दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी

प्रसन्न होने पर अमूल्य निधियां प्रदान करती है ; दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी

त्रिपुरासुन्दरी दस महाविद्याओं (दस देवियों) में से एक हैं। इन्हें ‘महात्रिपुरसुन्दरी’, षोडशी, ललिता, लीलावती, लीलामती, ललिताम्बिका, लीलेशी, लीलेश्वरी, तथा राजराजेश्वरी भी कहते हैं।वे दस महाविद्याओं में सबसे प्रमुख देवी हैं। ललितात्रिपुरसुन्दरी की उपासना में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। 
मां त्रिपुर संदरी का चमत्कारी शक्तिपीठ राजस्थान के बांसवाड़ा जिले में आता है। यहां ‘मां त्रिपुर सुंदरी देवी’ मंदिर बनाया गया है, जिसकी कहानियां और उसमें उपस्थित चीज़ें दूर-दूर से श्रद्धालुओं को इस मंदिर की ओर खींचकर ले जाती हैं। यह मंदिर मूलत: इस क्षेत्र के उमरई गांव में आता है, जहां पांचाल ब्राह्मणों की एक छोटी सी जनसंख्या रहती है।  
यह बात विक्रम संवत् 1102 की है, जब मान्यतानुसार ऐसा कहा जाता है कि एक बार स्वयं मां सुंदरी ही भिखारिन का रूप धारण कर उस क्षेत्र के पांचाल लोगों के पास दीक्षा मांगने आई थीं। उस समय वे लोग खदान में काम कर रहे थे इसलिए उन्होंने भिखारिन को नजरअंदाज कर दिया, जिसके बाद वह वहां से चली गई। 
लेकिन कहते हैं कि उसके जाने के ठीक बाद ही वह खदान ढह गई और सारे लोग उसमें दबकर मर गए। यह खदान आज भी वहीं है, जो मंदिर के पास ही बनी हुई है और स्थानीय लोगों में ‘फटी खदान’ के नाम से प्रसिद्ध है। 
मान्यता यह है कि जो भी मां के इस शक्तिपीठ में आकर दिल से साधना करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

कहते हैं साधना में अद्भुत शक्ति है जो किसी को हासिल हो जाए तो वह दुनिया में कुछ भी पा सकता है। एक देवी की साधना में जो शक्ति है वह दुनिया के किसी अन्य जीव, प्राणी या वस्तु में नहीं है।

श्री ललिता त्रिपुर सुन्दरी, जिनका वाम पाद , श्रीचक्रपर विराजित है। उनके चारों ओर ब्रह्मा, विष्णु, शिव, पराशिव और गणेश विद्यमान हैं। लक्ष्मी और सरस्वती उनको पंखे से हवा दे रहीं हैं।

मां भगवती त्रिपुर सुंदरी का सात दिनों मेंहर दिन के हिसाब से अलग-अलग श्रृंगार किया जाता है. सोमवार को सफेद रंग, मंगलवार को लाल रंग, बुधवार को हरा रंग, गुरुवार को पीला रंग, शुक्रवार को केसरिया, शनिवार को नीला रंग औररविवार को पंचरंगी में श्रृंगार किया जाता है. ऐसा भी कहा जाता है कि देवी मां केसिंह, मयूर कमलासिनी होनेतथा तीन रूपों प्रात:काल में कुमारिका,मध्यान्ह में सुंदरी यानी यौवना तथा संध्या में प्रौढ़ रूप में दर्शन देनेसे इन्हें त्रिपुर सुंदरी कहा जाता है.

काले पत्थर पर खुदी हुई देवी की एक मूर्ति, मंदिर में प्रतिष्ठित है. लोककथाओं के अनुसार मंदिर कुषाण तानाशाह के शासन से भी पहले बनाया गया था. यहमंदिर एक ‘शक्ति पीठ’ के रूप में प्रसिद्ध है और जो हिंदू,देवी ‘शक्ति’ या देवी ‘पार्वती’ की पूजा करते हैं, उनके लिए यह एक पवित्र स्थान है. पांच फीट ऊंची मां भगवती त्रिपुर सुंदरीकी मूर्ति अष्ठादश भुजाओं वाली है. त्रिपुर सुंदरी मंदिर बांसवाड़ा जिले से 19 किमी की दूरी पर स्थित है. यह मंदिर त्रिपुरसुंदरी देवी के लिए समर्पित है, जिन्हें माता तुर्तिया के नाम से भी जाना जाता है. 

चतुर्भुजा ललिता रूप में पार्वती, साथ में पुत्र गणेश और स्कन्द हैं। ११वीं शताब्दी में ओड़िशा में निर्मित यहप्रतिमा वर्तमान समय में ब्रिटिश संग्रहालय लन्दन में स्थित है।

त्रिपुरसुन्दरीके चार कर दर्शाए गए हैं। चारों हाथों में पाश, अंकुश, धनुष और बाण सुशोभित हैं। देवीभागवत में ये कहा गया है वर देने केलिए सदा-सर्वदा तत्पर भगवती मां का श्रीविग्रह सौम्य और हृदय दया से पूर्ण है। जो इनका आश्रय लेते है, उन्हें इनका आशीर्वाद प्राप्तहोता है। इनकी महिमा अवर्णनीय है। संसार के समस्त तंत्र-मंत्र इनकी आराधना करतेहैं। प्रसन्न होने पर ये भक्तों को अमूल्य निधियां प्रदान कर देती हैं। चार दिशाओं में चार और एक ऊपर की ओर मुख होने से इन्हें तंत्रशास्त्रों में ‘पंचवक्त्र’ अर्थात् पांच मुखों वाली कहागया है। आप सोलह कलाओं से परिपूर्ण हैं, इसलिए इनका नाम ‘षोडशी’ भी है। एक बार पार्वती जी ने भगवान शिवजी से पूछा, ‘भगवन! आपके द्वारा वर्णित तंत्र शास्त्र की साधना से जीव केआधि-व्याधि, शोकसंताप, दीनता-हीनतातो दूर हो जाएगी, किन्तुगर्भवास और मरण के असह्य दुख की निवृत्ति और मोक्ष पद की प्राप्ति का कोई सरल उपायबताइये।’ तब पार्वती जी के अनुरोध पर भगवान शिव ने त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्यासाधना-प्रणाली को प्रकट किया।

भैरवयामल और शक्तिलहरी में त्रिपुर सुन्दरी उपासना काविस्तृत वर्णन मिलता है।ऋषि दुर्वासा आपके परम आराधक थे। इनकी उपासना श्री चक्र में होती है। आदिगुरू शंकरचार्य ने भी अपने ग्रन्थ सौन्दर्यलहरी में त्रिपुर सुन्दरी श्रीविद्याकी बड़ी सरस स्तुति की है। कहा जाता है- भगवती त्रिपुर सुन्दरी के आशीर्वाद सेसाधक को भोग और मोक्ष दोनों सहज उपलब्ध हो जाते हैं। 
 ऐसी मान्यता है कि यदि माता त्रिपुर सुंदरी की आराधना की जाए, तो भक्त कई परेशानियों से मुक्त हो सकते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार मां त्रिपुर सुंदरी भगवान शिव की ही पत्नी मां पार्वती का रूप हैं। इसलिए ऐसा माना जाता है कि मां पार्वती या उनके रूप को प्रसन्न करने का अर्थ है अपने आप ही शिव कृपा की प्राप्ति होना। 

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