उत्तराखंड केस में उनका फ़ैसला? जस्टिस जोसेफ़ की नियुक्ति किस वजह से अटकी

 केन्‍द्र सरकार ने सफ़ाई दी- उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाने वाले जस्‍टिस के मामले पर  #केन्‍द्र सरकार ने वापस भेजा जस्टिस जोसेफ का नाम #कॉलेजियम से पुनर्विचार की मांग,  #जस्टिस केएम जोसेफ़ ने 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के केन्द्र के आदेश को रद्द कर दिया था #जस्टिस केएम जोसेफ़ के मामले में सरकार की चुप्पी को लेकर कई जजों ने सवाल भी उठाए हैं #जस्टिस जोसेफ़ के मुद्दे पर सरकार ने सफ़ाई दी है और कहा है कि उत्तराखंड मामले से उसका कोई लेना देना नहीं है #  जस्टिस जोसेफ़ के मुद्दे पर सरकार ने सफ़ाई दी है और कहा है कि उत्तराखंड मामले से उसका कोई लेना देना नहीं है # 26 अप्रैल की बडी खबर-  #हिमालयायूके न्‍यूज पोर्टल  एक्‍सक्‍लुसिव

उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के. एम. जोसेफ के नाम को मंजूरी नहीं दिए जाने को लेकर कांग्रेस ने गुरुवार (26 अप्रैल) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ‘बदले की राजनीति’ की राजनीति का आरोप लगाया. पार्टी ने सवाल किया कि क्या दो साल साल पहले उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के खिलाफ फैसला देने की वजह से न्यायमूर्ति जोसेफ को पदोन्नति नहीं दी गई? कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट किया है, ‘न्यायपालिका को लेकर प्रधानमंत्री मोदी की ‘बदले की राजनीति’ और उच्चतम न्यायालय का ‘साजिशन गला घोंटने’ का प्रयास फिर बेनकाब हो गया है.’  उन्होंने कहा, ‘न्यायमूर्ति जोसेफ भारत के सबसे वरिष्ठ मुख्य न्यायाधीश हैं. फिर भी मोदी सरकार ने उन्हें उच्चतम न्यायालय का न्यायधीश नियुक्त करने से इनकार कर दिया. क्या यह इसलिये किया गया कि उन्होंने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन को रद्द कर दिया था?” 

पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने ट्वीट कर इस मामले में सरकार को घेरा है. उन्होंने कहा कि है कि ‘जस्टिस के एम जोसेफ़ की नियुक्ति किस वजह से अटकी हुई है? उनका राज्य या उनका धर्म या फिर उत्तराखंड केस में उनका फ़ैसला? क़ानून के मुताबिक़, जजों की नियुक्ति में सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफ़ारिश ही अंतिम है. क्या मोदी सरकार क़ानून से ऊपर हो गई है?’

सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड के चीफ जस्टिस जोसेफ़ की नियुक्ति वाली कॉलेजियम की सिफारिश को सरकार ने वापस भेज दिया है. सरकार ने जस्टिस जोसेफ के नाम पर कॉलेजियम से दोबारा विचार के लिए कहा है. यह जानकारी सूत्रों ने दी है.   जस्टिस जोसेफ़ के मुद्दे पर सरकार ने सफ़ाई दी है और कहा है कि उत्तराखंड मामले से उसका कोई लेना देना नहीं है. सूत्रों की मानें तो सरकार ने कहा है कि वरिष्ठता, योग्यता और निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के आधार पर जस्टिस जोसेफ के नाम की सिफारिश नहीं की गई थी.   क़ानून मंत्रालय ने इंदू मल्होत्रा को जज बनाने की सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफ़ारिश को हरी झंडी दे दी लेकिन उत्तराखंड के चीफ़ जस्टिस केए जोसेफ़ की नियुक्ति को दोबारा विचार करने के लिए वापस भेज दिया है. सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों के कॉलेजियम ने 10 जनवरी को हुई बैठक में इंदू मल्होत्रा और जस्टिस केएम जोसेफ़ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने की सिफारिश की थी.

