यूपी ; अंत में मोदी ने दागा ब्रहमास्त्र –
#यूपी में हिंदू-मुस्लिम मुद्दा गरमाया #अंत में मोदी ने दागा ब्रहमास्त्र – अखिलेश को घेरने के लिए मोदी ने एक नहीं बल्कि एक ही साथ दो गंभीर आरोप लगा दिये. अखिलेश यादव सरकार पर धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया; मुस्लिम वोटों में बिखराव की आशंका से सहमे अखिलेश ने भी गोला दागा- “मैं सदी के महानयाक से अपील करूंगा कि वे गुजरात के गधों का विज्ञापन न करें.”
#पूर्वांचल ओर बुंदेलखंड में मतदान के पहले हिंदू-मुस्लिम कार्ड खेला #तीनों पार्टियों के बीच कांटे की टक्कर #कल यूपी में चौथे चरण में 12 जिलों की 53 सीटों पर मतदान होना है#अखिलेश द्वारा बड़ी चतुराई और शालीनता से मोदी के सवालों का जवाब #यूपी की चुनावी जंग में कब्रिस्तान, श्मशान, रमजान, होली, दिवाली और गधे के बाद अब कसाब की एंट्री हो गई है. बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह ने चुनावी लड़ाई में नया रंग भरते हुए कहा कि ‘कसाब’ ने यूपी का बंटाधार कर रखा है.
संघ ने यूपी फतह के लिए पूरी ताकत झोंकी–य़ूपी के चुनाव में श्मशान कब्रिस्तान का मुद्दा गूंज रहा है. अब बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर पलटवार किया है. मायावती ने पीएम मोदी से पूछा है कि जहां बीजेपी की सरकार है वहां कितने श्मशान बनाए गए हैं. पीएम मोदी ने फतेहपुर की रैली में पहली बार धर्म और जाति के नाम पर भेदभाव का मुद्दा उठाया था. पीएम मोदी के इस बयान को लेकर यूपी के चुनाव में खड़ा हुआ तूफान शांत नहीं हो रहा है. Presents by www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal)
अखिलेश को घेरने के लिए मोदी ने एक नहीं बल्कि एक ही साथ दो गंभीर आरोप लगा दिये. ऐसे मुद्दे जिससे वोटरों की धुर्व्रीकरण भी हो जाय. पीएम मोदी ने फतेहपुर की चुनावी रैली में अखिलेश यादव सरकार पर धार्मिक आधार पर भेदभाव का आरोप लगाया था. पीएम मोदी ने अपने भाषण के दौरान कहा अगर कब्रिस्तान बनता है तो गांव में श्मशान भी बनना चाहिए. अगर रमजान में बिजली मिलती है तो दिवाली में भी बिजली मिलनी चाहिए. अगर होली पर बिजली मिलती है तो ईद पर भी बिजली मिलनी चाहिए. भेदभाव नहीं होना चाहिए. धर्म के आधार पर तो बिल्कुल नहीं होना चाहिए.
अखिलेश ने कहा कि “मैं सदी के महानयाक से अपील करूंगा कि वे गुजरात के गधों का विज्ञापन न करें.” इस एक तीर से कई निशाने पर ले लिए गए.
वही अमित शाह ने भी घेरा, सुल्तानपुर की रैली में जमा भारी भीड़ को कसाब का परिचय देते हुए कहा कि ये कसाब कांग्रेस पार्टी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी है यानि ‘क’ मतलब कांग्रेस, ‘स’ मतलब सपा और ‘ब’ मतलब बसपा.
यूपी में हिंदू-मुस्लिम मुद्दा गरमाया हुआ है वही इस चुनान में एसपी-कांग्रेस की बीएसपी और बीजेपी से टक्कर है. यूपी में अभी समाजवादी पार्टी की सरकार है. जबकि पार्टी के हिसाब से देखें तो दागी उम्मीदवारों को टिकट देने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं है. दूसरे चरण में जहां बीजेपी ने 19, बीएसपी ने 12, एसपी ने 13, कांग्रेस ने 8 और आरएलडी ने 9 दागी उम्मीदवारों को टिकट दिया है. तो वहीं 200 निर्दलीय उम्मीदवारों में से 24 आपराधिक छवि वाले प्रत्याशी हैं. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक चौथे चरण में भी दागी उम्मीदवारों की भरमार है. चौथे चरण के कुल 680 में से 116 दागी उम्मीदवार हैं. जिनमें SP के 33 में से 13 उम्मीदवार, बीजेपी के 48 में से 19 उम्मीदवार, BSP के 12 उम्मीदवार जबकि कांग्रेस के 25 में से 8 उम्मीदवार दागी हैं. चौथे चरण में 680 उम्मीदवार मैदान में हैं. इस बार 189 करोड़पति उम्मीदवार मैदान में ताल ठोंक रहे हैं तो वहीं दागी उम्मीदवारों की तादाद में कोई कमी नहीं है. उत्तर प्रदेश इलेक्शन वॉच और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक बीएसपी के 45 उम्मीदवार, बीजेपी के 36 उम्मीदवार, एसपी के 26, कांग्रेस के 17, रालोद के 6 और 25 निर्दलीय उम्मीदवार करोड़पति हैं. दागी उम्मीदवारों की लिस्ट में 116 नाम ऐसे हैं जिन्हें राजनीतिक दलों ने अपना चुनाव चिन्ह दिया है. एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक 116 लोगों ने हलफनामे में अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी दी है. बीजेपी की तरफ से सबसे ज्यादा 19 उम्मीदवार दागी हैं जिन पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. वहीं बीएसपी के 12, राष्ट्रीय लोकदल के 9, समाजवादी पार्टी के 13, कांग्रेस के 8 उम्मीदवारों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. जबकि निर्दलीय दागी उम्मीदवारों की संख्या 24 है.
