उत्तर प्रदेश की जनता के मूड से सहमी भाजपा
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) ने गठबंधन कर लिया है. ऐसे में राजनीतिक पंडित अनुमान लगा रहे हैं कि बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में 2014 वाला रिजल्ट दोहराना मुश्किल होगा. ऐसे में बीजेपी भी दूसरे प्लान पर काम करना शुरू कर चुकी है. नॉर्थ-ईस्ट की 25 लोकसभा सीटों पर नजरें टिकाने के बाद बीजेपी दक्षिण के राज्यों में 50 सीटें जीतने की कोशिश में जुट गई है. पिछले चुनाव में यूपी की 80 में से 73 लोकसभा सीटें बीजेपी+ ने जीती थी, जिससे एनडीए ने आसानी से बहुमत का आंकड़ा जुटा लिया था.
वही दूसरी ओर शिवपाल यादव की पार्टी भी अच्छी खासी भीड जमा कर रही है, जिसका लोकसभा चुनाव मे फर्क पडेगा- हिमालयायूके के सूत्राेे के अनुुुुसार शिवपाल की पाार्टी का जहां खाता खुल सकता है वही कई स्थानो पर अच्छे खासे वोट भी उनकेे प्रत्याशी को मिल सकते है,
प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव ने आज शिकोहाबाद के रामलीला मैदान की जनसभा में बड़ा एलान कर दिया। शिवपाल सिंह यादव ने सुहागनगरी में आज फिरोजाबाद से लोकसभा का चुनाव लडऩे का एलान किया। इसके साथ ही उन्होंने दो और प्रत्याशियों का नाम फाइनल कर दिया।
शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि मैं फिरोजाबाद से लोकसभा का चुनाव लड़ूंगा। मैं इस बात का एलान करता हूं। इसके साथ ही मैं संजय सक्सेना को रामपुर तथा अनामिका अम्बर कवियत्री को मेरठ से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) का प्रत्याशी घोषित करता हूं। उन्होंने कहा कि फीरोजाबाद से आप मुझे जिता देना और विरोधियों की जमानत जब्त करा देना। उन्होंने कहा कि जनता चाहती है इसलिये वे फीरोजाबाद सीट से चुनाव लड़ेंगे। उन्होंने आगे कहा कि पूरे प्रदेश में कोई जिला नहीं है जहां सड़कों का जाल न बिछा हो, नहरें न बनी हों। राजस्व संहिता को दो साल में मैंने लागू कराया था। किसानों के लिए सब कुछ किया लेकिन आज क्या हो रहा है। 56 इंच का सीना कहां गया, देश की सीमा पर कब्जा होता गया और देश पर कर्ज बढ़ता गया। उन्होंने कहा कि हम सरकार में विकास के काम कर रहे थे। मैनपुरी में नंबर दो की शराब बिक रही थी, पुलिस गाडिय़ां निकलवा रही थी। फीरोजाबाद में जमीनों पर कब्जे हो रहे थे। मैंने विरोध किया तो नेताजी ने साथ दिया। इस कारण मुझे मंत्री मंडल से हटा दिया गया। उन्होंने कहा कि मेरी अगुवाई में सारे विपक्षी सपा के बैनर तले आने को तैयार थे। लेकिन नहीं होने दिया गया। शिवपाल बोले कि बीजेपी से कौन मिला था सोचिए? किसने एकजुट नहीं होने दिया। यदि सब एक हो जाते तो राष्ट्रपति भी सपा का होता और सीएम भी।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स ओपिनियन पोल के मुताबिक़ बीजेपी को सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ सकता है। यदि विपक्षी दलों के बीच ‘महागठबंधन’ नहीं हो तो भी बीजेपी को सिर्फ़ 40 सीटें मिल सकती हैं जो पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में 33 सीटें कम हैं। यानी विपक्षी दलों के बीच ‘महागठबंधन’ होने पर बीजेपी की स्थिति कहीं ज़्यादा ख़राब हो सकती है।
इंडिया टीवी-सीएनएक्स की ओर से कराए गए ओपिनियन पोल के मुताबिक़, उत्तर प्रदेश में बीजेपी को लोकसभा चुनाव मे 40 सीटें मिल सकती हैं। इसके अलावा बहुजन समाज पार्टी को 15 और समाजवादी पार्टी को 20 मिल सकती हैं, जबकि कांग्रेस को सिर्फ़ 2 सीटें मिलती दिखाई गई हैं। अन्य दलों को कुल मिला कर 3 सीटें मिल सकती हैं।