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खबरों के मुताबिक उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में वरिष्ठ अधिवक्ता इंदु मल्होत्रा के नाम को सरकार ने स्वीकृति दे दी है, लेकिन न्यायमूर्ति जोसेफ नाम को मंजूरी नहीं दी गई. उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम से इन दोनों लोगों के नाम की फाइल 22 जनवरी को कानून मंत्रालय को मिली थी. न्यायमूर्ति जोसेफ उत्तराखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश हैं. गौरतलब है कि मार्च, 2016 में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाया था. कुछ दिनों बाद ही न्यायमूर्ति जोसेफ की अध्यक्षता वाली उच्च न्यायालय की पीठ ने इसे निरस्त कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जय सिंह ने भी ट्वीट कर सरकार पर निशाना साधा है. उन्होंने कहा कि ‘अगर आप न्यायपालिका की आज़ादी चाहते हैं तो जजों की नियुक्ति पर रोक लगाएं. एक प्रतिनिधिमंडल राष्ट्रपति से मिले. मैं इंदु मल्होत्रा से अपील करती हूं कि वो नियुक्ति को स्वीकार न करें.’

 

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ परोक्ष रूप से विद्रोह करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर बुधवार को तब छुट्टी पर रहे जब सभी न्यायाधीश बुधवार के रस्मी दोपहर भोज में मिले. प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ कांग्रेस नीत विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू द्वारा खारिज किए जाने के दो दिन बाद ऐसी अटकलें थीं कि क्या न्यायमूर्ति चेलमेश्वर आज दोपहर भोज बैठक में शामिल होंगे. परंपरा के तहत सुप्रीम कोर्ट के सभी न्यायाधीश हर बुधवार को दोपहर भोज में मिलते हैं. इनमें से हर किसी को बारी-बारी से अपने गृह राज्य का ‘ घर का खाना ’ लाना होता है.  सूत्रों ने बताया कि बुधवार न्यायमूर्ति मोहन एम शांतानागोदर की बारी थी. वह कर्नाटक से हैं. जब न्यायमूर्ति चेलमेश्वर के कार्यालय से संपर्क किया गया तो बताया गया कि आज न्यायमूर्ति काम पर नहीं गए , लेकिन कोई कारण नहीं बताया गया. अदालत से बुधवार को उनकी अनुपस्थिति काफी मायने रखती है क्योंकि सूत्रों ने कहा था कि जब नायडू ने महाभियोग नोटिस को खारिज किया तो उस समय न्यायमूर्ति चेलमेश्वर सोमवार की बैठक में मौजूद थे. सूत्रों ने कहा कि न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एमबी लोकुर ने जहां महाभियोग मुद्दे को छोड़कर आगे बढ़ने का पक्ष लिया था, वहीं न्यायमूर्ति चेलमेश्वर बैठक में चुप रहे थे.  सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ न्यायाधीशों न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर ने उच्चतर न्यायपालिका के समक्ष संस्थागत मुद्दों पर चर्चा करने के लिये प्रधान न्यायाधीश से पूर्ण अदालत की बैठक बुलाने का अनुरोध किया है. यह पत्र प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिये विपक्ष की ओर से दिये गए नोटिस को राज्यसभा सभापति वेंकैया नायडू के खारिज करने के एक दिन पहले लिखा गया.

 

 सुरजेवाला ने कहा, ‘न्यायपालिका की गरिमा और संस्थाओं की संवैधानिक सर्वोच्चता को तार-तार करना मोदी सरकार की फितरत बन गई है. जून, 2014 में उन्होंने (सरकार) जानेमाने न्यायविद जी. सुब्रमण्यम के नाम को उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश के रूप मंजूरी नहीं दी क्योंकि वह अमित शाह और उनके लोगों के खिलाफ वकील रहे थे.’  उन्होंने दावा किया, ‘मोदी जी ने पहले संसदीय विशेषाधिकार और सर्वोच्चता पर कुठाराघात किया फिर उन्होंने मीडिया की आजादी में दखल दिया. और अब लोकतंत्र की अंतिम प्रहरी न्यायपालिका अब तक के सबसे खतरनाक हमले का सामना कर रही है.’’  उन्होंने कहा, ‘अगर देश अब नहीं खड़ा हुआ तो सर्वसत्तावाद लोकतंत्र को खत्म कर देगा.’