चौथे चरण में बाहुबली तो परिवार की पारंपरिक सीट को आगे बढ़ाने वाले कई नाम हैं. कुंडा से विधायक रघुराज प्रतापसिंह उर्फ राजा भैया फिर से मैदान में हैं. राजा भैया रिकॉर्ड मतों से निर्दलीय जीतने के लिये जाने जाते हैं. इस बार भी उनके जीतने की उम्मीद जताई जा रही है.
;;;;यूपी की अखिलेश यादव सरकार ने पिछले वित्त वर्ष (2016-17) में अपने बजट में कब्रिस्तान के लिए श्मशान से करीब दोगुना बजट आवंटित किया था. अखिलेश सरकार ने साल 2016-17 में श्मशान के लिए 400 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया था. वहीं उसी वित्त वर्ष में श्मशान के लिए 227 करोड़ रुपये (127 करोड़ रुपये ग्रामीण और 100 करोड़ रुपये शहरी) आवंटित किया था. चुनावी साल में कब्रिस्तान पर बजट बढ़ाने से सवालों के घेरे में लाने की कोशिश की गई. अखिलेश सरकार ने कब्रिस्तान के लिए करीब 1300 करोड़ खर्च किये जबकि श्मशान पर करीब 627 करोड़ खर्च किये गये.
यूपी चुनाव के तीन चरण पूरे हो गए हैं. सात चरणों के इस चुनाव में चौथे चरण का मतदान 23 फरवरी को हो रहा है. 12 जिलों की 53 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा. चौथे चरण में सिर्फ दांव पर उम्मीदवार ही नहीं हैं बल्कि रणनीतिकार भी हैं. उमा भारती, केशव प्रसाद मौर्य, प्रमोद तिवारी, नरेश उत्तम, नसीमुद्दीन सिद्दीकी और स्वामी प्रसाद मौर्या जैसे यूपी के बड़े नेताओं के सामने अपनी अपनी पार्टी के लिये जीत पक्की करने की चुनौती है.
साल 2012 के विधानसभा चुनाव में इन जिलों में समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी. समाजवादी पार्टी ने 24 सीटें जीती थीं जबकि 15 सीटें जीतकर बीएसपी दूसरे नंबर पर रही.
रायबरेली से बाहुबली नेता अखिलेश सिंह की बेटी अदिति सिंह चुनाव लड़ रही हैं. अदिति सिंह रायबरेली सदर सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार हैं. अदिति सिंह लंदन से एमबीए करने के बाद अब राजनीति में किस्मत आजमा रही हैं. जबकि ऊंचाहार से बीजेपी ने स्वामी प्रसाद मौर्य के बेटे उत्कर्ष मौर्य को टिकट दिया है. बीएसपी से बगावत कर स्वामी प्रसाद मौर्य ने बीजेपी का दामन थामा है. मेजा सीट से बाहुबली उदयभाव करवरिया की पत्नी नीलम करवरिया मैदान में हैं. इलाहाबाद पश्चिम सीट से पूजा पाल को बीएसपी ने मैदान में उतारा है. पूजा पाल बीएसपी विधायक हैं और अतीक अहमद को हरा चुकी हैं. केंद्रीय मंत्री उमा भारती के लिये बुंदेलखंड बड़ी चुनौती है. साल 2014 में ‘मोदी लहर’ में बीजेपी ने बुंदेलखंड में अच्छा प्रदर्शन किया लेकिन अब बीजेपी की प्रतिष्ठा दांव पर है. उमा भारती ने महोबा की चरखारी सीट बीजेपी के लिये जीती थी. लेकिन सांसद बनने के बाद जब से ये सीट खाली हुई तो बीजेपी चरखारी पर जीत नहीं हासिल कर सकी. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में झांसी की 4 सीटों में बीजेपी को केवल 1 सीट मिली जबकि एसपी ने यहां भी दो सीटें जीतीं. ऐसे में उमा भारती पर बुंदेलखंड में बीजेपी को जिताने की जिम्मेदारी है.
