उत्तराखण्ड में एक सुविधा सम्पन्न राजधानी का सपना देखा था
उक्रांद के थिंक टैंक श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने कुल पांच सौ पचास करोड पैसठ लाख अनुमानित व्यय का खाका खींच कर एक आदर्श व सुविधा सम्पन्न राजधानी का सपना देखा था। “हो गए सब स्वप्न साकार, कैसे मान लें हम, टल गया धरा का भार कैसे मान लें हम“ ; उत्तराखण्ड -जनता सडको पर #सत्तारूढ दलो ने 3 अस्थाई विधानसभा बना दी 1- वर्तमान जिस स्थान पर है 2’ प्रस्तावित रायपुर 3’ भराणीसैण्ड में –
पहाडो में आज विकास होता तो जनता सडको पर नही उतरती, आज आम व खास का कहना है कि राजधानी को देहरादून से ले जाना चाहिए। राजनीतिक दल देहरादून में थोडा बहुत विकास कर पुल आदि बनाने का दावा कर श्रेय लेने की होड में लग जाते हैं जबकि सच्चाई यह है कि दूरस्थ गांवों की हालत आज भी बदतर है। पर्वतीय सूबे में विकास की अवधारणा तभी सफल हो सकती है जब राजधानी गैरसैण या किसी पहाडी इलाके में विकसित की जाए। इससे दून को भू-माफियाओं, खराब यातायात व्यवस्था और संस्कृति के नष्ट होने जैसी समस्याओं से बचाने में मदद मिलेगी।
———————–दुर्लभ दस्तावेज—— का आलेख —- प्रस्तावित राजधानी गैरसैण ही क्यों
उक्रांद के थिंक टैंक स्व० विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने प्रस्तावित राजधानी गैरसैण ही क्यों का तर्क देते हुए कहा था कि प्रस्तावित राजधानी स्थल गैरसैण, पाण्डुवाखाल से दीवालीखाल तक २५ किमी० लम्बाई एवं दूधातोली से नारायणबगड के ऊपर की चोटी तक २० कि०मी० की चौडाई क्षेत्र में फैला है जिसमें लगभग ३ हजार एकड यानि ६० हजार नाली वृक्षविहीन नजूल व बेनाप भूमि स्थित है। इसके अतिरिक्त भमराडीसैंण, नागचूलाखाल, पाण्डुवाखाल, रीठिया स्टेट सरीखे चारों ओर फैले खुबसूरत मैदान, बुग्याल स्थित हैं। यह पूरा क्षेत्र छोटी-बडी नौ पहाडियों व उनके बीच स्थित घाटियों में फैला है। अतः मध्य हिमालयी राज्यों में सर्वाधिक खूबसूरत राजधानी बनेगी। गैरसैण में राजधानी बनने से इसके चारों ओर के ५००० गांवों के विकास में भी इसका सीधा लाभ मिलेगा। भूगर्भीय संरचना की दृश्टि से रियेक्टर स्केल पैमाने पर यह उत्तराखण्ड के अन्य जोनों से सबसे कम खतरे पर है। चारों ओर खूबसूरत वनाच्छादित क्षेत्र हैं। राजधानी निर्माण में पर्यावरण का ०.५ प्रतिषत से क्षति नहीं होगी।
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गैरसैण के संबंध में उक्रांद के पूर्व अध्यक्ष स्व० श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी द्वारा दिये गये तथ्य व तर्क—- चन्द्रशेखर जोशी सम्पादक हिमालयायूके को यह दुर्लभ दस्तावेज का आलेख स्व-यं श्री त्रिपाठी जी ने दिया था- उस समय मीडिया प्रभारी उक्रांद की जिम्मे्दारी चन्द्रंशेखर जोशी के पास थी-
स्व० विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने लिखा है कि यदि राजधानी के चयन में तनिक भी भूल की गयी या राजनैतिक स्वार्थो के दबाव में गलत निर्णय लिया गया तो भविश्य में इसके गंभीर परिणाम होगे। १९७९ में उत्तराखण्ड क्रांति दल की स्थापना ही राज्य प्राप्ति हेतु हुई थी। अपनी स्थापना से यह दल एकमात्र क्षेत्रीय दल के रुप में उत्तराखण्ड राज्य के लिए संघर्श करता रहा है। उक्रांद के प्रयासों से तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तराखण्ड राज्य निर्माण की संभावनाओं हेतु वर्श १९९२ में ६ सदस्यीय कैबिनेट समिति कौशिक समिति का गठन किया। उक्त सरकारी समिति ने अल्मोडा, पौडी, काषीपुर, लखनऊ में बैठकें कर उत्तराखण्ड के सांसदों, विधायकों, जिला पंचायत अध्यक्षों, ब्लाक प्रमुखों, बुद्धिजीवियों एवं आम जनता की राय, अभिमत, उत्तराखण्ड राज्य निर्माण एवं राजधानी के संदर्भ में लिया था तथा प्रस्तावित राज्य की राजधानी हेतु जनमत संग्रह करवाया था। कौशिक समिति द्वारा करवाये गये जनमत संग्रह में ६७ प्रतिशत से अधिक जनता ने गैरसैण- चन्द्रनगर जनपद चमोली को राजधानी के रुप में स्वीकार किया था। बाद में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल श्री मोतीलाल बोरा द्वारा गठित एक्सपर्ट कमेटी ने भी अपने व्यापक सर्वेक्षण के बाद गैरसैण क्षेत्र को राजधानी हेतु सर्वाधिक उपयुक्त पाया था।
स्व० श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने दस्तावेज में लिखा है कि गैरसैण (चमोली) को राजधानी के रुप में चयनित करने हेतु उत्तराखण्ड की ७५ प्रतिशत से अधिक जनता ने अपनी सहमति दी है। उत्तराखण्ड में कार्यरत किसी भी राजनैतिक दल ने गैरसैण का विरोध नहीं किया है। पेशवर काण्ड के महानायक उत्तराखण्ड की धरती के सपूत वीर चन्द्र सिंह गढवाली का निरंतर यही प्रयास रहा कि दूधातोली से लेकर गैरसैंण के मध्य भावी उत्तराखण्ड राज्य की राजधानी स्थापित की जाय। जीवन के अन्तिम क्षणों में भी उस वीर सेनानी की यही अन्तिम इच्छा थी।
गैरसैण समूचे उत्तराखण्ड का केन्द्र बिन्दु है। उत्तराखण्ड के अन्तिम छोर से लेकर धारचूला, मुनस्यारी विकास खण्डों की अन्तिम सीमा से गैरसैण की दूरी लगभग बराबर है। कुमाऊॅ कमिश्नरी नैनीताल एवं गढवाल कमिश्नरी मुख्यालय पौडी से गैरसैण की दूरी समान है। उत्तराखण्ड के १३ जनपदों के जिला मुख्यालयों से गैरसैण तक बस द्वारा आसानी से ६ से १० घण्टों में सीधे गैरसैण पहुंचा जा सकता है।
यहीं नहीं कर्णप्रयाग से रामनगर तक तथा रानीखेत तक मोटर मार्ग का चौडीकरण करने के पष्चात यह दूरी और कम समय में पूरी की जा सकती है। जनपद पिथौरागढ के धारचूला मुनस्यारी से प्रस्तावित गरूड- धौणाई-तडागताल मोटर मार्ग के पूर्ण हो जाने पर इस क्षेत्र से गैरसैण की दूरी लगभग १०० किमी० कम हो जायेगी।
हरिद्वार-कोटद्वार-रामनगर बीच के प्रस्तावित मोटर मार्ग के बन जाने से उत्तरकाशी, टिहरी व देहरादून जनपदों से भी गैरसैंण की दूरी ८० से १०० कि०मी० कम हो जायेगी। उत्तरकाशी, टिहरी से वाया श्रीनगर, रुद्रप्रयाग होते हुए गैरसैण की दूरी मात्र ८ से १० घण्टों में आसानी से तय की जाती है। पौडी कमिश्नरी मुख्यालय से गैरसैण की दूरी अभी मात्र ६ से ७ घण्टे की है। यदि पौडी से मराडीसैण-धौरसैण का निर्माण कर दिया जाए तो यह दूरी और कम हो जायेगी।
गैरसैण हरिद्वार-बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर कर्णप्रयाग से मात्र ४६ किमी० की दूरी पर पक्के मोटर मार्ग से जुडा है। पिथौरागढ जनपद से वाया थल-बागेष्वर-गरूड-ग्वालदम होते हुए सिमली से गैरसैण पक्के मोटर मार्ग से जुडा है। अल्मोडा-सोमेष्वर-द्वाराहाट होते हुए गैरसैण पक्के मोटर मार्ग से सम्बद्ध है। रूद्रपुर-हल्द्वानी- रानीखेत-द्वाराहाट-चौखुटिया होते हुए गैरसैण सीधे मोटर मार्ग से जुडा है। काशीपुर-रामनगर-भतरौंजखान भिकियासैण होते हुए वाया चौखुटिया गैरसैण तक पक्के मोटर मार्ग से सम्बद्ध है।
इस तरह गैरसैण चारों ओर से मोटर मार्गो से जुडा है।
