उत्तराखण्ड विकास के फास्ट ट्रेक पर- विपक्ष ने कहा डबल इंजन जाम – वस्तु स्थिति क्या है?
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव का शंखनाद करने पहुंचे भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार को पूरे नंबर दिए। उन्होंने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार प्रदेश के विकास कार्यो को फास्ट ट्रेक पर आगे बढ़ा रही है। प्रदेश सरकार द्वारा शुरू की गई अटल आयुष्मान योजना में प्रदेश के 27 लाख परिवारों को जोड़ने का जिक्र भी उन्होंने अपने संबोधन में कर सरकार की तारीफ की। प्रदेश में केंद्र सरकार के सहयोग से किए जा रहे विकास कार्यो का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि विधानसभा चुनावों में डबल इंजन का नारा दिया था। त्रिवेंद्र सरकार केंद्र के सहयोग से प्रदेश के विकास को फास्ट ट्रेक पर लेकर जा रही है। प्रदेश सरकार देवभूमि को मॉडल राज्य बनाने की ओर अग्रसर है।
एक रिपोर्ट- भाजपा कह रही है विकास कार्य हो रहे है, विपक्ष कहता है डबल इंजन जाम है, क्या है धरातल पर स्थिति-हिमालयायूके की एक रिपोर्ट-
उत्तराखण्ड प्रदेश में पिछले दो साल से डबल इंजन की सरकार को व्यग्य के रूप मे लेना शुरू कर दिया है। गन्ना किसान परेशान हैं और बेरोजगार भी परेशान हैं। हरिद्वार लालढांग में कांगड़ी गांव में वर्ष 2013 में आई आपदा से टूटे तटबंधों की 6 साल बाद भी मरम्मत नहीं हो पाई है। वर्ष 2013 में आई आपदा ने पहाड़ी क्षेत्रों के साथ ही मैदानी क्षेत्रों में भी जमकर कहर बरपाया था। इससे हरिद्वार भी अछूता नहीं रहा था। हरिद्वार के लक्सर, बालावाली तथा कांगड़ी श्यामपुर क्षेत्र में भी आपदा के दौरान काफी नुकसान हुआ था। २०१३ से 2019 तक स्थिति जस की तस है। अल्मोडा जिले के सोमेश्वर क्षेत्र में पिछले कई महीनों से मनरेगा के कार्यो का भुगतान नहीं हो पाया है। जिस कारण मनरेगा के तहत कार्य कर रहे मजदूरों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन कई बार की शिकायतों के बाद भी अधिकारी कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। रानीखेत : बीते छह माह से पानी न मिलने से विकासखंड ताड़ीखेत के लोगों का सब्र जवाब देने लगा है। ग्रामीणों ने विभागीय अधिकारियों पर उपेक्षा का आरोप लगाते हुए आरपार की लड़ाई का मन बना लिया है। दो टूक चेतावनी दी कि शीघ्र पेयजल व्यवस्था में सुधार नहीं किया गया तो 11 फरवरी से लोधियाखान महाकाली मंदिर से आदोलन का बिगुल फूंकेंगे। अल्मोडा जनपद के चौखुटिया के ग्राम पंचायत खजुरानी विकास खंड का दूरस्थ व आखिरी गांव है। इसमें चनौला, पाखाखरक, खजुरानी, तल्ला व मल्ला गजार तोक गांव शामिल हैं। सड़क न होने के कारण यहां के वाशिंदों को 10 से 12 किमी का पैदल सफर कर गांव पहुंचते थे। वह भी बेहद कठिन व दुर्गम पहाड़ियों से होकर। अल्मोड़ा जनपद में क्वारब-पेटशाल मोटरमार्ग का निर्माण कार्य घोषणा के आठ सालों बाद भी शुरू नहीं होने से जनप्रतिनिधियों व ग्रामीणों में तीव्र रोष है। ग्रामीणों ने इस संबंध में डीएम को ज्ञापन सौंपा। कहा है कि ग्रामीणों के हितों की जल्द सुध नहीं ली गई तो वह लोक सभा चुनाव के बहिष्कार को बाध्य होंगे। वही वर्षो पूर्व ताडी़खेत व बेतालघाट ब्लॉक से सटे तमाम गावों की करीब तीन हजार की आबादी को पेयजल मुहैया