सीएम और मुख्य सचिव ने कुपोषित बच्चों को गोद लिया था पर
टांय टाय फिस्स क्यो हुआ सरकार बदलते ही # तत्कालीन सीएम के रूप में हरीश रावत ने दो बच्चों का जिम्मा लिया था, तो वहीं राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव सहित शासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कुपोषित बच्चों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी. Execlusive Report by CS JOSHI- www.himalayauk.org (Leading Digital Newsportal) #देवभूमि में से तीन हजार सात सौ बच्चे हैं, जो कुपोषण का शिकार
किसी भी समाज का भविष्य होते हैं नन्हें बच्चे. ये कलियों की तरह होते हैं जो आगे खिलकर हमारी दुनिया की रंग बिरंगी बगिया बनाते हैं, लेकिन कई बार कुपोषण का शिकार होकर ये कलियां खिलने से पहले ही मुरझा जाती हैं.
देवभूमि उत्तराखण्ड में पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने इसकी पहल की थी. प्रदेश में बाल पोषण अभियान शुरू किया गया थी, जिसके तहत कुपोषित बच्चों को पुष्टाहार देकर एक साल में राज्य को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया था पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा थाा कि इस तरह की योजनाओं में सहभागिता जागृत समाज का परिचायक है. यह शुरुआत केवल औपचारिक बन कर न रहे इसके लिए हम सभी का दायित्व है कि जिन बच्चों को गोद लिया गया है उनके बारे में लगातार जानकारी लेते रहें.
कुपोषण और भुखमरी गरीबी से जुड़ी हुई है। बताया जाता है विश्व स्तर पर लाख प्रयासों के बावजूद गरीबी, कुपोषण और भुखमरी में कमी नहीं आयी और यह रोग लगातार बढ़ता ही गया। रिपोर्ट के मुताबिक देश में 22 करोड़ 46 लाख लोग कुपोषण का शिकार हैं। भारत की आबादी में देश की आजादी के बाद बहुत विस्तार हुआ है। बढ़ती हुई आबादी के साथ रोजगार के साधनों के अभाव के फलस्वरूप देश को गरीबी, भुखमरी, अनपढ़ता और कुपोषण का सामना करना पड़ रहा है। भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सहायता कार्यक्रमों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद कुपोषण लगातार एक बड़ी समस्या बनी हुई है। अनुमान है कि दुनिया भर में कुपोषण के शिकार हर चार बच्चों में से एक भारत में रहता है। ये तादाद अफ्रीका के सब−सहारा इलाके से भी ज्यादा है। करोड़ों बच्चों का जीवन शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित नहीं हो पाता है क्योंकि उन्हें अपने शुरुआती वर्षों में पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। यही कारण है कि ये बच्चे बेहद कमजोर होते हैं। भूख के कारण कमजोरी के शिकार बच्चों में बीमारियों से ग्रस्त होने का खतरा लगातार बना रहता है। यही कारण है कि भारत में हर साल हजारों बच्चों की अकाल मौत होती है। संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक विश्व में करीब 159 लाख बच्चे लंबे समय से कुपोषण के शिकार हैं। ‘असमान वितरण, प्रत्येक बच्चे में कुपोषण का अंत’ शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2030 तक कुपोषण निवारण हेतु निरंतर कार्य करने के बावजूद आंकड़े दर्शाते हैं कि 129 लाख बच्चे, जिनकी उम्र पांच वर्ष से कम है, विश्व में कुपोषण का शिकार बने रहेंगे।
देवभूमि में से तीन हजार सात सौ बच्चे हैं, जो कुपोषण का शिकार हैं, लेकिन उत्तराखंड कुपोषण मुक्त हो इसके लिए तत्कालीन प्रदेश सरकार ने कमर कसी थी. सरकार ने ‘खिलती कलियां-बाल पोषण अभियान’ शुरू किया था, जिसका शुभारंभ तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने किया था. अभियान के तहत कुपोषित बच्चों को नियमित मात्रा में पुष्टाहार दिये जाने की शुरूआत की गयी थी और समय समय पर उनके स्वास्थ्य की जांच भी शुरू की गयी थी. तत्कालीन सीएम के रूप में हरीश रावत ने दो बच्चों का जिम्मा लिया था, तो वहीं राज्य के तत्कालीन मुख्य सचिव सहित शासन के वरिष्ठ अधिकारियों ने भी कुपोषित बच्चों की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली थी.
