कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे- उत्तराखण्ड सीएम का रिपोर्ट कार्ड
सरकारें खड़ंजा निर्माण संस्कृति से आगे नही बढ़ी
वही सूबे मेे सारे विकास कार्यो की पोल खुल गई स्वास्थ्य सेवाओं राज्य का बजट 16 वर्षों में 650 करोड़ से बढ़कर 36 हजार हो गया, लेकिन सरकारें खड़ंजा निर्माण संस्कृति से आगे नही बढ़ी हैं। मंत्रीगण विधायक निधि से आंतरिक सडक निर्माण को अपनी बडी उपलब्धि बता रहे जनता को गुमराह कर रहे हैं,
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नीरज की ये अलग अलग पंक्तियां एक साथ जोड़ने पर सियासत का फलसफा भी कुछ ऐसा ही सुनाई देता है.
नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पांव जब तलक उठें कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गए कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।
वोट मांगते वक्त नेता बातें बड़ी करते हैं लेकिन जीतने के बाद कोई पलट कर नहीं देखता। जनता काग्रेस के भ्रष्टाचार, हिटलरशाही, महंगाई की मार झेल रही है। समय पर वेतन नहीं मिल रहा, युवा बेरोजगारी की मार झेल रहे है और प्रदेश के मुख्यमंत्री लाल बत्ती रेवड़ी की तरह बाट रहे हैं। आधे अधूरे सड़क निर्माण विद्युत, बाल विकास व लोनिवि की कार्यप्रणाली जर्जर पोल व पुरानी लाइनें नहीं बदली शिक्षा, आंगनबाड़ी केंद्रों में लापरवाही, स्वास्थ्य व पानी जन समस्याओं की अनदेखी पहाड़ में पहले ही सूखे की मार झेल रहे किसानों को तंत्र ने विकास कार्यो की पोल खुल गई, भैंसियाछाना विकासखंड के कई गांवों में आज तक सड़क नहीं पहुंची। द्वाराहाट विधानसभा क्षेत्र में 6.42 करोड़ की लागत से छाना, भेंट, धनखलगाव, च्याली, ऐराड़ी व मनेला गाव को लाभांवित करने वाली छाना-भेंट पेयजल योजना का शिलान्यास घटौड़ा में 3.68 करोड़ लागत की बिजेपुर ग्राम समूह पेयजल योजना तथा बिजेपुर-धनखलगाव मोटरमार्ग लागत 1.40 करोड़ के सुधारीकरण का मात्र शिलान्यास हुअा,
राज्य सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए आशा कार्यकर्ता मुखर
द्वारहाट में शिल्पाकार महासभा की बैठक में वक्ताकओं ने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने उनके वर्ग की उपेक्षा की है। कहा गया कि बैकलॉग में लंबे समय से पद रिक्तत चल रहे हैं। द्वाराहाट के अन्तर्गत तो 2 साल से पेंशन न मिलने पर गुस्साए लोगों ने अल्मोडा जनपद के बग्वालीपोखर में आंदोलन किया,
वही सूबे मेे सारे विकास कार्यो की पोल खुल गई स्वास्थ्य सेवाओं राज्य का बजट 16 वर्षों में 650 करोड़ से बढ़कर 36 हजार हो गया, लेकिन सरकारें खड़ंजा निर्माण संस्कृति से आगे नही बढ़ी हैं। जबर्दस्त माहौल स्पष्ट नीति के अभाव में विकास प्रक्रिया भी केवल खड़ंजा निर्माण तक सिमट कर रह गई है। मंत्रीगण विधायक निधि से आंतरिक सडक निर्माण को अपनी बडी उपलब्धि बता रहे जनता को गुमराह कर रहे हैं,
शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि, पर्यटन व पशुपालन आदि मुद्दों पर जनता परेशान है। विकास के नाम पर राज्य में सड़कों का जाल केवल शराब, खनन व जंगल माफिया की सहूलियत के लिए बिछाया गया है। इस कारण सामाजिक विकास की अवधारणा खो गई है। ऐसे में इन दलों के प्रति जनता का आक्रोश स्वाभाविक है।
अल्मोड़ा जिलांतर्गत कुल छह विधानसभा सीटें हैं। जिनमें से दो सीटें जागेश्वर व रानीखेत वीआइपी सीटें हैं। इन छह सीटों में इस दफा कुल 5,24,794 मतदाता दर्जनों प्रत्याशियों के चुनावी भाग्य का फैसला करेंगे। खास बात ये है कि इस चुनाव में 8402 मतदाता ऐसे हैं, जो पहली बार मताधिकार का प्रयोग करेंगे। वर्ष 2012 की तुलना में इस दफा जिले में पोलिंग बूथ व महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ी है, जबकि पुस्ष मतदाताओं की संख्या में कमी आई है। बहरहाल इन्हीं वोटरों को चुनावी भाग्य विधाता मानते हुए राजनैतिक दलों ने डोरे डालने आरंभ कर दिए हैं। महिला मतदाताओं की संख्या बढ़ी है।
जिले की छह विधानसभाओं अंतर्गत इस बारगी कुल 524794 मतदाता हैं। जिनमें से 267021 पुस्ष व 257773 महिला मतदाता हैं। पिछले विस चुनाव 2012 की तुलना में इस बार 10,945 मतदाता बढ़े हैं। पिछले चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या 313849 थी। जिनमें 277445 पुस्ष व 246404 महिलाएं थीं। भले ही इस दफा पुस्ष मतदाताओं से महिला मतदाताओं की संख्या कुछ कम है, किंतु गत विस चुनाव से तुलनात्मक दृष्टि से पुस्ष मतदाताओं की संख्या में 10,424 की कमी दर्ज हुई है जबकि महिला मतदाताओं की संख्या में 21,369 का इजाफा हुआ है। यह संख्या निर्णायक हो सकती है। इस बारगी जिले की सल्ट विधानसभा में सर्वाधिक और रानीखेत सीट पर सबसे कम मतदाता संख्या है। विधानसभा इनके अलावा 8402 मतदाता सूची में नये शामिल हुए हैं। जो युवा वर्ग के हैं और पहली बार मताधिकार का प्रयोग करेंगे। इनकी भूमिका भी निर्णायक मानी जा रही है। मगर जहां इतने नये मतदाता बढ़े, उसके सापेक्ष गत सूची से विविध कारणों से 4717 नाम हटाए भी गए हैं। जिले में इस दफा पोलिंग बूथों की संख्या भी बढ़ी है। गत विस चुनाव के बूथों 784 में 79 की बढ़ोत्तरी होकर अब बूथों की संख्या 863 हो गई है।
जिले की 6 विस सीटों में मतदाता विधानसभा पुरुष महिला कुल
क्षेत्र मतदाता मतदाता मतदाता
द्वाराहाट 43416 46143 89559
सल्ट 48332 46410 95042
रानीखेत 40176 38305 78481
सोमेश्वर 43140 41343 84483
अल्मोड़ा 45149 42526 87675
जागेश्वर 46808 42746 89554
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कहां कितने नये मतदाता
द्वाराहाट 1197
सल्ट 1224
रानीखेत 1304
सोमेश्वर 1282
अल्मोड़ा 2351
जागेश्वर 1044
जल संस्थान के तकनीकी एवं फील्ड संविदा कर्मियों को चार महीनों से वेतन न मिलने से उनके समक्ष आर्थिक संकट उत्पन्न हो गया था उन्होंने अधिशासी अभियंता को भेजे ज्ञापन में शीघ्र वेतन भुगतान की मांग की है। कहा है कि बार-बार विभाग द्वारा कहा जाता है कि हर माह की 10-12 तारीख को वेतन का भुगतान कर दिया जाएगा, पर महीनों तक वेतन नहीं मिलता। कार्मिकों ने अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है कि मकर संक्रांति पर वेतन न मिलने से वे त्योहार कैसे मनाएंगे। वेतन न मिलने पर उन्होंने मार्च से कार्य बहिष्कार की भी चेतावनी दी है।
