बुधवार (26 जून) को सीबीआई ने गिरफ्तार & नेता-प्रतिपक्ष से प्रधानमंत्री पद  & USB-C पोर्ट लगाना अनिवार्य & जहां मेडिकल की पढ़ाई की फीस भी बहुत कम & जहां मेडिकल की पढ़ाई की फीस भी बहुत कम Top News 26 june 24

HIGH LIGHT # बुधवार (26 जून) को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया #बंदा जेल से बाहर ना आ जाये #नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी#जहां मेडिकल की पढ़ाई की फीस भी बहुत कम ####

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सीएम की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने कहा कि ये कानून नहीं है. ये तानाशाही और इमरजेंसी है. सुनीता केजरीवाल ने कहा, “20 जून अरविंद केजरीवाल को बेल मिली. तुरंत ईडी ने स्टे लगवा लिया. अगले ही दिन सीबीआई ने आरोपी बना दिया और आज गिरफ़्तार कर लिया. पूरा तंत्र इस कोशिश में है कि बंदा जेल से बाहर ना आ जाये. ये क़ानून नहीं है. ये तानाशाही है. इमरजेंसी है.”

न्यूज़ एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, सीबीआई ने सीएम केजरीवाल की पांच दिनों की हिरासत की मांग की है. कोर्ट ने सीबीआई की याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है. केंद्रीय जांच एजेंसी ने विशेष न्यायाधीश अमिताभ रावत से अनुमति मिलने के बाद कोर्ट में सीएम केजरीवाल को गिरफ्तार कर लिया. 

सीएम केजरीवाल को तिहाड़ जेल से कोर्ट में पेश किया गया था. इसके बाद सीबीआई ने उन्हें गिरफ्तार करने की अनुमति देने का अनुरोध किया था. सीएम केजरीवाल आबकारी नीति मामले में जेल में बंद हैं. इस मामले की जांच ईडी कर रही है. 

सीबीआई ने कोर्ट में अनुरोध किया कि सीएम से पूछताछ की जरूरत है. जांच एजेंसी ने कहा कि दिल्ली के सीएम का सबूतों और इस मामले में अन्य आरोपियों से सामना कराने की जरूरत है. 

सीबीआई की ओर से पेश वकील ने कहा, ‘‘दुर्भावना के अनावश्यक आरोप लगाए जा रहे हैं. हम चुनावों से पहले भी यह कार्यवाही कर सकते थे. मैं (सीबीआई) अपना काम कर रहा हूं.’’ 

सीएम केजरीवाल का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील ने उनको हिरासत में देने का अनुरोध करने वाली सीबीआई की याचिका का विरोध किया और रिमांड अर्जी को पूरी तरह बेकार बताया. बचाव पक्ष ने न्यायाधीश से सीएम केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई की कार्यवाही से जुड़े दस्तावेज भी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया जिसमें मंगलवार शाम को तिहाड़ जेल में उनसे पूछताछ से जुड़ा अदालत का आदेश भी शामिल है.

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को मंगलवार (25 जून) को विपक्ष का नेता बनाया गया

ओम बिरला बुधवार (26 जून) को लगातार दूसरी बार लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए हैं. इसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने 10 साल बाद राहुल गांधी को नेता विपक्ष की मान्यता दी. राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष का दर्जा 9 जून, 2024 से प्रभावी रहेगा. कांग्रेस सांसद राहुल गांधी को मंगलवार (25 जून) को विपक्ष का नेता बनाया गया . पार्टी के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने उनके नाम की घोषणा की थी.

2009 से 2014 तक भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज लोकसभा में विपक्ष की नेता थीं. कांग्रेस की तरफ से विपक्षी आखिरी नेता सोनिया गांधी थी जो 1999 से 2004 तक इस पद पर थीं. इसके अलावा राजीव गांधी भी 18 दिसंबर 1989 से 24 दिसंबर 1990 तक विपक्ष के नेता रहे हैं.

राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता नियुक्त करने का फैसला कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के नई दिल्ली स्थित आवास पर इंडिया गठबंधन के नेताओं की बैठक में लिया गया था. राहुल गांधी पांच बार सांसद रह चुके हैं और वर्तमान में लोकसभा में रायबरेली निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. उन्होंने मंगलवार को संविधान की एक प्रति लेकर सांसद के रूप में शपथ ली थी.

