेस की विचारधारा का स्थान बनाएंगे और इस दिशा में यह कदम बहुत महत्वपूर्ण है.”
शायद इसी राजनीतिक समीकरण के हिसाब से ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिमी उत्तर प्रदेश का महासचिव तैनात किया गया है. सिंधिया को राज्य के ठाकुर वोटों को आकर्षित करने के लिए भेजा गया है जबकि प्रियंका को ब्राह्मण मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने के लिए आगे बढ़ाया गया है. हालांकि सिंधिया निजी बातचीत में दावा करते हैं कि वे पिछड़े वर्ग से आते हैं.
हालांकि, पार्टी के सामने अब भी यह दुविधा बनी हुई है कि वह लोकसभा चुनाव बाद बनने वाले समीकरण को ध्यान में रखते हुए सपा-बसपा गठबंधन के खिलाफ आक्रामक रहे या नरमी बरते. कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव गुलाम नबी आाजद कहते हैं, ”यूपी में कांग्रेस पूरी ताकत के साथ सभी लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी. विरोधियों के साथ नरमी बरतने का सवाल ही पैदा नहीं होता.” वहीं, बसपा-सपा के अलग जाने के बाद कांग्रेस ने सपा के बागी नेता शिवपाल सिंह यादव की प्रगतिशील समाजवादी पार्टी, अपना दल (कृष्णा), महान दल जैसी पार्टियों से बातचीत शुरू की है. शिवपाल कहते हैं, ”कांग्रेस एक सेकुलर पार्टी है. भाजपा को हराने के लिए हम कांग्रेस का समर्थन कर सकते हैं.”
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के विधानसभा चुनावों में किसानों का भारी समर्थन बटोरने वाली कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश के अन्नदाताओं को साधने की भी है. पार्टी की संगठनात्मक उदासीनता का आलम यह है कि प्रदेश में पिछले सात वर्षों से भंग किसान विभाग का गठन अब तक नहीं हो पाया है.
2011 में रीता बहुगुणा जोशी के प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहते किसान विभाग को भंग कर दिया गया था. इसके बाद निर्मल खत्री प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बने और अब राज बब्बर के हाथों यूपी में पार्टी की कमान है, लेकिन किसान विभाग को बहाल करने की सुध किसी ने नहीं ली. कांग्रेस के नेशनल मीडिया पैनलिस्ट सुरेंद्र राजपूत बताते हैं, ”कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से बड़ा किसान हितैषी नेता पूरे देश में नहीं है. प्रियंका जी राहुल गांधी और किसानों के बीच बखूबी लिंक का काम करेंगी.” कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले एक बार फिर उत्तर प्रदेश में राहुल गांधी की किसान रैलियों की रणनीति बना रही है.
जाहिर है, प्रियंका गांधी के लिए यूपी में उनका सियासी प्रवेश, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभार बेहद चुनौतीपूर्ण है. उनके सामने वाराणसी से सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा गोरखपुर में खासा असर रखने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की चुनौती है. कांग्रेस समर्थक 47 वर्षीया प्रियंका गांधी में इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं और इसी को पार्टी मोदी केखिलाफ भुनाना चाहती है. लेकिन पार्टी की चुनौतियों से निबटना आसान नहीं होगा (देखें बॉक्स). हालांकि, बाराबंकी के पूर्व सांसद पी.एल. पुनिया बताते हैं, ”छत्तीसगढ़ की तर्ज पर यूपी में भी जुझारू कांग्रेसी कार्यकर्ताओं की टीम तैयार कर लोकसभा चुनाव में बेहतर नतीजे हासिल किए जाएंगे.”
प्रियंका गांधी की एंट्री पर केंद्रीय मंत्री जे.पी. नड्डा कहते हैं, ”यह कांग्रेस की पहली औपचारिक घोषणा है कि उसे राहुल गांधी के नेतृत्व में विश्वास नहीं है.” हालांकि, एक शख्स प्रियंका की नियुक्ति पर मुस्कुरा रहा होगा. वे हैं—जदयू नेता और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर जो 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले प्रियंका को लॉन्च करना चाहते थे. किशोर कहते हैं, ”कुछ लोग टाइमिंग, रोल और पोजीशन पर बहस करेंगे पर मेरे लिए असली खबर यही है कि उन्होंने आखिरकार समर में उतरने का फैसला कर लिया.”
वीरेंद्र सहवाग ने इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार किया
पूर्व भारतीय क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग ने इस साल होने वाले लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार किया है. पिछले कुछ दिनों से रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा था कि वीरेंद्र सहवाग बीजेपी की तरफ से हरियाणा की रोहतक सीट पर उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं. लेकिन सोशल मीडिया पर अपनी बात रखते हुए सहवाग ने इस तरह की खबरों को खारिज किया.
सहवाग ने ट्वीट करते हुए लिखा कि कुछ चीजें कभी नहीं बदलती हैं, जैसे की इलेक्शन की अफवाहें. उन्होंने कहा, ”इन अफवाहों में कुछ भी नहीं बदला है. 2014 में भी इसी तरह की बातें की जा रही थी और 5 साल बाद 2019 में भी ऐसा ही लिखा जा रहा है. मेरी उस समय भी चुनाव लड़ने में रुचि नहीं थी और अब भी नहीं है. बात खत्म” इसके साथ ही वीरेंद्र सहवाग ने उन खुद के चुनाव लड़ने की खबरों की तस्वीरों को भी शेयर किया.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में दावा किया गया था कि बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता को सहवाग को चुनाव लड़ने के लिए मनाने की जिम्मेदारी दी गई है. उस रिपोर्ट के मुताबिक बीजेपी ने रोहतक से सहवाग को टिकट देने का पूरा मन बना लिया था, बस एलान के लिए सहवाग की हामी का इंतजार था. साथ ही बताया गया था कि जिस नेता को यह जिम्मेदारी मिली है वह दिल्ली एनसीआर की राजनीति में काफी एक्टिव रहते हैं.
बता दें कि अभी सिर्फ एक पूर्व क्रिकेटर ही लोकसभा सासंद हैं. कीर्ति आजाद बिहार के दरभंगा से 2014 में तीसरी बार बीजेपी के सासंद बने थे. सहवाग के अलावा एक्ट्रेस माधुरी दीक्षित का नाम भी बीजेपी के टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए सामने आ रहा था. पर माधुरी दीक्षित ने भी राजनीति में आने के किसी प्लान से इंकार किया.
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