16 मई तक लॉकडाउन-4 राज्यों ने कहा- & Top News 26 April 20
26 April 20: High Light# 26 अप्रैल 2020; उत्तराखंड: आज दोपहर 12.35 बजे खुले गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट # 30 जून तक कोई भी सार्वजनिक कार्यक्रम करने की अनुमति न दी जाए: सीएम योगी # जम्मू-कश्मीर के प्रधान सचिव ने कहा- कोटा से कल 376 छात्रों को लाया जाएगा # राजस्थान में कोरोना से अब तक 36 लोगों की मौत # कर्नाटक में कोरोना मरीजों की संख्या 500 के पार, अब तक 18 लोगों की मौत # बिहार में छपरा के पास रविवार को बड़ी घटना सामने आई. छपरा से सटे विशुनपुरा में रविवार सुबह बारिश के दौरान आकाशीय बिजली गिरने से 6 लोगों की मौत हो गई, जबकि उसकी चपेट में आए 2 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए. घायलों का इलाज छपरा के सदर अस्पताल में चल रहा है. #
# उत्तर प्रदेश के एटा में शनिवार को एक घर में मिले 5 शवों के मामले में पुलिस ने बड़ा खुलासा किया है. पुलिस का कहना है कि घर की ही एक महिला ने खाने में जहर मिला कर घर के सदस्यों की हत्या की थी. एक मासूम बच्चे का गला दबा कर हत्या किए जाने की बात सामने आई है. घटना में शामिल आरोपी महिला यह सुनिश्चित करना चाहती थी कि घर का कोई सदस्य जीवित न बचे.
राजस्थान में आज सामने आए 69 नए केस, राज्य में मरीजों की संख्या हुई 2152
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने रविवार को रेडियो कार्यक्रम मन की बात (Mann Ki Baat) के दौरान देशभर की जनता को संबोधित किया. इस दौरान उन्होंने देश की जनता से कोरोनावायरस (Coronavirus) को लेकर बात की. साथ ही उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों को रमजान (Ramadan) के दौरान ज्यादा इबादत करने के लिए भी कहा. उन्होंने कहा कि मुस्लिम पहले से ज्यादा इबादत करें ताकि दुनिया ईद से पहले कोरोनावायरस (COVID-19) के प्रकोप से मुक्त हो जाए.
चार राज्यों ने साफ़ शब्दों में कह दिया है कि वे 3 मई के बाद भी अपने-अपने राज्य में लॉकडाउन बरक़रार रखेंगे। दिल्ली के बाद महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब और ओड़िशा ने कहा है कि वे 16 मई तक लॉकडाउन बनाए रखना चाहते हैं।
6 दूसरे राज्यों-गुजरात, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और कर्नाटक ने कहा है कि वे लॉकडाउन हटाने के मुद्दे पर केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करेंगे। इसके साथ ही बिहार, असम और केरल ने कहा है कि वे प्रधानमंत्री के साथ बैठक के बाद ही बताएंगे कि उन्हें क्या करना है।
तेलंगाना ने लॉकडाउन की अवधि 7 मई तक पहले ही बढ़ा दी है। उसने कहा है कि इस अवधि के ख़त्म होने के दो दिन पहले वह समीक्षा करेगा कि उसे आगे क्या करना है।
वही दूसरी ओर 26 अप्रैल 20- आज नैशनल मीडिया में यह सुुुुुुुुर्खिया है-
नई दिल्ली/मुंबई. पवन कुमार/विनोद यादव. सरकार का लक्ष्य मई अंत तक प्रतिदिन एक लाख मरीजों की जांच करने का है। बड़ा सवाल खड़ा हो गया है कि क्या हम इस लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे? क्योंकि, अभी हम प्रतिदिन करीब 30 हजार जांच ही कर पा रहे हैं। इस समय कोरोना संक्रमित देशों की संख्या करीब 213 है। इन देशों में प्रति दस लाख आबादी के हिसाब से भारत सिर्फ 33 देशों से ज्यादा टेस्ट कर रहा है जबकि 38 देशों के जांच के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। सार्क मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. रवि वानखेडकर कहते हैं कि हमारे यहां बहुत ही कम टेस्टिंग हो रही है। आज की स्थिति में कम से कम एक लाख टेस्ट रोज होने चाहिए। पिछले करीब डेढ़ माह में आईसीएमआर में 82 कंपनियों ने आरटी-पीसीआर किट सत्यापित करवाने के लिए आवेदन किया है। इनमें 17 कंपनियों को वैलिडेट किया गया है। इनकी मशीन और किट के परिणाम सही हैं।