बुधवार को राजस्थान के कोटा से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सांसद ओम बिरला को दूसरी बार लोकसभा का अध्यक्ष चुने जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्ष के नेता राहुल गांधी और संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू उन्हें आसन तक लेकर गए थे. इसके बाद ओम बिरला को बधाई और शुभकामनाएं देते हुए पीएम मोदी ने कहा, ‘‘आप दूसरी बार इस आसन पर विराजमान हो रहे हैं, यह इस सदन का सौभाग्य है. 18वीं लोकसभा में अध्यक्ष का कार्यभार दूसरी बार संभालना अपने आप में एक नया रिकॉर्ड है.”

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी सदन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष ओम बिरला को बधाई दी और कहा, “हमें उम्मीद है कि वह विपक्ष को बोलने का मौका देकर संविधान रक्षा का अपना दायित्व निभाएंगे. विपक्ष सदन चलाने में पूरा सहयोग करेगा, लेकिन यह भी जरूरी है कि विपक्ष को सदन के अंदर लोगों की आवाज उठाने का मौका मिले.”

अखिलेश यादव और राहुल गांधी ने ओम बिरला को बधाई देते हुए सरकार पर हमला भी किया. लोकसभा स्पीकर के चुनाव में मिली जीत के बाद एनडीए गदगद नजर आ रहा है. इस मौके पर राहुल गांधी ने ओम बिरला को बधाई दी और कहा कि संसद में सत्ता पक्ष के साथ विपक्ष की भूमिका अहम होती है. विपक्ष जनता की आवाज होती है. विपक्ष सरकार के साथ सहयोग करेगा, लेकिन सरकार को भी हमें सुनना होगा. राहुल गांधी ने इशारों-इशारों में ओम बिरला को उनके पिछले कार्यकाल के दौरान सांसदों के निलंबन को लेकर भी तंज कसा. उन्होंने कहा कि जब विपक्ष को अपनी बात रखने का मौका मिलेगा तो लोकतंत्र मजबूत रहेगा. राहुल सदन में ओम बिरला के साथ खड़े हुए भी नजर आए.

समाजवादी पार्टी के मुखिया और कन्नौज से सांसद अखिलेश यादव ने भी ओम बिरला को स्पीकर बनने पर बधाई दी. उन्होंने कहा कि आप जिस पद पर काबिज हुए हैं, उससे गौरवशाली परंपराएं जुड़ी रही हैं. हमें विश्वास है कि आप निष्पक्ष रहेंगे और हर सांसद की बात को सुना जाएगा. अखिलेश यादव ने कहा कि आप लोकतंत्र के न्यायधीश हैं. विपक्ष के साथ-साथ सत्ता पक्ष पर भी आपका अंकुश रहने वाला है. सदन को आपके इशारे पर चलना चाहिए. हम लोग आपके हर न्यायसंगत फैसले के साथ खड़े रहने वाले हैं. इस पद पर दोबारा बैठने के लिए आपको बधाई.

नेता-प्रतिपक्ष —- प्रधानमंत्री पद तक

1977 में Leaders of opposition in parliament act, 1977 के माध्‍यम से इसको वैधानिक दर्जा दिया गया और इसके साथ ही इसके अधिकार एवं सुविधाओं को परिभाषित किया गया. 

USB-C पोर्ट लगाना अनिवार्य

भारत सरकार सभी स्मार्टफोन्स में 2025 तक और लैपटॉप में 2026 तक USB-C पोर्ट लगाना अनिवार्य करने जा रही है. ये सिर्फ Apple के iPhone के लिए नहीं बल्कि Android और Windows डिवाइस बनाने वाली सभी कंपनियों के लिए होगा. सरकारी सूत्रों के मुताबिक जल्द ही इस बारे में आधिकारिक घोषणा हो सकती है.

जहां मेडिकल की पढ़ाई की फीस भी बहुत कम

छात्रों को पास एक विकल्प यह है कि वे दुनिया के उन देशों में जाकर पढ़ाई कर सकते हैं, जहां मेडिकल की पढ़ाई की फीस भी बहुत कम है और  वहां की डिग्री की मान्यता पूरे विश्व में है.

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार भारत से लगभग हर साल 25 हजार छात्र विदेशों में जाकर मेडिकल की पढ़ाई करते हैं. ज्यादातर स्टूडेंट्स बैचलर इन मेडिसिन और बैचलर इन सर्जरी प्रोग्राम में एडमिशन लेने के लिए विदेश का रुख करते हैं. हालांकि, बता दें इन देशों में मेडिकल की पढ़ाई के लिए भी नीट (NEET) क्लियर करना अनिवार्य है. दरअसल, यह नियम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया द्वारा कुछ साल पहले ही लागू किया है. खैर आईये जानते हैं कि वो कौन से देश हैं, जहां मेडिकल की पढ़ाई भारत से सस्ती है.