अल्मोडा नपद में सर्व शिक्षा अभियान से जुड़े शिक्षकों व कर्मचारियों को तीन माह से वेतन के लाले पड़े हैं। शिक्षा विभाग समन्वय समिति ने इस मामले पर कड़ी आपत्ति जताई है। समिति की बैठक में विभिन्न मसलों पर चर्चा की और विसंगतियां दूर करने की मांग की। सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों को जिले में जनवरी के वेतन के साथ लागू करने पर जोर दिया। वित्त अधिकारी विद्यालयी शिक्षा अल्मोड़ा से मामले पर आवश्यक कार्रवाई करने के लिए दबाव बनाने की जरूरत महसूस की गई। इसके साथ ही वेतन विसंगतियों को शीघ्र दूर करने की मांग की गई। सर्व शिक्षा अभियान से जुड़े शिक्षकों व कर्मचारियों को तीन माह से वेतन का भुगतान नहीं मिलने पर नाराजगी व्यक्त की। जिससे उन्हें आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है। बताया गया है कि इस मद में बजट उपलब्ध नहीं हो सका। बैठक में अविलंब उन्हें भुगतान करने की पुरजोर मांग की। पूरे जिले में वित्तीय एकरूपता के लिए मुख्य कोषाधिकारी से वार्ता करने का निर्णय लिया गया। विसंगतियों के निराकरण के लिए ठोस प्रयास करने का निर्णय लिया गया। समिति के अध्यक्ष डॉ. मनोज कुमार जोशी ने सदस्यों को विश्वास दिलाया कि समिति सभी समस्याओं के निराकरण के लिए सदैव जागरूक रहेगी।
शायद ही कोई 16 सितंबर 2010 की प्रलयंकारी आपदा को भूल सकता है।
अल्मोड़ा
शायद ही कोई 16 सितंबर 2010 की प्रलयंकारी आपदा को भूल सकता है। बादल फटने से आई इस आपदा ने अल्मोड़ा में बाल्टा, बाड़ी और देवली गांव को न केवल सिर्फ नक्शे से साफ कर दिया बल्कि कई लोगों की दर्दनाक मौत भी हो गई। तब रौद्र हुई कोसी ने कुमाऊं की लाइफ लाइन को ही निगल लिया था। कई हेक्टेयर कृषि भूमि तबाह हुई तो कई मकान जमींदोज भी हो गए थे। तमाम लोग बेघर भी हुए। हल्द्वानी-अल्मोड़ा हाईवे भी इस आपदा की भेंट चढ़ गया था। सुयालबाड़ी से खैरना तक हाइवे नेस्तनाबूद हो चुका था। अब एक बार फिर विकास के नाम पर भविष्य में तबाही को न्यौता दिया जा रहा है। पिछले कुछ माह से अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे को चौड़ा करने का काम चल रहा है। ऊंची पहाड़ियों को भारी-भरकम मशीनों से काटा जा रहा है और जो मलबा निकल रहा है उसे सीधे कोसी नदी में डाला जा रहा है। इससे नदी 60 फीट से अधिक सिकुड़ चुकी है। अनुमान लगाइए 2010 में जब नदी चौड़ी थी तब वह पानी का वेग संभाल नहीं पाई और अब जब नदी का दायरा कम किया जा रहा तो वह कैसे आपदा को दंश झेल पाएगी। जाहिर विकास के नाम पर एक बार फिर इंसानी जिंदगी को दांव पर लगा दिया गया है। चौड़ीकरण काम चीन की एक कंपनी मॉडल रोड के रूप में कर रही है। सफल रहा तो पूरी नदी का ही स्वरूप बदलने की तैयारी है। –
एनजीटी के नियम कहते हैं कि नदी के पास किसी तरह का निर्माण गैरकानूनी है। यहां तक की नदी में कपड़े धोने और मछली पकड़ने की इजाजत भी नहींहै, लेकिन काम कर रही कंपनी ने एनजीटी के नियमों को भारी-भरकम पोकलैंड के तले रौंद डाला है। मलबे से न सिर्फ नदी को प्रदूषित किया जा रहा है बल्कि कंपनी ने नदी के एक हिस्से को समतल कर उसमें अपना प्लांट भी लगा दिया है। इससे निकलने वाली गंदगी को सीधे नदी में बहाया जा रहा है।
खैरना से रानीखेत जाने वाले हाईवे को दरकिनार कर दें तो अफसर और नेता को भवाली से काठगोदाम और हल्द्वानी जाने के लिए अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे से ही गुजरना पड़ता है और इस पर हमेशा वीआइपी और वीवीआइपी लोगों के साथ आलाधिकारियों का आना-जाना रहता है। नदी का गला घोंटने का खेल खुलेआम खेला जा रहा है, लेकिन इसके प्रति न तो अफसरान ही चिंतित है और न ही वो नेता तो किसी न किसी बात पर विपक्ष को घेरते रहते हैं।
नेता लोग ठीक चुनाव के वक्त आते हैं। जीतने के बाद कोई पूछने नहीं आता। कुछ वर्षो से खेती दूभर हो गई है। जंगली जानवरों से फसल बचाना दूभर हो चला है। जनप्रतिनिधियों को लेकिन समस्या से कोई वास्ता नहीं। खेत उपजाऊ हैं लेकिन मेहनत को जंगली सुअर बर्बाद कर देते हैं। कभी हम बाजार तक अपनी उपज पहुंचाते थे, आज अपने लिए ही नहीं बच रहा। नेता लोग आश्वासन दे जाते हैं लेकिन निदान नहीं हो सका। इस बार सोच समझ कर वोट देंगे। अब जंगली जानवरों का आतक इतना बढ़ चुका है कि खेती करने की इच्छा ही खत्म होने लगी है। कारण, वोट लेकर जो जीतता है उसे किसानों की समस्याओं से वास्ता ही नहीं रहता।
रानीखेत विकासखंड ताड़ीखेत का सब्जी उत्पादक टूनाकोट गाव। यहां ग्रामीण रात में जागरण तो दिन में अपनी बोई फसल बचाने के लिए पहरा देते हैं। वजह जंगली जानवरों का कहर। जिन्होंने खेत के खेत बर्बाद कर डाले हैं। किसानों की नाराजगी यही है कि चुने हुए प्रतिनिधियों ने कभी उनकी उजड़ती खेती की ओर ध्यान ही नहीं दिया। अबकी जो भी वोट मांगने आएगा, उससे यही सवाल पूछा जाएगा।
सब्जी व फल उत्पादक ब्लॉक के उर्वर गांवों में शुमार टूनाकोट गांव जंगली सूअर व अन्य जानवरों से बेजार है। लगभग 2000 हेक्टेयर कृषि भूमि का शायद ही कोई इलाका बचा होगा, जहां आलू, बीन, मटर, लहसुन, प्याज आदि के खेत सुअर के झुंड ने उजाड़े न हों। इससे त्रस्त लोगों ने आगामी विधानसभा चुनाव के बहिष्कार का मन भी बनाया। मगर अब उन्होंने उसी को वोट देने की ठानी है जो उनके साथ मिलकर समाधान निकालेगा।
पेयजल में असफलता –
ताड़ीखेत (रानीखेत) : तहसील मुख्यालय से करीब दस किमी दूर ताड़ीखेत कस्बा, जहां सर्दी में भी लोगों के हलक सूखे पड़े हैं। कहने को यहां बड़ी पेयजल योजना से आपूर्ति होती आई है लेकिन नाकाफी। इधर कुछ माह से नल से बूंद तक नहीं टपकी। आचार संहिता से पूर्व महिलाओं ने आवाज बुलंद की थी। पानी नहीं तो वोट नहीं का नारा भी दिया। मगर योजना दुरुस्त न हो सकी। नतीजा लोग टैंकर के बूते प्यास बुझा रहे तो जनप्रतिनिधियों के खिलाफ गुस्सा भी बढ़ रहा। ब्लॉक मुख्यालय का कस्बा इन दिनों प्यास बुझाने को जूझ रहा। यहां ऋषिगाढ़ ताड़ीखेत पेयजल योजना से आपूर्ति की जाती है, जो खुद बूंद बूंद को तरस रही है। बीती एक दिसंबर को कस्बे की महिलाएं सड़क पर उतरी थी। विभाग के खिलाफ गुबार निकाला। जनप्रतिनिधियों पर भी भड़ास निकाली। तब जल संस्थान ने तुरत फुरत टैंकर भिजवाने के साथ ही लाइन दुरुस्त करवाई थी। मगर योजना फिर क्षतिग्रस्त हो गई।