वही दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल चौथी बार मन की बात की, कहा- कोरोना से लड़ाई को कोई हल्के में न लें ‘आग, कर्ज और बीमारी मौके पड़ते ही दोबारा उभर जाती हैं, इसलिए हमें लापरवाही नहींं करना चाहिए’ उन्होंने कहा- अपनी आदतों को बदलें, बाहर निकलें तो मास्क लगाएं और कहीं भी थूकें नहीं
वही पटना से आ रही खबरो के अनुसार बिहार में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) पर आरोप लगाया है कि राज्य में आपदा राहत केंद्र में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है. तेजस्वी ने रविवार को अपने इस बयान का आधार एक जिला न्यायाधीश के उस पत्र को बनाया हैं, जो उन्होंने एक राहत केंद्र के निरीक्षण के बाद बिहार सरकार के गृह विभाग के अपर सचिव को लिखा है. तेजस्वी ने अपने बयान में कहा कि जिला एवं सत्र न्यायाधीश, शिवहर के रोंगटे खड़े करने वाले इस पत्र को पढ़कर आप बिहार सरकार की कोरोना संबंधित तैयारियों, बचाव और उपचार का अंदाजा लगा सदमे में जा सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘मैं पहले दिन से कह रहा हूं बिहार भगवान भरोसे चल रहा है. थकी-हारी बिहार सरकार कोरोना के नाम पर बस खानापूर्ति कर रही है. सरकार की ना कोई समेकित योजना है ना ही दृष्टि. सरकार की ना कोई प्रो-एक्टिव अप्रोच है और ना ही रिएक्टिव.’ इसके बाद तेजस्वी ने कहा कि बिहार में हालात बदतर होते जा रहे हैं. जरूरी टेस्टिंग नहीं हो रही है. ना ही आवश्यक संख्या में टेस्टिंग किट्स और वेंटिलेटर्स उपलब्ध हैं. बाहर फंसे 17 लाख बिहारियों को निकालने की कोई व्यवस्था नहीं है, ना ही अप्रवासी कामगारों और छात्रों को वापस लाने की कोई मंशा है.
तेजस्वी ने आगे कहा कि राज्य सरकार पूर्णतः असहाय, असमर्थ और थकी हुई है. चहुंओर राशन वितरण में धांधली की खबर है. लाभार्थियों को गला-सड़ा अनाज बांटा जा रहा है. क्वारंटाइन केंद्रों में कोई सुविधा नहीं है. जांच रिपोर्ट्स में लगातार गड़बड़ी उजागर हो रही है. सरकार द्वारा जारी आंकड़ों में स्थिरता और पारदर्शिता नहीं है. पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों के पास जरूरी स्वास्थ्य सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं है. जरूरतमंदों तक मदद और राहत सामग्री नहीं पहुंच रही है. बिहार में सबसे कम टेस्ट हो रहे हैं. उन्होंने कहा कि बकौल केंद्रीय मंत्री सार्वजनिक वितरण प्रणाली में बिहार का सबसे बुरा प्रदर्शन है. बैंकों और बाजारों में सामान्य दिनों की तरह भीड़ जमा हो रही है. लॉकडाउन का उचित पालन नहीं हो रहा है. यह सब मुख्यतः माननीय मुख्यमंत्री की विफलताएं हैं. जिनका कहीं कोई जिक्र नहीं हो रहा है. प्रशासन के असहयोगात्मक रवैये के बावजूद जमीन पर मुख्य रूप से विपक्षी दलों के सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता जरूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं. हमेशा की तरह मुख्यमंत्री और सरकार ज्वलंत समस्याओं की बजाय नफा-नुकसान के राजनीतिक हथकंडों में उलझे हुए हैं.
ऐसा नहीं है कि सरकार उनकी तकलीफों को दूर करने के लिए कुछ नहीं कर सकती है. दूसरे देशों में फंस गए सैंकड़ों भारतीयों को हवाई जहाज से वापस भारत लाया गया. अखबार बताते हैं कि 28 मार्च को, यानी लॉकडाउन के बाद 18,00 प्रभावशाली गुजरातियों को लग्जरी बसों में बैठाकर उत्तराखंड से वापस भेजा गया.
