सरकार का एक वर्ष- रिपोर्ट कार्ड – मोदी जी ने बडे विश्वास के साथ प्रदेश की कमान सौंपी
दिनांक 18 मार्च 2017 को श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत को उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद पर मनोनीत होने पर देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने स्वयं उपस्थित रहकर बडे विश्वास के साथ प्रदेश की कमान सौंपी थी- 17 March 2018 एक वर्ष पूर्ण होने जा रहा है, एक वर्ष में रिपोर्ट कार्ड क्या रहा- अभी यहां सिर्फ हम आर्थिक हालात, विकास की डिटेल आपके समक्ष रख रहे हैं, बाकी हर क्षेत्र का अलग अलग उल्लेख करेगें, पर आर्थिक हालात से आप रिपोर्ट कार्ड का खुद अंदाजा लगाइये- क्या कहता है रिपोर्ट कार्ड –
देश के प्रमुख लीडिंग न्यूज पोर्टल हिमालयायूके की एक रिपोर्ट-
# रिपोर्ट कार्ड- फैसला तय है. बस आरोप तय होना बाकी #18 मार्च को उत्तराखण्ड सरकार का एक वर्ष- रिपोर्ट कार्ड क्या कहता है- एक लाइन से अंदाजा लगा लीजिये- ‘उनके खिलाफ फैसला तय है. बस आरोप तय होना बाकी है’. : मशहूर अमेरिकी लेखक जोसेफ हेलर की यह पंक्तियां है-
हर ग़लती की एक क़ीमत होती है.” उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्रियो ने यह क़ीमत ख़ूब अदा की है. हर ग़लती की एक क़ीमत होती है.” उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्रियो ने यह क़ीमत ख़ूब अदा की है, पर जो भी पद पाता गया – मानो गलती ही करने आया है- उत्तराखण्ड की यह भी खासियत रही कि पं0 नारायण दत्त तिवारी के अलावा कोई भी पांच साल मुख्यमंत्री पद पर नही रह पाया-
कुमायूं के प्रसिद्व विद्वान ब्राहमण नेता ने ऐसा क्यो बोला – कभी डाक्टूर रोगी को जानबूझ कर भी उसकी बीमारी नही बताता-
गरमपानी, नैनीताल में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट ने उन लोगों पर निशाना साधा है, जो त्रिवेंद्र सिंह रावत को सीएम पद से हटाए जाने की अफवाह उड़ा रहे हैं। उनका कहना है कि ऐसी अफवाह उड़ाने वाले औंधे मुंह गिरेंगे। भट्ट बोले, संगठन और सरकार में कोई खींचतान नहीं चल रही है। जल्द ही दायित्व भी बांटे जाएंगे। कहा कि त्रिवेंद्र सिंह रावत पूरे पांच साल तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहेंगे। जो लोग उनको हटाए जाने की अफवाह उड़ा रहे हैं। वह जल्द ही औधें मुंह गिरेंगे।
वेतन, पेंशन के लिए 40 में से 32 हजार करोड़ रुपये चाहिए
वहीं उत्तराखण्ड प्रदेश की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। भाजपा सरकार ने चुनाव में जो वायदे किए थे वह एक वर्ष बाद भी पूरे नहीं शुरू भी नही हो पाये हैं। राज्य में पहली बार किसान तथा व्यापारी आत्महत्या कर रहे हैं। विकास के नाम पर प्रदेश में शून्यता है। किसान, बेरोजगार परेशान है। क्या कारण है कि सरकार के खजाने में जमा होने वाले राजस्व में पिछली सरकार की तुलना में प्रतिशत में कमी आई है। वही सरकार अपने कर्मचारियों को वेतन तक नहीं दे पा रही है। बाहर से उधार लेकर वेतन देना पड़ रहा है।
वही उत्तराखण्ड प्रदेश के इतिहास में यह सबसे बड़ा दुर्भाग्य है कि 3000 स्कूलों पर ताले लगने जा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण पहाड़ों से हो रहा पलायन है।