ऐसा समझा जाता है कि पत्र में उठाए गए मुद्दों पर सोमवार को चाय पर बुलाई गई बैठक में चर्चा हुई. इस बैठक में सभी न्यायाधीशों ने हिस्सा लिया था. इसकी वजह से अदालत की कार्यवाही 15 मिनट की देरी से शुरू हुई थी. सूत्रों ने बताया कि न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति लोकुर ने 22 अप्रैल को दो लाइन के संयुक्त पत्र पर हस्ताक्षर किए. इसमें उन्होंने ‘ पूर्ण अदालत ’ की बैठक बुलाने की बात कही थी. 

इसी मुद्दे को 21 मार्च को न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर ने पहली दफा उठाया था. इसके बाद न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ ने नौ अप्रैल को इसी तरह का पत्र लिखा था. उन्होंने शीर्ष अदालत से संबंधित मुद्दों पर विचार करने के लिये सात सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों की पीठ बनाने की मांग की थी. उन्होंने बताया कि न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति लोकुर द्वारा लिखे गए संक्षिप्त पत्र में सीजेआई से सांस्थानिक मुद्दों और शीर्ष अदालत के ‘ भविष्य ’ पर चर्चा करने के लिये न्यायिक पक्ष की तरफ से पूर्ण अदालत की बैठक बुलाने का अनुरोध किया गया. 

परिपाटी के अनुसार सुप्रीम कोर्ट की पूर्ण अदालत की बैठक में सभी न्यायाधीश शामिल होते हैं. इस तरह की बैठक सीजेआई आम तौर पर न्यायपालिका से संबंधित सार्वजनिक महत्व के मामलों पर चर्चा के लिये बुलाते हैं. सोमवार की सुबह चाय पर बैठक नायडू द्वारा महाभियोग नोटिस को खारिज करने की घोषणा किये जाने के तुरंत बाद बुलाई गई थी. सूत्रों ने बताया कि सीजेआई ने बैठक के नतीजे और खासतौर पर पूर्ण अदालत की बैठक के संबंध में कुछ भी नहीं कहा.

हालांकि , न्यायमूर्ति गोगोई और न्यायमूर्ति लोकुर की राय थी कि महाभियोग के मुद्दे को पीछे छोड़कर आगे बढ़ा जाना चाहिये और सर्वोच्च न्यायपालिका के समक्ष मुद्दों का हल निकालने के लिये न्यायाधीशों के बीच चर्चा होनी चाहिये. न्यायमूर्ति गोगोई अगले सीजेआई हो सकते हैं. प्रधान न्यायाधीश मिश्रा दो अक्तूबर को सेवानिवृत्त होने वाले हैं.  एक न्यायाधीश को पदोन्नत करने और एक वरिष्ठ महिला अधिवक्ता की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति किये जाने के संबंध में कॉलेजियम की सिफारिश को मंजूरी देने में सरकार की ओर से विलंब से नाराज न्यायमूर्ति जोसफ ने सीजेआई को पत्र लिखकर दावा किया था कि संस्थान का अस्तित्व खतरे में हैं और इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता है. उन्होंने सीजेआई से नियुक्ति के मामले को तार्किक अंजाम तक पहुंचाने के लिये सात सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों की पीठ गठित करने का अनुरोध किया था. सभी न्यायाधीशों को 21 मार्च को भेजे गए अपने पत्र में न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने सीजेआई से न्यायपालिका में कार्यपालिका के कथित हस्तक्षेप के मुद्दे पर चर्चा के लिये पूर्ण अदालत की बैठक बुलाने का अनुरोध किया था.

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