वही योजना का खाका तैयार करने वाले महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग के अधिकारियों ने कहा था कि बच्चों को पुष्टाहार देने के साथ ही उनके स्वास्थ्य की भी नियमित जांच की जाएगी. विभाग की प्रमुख सचिव ने बताया था कि एक साल में राज्य को कुपोषण मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है. उत्तराखण्ड में इस तरह की योजना शुरू होने पर कुपोषित बच्चों की माताओं ने इसका स्वागत किया था.
कुपोषण की मार झेलते बच्चों का बचपन फिर खिलखिलाए, इसके लिए बाल पोषण अभियान एक अच्छी शुरुआत कही जा गयी थी. इस योजना का स्वागत करते हुए कहा गया था कि वर्तमान की ये कलियां भविष्य में खिलेंगी, खिलने से पहले मुरझाएंगीं नहीं.
वही सूबे में कुपोषण की समस्या से निजात पाने के लिए भले ही आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हों, लेकिन यह समस्या आज भी बड़ी संख्या में व्याप्त है। उत्तराखंड में भी इस स्कीम के तहत करोड़ों की धनराशि खर्च की जा रही है, लेकिन कुपोषित बच्चों की संख्या आज भी सरकारी दावों को मुंह चिढ़ा रही है।
प्रदेश में मौजूदा वक्त में कुपोषित बच्चों की संख्या पचास हजार का आंकड़ा पार कर चुकी है। जमीनी स्तर पर आंगनबाड़ी केंद्रों की तस्वीरें तो और भी चिंताजनक हैं, देहरादून के राजीव नगर में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्र का भगवान ही मालिक है, लापरवाही इतनी कि कोई भी डर जाए। अपनी जान जोखिम में डालकर यह बच्चे भरपेट भोजन का इंतजार करते हैं। कहने को तो इनका पेट भरने और पौष्टिक आहार देने के लिए तमाम सरकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं, लेकिन कुपोषित बच्चों का आंकड़ा इन योजनाओं को मुंह चिढ़ा रहा है।
उत्तराखंड में भी इस समस्या से निपटने के लिए समेकित बाल विकास योजना के तहत आंगनबाड़ी केंद्र संचालित किए जा रहे हैं, लेकिन इन केंद्रों की बदहाली कैमरे पर साफ बयां हो रही हैं। झोपड़ीनुमा कमरे, महज दो फीट की दूरी पर जलता स्टोव और उस पर सीटी की आवाज करता प्रेशर कुकर कैसे अपना पेट भरने के लिए यह मासूम बच्चे परेशानियों का सामना करने को मजबूर हैं। आंगनबाड़ी सहायिका का कहना है कि सीमित संसाधनों में इससे बेहतर करना मुश्किल है, निदेशालय की ओर से महज सात सौ पचास रुपए किराए के रूप में कमरे के लिए दिए जाते हैं। इतनी कम धनराशि में बेहतर सुविधा दे पाना संभव नहीं है, आंगनबाड़ी केंद्रों को संचालित करने में सरकारी लापरवाही साफ तौर पर देखी जा सकती है। निदेशक आईसीडीएस ज्योति नीरज खैरवाल का कहना है कि संसाधनों का अभाव भी कई बार बच्चों को सहूलियतें देने में मुश्किलें खड़ी करता है।
पुराने सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों का आंकड़ा पचास हजार के पार हो चुका है। हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून जिले तो इस मामले में पूरे प्रदेश को ही फेल कर रहे हैं।
जनपद————-कुपोषित——–अतिकुपोषित
अल्मोड़ा————-4223———–171
बागेश्वर————-338————-25
चमोली————- 526————-06
चम्पावत———–1067———–112
देहरादून————-6840———–457
हरिद्वार————10665———2129
नैनीताल————4954———–142
पौड़ी—————–417————76
पिथौरागढ़———-431————-31
रूद्रप्रयाग————02————–04
टिहरी—————-1285———–130
उधमसिंहनगर——15837———-985
उत्तरकाशी———-1627———–89