रशिया में मेडिकल की पढ़ाई के लिए हर साल काफी छात्र भारत से आते हैं. यहां पढ़ाई के साथ-साथ रहने का खर्च भी काफी कम है. यहां के मेडिकल कॉलेजों की ट्यूशन फीस लगभग 3 से 5 लाख रुपये है. इसके अलावा यहां पर रहने का खर्च भी 25 से 30 हजार रुपये महीना आता है. अगर टोटल हिसाब लगाया जाए, तो यहां सालभर की पढ़ाई का खर्च 5 से 8 लाख के करीब आता है

जॉर्जिया
यहां भी हर साल काफी संख्या में छात्र कॉस्ट इफेक्टिव मेडिकल एजुकेशन पाने के लिए आते हैं. यहां छात्रों को स्कॉलरशिप के अलावा कई तरह की फाइनेंशियल हेल्प भी मिल जाती है. वहीं बात करें ट्यूशन फीस की, तो यहां सालभर की फीस 3.75 लाख से लेकर 6.75 लाख तक हो सकती है. इसके अलावा यहां महीने का रहने का खर्च भी 30 से 40 हजार रुपये के करीब आता है. ऐसे में कुल मिलाकर आप 7 से 10 लाख रुपये लगाकर साल भर की पढ़ाई कर सकते हैं.

उजबेकिस्तान
उजबेकिस्तान में मेडिकल की पढ़ाई करने काफी अच्छा ऑप्शन है. दरअसल, यहां की मेडिकल डिग्री को पूरे विश्व में मान्यता मिलती है. यहां पर पढ़ाई का एनवायरमेंट भी काफी सेफ माना जाता है. एमबीबीएस के छात्रों के यह देश पिछले कुछ सालों में पहली पसंद बन गया है. यहां की ट्यूशन फीस भी बाकी जगहों से सस्ती है. यहां मेडिकल की पढ़ाई की सालभर की फीस 2.5 से 4 लाख रुपये तक है. वहीं, लिविंग कॉस्ट 20 से 30 हजार रुपये है. कुल मिलाकर यहां मेडिकल की पढ़ाई 5 से 8 लाख रुपये में हो सकती है.

कजाकिस्तान
कजाकिस्तान में मिलने वाली सुविधाएं और पांच साल का एमबीबीएस कैंडिडेट्स को काफी आकर्षित करता है. यहां मेडिकल की पढ़ाई का सालाना खर्च 3 से 5 लाख के आसपास है. वहीं यहां रहने का खर्च 20 से 30 हजार के करीब है. यहां कुल मिलाकर छात्र सालभर में 5 से 7 लाख रुपये खर्च करके एमबीबीएस की पढ़ाई कर सकता है.

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हिमालय की ऊंची चोटियों पर स्थित जुस्कर मठ तिब्बत के भव्य मठों की याद दिलाता है. बौद्ध धर्म और संस्कृति से जुड़े इस मठ में तिब्बती वास्तुकला की झलक स्पष्ट दिखाई देती है. यहां की रंगीन प्रार्थना ध्वज और शांत वातावरण आपको आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देगा. बर्फ से ढके पहाड़, घने जंगल और मनोरम स्कीइंग रिज़ॉर्ट वाला औली स्विट्जरलैंड के किसी खूबसूरत गांव की याद दिलाता है. यहां आप ठंडी हवाओं का मजा ले सकते हैं, स्कीइंग का रोमांच अनुभव कर सकते हैं और ट्रैकिंग करक नेचुरल ब्यूटी का लुत्फ उठा सकते हैं.

तिब्बत के बौद्ध मठ देश की राष्ट्रीय पहचान का एक अहम हिस्सा हैं। तिब्बतियों के लिए इनका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत ज़्यादा है और चीनी कब्जे के दौरान ये राजनीतिक सक्रियता के केंद्र भी बन गए हैं। अपनी सम्मानित स्थिति के कारण तिब्बत के भिक्षु और भिक्षुणियाँ स्वाभाविक रूप से समुदाय के नेता बन जाते हैं। वे शैक्षणिक परियोजनाएँ, अनाथालय और वृद्धाश्रम चलाते हैं और तिब्बत की अनूठी संस्कृति और भाषा को संरक्षित करने में मदद करते हैं। वे विरोध प्रदर्शन भी करते हैं। मठ तिब्बती प्रतिरोध के केंद्र हैं।