उत्तर प्रदेश में जनता के मूड से सहमी बीजेपी ने अपना फोकस गैर हिन्दी भाषी राज्यो की ओर कर लिया है, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के महासचिव मुरलीधर राव ने कहा कि
दक्षिण के दूसरे राज्यों में पार्टी का तेजी से विस्तार हो रहा है
लोकसभा चुनाव में दक्षिण भारत से 50 सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के महासचिव मुरलीधर राव ने कहा कि कर्नाटक में पार्टी को मजबूती देने के साथ हम पूर्वोत्तर की तर्ज पर छोटे छोटे दलों को जोड़कर दक्षिण के राज्यों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) को आकार देने में जुटे हैं. मुरलीधर राव ने से बातचीत में कहा, ‘दक्षिण भारत में पार्टी को मजबूत बनाना एक चुनौती रहा है. हमारा प्रदर्शन पिछले दशकों में कर्नाटक में अच्छा रहा है. पहले हम वहां सत्ता में रह चुके हैं और विधानसभा चुनाव में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है. दक्षिण के दूसरे राज्यों में पार्टी का तेजी से विस्तार हो रहा है. हम गांव तक पहुंचने में सफल रहे हैं.’
कर्नाटक में 22 सीटें जीतने का लक्ष्य
उन्होंने
कहा कि हमारा प्रयास है कि पार्टी की विचारधारा और राजनीतिक संवाद को दक्षिण भारत
के परिवेश एवं परिदृश्य के अनुरूप लोगों के स्वीकार्य रूप में पेश किया जाए.
उन्होंने कहा कि इसमें पार्टी सफल भी हो रही है.
कर्नाटक में बीजेपी ने 22 से अधिक सीट जीतने का लक्ष्य निर्धारित किया है, हालांकि राज्य में कांग्रेस और जदएस गठबंधन की ओर से उसकी योजना को चुनौती भी मिल रही है. इस गठबंधन के कारण ही बीजेपी को कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुमत से कुछ सीट कम मिली और सत्ता उसके हाथ से फिसल गई थी. पार्टी को हालांकि विश्वास है कि लोकसभा चुनाव में उसे बड़ी जीत मिलेगी. राव ने कहा, ‘कर्नाटक में कांग्रेस-जदएस गठबंधन सरकार नहीं चल पा रही है, रोज रोज दोनों दलों के झगड़े सामने आ रहे हैं. राज्य की जनता सब कुछ देख सुन रही है कि किस प्रकार से मुख्यमंत्री कुमारस्वामी बार बार पद छोड़ने की बात कह रहे हैं.’ बीजेपी महासचिव ने कहा, ‘कर्नाटक में यही (कांग्रेस-जदएस कलह) हमारा बड़ा मुद्दा है. हम जनता के समक्ष इन सभी विषयों को बतायेंगे. राज्य में लोकसभा चुनाव में हमें बड़ी जीत मिलेगी.’
तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं. बीजेपी यहां छोटे छोटे दलों के साथ गठबंधन बनाने की दिशा में आगे बढ़ रही है. पार्टी राज्य में अन्नाद्रमुक को साथ लेने की कोशिश कर रही है. 2014 में बीजेपी तमिलनाडु में गठबंधन के साथ चुनावों में गई जिसमें एमडीएमके, पीएमके और अन्य छोटे दल शामिल थे. गठबंधन ने राज्य से दो सीटें जीतीं थी.
राज्य में गठबंधन के बारे में पूछे जाने पर राव ने कहा कि तमिलनाडु में बीजेपी के दरवाजे समान विचार वाले दलों के साथ गठबंधन के लिये खुले हैं.
आंध्र की 10 सीटों पर बीजेपी का फोकस
वहीं केरल
में बीजेपी अपना प्रदर्शन बेहतर बनाने के लिये पूरा जोर लगा रही है. राजनीतिक
पर्यवेक्षकों का कहना है कि केरल में सबरीमला के मद्देनजर बीजेपी के पक्ष में
हिंदुओं का बड़ा झुकाव प्रतीत हो रहा है. बीजेपी खास तौर पर तिरुवनंतपुरम, त्रिशूर, पलक्कड़, अटिंगल जैसे क्षेत्रों में जोर
लगा रही है.
आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं, बीजेपी यहां 10 सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है. पार्टी 1999 के अपने प्रदर्शन को दोहराना चाहती है जब उसने अविभाजित आंध्रप्रदेश से सात सीटें जीती थीं.
राव ने जोर दिया कि लोगों का बीजेपी खास तौर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर काफी भरोसा है. लोकसभा चुनाव में बीजेपी की बड़ी जीत का दावा करते हुए उन्होंने कहा कि लोग समझते हैं कि अलग अलग विचारधारा वाले विपक्षी दल क्यों साथ आ रहे हैं. विपक्षी गठबंधन का एकमात्र एजेंडा मोदी हटाओ है और आगामी चुनाव में लोग इसे नकार देंगे.
बिहार में पिछली बार हुए विधानसभा चुनाव में जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेस गठबंधन ने बीजेपी को करारी शिकस्त दी थी. आरजेडी सुप्रीमो ने चुनाव अभियान के दौरान आरक्षण को लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान के सहारे बीजेपी पर जमकर प्रहार किए और चुनाव में उसे धूल चटा दी. हालांकि अब लोकसभा चुनाव राज्य का सियासी समीकरण काफी हद तक बदल चुका है. विधानसभा चुनावों में महागठबंधन का चेहरा रहे नीतीश कुमार अब एनडीए में शामिल हो चुके हैं. वहीं लालू यादव चारा घोटाले में पिछले काफी समय से जेल में हैं. ऐसे में लालू यादव के बेटे तेजस्वी आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एक नए सामाजिक समीकरण का ताना-बाना बुनने में जुटे हैं. अपनी इस कोशिश में आरजेडी एक बार फिर मंडल दौर का गणित दोहराने में जुटी है.
मोदी सरकार द्वारा आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए 10% आरक्षण के फैसले ने तेजस्वी के तरकश को नया तीर दे दिया. इस आरक्षण बिल पर संसद में हुई चर्चा से मंडल आधारित पार्टियों की इस रणनीति की एक बानगी मिलती है. आरजेडी, आरएलएसपी, समाजवादी पार्टी और अपना दल ने इस बिल का समर्थन करते हुए जातिगत जनगणना की वर्षों पुरानी मांग दोहराई. इन पार्टियों का कहना है कि जातिगत जनगणना से समाज में विभिन्न तबकों की स्थिति का सही अंदाजा मिल पाएगा और उसी हिसाब शिक्षा एवं सरकारी नौकरियों में उनकी संख्या के आधार पर आरक्षण दिया जाए. वहीं आरजेडी अपने बयानों के जरिये पुरजोर ढंग से लोगों को यह संदेश दे रही है कि गरीब सवर्णों को आरक्षण जातिगत आरक्षण खत्म करने की शुरुआत है. आरजेडी बिहार में मुस्लिम- यादव के अपने पुराने वोट बैंक को और विस्तार देते हुए इसमें दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को भी शामिल करना चाहती है. उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी और जीतनराम मांझी को साथ लाना इसी कोशिश का हिस्सा माना जा रहा है. आरजेडी आगामी लोकसभा चुनाव को 80-20 फीसदी की लड़ाई बनाना चाहती है. उसकी कोशिश है कि राज्य में 20 फीसदी अगड़ी जातियों के मुकाबले मुस्लिमों, दलितों और अन्य पिछड़ी जातियों को एकजुट किया जाए. बीजेपी ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों के नतीजे से सीख लेकर अपने कोर वोटर्स यानी सवर्ण को साथ बनाए रखने के लिए सवर्ण आरक्षण कानून लेकर आई है. हालांकि बिहार और यूपी की सियासी जमीन में जातिगत समीकरण थोड़े अलहदा हैं. ऐसे में एक गलत कदम या एक बयान उसकी चुनावी नैया का बंटाधार कर सकता है.
वहीं आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी-जेडीयू की जोड़ी को बिहार में मात देने के लिए आरजेडी और कांग्रेस दोतरफा रणनीति पर चलती दिख रही हैं. एक तरफ आरजेडी सहित मंडल आधारित अन्य पार्टियां सामाजिक न्याय को लेकर आवाज़ बुलंद कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस अगड़ी जातियों से संपर्क साध रही है.