कराने को रिची थापल पेयजल योजना का निर्माण किया गया। उम्मीद थी कि अब पेयजल संकट से निजात मिल सकेगी। ग्रामीणों के अनुसार कुछ वर्ष तक को सब ठीक ठाक रहा, मगर विभागीय लापरवाही कारण बीते छह माह से स्टेंड पोस्ट शो पीस बने हुए हैं। जिस कारण बयेडी़, चापड़, हिडा़म, सौला, बलियाली, गुमटा, स्यूं, लोधियाखान आदि तमाम गावों के बाशिंदे पानी की बूंद बूंद को तरस गए हैं। कड़ाके की ठंड में दूर दराज से पानी की व्यवस्था करना लोगों की नियति बन गई है।
चमोली जिले में बर्फबारी के चलते 130 गांवों के लोग प्रभावित हैं। वहीं 169 गांवों में विद्युत आपूर्ति बंद है। पेयजल लाइनों में ठंड के कारण पानी जम गया है। ऐसे में ग्रामीणों को बर्फ पिघलाकर पेयजल के रूप में इस्तेमाल करना पड़ रहा है। जिले में 130 गांव फिलहाल बर्फबारी से प्रभावित हैं। इन गांवों में संपर्क मार्ग भी बाधित हैं। गांवों के पैदल मार्ग बर्फ से ढक चुके हैं। गांवों में तापमान घटने से पानी जम चुका है। अधिकतर ग्रामीण बर्फ को उबालकर पानी प्रयोग में ला रहे हैं। इसके अलावा चमोली जिले के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी का सिलसिला जारी है। जिले के औली, गोरसों, हेमकुंड, बदरीनाथ के अलावा ऊंची चोटियों पर जमकर बर्फबारी हुई है, विश्व प्रसिद्ध पर्यटन स्थल औली में लगातार बर्फबारी के बाद यहां सात फीट तक बर्फ जमी हुई है। जोशीमठ शहर में भी बर्फबारी के चलते कई वाहन रपट रहे हैं। चमोली जिले में लगातार हो रही बर्फबारी के बाद ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जिले में 150 से अधिक गांव बर्फबारी से प्रभावित हुए हैं। डुमक कलगोठ गांव में भारी बर्फबारी के बाद पैदल मार्ग भी क्षतिग्रस्त हो गया है, जिसके बाद इन गांवों का संपर्क सड़क से कट गया है। जिले के सुदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्रों में बर्फबारी से ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जिले में 150 से अधिक गांव वर्तमान में बर्फबारी से प्रभावित हैं। सबसे अधिक दिक्कतें जोशीमठ विकासखंड के डुमक कलगोठ गांव में हो रही है। यहां भारी बर्फबारी के बाद पैदल मार्ग तहस-नहस हो गया है। ग्रामीण गांवों में कैद हो गए हैं। दशोली विकासखंड के पाणा, ईराणी क्षेत्र में भी बर्फबारी के बाद पैदल मार्ग चलने लायक नहीं रह गया है। जोशीमठ विकासखंड के सुनील क्षेत्र में तो ग्रामीण बर्फ के ऊपर गैंती-बेलचा चलाकर किसी तरह पैदल मार्ग को आवाजाही के लायक बना रहे हैं। खाद्यान्न की व्यवस्था की ओर क्या किया गया, कोई सुनने वाला नही है,
चमोली जिले में 79 गांव 2013 की आपदा से प्रभावित थे। आपदा प्रभावित इन गांवों के विस्थापन के लिए प्रशासन ने शासन को सूची भेजी थी। लेकिन इनमें से सिर्फ सात गांव ही अब तक विस्थापित हो पाए हैं। अभी गणांई दाड़मी, छिनका ऐसे गांव हैं जहां के ग्रामीण सबसे अधिक दिक्कत में हैं। गणांई दाड़मी में बर्फबारी व छिनका में बारिश से प्रभावितों की परेशानी बढ़ा दी है। चमोली जिले में 189 गांव ऐसे हैं। जिनमें बर्फबारी हुई है। इनमें से कई गांव आपदा प्रभावित भी है। ऐसे में बारिश, बर्फबारी से आपदा प्रभावितों को सुरक्षित ठिकाने की दरकार है। प्रशासन के दिए गए टेट बारिश व बर्फबारी के दौरान पर्याप्त नहीं हैं। विस्थापन को लेकर आपदा प्रबंधन