गरीबों को कुछ बेहद बुनियादी सवाल पूछने के ‘जुर्म’ में पीटा जा रहा है, अस्पताल भारी दबाव में चरमरा रहे हैं. डॉक्टरों को कामचलाऊ मास्क से काम चलाना पड़ रहा है. सोशल मीडिया नफरत उगल रहा है, भारतीय टेलीविजन चैनल मुस्लिमों को सबसे खतरनाक दुश्मन के तौर पर पेश कर रहे हैं और सरकारें स्वतंत्र पत्रकारों के पीछे पड़ी हैं. यह भारत के स्वर्ग का एक सामान्य दिन है. कोई कह सकता है कि नए भारत में यह एक आम हो गई बात है. नहीं, यह कोई नयी चीज नहीं है. पुराने फैशन के परंपरागत भारत का यह सामान्य नजारा है. हम हमेशा से ऐसे ही रहे हैं और हमेशा ऐसे ही रहेंगे. यह हमें विरासत में मिली चीज है और और संकट के काले बादल छंट जाने के बाद हम लौटकर इसी स्थिति में आ जाते हैं.
एक ऐसा देश जो जुगाड़ पर नाज़ करता है और 5000 साल पहले की तथाकथित उपलब्धियों के ख्वाबों की दुनिया में रहता है, उससे यह उम्मीद करना बेमानी है कि वह व्यवस्था और प्रक्रियाओं को दुरुस्त करने में इतनी मेहनत करेगा कि वे बिना किसी रुकावट के और सक्षम तरीके से काम कर सकें. यह हमारी तहजीब का हिस्सा नहीं है.
किसी भयावह संकट के दौर में- वर्तमान समय में यह संकट एक महामारी के रूप में आया है, लेकिन अतीत में यह कभी भूकंप, कभी बाढ़ आदि के रूप में आता था- हमारे रहनुमाओं में ‘कार्रवाई करते हुए दिखने’ की होड़ लगी रहती है. आदेश दिए जाते हैं, बड़ी-बड़ी घोषणाएं की जाती हैं और जब संकट का प्रकोप कम होने लगता है, तब और धन आवंटन और चीजों को बेहतर बनाने के वादे किए जाते हैं. जैसा कि हमने अतीत में कई बार देखा है- इस बात की उम्मीद मत लगाइए कि स्वास्थ्य के क्षेत्र मे भारत का निवेश बढ़ जाएगा. लेकिन इस बार सत्ता व्यवस्था ने जिस तरह से प्रतिक्रिया दी है, वह पहले से काफी अलग है. लोगों तक, खासतौर पर जो सबसे ज्यादा गैर-महफूज हैं, उन तक पहुंचने की रस्मअदायगी भी नहीं दिखाई दे रही है. सहानुभूति का कोई संकेत नहीं है. स्पष्ट हिदायतें और दिशा-निर्देश देनेवाली संकल्पवान निर्णय क्षमता का आभास नहीं मिल रहा है.
न ही किसी कार्य-योजना की भनक है, जो भले दीर्घाकालिक समाधान की बात न करे, लेकिन जिन्हें मदद की तत्काल जरूरत है, कम से कम उन्हें तो मदद पहुंचाए. निश्चित तौर पर अपवाद भी हैं. केरल, राजस्थान, ओडिशा और कुछ हद तक महाराष्ट्र की सरकारें अपने नागरिकों को मदद पहुंचाने के लिए काम कर रही हैं. ऐसा नहीं है कि इन रणनीतियों में कमियां नहीं हैं- महाराष्ट्र में संसाधनों के अक्षम प्रयोग के कारण मृत्यु दर ज्यादा है और बड़ी संख्या में लोगों- गरीब और प्रवासी मजदूर- को मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. कहने का मतलब यह भी नहीं है कि यह स्थिति पूरी तरह से काबू में है, लेकिन हालात को बेहतर बनाने का एक संकल्प दिखाई दे रहा है.
मुख्यमंत्रियों द्वारा लगातार किया जाने वाला संवाद और उनका आचरण नागरिकों में एक आश्वस्ति का भाव जगा रहा है. गुजरात, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तो व्यवस्था चरमरा-सी गई दिखाई देती है. मध्य प्रदेश का स्वास्थ्य विभाग खस्ता हालत में है और जहां तक उत्तर प्रदेश का सवाल है, तो वहां के संत मुख्यमंत्री लाठी से आगे नहीं सोच सकते हैं.
यह तथ्य कि ऐसे संकट के बीच में उनकी पुलिस एक पत्रकार को तीन दिन बाद एक पुलिस थाने में हाजिर होने का नोटिस थमाने के लिए 700 किलोमीटर की यात्रा करके आ सकती है, हास्यास्पद हो सकता था, बशर्ते यह इतना धमकी भरा नहीं होता.