सबसे बडी चिंताजनक विषय बात यह है कि प्रदेश में 12 सौ गांव मानव विहीन हो चुके हैं। इससे प्रदेश ही नहीं देश की सुरक्षा को भी खतरा पैदा हो गया है।
वित्तीय हालत कितनी खराब है ; जहां तक विकास की बात है, वो तो दूर की कोडी साबित हो रही है, कैसे होगा विकास
वेतन, पेंशन के लिए 40 में से 32 हजार करोड़ रुपये चाहिए
उत्तराखंड की प्रमुख सचिव वित्त राधा रतूड़ी ने स्वीकार किया कि प्रदेश की वित्तीय स्थिति ठीक नहीं है। कहा कि प्रदेश की आय काफी कम जबकि खर्च काफी अधिक हैं। कहा कि सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती विकास कार्यों के लिए धन की कमी है। प्रदेश में बजट सीमित है। बजट का एक बड़ा भाग कर्मचारियों के वेतन, पेंशन में ही खर्च हो जाता है। इसलिए प्रदेश सरकार वित्तीय संसाधनों को बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। तूड़ी ने कहा कि सूबे का सालाना बजट 40 हजार करोड़ रुपये है जब कि 32 हजार करोड़ रुपये सूबे के कर्मियों के वेतन आदि मदों में ही खर्च हो जाता है। शेष मात्र आठ हजार करोड़ रुपये ही विकास कार्यों के लिए बचते हैं जो प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए नाकाफी हैं। रतूड़ी ने कहा कि ऐसे में सरकार के पास एक ही विकल्प है कि किसी भी तरह से प्रदेश में वित्तीय साधनों को बढ़ाया जाए। अनावश्यक खर्चों में लगाम लगाई जाए।
उत्तराखंड राज्य के 92 नगर निकायों पर कर्मचारियों की 136 करोड़ की देनदारी ने सरकार और शासन के होश उड़ा दिए हैं। आला अफसरों को यह नहीं सूझ रहा कि आखिर नगर निकायों को इस गंभीर वित्तीय संकट से कैसे उभारा जाए।
वहीं कई सेवानिवृत्त अधिकारियों, कर्मचारियों के अदालत में चले जाने और अदालत द्वारा की गई टिप्पणी ‘क्यों न इन नगर निकायों को समाप्त कर दिया जाए’, सरकार व शासन के आला अफसरों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं। सरकार इस संकट से निपटने के लिए अब नए शासनादेश की तैयारी में है।
शहरी विकास विभाग के आंकड़ों के अनुसार तो उत्तराखंड राज्य भर में 92 नगर निकाय हैं। इन नगर निकायों में देहरादून, रुड़की, हरिद्वार और नैनीताल जैसे नगर निकायो की वित्तीय स्थिति तो ठीक है, लेकिन ज्यादातर नगर निकायों की स्थिति खस्ताहाल है।
वित्तीय हालत कितनी खराब है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सेवानिवृत्त अधिकारियों, कर्मचारियों के पेंशन, ग्रेच्युटी समेत अन्य भुगतान को छोड़ भी दें तब भी सेवारत कर्मचारियों को मासिक वेतन तक नहीं मिल पा रहा है। सबसे अधिक खराब वित्तीय स्थिति खटीमा, अल्मोड़ा, टनकपुर, भवाली और मसूरी जैसे नगर निकायों की है, जहां कर्मचारियों को कई महीने से वेतन नहीं मिल पाया है।
बजट नहीं तो नगर निकायों को समाप्त करें सरकार : हाईकोर्ट
जहां एक तरफ तमाम नगर निकाय वित्तीय संकट से जूझ रहे हैं वहीं तमाम नगर निकायों के सेवानिवृत्त अफसरों और कर्मचारियों ने अदालत की शरण ली है। कर्मचारियों के अलग-अलग प्रकरणों की सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार और शहरी विकास विभाग को आड़े हाथों लिया है।
उत्तराखंड के आर्थिक हालात बेहद डरावने हैं