क्षेत्रवासियों के अनुसार पिछले तीन चार माह से पेयजल किल्लत ज्यादा बढ़ गई है। उन्होंने जनप्रतिनिधियों पर भी कस्बे की समस्याओं की अनदेखी का आरोप लगाया। आलम यह है कि टैंकर के पहुंचते ही पानी के लिए लोग टूट पड़ते हैं। वह भी पर्याप्त नहीं हो पाता।
पहले अराजक तत्वों ने लाइन तोड़ दी थी। उसे ठीक करा दिया था। अब पता लगा है कि गैरड़ गांव के पास पेड़ काटते वक्त लाइन क्षतिग्रस्त हो गई है। दो दिन पूर्व प्लंबर भेज दुरुस्त कराया गया था लेकिन बीती रात फिर तोड़ दी गई है। फिलहाल जरूरत के अनुसार टैंकर से आपूर्ति कराते रहेंगे।
अल्मोड़ा : 16 साल बाद हाल ये है कि अल्मोड़ा जिले को अभी भी नैनीताल जिले के भरोसे रहना पड़ रहा है। हम बात कर रहे अल्मोड़ा के ताड़ीखेत विकास खंड की सुदूरवर्ती ग्राम पंचायत धूराफाट की।
इस ग्राम पंचायत में तकरीबन 18 गांव हैं। इन गांवों को भतरौंज-रीची-थापला पेयजल योजना के जरिये पानी मिलता है। जो उप जल संस्थान नैनीताल द्वारा संचालित किया जाता है। लोगों का कहना है कि ये क्षेत्र अति पिछड़ा और दूरस्थ है। मामले को कई बार शासन-प्रशासन के सामने रखा गया, लेकिन मसले का हल आज तक नहीं निकला। लोगों की मानें तो परेशानी वाले गांवों में पानी की कोई कमी नहीं, लेकिन वितरण और लाइनें ठीक न होने की वजह से पानी के लिए लोग त्राहिमाम कर रहे हैं। समस्या के समाधान के लिए 16.93 लाख का प्रोजेक्ट भी राज्य सरकार को भेजा गया, लेकिन अधिकारियों की हीलाहवाली की वजह से प्रोजेक्ट ही गलत बना दिया गया। ऐसा नहीं है कि गांव में टंकी या अन्य संसाधन नहीं है, बावजूद इसके लोग बूंद-बूंद के लिए जद्दोजहद करने को विवश है। मामले में सोमवार को तमाम लोगों ने जिलाधिकारी सविन बंसल से मुलाकात की और ज्ञापन देते हुए आचार संहिता के दौरान धरना प्रदर्शन की इजाजत मांगी। इसमें जीवन सिंह, रणजीत सिंह बिष्ट, चंदन सिंह, कैलाश चंद्र, लता देवी आदि थे।
चौखुटिया: बार-बार मांग के बाद भी आदिग्राम कनौणियां की ध्वस्त पड़ी पेयजल योजना ठीक न होने से ग्रामीणों का धैर्य का बांध टूट गया। गुस्साए लोगों ने मंगलवार को जल संस्थान दफ्तर पहुंचकर प्रदर्शन किया एवं नारेबाजी कर आक्रोश व्यक्त किया। अधिशासी अभियंता के नाम जेई को ज्ञापन भी सौंपा। बाद में दो दिन के भीतर लाइन जोड़ दिए जाने के आश्वासन पर ग्रामीण मान गए।
विदित हो कि मोटर मार्ग निर्माण के दौरान 22 दिसंबर को आदिग्राम कनौणियां गांव की पेयजल लाइन टूट गई। इससे समूचे गांव की पेयजल आपूर्ति ठप हो गई। लोगों द्वारा विरोध जताने पर जल संस्थान के एसडीओ व जेई ने दो दिन में लाइन ठीक कर पानी चलाने का आश्वासन दिया, लेकिन फिर भी लाइन ठीक नहीं हो पाई। ऐसे में बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे। ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा।
महिलाएं व पुरुष 12 किमी दूर से जल संस्थान कार्यालय में आ धमके तथा प्रदर्शन व नारेबाजी कर विभाग के खिलाफ आक्रोश व्यक्त किया। इस दौरान उन्होंने जेई को खरी-खोटी सुनाई एवं कहा कि वे यहां से वापस नहीं जाएंगे। लंबी वार्ता के बाद जेई बालम सिंह बिष्ट ने दो दिन में लाइन ठीककर आपूर्ति सुचारू करने का लिखित आश्वासन दिया। इसके साथ ही ग्रामीण मान गए। चांदीखेत के पास कलमठ निर्माण के दौरान पेयजल लाइन टूट जाने से चांदीखेत बाजार से भटकोट बाजार तक के एक हिस्से में बीते कई दिनों से पेयजल आपूर्ति ठप पड़ी है। इससे लोगों को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जो दूर-दूर से पानी लाने को विवश हैं।
अल्मोतड़ा के ईड़ा गांव के लोगों ने एक मिसाल पेश की है। उन्होंदने खुद ही गांव में पानी की समस्या। को दूर किया
द्वाराहाट, तंत्र की बेरुखी से त्रस्त ईड़ा गांव के लोगों ने नई मिसाल पेश की है। कई बार आंदोलन के बावजूद विभाग ग्रामीणों को पेयजल मुहैया न करा सका तो लोगों ने खुद ही कमान संभाली। चंदा कर दो लाख रुपये जुटाए और शुरू कर दी रालक गधेरे में बोरिंग। दस दिन की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार 50 फीट गहराई में पानी मिलने से लोगों के चेहरे खुशी से खिल उठे।
मालूम हो कि विकासखंड के अंतिम छोर के गाव ईड़ा के ग्रामीण लंबे समय से पानी की किल्लत से परेशान थे। पानी के लिए ग्रामीणों ने कई बार आंदोलन भी किए और विभागीय अधिकारियों से गुहार लगाई। शासन-प्रशासन ग्रामीणों को पानी तो नहीं दे पाया लेकिन कोरे आश्वासन देता रहा और ग्रामीण प्यासे। प्रशासन की बेस्खी से गुस्साएं जिपंस नीरज कुमार, बीडीसी राधिका देवी, प्रधान नीमा देवी, विक्रम सिंह, दिगंबर बिष्ट, दीपक बिष्ट व कौस्तुभ कुमार सिंह आदि ने खुद योजना के निर्माण के लिए ग्रामीणों को तैयार किया। दो लाख रुपये की धनराशि एकत्र होने पर रुद्रपुर की एक एजेंसी से सम्पर्क साध बोरिंग का काम शुरू कर दिया। मजदूरों की जगह ग्रामीण खुद काम पर लगे। नतीजतन शनिवार को पानी मिला तो ग्रामीणों के चेहरों पर खुशी झलकी। बोरिंग के पानी के लिए टैंक निर्माण कर ग्रामीणों को पेयजल मुहैया कराया जाएगा। ग्रामीणों के इस प्रयास की आसपास के लोगों ने सराहना की है।
द्वाराहाट में माह भर से पानी की किल्लत झेल रहे विजयपुर व घगलोढ़ी के ग्रामीणों –
माह भर से पानी की किल्लत झेल रहे विजयपुर व घगलोढ़ी के ग्रामीणों की सुध न ली गई तो गुस्सा फूट पड़ा। बड़ी संख्या में जल संस्थान कार्यालय जा धमके ग्रामीणों ने अवर अभियंता का घेराव कर खरीखोटी सुनाई। हंगामी प्रदर्शन के बीच तीन दिन के भीतर जर्जर योजना दुरुस्त कर जलापूर्ति शुरू न होने पर प्रदर्शनकारियों ने दफ्तर में तालाबंदी कर बेमियादी आंदोलन का ऐलान किया।