———उस समय–स्व० विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने राजधानी निर्माण में अनुमानित व्यय भी लगाया था—
गैरसैण -चन्द्रनगर- में राजधानी निर्माण पर आने वाला वित्तीय भार
उत्तराखड की जनता की जनभावनाओं का सम्मान करते हुए यदि गैरसैण में राजधानी का निर्माण किया जाता है तो वित्तीय भार इस प्रकार होगा।
१- विधानसभा निर्माण- २५ करोड, २- सचिवालय निर्माण- २० करोड, ३-मुख्यमंत्री व मंत्रियों के आवास- ५ करोड ४-७१ विधायकों के आवास- १०.६५ करोड, ५-प्रमुख सचिव, सचिव, अपर सचिव, संयुक्त सचिव, उपसचिव कुल १५० सचिव’ २२.५० करोड, ६- सरकारी स्टाफ क्वाटर्स- ५० करोड, ७- राज्यपाल भवन- ध्यान रहे कि गैरसैण से ८ से १० किमी० की हवाई दूरी पर नैनीताल में राज्यपाल भवन स्थित है- १ करोड, ८- विभिन्न विभागों के विभागाध्यक्षों के आवास- १५ करोड, ९- विभागाध्यक्षों का स्टाफ- १० करोड, १०- पुलिस विभाग- २१ करोड, ११- राजधानी में बाजार व्यवस्था- १० करोड, १२- हैलीपैड व्यवस्था- ०.५० करोड, १३- १० हजार आबादी पर पावर हाऊस- २५ करोड, १४- पिंडर नदी, नयार, रामगंगा किसी एक से पम्पिंग पेयजल योजना- नोट- वर्तमान में गैरसैण के चारों ओर पर्याप्त पानी उपलब्ध है- ५० करोड, १५- भूमि व्यवस्था- ३० करोड- नोट- गैरसैण के चारों ओर स्थित ९ पहाडयों के मध्य ३००० तीन हजार एकड से अधिक नजूल व भारत सरकार की वृक्ष विहीन भूमि है, १००० एकड से अधिक भूमि पूर्व चाय बागानों व स्टेटों की है, भमराडी सैण से नागचूलाखाल, रीठिया स्टेट से दिवालीखाल व गैरसैण से पाण्डुवाखाल तक कृशकों की सहमति से ५०० एकड भूमि क्रय की जा सकती है।
१६- यातायात व्यवस्था- गैरसैण से कर्णप्रयाग ५० किमी०- १० करोड, गैरसैण से रानीखेत- ८० किमी०- १६ करोड, गैरसैण से ग्वालदम-गरूड- १०० किमी०- २० करोड, गैरसैण से रामनगर १२० किमी०- २४ करोड, रामनगर-कोटद्वार- ३५ करोड, राजधानी क्षेत्र में २०० किमी० नई सडकों का निर्माण- ७० करोड
१७- राजधानी क्षेत्र में राजकीय महाविद्यालयों व अन्य षिक्षा संस्थानों की स्थापना- १० करोड
१८- पर्यटक आवास गृहों, विश्राम भवनों, परिवहन व्यवस्था हेतु बस स्टेषनों, पार्को, खेल मैदानों आदि की व्यवस्था हेतु- २५ करोड, १९- राजधानी, सचिवालय व अन्य कार्योलयों की साज सज्जा व फर्नीचर आदि हेतु व्यय- २५ करोड
इस तरह उक्रांद के थिंक टैंक श्री विपिन चन्द्र त्रिपाठी ने कुल पांच सौ पचास करोड पैसठ लाख अनुमानित व्यय का खाका खींच कर एक आदर्श व सुविधा सम्पन्न राजधानी का सपना देखा था।
राज्य गठन के बाद से ही स्थायी राजधानी के मुद्दे पर राजनीतिक दल सोची-समझी रणनीति अपनाने में लगे रहे। स्थायी राजधानी के मुद्दे पर कांग्रेस व भाजपा लाभ-हानि का आंकलन करते रहे हैं जबकि उत्तराखण्ड क्रांति दल का स्पष्ट नजरिया रहा है। समाजवादी पार्टी शुरू से ही देहरादून को ही राजधानी के लिए उपयुक्त मानती रही है जबकि बसपा वेट एण्ड वॉच की स्थिति में थी।
दिवाकर भट्ट का कहना है कि गैरसैण को तो १९९३ में ही राजधानी मान लिया गया था। इसके बाद ही राज्य निर्माण के आंदोलन ने गति पकडी। राज्य के लिए जो स्वतः आंदोलन हुआ उसके मूल में गैरसैण की उल्लेखनीय भूमिका रही है। राजधानी के लिए किसी आयोग की जरुरत ही नहीं थी।
–—— —११ जनवरी २००१ से सितम्बर २००८- आठ साल में राजधानी बनाने की सिफारिष आयी–
