जब एक रानी सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो क्या मेरा लकड़ी का घोड़ा पानी नहीं पी सकता – न्याय देवता गोल्ज्यू के बारे में चन्द्रशेखर जोशी से विस्तार से सुना राज्यपाल ने

डाना गोलू में, गोलू देवता का मूल और सबसे प्राचीन मंदिर है। गोलू देवता भगवान शिव के रूप में देखा जाता है, उनके भाई कलवा भैरव के रूप में हैं और गर्भ देवी शक्ति का रूप है। कुमाऊ के कई गांवों में गोलू देवता को प्रमुख देवता (इष्ट/ कुल देवता) के रूप में भी प्रार्थना की जाती है।

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न्याय का देवता गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है। गोलू देवता या भगवान गोलू उत्तराखंड राज्य के कुमाऊं क्षेत्र की प्रसिद्ध पौराणिक देवता हैं। अल्मोड़ा स्थित गोलू देवता का चितई मंदिर बिनसर वन्य जीवन अभयारण्य से चार किमी दूर और अल्मोड़ा से दस किमी दूर है। मूल रूप से गोलू देवता को गौर भैरव (शिव ) के अवतार के रूप में माना जाता है। एक अन्य कहानी के मुताबिक गोलू देवता चंद राजा, बाज बहादुर ( 1638-1678 ) की सेना के एक जनरल थे और किसी युद्ध में वीरता प्रदर्शित करते हुए उनकी मृत्यु हो गई थी। उनके सम्मान में ही अल्मोड़ा में चितई मंदिर की स्थापना की गई। चमोली में गोलू देवता को कुल देवता के रूप में पूजा जाता है। चमोली में नौ दिन के लिए गोलू देवता की विशेष पूजा की जाती है। इन्हें गौरील देवता के रूप में भी जाना जाता है।

गोलू देवता को उत्तराखंड में सबसे पहले पूजा जाता है इनका जन्म चंपावत में हुआ था इनके पिता जी का नाम झालूराई था इनके पिताजी एक राजा थे वह अयोध्या को छोड़कर चंपावत आए थे झालूराई के 7 पत्नियां थी लेकिन उनमें से किसी के भी संतान नहीं थी इसलिए  झालूराई इसी चिंता में रहते थे कि यदि मेरी कोई संतान नहीं होगी, तो मेरा वंश आगे कैसे बढ़ेगा और कौन मेरी प्रजा की रक्षा करेगा

    झालूराई भगवान भैरव की तपस्या करते थे उस समय राजा महाराजाओं की मन की शक्ति इतनी दृढ़ होती थी कि उनको भगवान साक्षात दर्शन देते थे उस समय  झालूराई ने भी भैरव देवता की तपस्या की और भैरव देवता ने प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए इसके बाद  झालूराई ने भैरव देवता से कहा कि मेरे कोई संतान नहीं है कृपया करके मुझे संतान होने का सुख दीजिए

इसके बाद भैरव देवता उन्हें कहते हैं कि तुम आठवीं शादी करो और तुम्हारी जो आठवीं रानी होगी उसकी कोख से मैं जन्म लूंगा, मैं आपके वंश को आगे बढ़ा लूंगा और आपकी प्रजा की देखभाल करूंगा इसके बाद  झालूराई बहुत ही खुश होते हैं और धीरे-धीरे समय बीतने लगता है और वह सोचने लगते हैं कि मुझे वह 8वीं रानी कहां मिलेगी जिससे मैं शादी कर लूंगा

एक बार  झालूराई जंगल में शिकार खेलने के लिए जाते हैं तब वह रास्ता भटक जाते हैं और उन्हें प्यास लगने लग जाती है इसके बाद वह पानी की तलाश में इधर-उधर घूमने लगते हैं तब उन्हें सामने एक तलाब दिखाई देता है इसके बाद वह उस तालाब में पानी पीने के लिए जाते हैं जब वह पानी पीने लगते हैं तब एक सुंदरसी कन्या आवाज लगाती है कि कृपया करके इस तालाब का पानी मत पीए क्योंकि यह तालाब मेरा है और यहां का जितना भी क्षेत्र है वह सब मेरा है