पेयजल संकट के समाधान को बार-बार विभागीय अधिकारियों से गुहार के बावजूद कोई ठोस हल न निकाले जाने पर बुधवार को विजयपुर व घगलोड़ी गांव के बाशिंदों के सब्र का बांध टूट पड़ा। ग्रामीण जल संस्थान कार्यालय पहुंचे। प्रदर्शन के बीच अभियंता का घेराव कर गुबार निकाला। आरोप लगाया कि कई बार शिकायत के बावजूद उनकी समस्या का निदान नहीं किया जा रहा। विभागीय लापरवाही के कारण ही विजयपुर व घगलोड़ी के लिए बनी गुरुत्व योजना बेहाल पड़ी है। इसका खामियाजा पिछले एक माह से दोनों गांवों के लोग भुगत रहे। कई स्थानों पर लाइन क्षतिग्रस्त हो चुकी है। मगर मरम्मत की जरूरत तक नहीं समझी जा रही। नतीजा स्रोतों में पर्याप्त पानी के बावजूद मुख्य टैंक तक नहीं पहुंच पा रहा। लोगों ने कहा कि मुख्य लाइन से पानी चोरी की शिकायत भी की गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की जा रही।
दो टूक चेतावनी दी कि यदि तीन दिन के भीतर योजना की मरम्मत कर जलापूर्ति न की गई तो कार्यालय में तालाबंदी कर बेमियादी आंदोलन शुरू कर दिया जाएगा। एई सुरेंद्र सिंह रौतेला को इस सिलसिले में शिकायती पत्र भी दिया गया।
ताड़ीखेत कस्बे में पानी की नियमित आपूर्ति न होने पर महिलाओं का गुस्सा फूट पड़ा –
ताड़ीखेत कस्बे में पानी की नियमित आपूर्ति न होने पर महिलाओं का गुस्सा फूट पड़ा। महिलाओं ने शहर में रैली निकाली और जल संस्थान के खिलाप प्रदर्शन किया। महिलाओं ने चेतावनी दी कि यदि पेयजल समस्या का स्थायी समाधान न किया गया तो विधानसभा चुनाव में किसी भी राजनीतिक दल को वोट नहीं दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि पिछले एक पखवाड़े से पानी की किल्लत बनी हुई है। इसके बावजूद इसका समाधान नहीं किया जा रहा है।
मुख्यमंत्री ने मुक्तिधाम व आसपास के क्षेत्रों में पानी का संकट दूर करने के लिए पेयजल योजना को मंजूरी दी थी। इसके लिये बाकायदा शासन ने 11.52 लाख रुपये स्वीकृत भी किए थे। योजना का निर्माण कार्य बीती अक्टूबर में शुरू कर दिया गया था।
इधर निर्माणाधीन योजना को शीघ्र धरातल पर उतारने के उद्देश्य से जल निगम की टीम ने स्थलीय निरीक्षण किया। बताया कि मुक्तिधाम पेयजल योजना तैयार होने से बनने से क्षेत्र में काफी हद तक पानी की किल्लत दूर कर ली जाएगी। उन्होंने कार्यदायी संस्था को गुणवत्त्ता के साथ तय समयावधि में निर्माण पूरा करने के निर्देश निर्देश दिए।
‘सीएम की घोषणा वाली मुक्तिधाम पेयजल योजना का कार्य तेजी पर है। टैंक व स्टेंड पोस्ट निर्माण का कार्य पूर्ण हो चुका है। तैयार होते ही इसे मंदिर समिति के सुपूर्द कर दिया जाएगा।
पहाड़ में पहले ही सूखे की मार झेल रहे किसानों को तंत्र ने
रानीखेत में पहाड़ में पहले ही सूखे की मार झेल रहे किसानों को तंत्र ने दोहरा झटका दिया है। वर्षा आधारित खेतों की प्यास बुझाने के नाम पर तीन लाख का बजट तो ठिकाने लगा दिया मगर सिंचाई नहर व गूलों में पानी तो दूर निर्माण तक पूरा नहीं कराया जा सका है। जहां गूल बनी भी तो वह क्षतिग्रस्त होने लगी है। ऐसे में संकट के दौर से गुजर रही गेहूं की पौध व अन्य सीजनल फसलों के चौपट होने की आशंका बढ़ गई है। पर्वतीय क्षेत्रों में बजट की बाजागरी ने किसानों को चिंता में डाल दिया है। बेतालघाट व ताड़ीखेत से सटे बढेरी व धारी गाव में खेतों की सिंचाई के लिए करीब दो माह पूर्व लगभग तीन लाख रुपये से गूल का निर्माण कार्य शुरू कराया गया था। तब शरदकालीन वर्षा न होने से हैरान परेशान किसानों को गूल के पानी से खेतों तक पहुंचने की उम्मीद जगी थी।
मगर दो माह बीतने के बाद भी गूल निर्माण नहीं कराया जा सका है। जहां बनी भी तो गुणवत्ता के अभाव में कई स्थानों पर टूटने लगी है। इससे हालात बिगड़ गए हैं। प्रगतिशील किसान दीवान सिंह, धन सिंह, बिशन जंतवाल, जीवन सिंह, भगवत सिंह आदि ने बताया कि सिंचाई के लिए पानी न मिलने के कारण जहां बुआई प्रभावित हो गई है। वहीं जहां पहले गेहूं बोया जा चुका है, वहां पौध सूखे से खत्म होने लगी है। उन्होंने विभाग पर बजट ठिकाने लगाने का आरोप लगाते हुए गूल चालू किए जाने तथा निर्माण कार्यो की गुणवत्ता जांच पर जोर दिया है।
धारी गाव तो विभागीय लापरवाही की बानगी भर है। बेतालघाट के तल्ला गाव व पाडली में गूल निर्माण में धांधली के आरोप लगने लगे हैं। किसानों की मानें तो तल्ला गाव में गूल निर्माण में पुरानी पर नया निर्माण दिखा प्लास्टर कर इतिश्री कर ली गई है। पाडली गाव में मिट्टी मिश्रित रेत का बेधड़क इस्तेमाल किया जा रहा। सामाजिक कार्यकर्ता कृपाल सिंह मेहरा ने निर्माण की उच्च स्तरीय जाच व कार्रवाई की मांग उठाई है।
द्वाराहाट में महिला एकता परिषद की पदयात्रा का दूसरा चरण घुघुती गांव से शरू हो गया है। ग्रामीणों ने उजड़ती खेती को पलायन का सबसे बड़ा कारण बताया। यहां के बाशिंदों ने भी साफ कहा कि जंगली जानवरों के उत्पात को गावों में रहकर समझने वाले को ही वोट दिया जाएगा। उन्होंने पर्वतीय अंचल में विकराल होती जा रही के निदान को संघर्ष और तेज करने का ऐलान भी किया। परिषद के द्वाराहाट व भिक्यासैंण ब्लॉक क्षेत्र की दूसरे चरण की संयुक्त पदयात्रा का श्रीगणेश घुघुती से हुआ। ग्राम प्रधान संगठन भिक्यासैंण की अध्यक्ष हेमा नेगी के नेतृत्व में यात्रा जनरखाड़ी, चौड़ा, सिलंग आदि क्षेत्रों में पहुचीं। ग्रामीणों ने गर्मजोशी से स्वागत किया। यहां हुई पंचायत में हेमा नेगी ने गावों की उजड़ती खेती से लगातार हो रहे पलायन की बात रखी। कहा कि अरसे से आवाज उठाने के बावजूद सरकारें कतई गंभीर नहीं हैं। दो टूक कहा कि अपनी आवाज बुलंद करने के लिए ऐसा प्रतिनिधि चुनना आवश्यक है, जो इस समस्या से खुद जूझ रहा हो।
सचिव मधुबाला काडपाल ने कहा कि धन व शराब के बल पर चुनाव जीतने वालों से कृषि व पलायन को बचाने की उम्मीद नहीं की जा सकती। जानकी देवी ने कहा कि विधायक प्रत्याशी से पलायन व खेती बचाने के लिए शपथपत्र लेना होगा। कोरे आश्वासनों से बात नहीं चलेगी। बंदरों व सुअरों की बर्बादी के चलते युवाओं को पहाड़ में अपना भविष्य अंधकारमय दिख रहा है। वह पलायन के लिए मजबूर हैं। यहां की जवानी को रोकने के लिए सभी को संगठित होकर अपना प्रतिनिधि चुनना होगा। तय हुआ कि यात्रा के जरिये गाव-गाव में अलख जगाई जाएगी। इस मौके पर दुर्गा बिष्ट, ममता बिष्ट, पुष्पा देवी, तारा देवी, हंसी देवी, प्रताप बिष्ट, कुंदन सिंह, कमल सिंह आदि मौजूद रहे।
आगनबाडी केन्द्र तक नही बना पाई हरीश रावत सरकार
बाल पोषाहार का केंद्र पर वितरण न करने
केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत 300 से 800 की जनसंख्या में आंगनबाड़ी केंद्र को स्वीकृति दी जाती है। 150 से 300 की आबादी में मिनी आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किया जाता है। आंगनबाड़ी व मिनी आंगनबाड़ी केंद्र के सृजन को बाल विकास विभाग विभिन्न गांवों की जनसंख्या का सर्वे करता है। इसके बाद जिले से प्रस्ताव राज्य सरकार को भेजे जाते हैं। इसके बाद केंद्र सरकार अपनी संस्तुति देती है और फिर इन केंद्रों का निर्माण किया जाता है। –
थक उत्तराखंड राज्य गठन के बाद इन 16 सालों में कई विधानसभा व लोकसभा चुनाव हो चुके हैं, लेकिन पूर्व प्राथमिक शिक्षा के लिए जिले में संचालित आंगनबाड़ी केंद्रों में पढ़ रहे नौनिहालों की कोई सुध ही नहीं ली गई है। हालत यह है कि 1860 आंगनबाड़ी केंद्रों वाले इस जिले को अब भी 1732 केंद्रों के लिए छत का इंतजार है। ऐसी स्थिति में बरसात व सर्दी के मौसम में छोटे-छोटे नौनिहालों की समस्या बढ़ जाती है। एतिहासिक जिले में तीन से छह साल तक के करीब 40 हजार बच्चों को स्कूल पूर्व शिक्षा देने के लिए 1860 आंगनबाड़ी व मिनी केंद्र संचालित तो किए जा रहे हैं। इनमें से अधिकांश में आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। जिले में मात्र 128 केंद्रों के ही विभागीय भवन हैं, बाकी 1732 केंद्रों के पास अपना भवन नहीं है। इन्हें ग्राम के समीपवर्ती पंचायत घर, प्राथमिक स्कूल अथवा किराए के भवनों में संचालित किया जा रहा है। किराए वाले भवनों में संचालित केंद्रों में बच्चों के खेल वगैरह के लिए आवश्यक स्थान तक नहीं हैं। बरसात, तपती गर्मी और ठंड के दिनों में तो इन बच्चों को काफी दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है। नए-नए स्कूलों का उच्चीकरण कर इन स्कूलों में भारी-भरकम रकम सरकार द्वारा खर्च की जा रही है, लेकिन वर्षो से संचालित आंगनबाड़ी में पढ़ रहे बच्चों के हितों की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
स्वास्थ्य व्यवस्था बदहाल
रानीखेत प्रदेश खासतौर पर पर्वतीय जिलों में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था
चौखुटिया में बार-बार मांग के बावजूद सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र को पीपीपी मोड से मुक्त न किए जाने से जनता में आक्रोश है। चौखुटिया विकास परिषद ने क्षेत्रीय विधायक मदन सिंह बिष्ट को भेजे ज्ञापन में अस्पताल को शीघ्र ही पीपीपी मोड से हटाकर सरकार के अधीन करने की मांग की गयी थी, ज्ञापन में कहा गया था कि केंद्र में उपचार कोई भी की सुविधाएं नहीं हैं। जो महज एक रेफर सेंटर बनकर रह गया है। परिषद के अध्यक्ष हरी सिंह सिंह की ओर से भेजे गए ज्ञापन में पांच दर्जन से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हैं।
प्रदेश खासतौर पर पर्वतीय जिलों में लचर स्वास्थ्य व्यवस्था तथा महंगे इलाज की चुनौती के बीच निशुल्क जांच योजना गरीबी में सहारे की उम्मीद कायम रखे हुए है। सूत्रों की मानें तो मुख्यमंत्री स्वास्थ्य बीमा योजना से जुड़े कार्डधारकों के लिए यह व्यवस्था नए साल में नए सिरे से शुरू करने की कवायद चल रही है। इससे अकेले अल्मोड़ा जनपद में ही 86 हजार कार्डधारकों पर विभिन्न रोगों पर होने वाले भारी खर्च का बोझ कम हो सकेगा।
दरअसल, राज्य में आर्थिक रूप से कमजोर तबके तथा पेंशनधारकों को राहत के लिए सीएम हरीश रावत ने निशुल्क जांच योजना शुरू की थी। मुख्यमंत्री स्वाथ्य बीमा योजना से जुड़े उन जरूरतमंदों को इसका लाभ दिया जाना था, जिनके हेल्थ कार्ड बने हैं। इसमें सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, तहसील व जनपद के बड़े सरकारी चिकित्सालयों में किसी भी किस्म की जांच निशुल्क किए जाने का प्रावधान था।
मसलन, आंख, नाक, कान व गला, पेट से संबंधी रोग, अल्ट्रासाउंड, ईसीजी, रक्त, हृदय, मधुमेह, एक्स-रे आदि तमाम जांच मुफ्त की जानी थी। मगर यह योजना 30 दिसंबर तक ही थी। इधर विभाग के उच्च सूत्रों की मानें तो नव वर्ष पर मुख्यमंत्री इस योजना को नए सिरे से दोबारा लागू करने जा रहे हैं। ऐसे में कार्डधारक उन गरीबों को निशुल्क जांच की उम्मीद बढ़ी है जो महंगाई के दौर में बड़ी रकम खर्च करने में असमर्थ हैं। अन्य जनपदों का जिक्र छोड़ अल्मोड़ा को ही लें तो यहां 86 हजार कार्डधारक हैं, जिन्हें बड़ा लाभ होगा।
योजना के तहत एपीएल, बीपीएल व अंत्योदय कार्डधारकों को शामिल किया गया था। साथ ही पेंशनधारक भी। मगर टैक्स देने वाले पेंशन भोगियों को योजना के दायरे से बाहर रखा गया था।
मानिला में स्याल्दे विकासखंड अंतर्गत ग्राम तोलबुधानी के शहीद हरि सिंह रावत का गाव बारह वर्षो से सड़क सुविधा की बाट जोह रहा है। शहीद के नाम पर आज तक सड़क न बनने से ग्रामीण मायूस हैं। उनका कहना है कि बार-बार मांग के बावजूद सड़क न बनना शहीद का अपमान है।
शहीद के बड़े भाई नंदन सिंह रावत का कहना है कि देश की रक्षा के लिए जान की बाजी लगा देने वाले शहीदों की कुर्बानी के समय तो सरकारें एवं राजनैतिक दल श्रद्धांजलि देते समय अनेकों वादे करते हैं, परंतु जब उन वादों को धरातल पर उतारने की बात आती है तो वे शहीदों को भुला देते हैं।
मूल रूप से विकासखंड स्याल्दे के ग्राम तोलबुधानी निवासी शहीद हरि सिंह रावत ने वर्ष 2004 में असम में देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। उस समय रतखाल से उनके निवास तक पांच किमी शहीद मार्ग बनाने की घोषणा की गई थी। इसके लिए प्रांतीय खंड रानीखेत एवं प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना द्वारा अनेकों बार सर्वे भी की जा चुकी है परंतु सड़क निर्माण की दिशा में अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई। इससे शहीद के परिवार एवं ग्रामीणों में रोष व्याप्त है। प्रधान हेमा देवी के अनुसार यदि शीघ्र ही सड़क निर्माण की दिशा में कार्रवाई नहीं हुई तो ग्रामीणों को सड़कों पर उतरने को मजबूर होना पड़ेगा।