महकमा व जिला प्रशासन शासन को बार बार पत्र लिख रहा है। शासन स्तर पर भी भूमि चयन को लेकर प्रक्रिया के निर्देश दिए जा रहे हैं। लेकिन सुरक्षित भूमि गांवों के आसपास उपलब्ध न होने के कारण विस्थापन प्रक्रिया आगे नही बढ़ पा रही है। जिले में तकरीबन ढाई हजार परिवार आपदा से प्रभावित हैं। जिनकी जनसंख्या 20 हजार से अधिक है, मदद नहीं मिली है, गोपेश्वर में सड़क का निर्माण न किए जाने पर गुस्साए मींग गदेरा क्षेत्र के ग्रामीणों ने 26 जनवरी से आमरण अनशन करने का फैसला लिया है। ग्रामीणों ने इस संबंध में जिलाधिकारी को ज्ञापन भेजा है। उनका कहना है कि मींग गदेरा, डांगतोली, निलाड़ी, ज्यूड़ा, मैदुनी, गडनी, मरोड़ा गांवों को सड़क सुविधा से जोड़ने के लिए पीएमजेएसवाइ के पास सड़क स्वीकृत हुई है। बताया कि इस सड़क के बनने से भी मैदुनी एससी बस्ती, गडनी, मरोड़ा आदि गांवों को यातायात सुविधा नहीं मिल पा रही है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार विभाग, प्रशासन को भी अवगत कराने के बाद इन गांवों को सड़क सुविधा से वंचित किया जा रहा है। ग्रामीणों ने फैसला लिया है कि अपनी मांग को लेकर वह 26 जनवरी से गडनी में आमरण अनशन शुरू कर देंगे। ज्ञापनदाताओं में हरेंद्र बिष्ट समेत कई ग्रामीण शामिल हैं।
पिथौरागढ़ जनपद में थल-मुनस्यारी और गिनीबैंड- समकोट मार्ग ग्यारहवें दिन भी बंद रहा। वश्यक वस्तुओं की आपूर्ति भंग है। मुनस्यारी में गैस सिलेंडर समाप्त हो चुके हैं। पंप में पेट्रोल और डीजल भी समाप्त हो चुका है। वहीं समकोट और नामिक गांव अभी भी अलग -थलग पड़े हैं। नामिक मोटर मार्ग से 27 किमी की पैदल दूरी पर है। पैदल मार्ग बर्फ से लकदक है। धारचूला के उच्च और उच्च मध्य हिमालय में भी स्थिति खराब है। कई गांव बर्फ बारी से अलग -थलग पड़े हैं। पिथौरागढ़ जनपद के सीमांत तहसील मुनस्यारी में भी भी 28 गांव अंधेरे में डूबे हुए हैं। इसके अलावा पिथौरागढ़ में टेंडर आमंत्रित कर लिए जाने के बाद भी चामी- मेतली सड़क का निर्माण शुरू नहीं होने से नाराज ग्रामीणों ने जिला मुख्यालय पहुंचकर प्रदर्शन किया। ग्रामीणों ने कहा कि चामी से मेतली तक 40 वर्ष पूर्व सात किलोमीटर लंबा अश्व मार्ग बनाया गया था, इस मार्ग को सड़क में तब्दील किए जाने की मांग क्षेत्र के लोग लंबे समय से करते आ रहे है। ग्रामीणों के लंबे संघर्ष के सरकार ने सड़क की स्वीकृति दी। विभाग ने टेंडर आमंत्रित करने के बाद बांड भी बनवा लिए, लेकिन अभी तक सड़क का निर्माण शुरू नहीं हुआ है। सड़क नहीं होने से ग्रामीणों को तमाम दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं। गांव में किसी के बीमार पड़ जाने पर उसे अस्पताल तक पहुंचाना बड़ी चुनौती है। सड़क के अभाव में ग्रामीण गांव छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं। प्रदर्शनकारियों ने कहा कि छह फरवरी तक काम का सड़क शुरू नहीं होने पर क्षेत्र के लोग सात फरवरी से जिला कार्यालय परिसर में धरने पर बैठ जायेंगे।