इसके बाद  झालूराई उन्हें बताते हैं कि तुम नहीं जानती कि मैं कौन हूं ,वह कहती है कि मैं नहीं जानती आप कौन हो तब झालूराई उसे बताते हैं कि मैं यहां का राजा हूं इसके बाद वह पहला करती है कि मैं नहीं मानती कि आप राजा हो राजा होने का कोई सबूत दीजिए तब  झालूराई उसे कहते हैं कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे कि आपको यकीन हो जाए कि मैं राजा हूं इसके बाद वह कन्या कहती है कि यहां से कुछ दूरी पर दो सांड लड़ाई कर रहे हैं यदि आपने उन्हें छुड़ा दिया तो मैं मान जाऊंगी कि आप एक राजा हो इसके बाद  झालूराई उन्हें छुड़ाने के लिए जाते हैं परंतु वह असफल रहते हैं फिर वह कन्या सांडो को अलग कर देती है यह दृश्य देखकर राजा हैरान रह जाते हैं और वह उस कन्या से उसका परिचय पूछते हैं इसके बाद वह बताती है कि मैं पंच देवताओं की बहन कलिंगा हूं इसके बाद  झालूराई उस कन्या के सामने अपने शादी का प्रस्ताव रखते हैं वह कन्या कहती है कि मैं सबसे पहले अपने पंच देवताओं को पूछूंगी उसके बाद मैं आपसे शादी करूंगी इसके बाद पंच देवता कलिंगा को शादी के लिए स्वीकृति दे देते हैं और वह राजा झालूराई से शादी कर लेती है 

जब  झालूराई अपनी आठवीं पत्नी को शादी कर के महल में लाते हैं तब उनकी पहली 7 पत्नियां उससे ईर्ष्या करने लगती है शादी के कुछ दिनों के बाद कलिंगा को पुत्र की प्राप्ति होती है जब यह बात पूरे राज महल में फैलती है तब वह सातो रानियां उस बच्चे की जगह सिलबट्टे को कपड़े में लपेटकर रानी कलिंगा के पास रख देती है उस समय राजा  झालूराई युद्ध के लिए बाहर गए हुए थे

इसके बाद वह सभी रानी उस बच्चे को जहरीले जानवरों के बीच में छोड़ देती है लेकिन कोई भी जानवर उसे कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाता क्योंकि वह स्वयं भैरवनाथ थे वह रानियां उस बच्चे को कई बार नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती थी लेकिन हर बार असफल रहती थी जब उन्होंने यह दृश्य देखा तो उन्होंने सोचा कि यदि इस बारे में राजा को पता चलेगा तो वह हम सभी से ईर्ष्या करने लगेंगे

इसके बाद वह सभी रानियां गोलू देवता को सफेद कपड़े में लपेटकर एक बक्से में बांधकर पानी में फेंक देती है जब नदी में वह बक्सा बहता हुआ पानी के साथ जा रहा था तब नदी के किनारे एक मछुआरा मछली पकड़ रहा था उस मछुआरे ने उस बक्से को देखा तो उसने उसे बाहर निकाल लिया और उसे देखकर बहुत खुश हुआ क्योंकि वह एक सोने चांदी से बना हुआ बक्सा था इसके बाद उसने खुशी से उस बक्से को खोला तो उसमें गोलू देवता सो रहे थे और उनके शरीर से एक दिव्य प्रकाश निकल रहा था