अल्मोड़ा चिकित्सा इंतजामात अनदेखी की भेंट चढ़ रही है। इसका नमूना लाखों की मशीनें बनीं है। मशीनें हैं, मगर उनका लाभ मरीज नहीं ले पा रहे। हालत ये कि पूरे जिले में महज इसी अस्पताल में सिटी स्कैन सुविधा है और पांच महीनों से ये मशीन खराब पड़ी है। रेडियोलॉजिस्ट नहीं होने के कारण करीब एक माह से अल्ट्रासाउंड भी ठप है। मेमोग्राफी मशीन भी खराब। इस पर्वतीय अंचल में लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के उद्देश्य से दशकों पहले बेस अस्पताल अल्मोड़ा की स्थापना की गई। यहां डायलिसिस यूनिट भी स्वीकृत है और ट्रामा सेंटर भी बना, मगर इनका लाभ आज तक मरीजों को नहीं मिला। वजह इनके विशेषज्ञ ही नहीं आए। डायलिसिस यूनिट की मशीनें व उपकरण धूल फांक रहे हैं। पूरे जिले में सिटी स्कैन की सुविधा मात्र बेस अस्पताल में है, मगर यह मशीन करीब पांच महीनों से खराब है। मरीजों को सिटी स्कैन के लिए प्राइवेट क्लीनिकों की शरण लेनी पड़ रही है। अस्पताल में कैंसर विशेषज्ञ की तैनाती नहीं हुई है, मगर मेमोग्राफी मशीन है और वह भी लगभग तीन साल से खराब है। ऐसे में बड़ी उम्मीद से दूर-दूर गांवों से आने वाले गरीब मरीज परेशान हो रहे हैं।
दरअसल, अस्पतालों में जांच संबंधी मशीनों व उपकरणों की एएमसी (वार्षिक अनुरक्षण अनुबंध) व सीएमसी (विस्तृत अनुरक्षण अनुबंध) के अनुसार जांच व मरम्मत होती है। मगर निर्धारित समयावधि में ऐसा नहीं हो सका, जिससे मशीनें बार-बार जवाब दे रही हैं। एएमसी व सीएमसी की प्रक्रिया निदेशालय स्तर से होती है। जहां से संबंधित कंपनी से पत्राचार तो होता है, मगर पिछला भुगतान लटके रहने से कंपनी मरम्मत के लिए आने में आनाकानी दिखाती है। इससे मामला लटका है।
सफेद सोने के काले कारोबार के लिए सुर्खियों में रहने वाली कोसी घाटी में नए खन
रानीखेत में सफेद सोने के काले कारोबार के लिए सुर्खियों में रहने वाली कोसी घाटी में नए खनन पट्टों का विरोध शुरू हो गया है। उपखनिज निकासी की आड़ में किसानों की उपजाऊ कृषि भूमि को खुर्द-बुर्द किए जाने का हवाला देते हुए सत्तापक्ष के ही एक प्रतिनिधि ने डीएम को शिकायती पत्र भेज पूर्व में स्वीकृत पट्टों के अतिरिक्त अब और मंजूरी नहीं देने की मांग उठाई है। साथ ही अवैध खनन पर अंकुश पर भी जोर दिया है।
दरअसल, अंतरजनपदीय सीमा पर कोसी क्षेत्र में पहले ही तमाम खनन पट्टे चल रहे हैं। सूत्रों के नुसार हालिया नए पट्टों के लिए तमाम आवेदन और किए गए हैं। इन्हें भी जल्द स्वीकृति की सुगबुगाहट पर उपखनिज क्षेत्रों से सटे गांवों के बाशिंदे मुखर हो उठे हैं। किसान एवं खेत मजदूर प्रकोष्ठ के प्रदेश महासचिव कृपाल सिंह महरा के मुताबिक घाटी इलाके में पहले ही 12 से ज्यादा पट्टे चल रहे हैं। जो स्थानीय लोगों के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। पट्टों से बाहर अवैध खनन का आरोप लगाते हुए कहा कि अब खासतौर पर कोश्या कुटौली तहसील व बेतालघाट के उपखनिज क्षेत्रों में बेधड़क उपखनिज की चोरी से माहौल लगातार खराब हो रहा है।
बाहरी लोगों की घुसपैठ से आए दिन शांति भंग भी हो रही है। तिवाड़ी गांव, सेठी, घंघरेटी, वर्धो, रतौड़ा, बढेरी, रातीघाट, सिमलखा, सौन, सीम, जजूला व बसगांव आदि में अवैध खनन के फेर में किसानों की उपजाऊ खेती को बर्बाद करने का आरोप भी उन्होंने लगाया है। महरा ने इसी सिलसिले में डीएम को शिकायती पत्र भेज नए पट्टों को स्वीकृति न दिए जाने तथा अवैध खनन कारोबारियों पर अंकुश की मांग उठाई है।
कठपुड़िया कुरचौन मोटर मार्ग के निर्माण में अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ियों से छेड़छाड़
रानीखेत,
मानक के उलट पहाड़ियों से छेड़छाड़
सड़क निर्माण की आड़ में अतिसंवेदनशील पहाड़ियों का सीना चीरा जा रहा है। मुनाफे के फेर में चल रहा पत्थरों का खेल मानवजनित आपदा का कारण बन सकता है। निर्माणाधीन कठपुड़िया पतलना कुरचौन रोड के लिए पहाड़ियों से हो रहे छेड़छाड़ पर ग्रामीण लामबंद होने लगे हैं। आरोप है कि नाजुक भूभाग में विस्फोटकों को इस्तेमाल भी किया जा रहा है। हैरत की बात है कि बगैर अनुमति हो रहे अवैध खदान पर विभाग मौन है।
कठपुड़िया कुरचौन मोटर मार्ग के निर्माण में अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ियों से छेड़छाड़ का मुद्दा गरमाने लगा है। ग्रामीण भड़क उठे हैं। आरोप है कि कार्यदायी संस्था के लोग अतिसंवेदनशील भूभाग से अवैध खदान कर पत्थर निकाल रहे हैं। उन्होंने आशंका जताई कि मुनाफे के लिए चोरी छिपे पत्थर बेचे भी जा रहे हैं। यह भी आरोप लगाया कि पहाड़ियों से पत्थर निकालने को विस्फोटकों का इस्तेमाल भी किया जा रहा है। ग्रामीणों के अनुसार इस पर जल्द रोक न लगाई गई तो बरसात में यह भूस्खलन का बड़ा कारण बन सकता है। इसी सिलसिले में डीएम को शिकायती पत्र भी भेजा गया है। इनमें प्रधान कुरचौन शांती राम, सरपंच दीप चंद्र, उमेश कांडपाल, ख्याली दत्त्त, तारी राम, प्रकाश राम, भगवान राम, प्रेमा देवी, लीलाधर, आनंद बल्लभ, भैरव दत्त्त आदि शामिल हैं।
अंतरजनपदीय सीमा पर धारी गांव के लिए खतरे का सबब बनी अतिसंवेदनशील भिडि़या
रानीखेत : अंतरजनपदीय सीमा पर धारी गांव के लिए खतरे का सबब बनी अतिसंवेदनशील भिडि़या की पहाड़ी का जोखिम टालने का काम शुरू हो गया है। अत्याधुनिक तकनीक से भूस्खलन का कहर थामने तथा आबादी की सुरक्षा के लिए गाव के ठीक ऊपर वायर क्रेट का जाल बिछाया जाएगा।
बताते चलें कि अंतरजनपदीय सीमा पर ताड़ीखेत व बेतालघाट ब्लॉक के बीच पिछले दो वर्षो से भिड़िया की अतिसंवेदनशील पहाड़ी रह रह कर दरक रही है। भूस्खलन से गिरने वाले बोल्डर व पत्थर ठीक नीचे बसे धारी गांव पर मुसीबत बन गिरने लगे थे। जनसुरक्षा के मद्देनजर दैनिक जागरण ने प्रमुखता से मुद्दा उठाया। बीच में बाकायदा भविष्य के खतरों से आगाह करते हुए अभियान भी चलाया।
देर से ही सही पर लोनिवि ने भूगर्भीय सर्वे कराने के बाद अब भूस्खलन का कहर रोकने के लिए भिडि़या की अतिसंवेदनशील पहाड़ी पर सुरक्षात्मक कार्य शुरू करा दिए हैं। बोल्डर कहर न बरपाएं इसके लिए अत्याधुनिक तकनीक वाला जाल का निर्माण किया जा रहा है। अधिशाषी अभियंता धन सिंह कुटियाल के अनुसार लगभग डेढ़ लाख की लागत वाले सुरक्षात्मक कार्य शुरू करा दिए गए हैं। दूसरे चरण में भिड़िया अतिसंवेदनशील भूभाग का भी भूगर्भीय सर्वे करा पहाड़ी की रोकथाम को प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा जाएगा।
पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामीण विकास की कुंजी यानी सड़कों का निर्माण कमाई का जरि
तेरह वर्षो से अधर में लटकी कालिका-दलमोटी मोटर मार्ग