उत्तराखंड के आर्थिक हालात बेहद डरावने हैं। यहां जितनी भी विकास, रोजगारपरक योजनाएं और स्टार्टअप मॉडल हैं, वह सभी हवा- हवाई हैं। प्रदेश की अर्थव्यवस्था में सुनामी आ सकती है। यहां की अर्थवव्यस्था तबाह होने की कगार पर पहुंच रही है। यह बात कोई आम जानकार नहीं बल्कि खुद उत्तराखंड के वित्त सचिव अमित नेगी स्वीकारते हैं। उनके बात से सहमत स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी के प्रभारी एस मुखर्जी कहते हैं कि प्रदेश की ऋण प्रणाली न टिकाऊ है और न ही विश्वसनीय है। यहां तो सब कुछ पटरी से उतरता दिख रहा है। रही सही कसर उत्तराखंड साइंस एंड टेक्नालाजी (यू-कॉस्ट) के महानिदेशक डॉ. आरके डोभाल ने पूरी कर दी। इससे ही उत्तराखंड के आर्थिक हालात और यहां अब तक कि सरकारों और नौकरशाहों की करतूतों का खुलासा हो जाता है। मौका था भारतीय रिजर्व बैंक, केंद्र सरकार के एमएसएमई मंत्रालय और उद्योग निदेशालय द्वारा उद्यमिता विकास पखवाड़े के समापन समारोह का। एक होटल में आयोजित इस कार्यक्रम में वित्त सचिव अमित नेगी ने कहा कि पिछले कुछ समय से उत्तराखंड का सकल घरेलू उत्पाद राष्ट्रीय औसत से नीचे पहुंच रहा है। यह बहुत चिंता की बात है। मैन्यूफैक्चरिंग, सेवा क्षेत्र जो जीडीपी के इंजन हैं उन पर दबाब बढ़ रहा है। 2020 तक मैन्यूफैक्चरिंग पैकेज खत्म हो जाएगा। तब हालात अधिक गंभीर हो जाएंगे। जीएसटी के कारण उत्तराखंड का राजस्व भी काफी कम हुआ है। हमें भारी राजस्व घाटा हुआ है जो बेहद गंभीर रुझान है। एक समय था जब हमारा एस.जी.डी.पी. 18 फीसदी तक पहुंच गया था। लेकिन अब हर स्तर पर हमारी अर्थव्यवस्था पर खतरा मंडरा रहा है। फिर हमारे प्रदेश में क्षेत्रीय विषमताएं बहुत अधिक हैं। पहाड़ी व मैदानी समेत कई स्तरों पर विषमताओं में इजाफा हुआ है। उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में रोजगार के हालात अच्छे नहीं हैं। फार्मल व सरकारी क्षेत्र में रोजगार के सीमित मौके ही हैं। इसलिए स्वरोजगार क्षेत्र में इजाफा कैसे हो यह बेहद कड़ी चुनौती है। स्टेट लैवेल बैंकर्स समिति के प्रभारी भारतीय स्टेट बैंक के एजीएम एस मुखर्जी ने मुद्रा समेत तमाम ऋण योजनाओं की कमियों के बारे में कहा कि एमएसएमई समेत मुद्रा ऋणों के लिए अच्छे प्रस्ताव नहीं मिल रहे हैं। इस कारण बैंक व उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था दुश्चक्र की ओर बढ़ रही है। स्पष्ट तौर पर उन्होंने कहा कि पूरी अर्थव्यवस्था पर खतरा मंडरा रहा है। इससे सूक्ष्म उद्यमियों को भी भारी नुकसान होने वाला है। उद्यमी ही नहीं वरन उनकी पीढ़ियों को बैंकों से ऋण नहीं मिलेगा। यू-कॉस्ट के महानिदेशक डॉ. आरके डोभाल ने उत्तराखंड की स्टार्ट अप समेत तमाम उद्यमिता व रोजगार योजनाओं की धज्जियां उड़ाई। वह बोले सब कुछ हवा हवाई है और जमीन पर कोई सार्थक परिणाम आने वाले नहीं हैं। स्टार्टअप खास तौर पर तकनीकी स्टार्ट-अप नीति समेत सरकारी योजनाओं पर उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में टेस्टिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां पर नव उद्यमियों को संरक्षण व प्रोत्साहन नहीं मिल सकता। किसी भी स्तर पर बेहतरीन लैबोरेटरी ही नहीं है। प्राइवेट विश्वविद्यालयों के पास विश्वस्तरीय ढांचा ही नहीं है। शोध के मामले में हम कहीं नहीं ठहरते। यहां पर रिसर्च और डेवलपमेंट का कोई ईको सिस्टम नहीं है। मैंटरशिप का कोई मैकेनिज्म ही नहीं है।
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