चीन के अधिकारी मठों को एक खतरे के रूप में देखते हैं और उनके और उनके द्वारा सेवा प्रदान किए जाने वाले समुदायों के बीच के बंधन को तोड़ने की कोशिश करते हैं। तरीके भले ही बदल गए हों – 1960 के दशक में बड़ी संख्या में मठों को नष्ट कर दिया गया था, जबकि अब उन पर निगरानी रखी जाती है और निवासियों को राजनीतिक पुनः शिक्षा दी जाती है – लेकिन संघर्ष जारी है। जैसा कि एक विद्वान कहते हैं, तिब्बत के मठ “चीनी राज्य के खिलाफ तिब्बती प्रतिरोध के लिए मुख्य युद्धक्षेत्र” बन गए हैं।

मठ लंबे समय से तिब्बती सांस्कृतिक, राजनीतिक और आर्थिक जीवन के केंद्र में रहे हैं। परंपरागत रूप से प्रत्येक तिब्बती परिवार में भिक्षु और भिक्षुणी के रूप में सेवा करने वाले रिश्तेदार होते थे, जबकि मठ ऋण भी देते थे, व्यापार को वित्तपोषित करते थे और आर्थिक संकट के दौरान सुरक्षा जाल भी प्रदान करते थे।

चीनी कब्जे ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया। मठों को प्रतिद्वंद्वी शक्ति आधार और चीन की केंद्रीय सरकार के प्रति आंतरिक रूप से वफादार नहीं माना जाता था। अधिकांश को बंद कर दिया गया। 1960 के दशक में चीन की सांस्कृतिक क्रांति के दौरान हालात और खराब हो गए, उस दौरान निजी धार्मिक अभ्यास भी अवैध हो गया। मठों को बड़ी संख्या में नष्ट कर दिया गया और भिक्षुओं को जेल में डाल दिया गया या कठोर श्रम करने के लिए मजबूर किया गया।

चीन में अधिक सहिष्णु नीतियों को लागू किए जाने के बाद, मठों को फिर से खोल दिया गया, लेकिन उनकी धार्मिक गतिविधियों पर राज्य का नियंत्रण बना रहा जो आज भी जारी है। जैसा कि नीचे बताया गया है, चीन की सरकार द्वारा उनकी शिक्षा देने, भिक्षुओं और भिक्षुणियों की भर्ती करने और यहां तक ​​कि अपने स्वयं के नेताओं को नियुक्त करने की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। दलाई लामा – तिब्बती बौद्ध धर्म के आध्यात्मिक नेता – की छवियों और उनकी शिक्षाओं की प्रतियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।

हाल के वर्षों में, भिक्षुओं और भिक्षुणियों को अपनी जीवनशैली के लिए एक नए खतरे का सामना करना पड़ा है, क्योंकि बेहतर रेल संपर्क और तिब्बत को पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा देने के चीन सरकार के प्रयासों के कारण चीनी पर्यटक पहले से अकल्पनीय संख्या में तिब्बत आते हैं। कुछ मठों को पर्यटक स्थल बनाने के लिए पुनर्निर्मित किया गया है, या रेस्तरां, होटल और दुकानों के लिए जगह बनाने के लिए संशोधित किया गया है। भिक्षुओं ने बताया है कि उनके मठों में प्रतिदिन बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं, जिससे उनकी पढ़ाई और जीवनशैली में बाधा आती है।

चीनी सरकार ने इस बात पर भी नियंत्रण लगा दिया है कि एक मठ में कितने भिक्षु रह सकते हैं, उदाहरण के लिए, पूर्वी तिब्बत में लाब्रांग मठ में भिक्षुओं की संख्या 3000 भिक्षुओं से घटाकर 1000 भिक्षु कर दी गई है। मठों के अंदर सुरक्षा कैमरे भी लगाए गए हैं। 2016 में लारुंग गार और 2019 में यार्चेन गार जैसे मठवासी शहरों से हज़ारों भिक्षुओं और ननों को जबरन बेदखल किया गया है।

कर्नाटक में स्थित कुर्ग को भारत के स्कॉटलैंड के रूप में भी जाना जाता है. यह जगह हरे-भरे हरियाली का एक लुभावनी परिदृश्य प्रस्तुत करता है. साथ ही यह देश के सबसे बड़े कॉफी उत्पादक के रूप में भी फेमस है.

कर्नाटक का मैसूर पैलेस अपनी भव्यता और वास्तुकला से आपको फ्रांस के वर्साय पैलेस की याद दिलाता है. लंबे गलियारे, सुंदर छत और शानदार बगीचे मंत्रमुग्ध कर देते हैं. यहां आप दशहरा के दौरान होने वाली शानदार रोशनी और जुलूस भी देख सकते हैं.

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