देघाट जैनल, तमाढ़ोन गोलना, जैरासी देघाट, वल्मरा सराईखेत मोटर मागरें के अधूरे कायरें
रानीखेत में तेरह वर्षो से अधर में लटकी कालिका-दलमोटी मोटर मार्ग का मुद्दा फिर जोर पकड़ने लगा है। स्वीकृति के बावजूद निर्माण न होने से सब्जी उत्पादक गांवों के ग्रामीण सड़क सुविधा के लिए लामबंद होने लगे हैं। रोड के अभाव में जहां किसानों को अतिरिक्त दूरी तय करनी पड़ती है, वहीं उत्पाद को बाजार तक पहुंचाने में भी खासी कठिनाई झेलने को विवश हैं। ग्रामीणों ने वन भूमि का पेंच दूर कर निर्माण शुरू न होने पर विस चुनाव के बहिष्कार की चेतावनी दी है।
पर्यटक नगरी के समीप कालिका से सुदूर दलमोटी गांव तक वर्ष 2013 में सड़क स्वीकृत हुई। 2006 में लोनिवि ने 5.40 किमी पर पहले चरण की रोड कटिंग व अन्य कार्य पूर्ण किए। मगर इससे आगे वन भूमि का पेंच लगने के कारण दलमोटी तक मिलान कार्य ठप हो गया था।
हालांकि पेंच को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री ने संबंधित विभाग को नए सिरे से प्रस्ताव बना कर मांगा। साथ ही केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय पर भी दबाव बनाया गया था। ग्राम प्रधान खष्टी देवी के अनुसार सड़क का निर्माण पूर्ण न होने से लोगों को खासी मुश्किल हो रही है। उन्होंने कहा कि यदि आचार संहिता से पूर्व वन भूमि का पेंच दूर कर सड़क निर्माण शुरू न किया गया तो विस चुनाव का बहिष्कार किया जाएगा।
रानीखेत: पर्वतीय क्षेत्रों में ग्रामीण विकास की कुंजी यानी सड़कों का निर्माण कमाई का जरिया बन गई हैं। बजट की बाजीगरी का आलम यह है कि बनने के कुछ ही माह बाद सड़क धंसने लगी है, तो उधड़ रही डामर की पर्ते गुणवत्ता पर सवाल भी उठा रही। चमडि़या व छ्योड़ी आदि गांवों को अल्मोड़ा- हल्द्वानी हाईवे से जोड़ने वाली रोड इसकी बानगी भर है।
अंतरजनपदीय सीमा पर लोहाली, छ्योड़ी, चमडि़या, आटाखास, धुरा आदि गांवों को हाईवे से जोड़ उन्हें सड़क सुख के उद्देय से करीब एक दशक पूर्व मोटर मार्ग को स्वीकृति दी गई थी। हीलाहवाली पर जनदबाव में 2.50 करोड़ का बजट मंजूर हुआ। जैसे-तैसे निर्माण कार्य पूरा हुआ। मुख्यमंत्री हरीश रावत ने बहुप्रतीक्षित रतौड़ा पुल के साथ ही इस सड़क का लोकार्पण भी किया। मगर हैरानी की बात है कि उधर सीएम ने जो सड़क जनता को समर्पित की, वह बनने के कुछ ही माह बाद जगह-जगह से धंस गई। डामर उखड़ने से मिट्टी फैल चुकी है।
विभागीय लापरवाही ऐसी कि बरसाती पानी की निकासी को सड़क किनारे नाली निर्माण भी आधा अधूरा ही पड़ा है। यही नहीं मोटर मार्ग पर सुरक्षात्मक कार्यो के नाम पर बने पैराफिट भी गुणवत्ता के अभाव में क्षतिग्रस्त होने लगे हैं। अरसे से सड़क के लिए तरस रहे ग्रामीण अब मोटर मार्ग की बदहाली पर मुखर होने लगे हैं। उन्होंने गुणवत्ता की उच्च स्तरीय जाच व कार्रवाई पर जोर दिया है।
रानीखेत : घोषणा के 11 वर्ष बीतने के बावजूद मोटर मार्ग निर्माण कार्य आरंभ नहीं
रानीखेत : घोषणा के 11 वर्ष बीतने के बावजूद मोटर मार्ग निर्माण कार्य आरंभ नहीं होने पर अब ग्रामीणों का सब्र जवाब देने लगा है। सब्जी उत्पादक बाहुल्य क्षेत्र के लोगों ने राज्य सरकार पर कोरी घोषणा कर उनको छलने का आरोप लगाया। चेतावनी दी है कि शीघ्र मोटर मार्ग का निर्माण कार्य आरंभ नहीं किया गया तो सड़क के लिए सड़क पर उतरने को बाध्य होंगे।
द्वाराहाट ब्लॉक के मजखाली से डिगोटी, दुगौड़ाकोट टकूना होते हुए बग्वालीपोखर मोटर मार्ग निर्माण की माग वषरें से उठती रही। गांव के पूर्व बीडीसी भूपाल सिंह के अनुसार लगभग दो हजार की आबादी को मोटर मार्ग से जोड़ने के लिए वर्ष 2005 में तत्कालीन लोनिवि मंत्री इंदिरा हृदयेश ने बाकायदा दस किमी मोटर मार्ग का शिलान्यास भी किया। लेकिन आज तक मोटर मार्ग निर्माण का कार्य आरंभ नहीं होने से क्षेत्रीय जनता अपने को ठगा महसूस कर रही है। प्रधान महतगांव अनिता देवी व प्रधान दुगौड़ा राधा देवी ने वित्त मंत्री इंदिरा हृदयेश को ज्ञापन भेज शीघ्र मोटर मार्ग निर्माण कार्य आरंभ करने की गुहार लगाई है। कहा है कि 2005 में आपके द्वारा ही उक्त मोटर मार्ग का शिलान्यास कर लोगों की उम्मीदों को बढ़ाया था। कहा है कि सब्जी उत्पादक क्षेत्र होने के कारण यहां के काश्तकारों को जहां उनके उत्पादों का सही मूल्य नहीं मिल पाता वहीं बीमार लोगों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता है। ग्रामीणों ने लोगों को सुविधा मुहैया कराने के लिए मुख्यमंत्री हरीश रावत व वित्त मंत्री इंदिरा से शीघ्र मोटर मार्ग निर्माण की गुहार लगाई है। साथ चेतावनी दी है कि शीघ्र मोटर मार्ग निर्माण कार्य आरंभ नहीं किया गया तो ग्रामीण सड़क पर उतरने को बाध्य होंगे।
अल्मोड़ा : विकास खंड धौलादेवी अंतर्गत पीएमजीएसवाइ के तहत स्वीकृत सड़क बाराकूना-बजेली
ल्मोड़ा : विकास खंड धौलादेवी अंतर्गत पीएमजीएसवाइ के तहत स्वीकृत सड़क बाराकूना-बजेली का निर्माण कार्य अब तक शुरू नहीं किए जाने से ग्रामीणों में रोष है। जनप्रतिनिधियों ने जिलाधिकारी को दिए ज्ञापन में कहा है कि यदि मोटरमार्ग का निर्माण कार्य शीघ्र शुरू नहीं किया गया तो वह आगामी विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करने को बाध्य होंगे।
जिलाधिकारी को दिए गए ज्ञापन में कहा गया है कि
उक्त सड़क 10 साल पूर्व स्वीकृत हुई थी। लेकिन अब तक इसका निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सका है। जिससे ग्राम पंचायत कछियोला, चिमार्ख, तलचौना, नायला, सेली, तापनी, सिरानी, वगदूला, भौरकनेला, खडियारी, वजेला, चारकोला, चनकीला तथा तड़खेत के ग्रामीणों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। ग्रामीणों का कहना है कि इन ग्रामों में सब्जी बहुतायत में होती है, लेकिन विपणन की सुविधा नहीं होने से ग्रामीणों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। ग्रामीणों को 8 से 10 किमी पैदल चलकर पहले फल व सब्जी को सड़क तक लाना पड़ता है। अथवा मजदूरों को ढुलान देकर इसे सड़क मार्ग तक पहुंचाना होता है। ज्ञापन सौंपने वालों में विमला देवी, गोपाल दत्त, किरन नेगी, पान सिंह, कृष्ण प्रसाद, मोहन चंद्र, राजेंद्र सिंह नेगी, दीवान सिंह, नवीन चंद्र, राजेंद्र सिंह व हरीश चंद्र शामिल हैं।
अल्मोड़ा : बागेश्वर सीमा से सटे बेहद दुर्गम कटधारा गांव