११ जनवरी २००१को भाजपा की अंतरिम सरकार ने उत्तराखण्ड राजधानी स्थल चयन आयोग का गठन कर न्यायमूर्ति वीरेन्द्र दीक्षित को इसका एक सदस्यीय अध्यक्ष बनाया। डेढ माह बाद आयोग स्थगित कर दिया गया। वर्ष २००२ में एक सदस्यीय आयोग को पुनर्जीवित कर दिया गया। १ फरवरी ०३ से आयोग ने दोबारा कार्य शुरू किया। रिपोर्ट में राजधानी के प्रस्तावित स्थल को राज्य के विभिन्न क्षेत्रों से दूरी, संचार, यातायात सुगमता, राजधानी निर्माण की दशा में आने वाले संभावित वित्तीय भार, प्रस्तावित स्थल की भूगर्भीय संरचना, पर्यावरणीय दृश्टिकोण, उपलब्ध क्षेत्रफल तथा अवस्थापना संबंधी सुझाव का प्रमुखता से उल्लेखहोना अनिवार्य किया गया।
आयोग का कार्यकाल ११ बार बढाया गया। सितम्बर २००८ को आयोग ने मुख्यमंत्री को रिपोर्ट सौंप दी। प्रस्तावित राजधानी स्थल के लिए चार स्थानों को वरियता दिये जाने की चर्चा थी। जिसमें गैरसैण, रामनगर, देहरादून और आईडीपीएल (ऋशिकेष) को शामिल किया गया था । आयोग ने इसके लिए हैदराबाद के रिमोट सेसिंग इंस्टीट्यूट की मदद से सेटेलाइट मानचित्र भी हासिल किये और चारों स्थलों का विस्तृत ब्यौरा हासिल किया। आयोग ने विशय विषेशज्ञों से भी जानकारी जुटाई थी।
आयोग ने रिपोर्ट को गोपनीय रखा । आयोग की संस्तुति को जनता, राजनीतिक दल, संगठन सार्वजनिक किये जाने की मांग कर रहा था । कालाढुंगी, हेमपुर काशीपुर, भीमताल, श्रीनगर, ष्यामपुर, कोटद्वार, रानीखेत, लैंसडोन, गोचर, नैनीडांडा, नागचुलाखाल, सतपुली, जौलीग्रांट, जिम कार्बेट, सिमली आदि को राजधानी बनाने के लिए आयोग को सुझाव मिले थे। आठ वर्षबाद स्थल चयन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी थी।
१-कालागढः- कालागढ राजधानी बनाने के लिए दीक्षित आयोग को २३ सुझाव मिले थे। दीक्षित आयोग ने फरवरी २००४ में कालागढ का दौरा कर जायजा लिया था तथा कालागढ को उत्तराखण्ड की राजधानी बनाने के योग्य नहीं पाया। आयोग को कालागढ में ज्ञात हुआ कि रामगंगा प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग से ९०४ एकड भूमि लीज पर ली गयी थी। निर्माण पूरा होने पर ५८० एकड भूमि लौटा दी गयी। इस मामले में एक एनजीओ कोर्ट भी गयी है। कोर्ट ने एक केन्द्रीय कमेटी का गठन किया। यह कमेटी वन विभाग को जमीन लौटाने के प्रकरण की जांच कर रही थी। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि सडक के किनारे-किनारे एक बाउंड्री बाल का निर्माण किया है। इसे ही उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड की सीमा बनाया गया है। जिस क्षेत्र में राजधानी घोषित करने की बात की जा रही है वह महज ५०० मीटर चौडा और चार किमी लम्बा भूमि का हिस्सा है। यहां कई भवन पहले से बने हुए हैं। वन विभाग के रेंज अधिकारी ने आयोग को बताया कि कालागढ क्षेत्र की समस्त भूमि कार्बेट टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत आती है। हाईकोर्ट के निर्देश पर यह भूमि वन विभाग द्वारा वापस ली जा रही है। आयोग ने जमीन की अनुपलब्धता के आधार पर कालागढ को स्थायी राजधानी बनाने पर असमर्थता जतायी।
२- गैरसैंणः- राजधानी स्थल चयन आयोग को राजधानी बनाने के लिए कुल २६८ सुझाव मिले थे। इसमें १९२ व्यक्तिगत, ४९ संस्थागत/एनजीओ, १५ संगठनात्मक/पार्टीगत और १२ ग्रुपों के सुझाव थे। इनमें से गैरसैण के पक्ष में १२६, देहरादून के पक्ष में ४२, रामनगर के पक्ष में चार, आईडीपीएल के पक्ष में १० सुझाव थे।
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