राज्यों के बीच अंतर स्पष्ट है, लेकिन इन सबके बीच कहीं न कहीं यह भी साफ है कि वर्तमान सत्ताधारी दल, राजनीतिक दांव-पेंच, राजनीतिज्ञों की खरीद-फरोख्त और चुनाव जीतने में तो माहिर है, लेकिन उसमें शासन करने का हुनर नहीं है. यह सबसे ज्यादा केंद्र में स्पष्ट है, जहां केंद्र सरकार भविष्य में उठाए जाने वाले कदमों का कोई सुसंगत खाका नहीं पेश कर पाई है. प्रशासन द्वारा किए जानेवाले बड़े-बड़े दावों को तो छोड़ ही दीजिए, प्रधानमंत्री का यह कहना कि जनवरी में ही भारत में टेस्टिंग शुरू हो गई थी, आंशिक तौर पर गलत है. विमानों की आवाजाही हमेशा की तरह जारी थी और लोगों के किसी जगह बड़ी संख्या में इकट्ठा होने पर कोई पाबंदी नहीं थी.
24 फरवरी को अहमदाबाद में ‘नमस्ते ट्रंप’ कार्यक्रम इसका अच्छा उदाहरण है. रोग के फैलने को लेकर गंभीर कोई सरकार ऐसे किसी आयोजन को न होने देती और साथ ही मध्य प्रदेश के अपने नये-नवेले मुख्यमंत्री को भव्य शपथग्रहण समारोह न करने का निर्देश देती. लेकिन प्रधानमंत्री के बार-बार आने वाले उपदेशपूर्ण राष्ट्र के नाम संदेशों ने वास्तव में उनकी और इस तरह से उनकी सरकार की विश्वदृष्टि का इजहार किया है. लॉकडाउन और उसकी मियाद में बढ़ोतरी की अचानक की जाने वाली घोषणाएं, हर बार तनाव और अफरा-तफरी की हालत पैदा कर देती हैं, खासकर कमजोर तबकों के बीच. उनके पितातुल्य उपदेशों के मुख्य विषय कुछ इस तरह से रहे हैं- मैं अपने प्यारे देशवासियों से अपील करना चाहूंगा कि वे ये सांकेतिक कार्य करें और इन सुरक्षा उपायों को अपनाएं- बड़े-बुजुर्गों का ख्याल रखें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, अपने कर्मचारियों के प्रति सहानुभूति दिखाएं और गरीबों की मदद करें. उनके भाषणों में सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों पर कोई चर्चा खोजने से भी नहीं मिलेगी, स्वास्थ्य संबंधी को बेहतर बनाने का संकल्प और गरीबों और प्रवासी कामगारों की देखभाल की कोई योजना कहीं नहीं मिलेगी.
गरीबों की मदद करने की जिम्मेदारी नागरिकों पर है (बदनाम किए गए एनजीओ, जिसके पीछे मोदी सरकार हाथ धोकर पड़ी रही है, पहले से ही झुग्गियों में काम कर रहे हैं और वहां रहने वालों की मदद उन्हें भोजन और दवा मुहैया कराके कर रहे हैं). संक्षेप में कहा जाए तो आप अपने भरोसे ही हैं.
यह मुमकिन है कि सरकार पर्दे के पीछे महामारी से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हो. व्यवस्था में ऐसे नौकरशाह हैं, जो लोकसेवा के प्रति आज भी समर्पित हैं. हो सकता है कि मंत्रीगण भी फैसले लेने के लिए रात-दिन एक कर रहे हों. हो सकता है कि हालात काबू में आ रहे हों. अगर ऐसा है, तो भी हम नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. नरेंद्र मोदी के अलावा किसी को भी देश से बात करने की इजाजत नहीं है. विश्वसनीय सार्वजनिक चेहरों की गैर मौजूदगी के कारण यह बस कागजी पुतलों की सरकार होने का एहसास देती है. कभी-कभार कोई आता है और (एकतरफा) प्रेस ब्रीफिंग करता है या सहयोगी मीडिया, न्यूज एजेंसियों और पत्रकारों के मार्फत कोई सूचना छनकर बाहर आ जाती है, लेकिन चूंकि इन्हें क्रॉस चेक का कोई रास्ता नहीं होता, इसलिए यह संतोषजनक नहीं है. और आज तक इस बारे में कोई जानकारी नहीं है कि हजारों लोग, जिनके पास कोई नौकरी नहीं है, कोई पैसा नहीं है और सिर पर छत नहीं है, अपने गांव के घरों तक कैसे पहुंचेंगे? ऐसा नहीं है कि सरकार उनकी तकलीफों को दूर करने के लिए कुछ नहीं कर सकती है. दूसरे देशों में फंस गए सैंकड़ों भारतीयों को हवाई जहाज से वापस भारत लाया गया.