अल्मोड़ा -बागेश्वर सीमा से सटे बेहद दुर्गम कटधारा गांव के लोगों ने पहली बार अपने गांव में डीएम को देखा तो चकित हो उठे। साहब सामने थे तो लोगों ने अपनी समस्याएं भी उनके सामने रखी। कच्चे और टूटे रास्तों पर पैदल चलकर इन गांवों की दूरी तय करने वाले जिलाधिकारी सविन ने बताया कि भैंसियाछाना विकासखंड के गाव कटधारा, गौनाप, बबुरीयानायल, भनलगाव का क्षेत्र बर्ड लाइफ सेंचूरी में आता है। जिसके चलते इन गावों को अभी तक सड़क नहीं मिल पाई है, लेकिन अब वन संचार मार्ग के तहत वन विभाग अधिकारियों से सड़क का प्रस्ताव जिला योजना में रखने के निर्देश दिए। फलों की उत्पादकता को देखते हुए यहा आइफैड और एनएलआरएम के जरिये स्वयं सहायता समूह गठित करने की बात भी कही। ताकि फलों का विपणन भी हो सके। इसके अलावा धौलछीना में पेयजल समस्या से निपटने के लिए धौलछीना बाजार से पेयजल स्रोत तक निरीक्षण कर इसकी मरम्मत करने के लिए कहा। उन्होंने निर्देश दिए कि सेराघाट में प्रत्येक सप्ताह रोस्टर के तहत डाक्टर धौलछीना और बाड़ेछीना से जाएंगे। बबुरीयानायल और भनलगाव में क्षतिग्रस्त रास्ते को मनरेगा से बनाने को कहा। कटधारा-बबुरियानायल-गौननाप विद्युत लाइन की मरम्मत और ट्रासफार्मर लगाने के साथ लाइन को थ्री फेज करने का प्रस्ताव भी बनाया जाएगा।
मानिला: विकास खंड सल्ट में बदहाल होती शिक्षा
राजकीय महाविद्यालय में अंग्रेजी विषय प्रवक्ता नही
मानिला में विकास खंड सल्ट में बदहाल होती शिक्षा व्यवस्था का कोई पुरसाहाल नहीं है। कहीं भवन नहीं है तो कहीं शिक्षक नहीं। ऐसी ही कुछ तस्वीर है राजकीय उच्चत्तर माध्यमिक विद्यालय गुलार की। जहां न तो शिक्षक है, और न ही विद्यालय भवन है। शीघ्र व्यवस्था न होने पर ग्रामीणों ने जिलाधिकारी को भेजे पत्र मे आंदोलन की चेतावनी दी है।
जिला पंचायत सदस्य नारायण सिंह रावत ने बताया कि वर्ष 2009 में सर्वशिक्षा अभियान के तहत कार्यदायी संस्था विकास खंड सल्ट द्वारा स्कूल भवन निर्माण शुरू किया गया, परन्तु एक वर्ष के भीतर ही निर्माण कार्य रुकगया। बाद में पठन-पाठन कार्य एक गौशाले में होने लगा। जब गौशाला भी जीर्ण-क्षीर्ण हो गया तो स्कूल का संचालन पंचायत घर में हुआ।
इन सात वर्षो में शिक्षा महकमे को सभी जानकारियां होने के बावजूद भवन निर्माण की दिशा में कोई ठोस कार्य योजना नहीं बन पाई। भवन निर्माण कार्य आज भी आधा-अधूरा पड़ा है। वहीं तैनात एकल शिक्षक के मंगलवार से अवकाश पर जाने के बाद अब छात्रों का अध्ययन कार्य चौपट हो गया है। जिससे नाराज ग्राम प्रधान अनीता देवी, महेन्द्र सिंह, बालम सिंह, विरेन्द्र सिंह आदि ने ग्रामीणों के बच्चों के साथ हो रहे अन्याय के विरोध में विद्यालय बंद करने की चेतावनी दी है।
राज्य सरकार पर वादाखिलाफी का आरोप लगाते हुए आशा कार्यकर्ता मुख । उन्होंने जुलूस निकाल तहसील मुख्यालय में प्रदर्शन किया। सभा में वक्ताओं ने मानदेय के बजाय प्रोत्साहन राशि संबंधी शासनादेश का पुरजोर विरोध करते हुए मातृशक्ति की उपेक्षा करार दिया।
उत्तराखंड आशा हेल्थ वर्कर्स यूनियन के बैनर तले सोमवार को ब्लॉक के विभिन्न केंद्रों में तैनात कार्यकर्ता सड़क पर उतर आई। गोविंद सिंह माहरा नागरिक चिकित्सालय से जुलूस की शक्ल में सदर बाजार, गाधी चौक होती हुई तहसील मुख्यालय पहुंची। सभा में संगठन अध्यक्ष सरोज चौधरी ने कहा बीती 18 अगस्त को मुख्यमंत्री ने राज्य मद से दो हजार रुपये मासिक मानदेय की घोषणा की थी। साथ ही पूर्व में घोषित पाच हजार रुपये वार्षिक प्रोत्साहन राशि के अतिरिक्त इसे मानदेय की श्रेणी में रखा गया। रोष जताया कि 27 अक्टूबर को जारी शासनादेश में दो हजार रुपये को मानदेय के बजाय मासिक प्रोत्साहन राशि लिख आशा कार्यकर्ताओं को गुमराह किया गया है। उपाध्यक्ष मीना आर्या ने आरोप लगाया कि पहले से ही केंद्र सरकार की ओर से टीकाकरण, गर्भवती महिलाओं की सूची आदि कायरें के लिए मिलने वाले फंड को इसमें जोड़ कर घालमेल कर दिया गया है। प्रशासनिक लापरवाही से चम्पावत जनपद की 48 आशाओं की उपेक्षा पर भी कड़ा रोष जताया। उन्होंने वार्षिक प्रोत्साहन राशि पाच हजार रुपये व एरियर आदि के भुगतान पर जोर देते हुए शासनादेश की विसंगति को जल्द दूर करने की मांग उठाई। बाद में प्रशासन के जरिये मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजा गया।
द्वाराहाट छूट गए लोगों को अभी तक राशनकार्ड वितरित न किए जाने तथा समाजकल्याण द्वारा पात्रों को 2 साल से पेंशन न मिलने पर गुस्साए लोगों ने अल्मोड़ा जनपद के बग्वालीपोखर में आंदोलन शुरू कर दिया है। शीघ्र मांगें पूरी न होने पर आमरण अनशन की चेतावनी दी है। बग्वालीपोखर चौराहे पर क्रमिक अनशन पर भंडरगांव के क्षेत्र पंचायत सदस्य भूपाल भंडारी क्रमिक अनशन पर बैठे। मौके पर आयोजित सभा को सम्बोधित करते उन्होंने कहा पंचायत प्रतिनिधि लंबे समय से गांवों के वंचित लोगों को राशनकार्ड उपलब्ध कराने की मांग कर रहे हैं। लेकिन शासन-प्रशासन अभी तक सोया पड़ा है। जितने कार्ड विकासखंड को मिलने की बात कही जा रही है, वह ऊंट के मुंह में जीरा है। कहा कि विगत दो वर्षो से पात्रों को समाजकल्याण की पेंशन नही मिल पाई है। जिस कारण विधवाओं, वृद्धा व दिव्यांगों के लिए जीवनयापन करना दूभर हो चला है
द्वारहाट में शिल्पजकार महासभा की बैठक में वक्तापओं ने कहा कि उत्तेराखंड सरकार ने उनके वर्ग की उपेक्षा की है
अल्मोड़ा में शिल्पकार महासभा ने बैठक कर उत्तराखंड राज्य सरकार पर जाति विशेष की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए मुख्यमत्री हरीश रावत को दलित विरोधी करार दिया। कहा कि बैकलॉग के पद लंबे समय से रिक्त पड़े हैं। जबकि नए पदों पर हो रही नियुक्तियों मे रिश्वतखोरी के चलते अनुसूचित वर्ग के बेरोजगारों का शोषण किया जा रहा है। बैठक में अध्यक्ष हरी राम ने कहा कि राज्य सरकार मात्र कोरी घोषणाओं तक ही सीमित है। राज्य सरकार स्पेशल कम्पोनेट प्लान के धन का खुला दुरूपयोग करने का आरोप लगाया। इसके अलावा कन्या धन, नंदा देवी आदि योजनाओं से इस वर्ग के छात्रों को वंचित रखा गया है। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
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