इसके अलावा उत्तराखण्ड के जनपद उत्तरकाशी में बर्फबारी के कारण बढ़ी मुश्किलें अभी कम नहीं हुई हैं। गंगोत्री हाईवे अभी भी सुक्की से आगे बंद है। यमुनोत्री हाईवे राडी टाप व हनुमान चट्टी से जानकी चट्टी के बीच बर्फबारी के कारण बंद है। इसके साथ ही जनपद के आठ संपर्क मार्ग भी बंद है। अभी भी जनपद के 35 से अधिक गांव अलग-थलग पड़े हुए हैं। मोरी, पुरोला, नौगांव व भटवाड़ी ब्लाक के करीब 50 गांवों में बिजली आपूर्ति सुचारु नहीं हो पाई है, जो मार्ग खुले हैं उन पर भी वाहन चलाना खतरे से खाली नहीं है। बर्फ से ढके गांवों में लोग घरों के अंदर कैद हो गए हैं। सड़क, पेयजल आपूर्ति बाधित होने से लोगों की परेशानी कम होने का नाम नहीं ले रही है। पेयजल आपूर्ति नहीं होने से ग्रामीण बर्फ को पिघलाकर गला तर कर रहे हैं। बर्फबारी के कारण पेयजल स्त्रोतों में बर्फ की मोटी चादर बिछ गई है।
बिना पानी के दिक्कतों का सामना, साथ ही सड़क मार्गो के बंद होने से बीमार या कोई अन्य दुर्घटना पर हम तक कैसे मदद पहुंच पाएगी।
उत्तरकाशी कलक्ट्रेट परिसर में पोखरी के आठ ग्रामीण सड़क की मांग को लेकर 363वें दिन क्रमिक अनशन पर बैठे हैं। आंदोलन को एक वर्ष पूरा हो गया। एक साल से सड़क के लिए संघर्ष कर रहे ग्रामीणों को आज भी लगता है कि शायद एक दिन शासन-प्रशासन की नींद खुलेगी और उनकी मांग पूरी हो जाएगी। पोखरी गांव के लिए सड़क का आंदोलन आज से नहीं, 15 सालों से चल रहा है। उत्तरकाशी में टिहरी सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह की ओर से गोद लिए गए बौन गांव के निकट अधूरे पड़े इंजीनिय¨रग कालेज के निरीक्षण के लिए सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह के साथ प्रभारी मंत्री डॉ. धन ¨सह रावत भी पहुंचे। लेकिन, वहां पहुंचे कुछ ग्रामीणों की नाराजगी की सामना सांसद को करना पड़ा। बौन के प्रधान बलदेव ¨सह ने कहा कि सांसद आदर्श गांव में ग्रामीणों को जिस तरह से विकास की उम्मीदें थी, उसके अनुसार विकास कार्य नहीं हुए हैं। इंजीनिय¨रग कालेज दो वर्षों से अधूरा पड़ा हुआ है। ग्रामीण मनीष राणा ने कहा कि सांसद महोदय ने गांव को गोद तो लिया लेकिन, चलना नहीं सिखाया। उत्तरकाशी के सीमावर्ती इलाकों में बर्फीली राहें जीवन पर भारी पड़ने लगे हैं। रास्ते बंद होने के चलते उत्तरकाशी के बड़कोट इलाके में एक गर्भवती को अस्पताल ले जाने के लिए 18 घंटे तक वाहन का इंतजार करना पड़ा। इसके बाद किसी तरह वाहन पहुंचा, लेकिन महिला को अस्पताल पहुंचने से पहले ही गाड़ी में प्रसव हो गया। सीमावर्ती जिलों, खासकर उत्तरकाशी और चमोली जिले के पचास से ज्यादा गांवों की आबादी घरों में कैद होकर रह गई है। इन क्षेत्रों में रास्ते बर्फ से ढके होने की वजह से आवाजाही ठप है। संचार नेटवर्क भी ध्वस्त हो रखा है। इससे तमाम दिक्कतें खड़ी हो गई हैं। उत्तरकाशी जिले में गंगा और यमुनाघाटी के तीन दर्जन से ज्यादा गांवों से खाद्यान्न संकट की खबरें में आ रही हैं। रास्ते बंद होने के चलते स्थिति इतनी विकट होती जा रही है कि बीमारों और प्रसूताओं को अस्पतालों तक पहुंचाना चुनौती बन गया है।
उत्तरकाशी जिले के करीब 20 गांवों में बिजली गुल है, जिसके कारण गंगोत्री, हर्षिल और मोरी के जखोल क्षेत्र में संचार सेवा भी ठप पड़ी हुई है। जबकि, 35 से अधिक गांवों की पेयजल लाइनें पानी जमने के चलते फट गई हैं।
मोदी सरकार इस वादे के साथ सत्ता में आई थी कि अच्छे दिन आएंगे. कई मायनों में यह नारा सच के करीब पहुंचा तो कई मायनों में यह केवल एक सपना ही रह गया. खास तौर से गरीबी और बेरोजगारी दूर करने की जो बातें की जा रही थीं वह हकीकत से काफी दूर हैं.