इसके बाद में मछुआरा गोलू देवता को अपने घर ले आते हैं और उससे बहुत प्यार करने लगते हैं धीरे-धीरे समय बीतने लगता है और गोलू देवता बड़े होने लगते हैं गोलू देवता बचपन में बहुत ही ‘गोल मटोल’ से थे इसलिए इनकी मां इन्हें प्यार से ‘गोलू’ कह कर पुकारती थी इस कारण से इनका नाम गोलू पड़ा था जब गोलू देवता बड़े होते हैं तब उन्हें सपने आने लगते हैं कि  झालूराई उनके पिताजी हैं जो इस समय के शासक हैं एक दिन गोलू अपने पिताजी मछुआरे से कहता है कि आप मुझे घोड़ा दे दीजिए और  जिससे मैं राज महल में जा सकूं और राजा को यह सब बातें बता सकू

इसके बाद वह मछुआरा कहता है कि हम तो बहुत गरीब मछली पकड़ कर अपना जीवन यापन करते हैं इसलिए हम आपको घोड़ा नहीं दिला सकते गोलू देवता के पास एक लकड़ी का घोड़ा होता है और वह उस घोड़े पर अपनी दिव्य शक्तियां प्रयोग करते हैं जिससे वह लकड़ी का घोड़ा साक्षात घोड़ा बन जाता है इसके बाद गोलू देवता उस घोड़े पर बैठकर राज महल की ओर निकलते हैं

जब गोलू देवता राज महल की ओर जा रहे होते हैं तब वे देखते हैं कि वह सातों रानियां एक तालाब के किनारे बैठी हुई है उन्हें देखकर गोलू देवता के मन में विचार आता है कि इन सातों रानियों को सबक सिखाना चाहिए ताकि यह राज महल में किसी के साथ अन्याय और ईर्ष्या का व्यवहार ना करें इसके बाद गोलू देवता उस असली घोड़े को फिर से लकड़ी का घोड़ा बना देते हैं इसके बाद गोलू देवता उस लकड़ी के घोड़े को तालाब के किनारे पानी पिलाने लगते हैं

उसे पानी पिलाता देख वह सब तो रानियां कहती है कि इस लकड़ी के घोड़े को पानी क्यों पिला रहे हो इसके बाद गोलू देवता उन्हें जवाब देते हैं कि जब एक रानी सिलबट्टे को जन्म दे सकती है तो क्या मेरा लकड़ी का घोड़ा पानी नहीं पी सकता इसके बाद वह रानी आप बहुत ही अपमान महसूस करती है और उनकी शिकायतें राजा झालूराई से कर देती है इसके बाद राजा के सैनिक उन्हें पकड़कर राजमहल में ले आते हैं और राजा रानियों के अपमान करने का उनसे कारण पूछते हैं

इसके बाद गोलू देवता झालूराई को सारी घटना का विवरण देते हैं उन्हें बताते हैं कि किस प्रकार इन सातों रानियों ने मुझे नदी में फेंक दिया था गोलू देवता की बात को सुनकर राजा बहुत ही क्रोधित होते हैं और उन सातों रानियों को जेल के अंदर डाल देते हैं इसके बाद रानी कलिंगा और उनके पुत्र गोलू देवता की वजह से राजा उन्हें छोड़ देते हैं तभी गोलू देवता को न्याय का देवता कहा जाता है उन्होंने कभी भी अपने दरबार में किसी के साथ अन्याय नहीं किया था 

गोलू देवता का मंदिर उत्तराखंड अल्मोड़ा के चितई नामक स्थान पर स्थित है इन्हें कुमायूं के इतिहास का देवता माना जाता है इन के चार प्रमुख मंदिर हैं चितई गोलू देवता मंदिर ,अल्मोड़ा चंपावत गोलू मंदिर ,घोड़ाखाल गोलू मंदिर ,और तारीखेत गोलू मंदिर माना जाता है कि इन के मंदिर में लोग अपनी मनोकामनाएं लिखकर वहां बांध देते हैं और इसके बाद वहां का पुजारी उन पर्चियो को गोलू देवता के सामने पड़ता है ऐसा करने से लोगों की  मनोकामनाएं पूरी होती है 

गोलू देवता की आज पूरी कहानी https://www.youtube.com/watch?v=uIFl4Z8B6Mg

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