प्रदर्शन का दबाव यूपी के बीजेपी अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य पर भी है. कौशांबी में चौथे चरण में वोट पड़ेंगे. कौशांबी को केशव प्रसाद मौर्य का जिला कहा जाता है. यहां की तीन सीटों में से केवल सिराथू की सीट पर बीजेपी का कब्जा है. कौशांबी की दो सीटों पर बीएसपी का कब्जा है. अब केशव प्रसाद मौर्य के ऊपर न सिर्फ कौशांबी बल्कि इलाहाबाद की 12 सीटों पर भी अच्छे प्रदर्शन की जिम्मेदारी है.
बीएसपी में मुस्लिम फेस कद्दावर नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर भी इस बार कांटे की लड़ाई में प्रदर्शन का दबाव है. बांदा में विधानसभा की 4 सीटों पर मुकाबला है. साल 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने यहां से दो सीटें जीती थीं. बीएसपी को केवल एक सीट ही मिल सकी थी. इस बार बीएसपी की कोशिश पूरी 4 सीटें जीतने की है.
समाजवादी पार्टी भले ही कांग्रेस के साथ गठबंधन करन के बाद खुद को मजबूत मान रही है लेकिन पारिवारिक कलह का दबाव साफ दिखाई दे रहा है. एसपी पर साल 2012 के चुनाव के नतीजों को दोहराने का भी दबाव है. समाजवादी पार्टी पर नए निजाम अखिलेश को सही साबित करने का भी दबाव है. ये लड़ाई सिर्फ एसपी बनाम बीजेपी-बीएसपी नहीं है बल्कि अखिलेश बनाम ‘चाचा एंड ऑल’ भी है. ऐसे में अखिलेश के करीबियों पर भी प्रदर्शन का दबाव बराबर ही है. समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पर सबसे ज्यादा भार है. एक तरफ उन्हें अखिलेश के भरोसे पर खरा उतरना है तो दूसरी तरफ उन्हें शिवपाल यादव को भी जवाब देना है. नरेश उत्तम ने फतेहपुर से अपनी सियासी पारी की शुरुआत की है. इस वजह से फतेहपुर की 6 सीटें भी उनके लिये बड़ी चुनौती हैं. अखिलेश की नई टीम के रणनीतिकारों में से एक नरेश उत्तम के लिये इस बार का चुनाव कई मायनों में कई इम्तिहानों से भरा हुआ है.
संघ ने यूपी फतह के लिए पूरी ताकत झोंकी—— संघ परिवार ने अपने 40-42 संगठनों को उत्तरप्रदेश चुनावों में सक्रिय कर दिया है. संघ ने उत्तर प्रदेश अर्थात काशी, गोरक्ष, अवध, कानपुर, ब्रज और मेरठ के अपने सभी छह क्षेत्रीय विभागों में बूथ-प्रमुखों की नियुक्ति शुरू कर दिया है. संघ ने काशी क्षेत्र में 24000 बूथ-प्रमुखों की नियुक्त कर दिए हैं.
चुनाव में अपने बेहतर प्रदर्शन के लिए संघ ने पहले से ही एक त्रि-स्तरीय सामरिक संगठन बना लिया है.
उत्तरप्रदेश में संघ का संगठन अन्य भारतीय राज्यों के मुकाबले कहीं अधिक सशक्त है. इसलिए उनकी उनकी सक्रियता का असर यहां आगामी चुनावों के परिणाम को भी प्रभावित करेगा. 2014 के चुनाव की तरह बूथ-प्रमुख, सेक्टर-प्रमुख और पन्ना प्रमुख की नियुक्ति की गई है. पन्ना-प्रमुख एक बहुत ही दिलचस्प व्यवस्था है. पन्ना-प्रमुख मतदान सूची के एक पृष्ठ में दिए गए मतदाताओं का प्रमुख होता है. पन्ना-प्रमुख को वोटर लिस्ट में दिए गए 50 मतदाताओं के संपर्क में रहना होता है और चुनाव के दिन उनको वोटिंग बूथ में लाने की ज़िम्मेदारी भी उसकी ही होती है. एक बूथ पर संघ के चार पन्ना-प्रमुख होते हैं. वहां बूथ-प्रमुख होता है जो कि सेक्टर-प्रमुख के निर्देशन में कार्य करता है. इन सबके अलावा संघ ने कालोनी के स्तर पर भी कमेटियां बनाई हैं ताकि वो उनकी मदद से अपना सामाजिक संपर्क बढ़ा सके. इसके लिए संघ ने शिशु मंदिर, भारतीय मज़दूर संघ और प्रज्ञा प्रवाह के प्रचारकों जैसे अपने सभी सम्बंधित संगठनों को एक साथ जोड़ कर उनको इस कार्य में लगा दिया है. इस कमिटी का काम विभिन्न सामाजिक समूहों के साथ संवाद बनाने और उनको भाजपा को वोट देने के लिए प्रेरित करना होता है. इस तरह से संघ न केवल बीजेपी के लिए चुनावी जनाधार आयोजित कर रहा है बल्कि वह मोदी जी की रैलियों के प्रभाव को वोटों में परिवर्तित करने का कार्य भी कर रहा है.
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