बदहाल अस्पताल, दम तोड़ते मरीज
वैसे तो मोदी सरकार ने आयुष्मान
भारत के जरिए गरीबी से जूझ रहे एक बहुत बड़े तबके को फ्री इलाज की सुविधा दी है.
लेकिन देश के अलग-अलग राज्यों में सरकारी अस्पतालों की बदहाली जानलेवा साबित हुई
है. डॉक्टरों की लापरवाही और अस्पतालों की बदहाली का ही नतीजा है कि अगस्त 2017
में ऑक्सीजन की कमी की वजह से गोरखपुर में 60 से ज्यादा मासूमों ने दम
तोड़ दिया तो वहीं बीते साल बारिश की वजह से बिहार के सरकारी अस्पतालों के आईसीयू
में मछलियां तैरने लगीं. साफ शब्दों में कहें तो आज भी आम आदमी को समुचित इलाज के
लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.
सरकारी अस्पतालों में होने वाले प्रसव प्रतिशत, बच्चों का टीकाकरण, आंगनबाड़ी में पहुंचे बच्चे, सरकारी स्वास्थ्य योजनाओं के लाभार्थी, सरकारी अस्पतालों में गंभीर बीमारी के इलाज और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति में राजधानी देहरादून का 7वां नम्बर आया है और गढवाल के जनपदो की हालत और भी खराब है,
उत्तराखण्ड के जनपद चमोली गैरसैंण विकासखंड स्थित स्यूणी मल्ली के ग्रामीणों को सड़क के आभाव में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. कोई बीमार हो तो उन्हें बड़ी मुश्किल आ जाती है. उन्हें मरीजों को डंडी कंडी के सहारे सड़क तक पहुंचाना पडता है. इसकी एक तस्वीर आज फिर देखने को मिली. गांव के एक व्यक्ति की अचानक तबियत खराब होने पर ग्रामीणों द्वारा उसे डंडी कंडी के सहारे पैदल छह किमी दूर सड़क तक पहुंचाया गया. फिर यहां से उसे गाड़ी से अस्पताल तक ले जाया जा सका. ये कोई पहला मामला नहीं है कि ग्रामीणों ने इस तरह की समस्या का सामना किया. ये इस गांव के लोगों के साथ अक्कसर होता आया है. शायद यही वजह भी रही कि सरकारी सिस्टम की लापरवाही के चलते ग्रामीण पिछले 23 दिनों से श्रमदान कर सड़क बनाने का काम कर रहे हैं.
जौनसार-बावर के सुदूरवर्ती ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व स्वास्थ्य की दशा आज भी खराब है,
प्रदेश की 49 फीसदी आबादी सरकारी स्वास्थ्य बीमा योजना के दायरे में है। सिर्फ दो फीसदी लोगों ने निजी कंपनी से अपना स्वास्थ्य बीमा कराया है। ढाई फीसदी लोगों के पास अपनी कंपनी का स्वास्थ्य बीमा है। 15 फीसदी से अधिक लोग ईसीएच और सीजीएचएस के दायरे में हैं। प्रदेश में हर व्यक्ति अपनी आमदनी का 9.4 फीसदी हिस्सा हर साल सेहत पर खर्च कर रहा है। प्रदेश में प्रति व्यक्ति औसतन सेहत पर खर्च 3740 रुपए हो चुका है। पहाड़ों में अच्छी स्वास्थ्य सुविधा अब भी बड़ी समस्या बनी हुई है।
प्रदेश में एक लाख की आबादी पर केवल 13 डॉक्टर, 38 पैरामेडिकल स्टाफ और 1032 बेड ही उपलब्ध है। प्रदेश में फिजिशियन के 93, सर्जन 92 और बालरोग विशेषज्ञ के 82 फीसदी पद खाली हैं। यह सरकारी आंकड़े खुद बताते हैं कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं में कोई सुधार नहीं हुआ है।
हरिद्वार से प्राप्त समाचार के अनुसार अटल आयुष्मान योजना में सरकार हर व्यक्ति को पांच लाख रुपये तक निश्शुल्क उपचार प्रदान करने के जहां कार्ड बनाने को तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। वहीं दूसरी तरह खराब नेटवर्किग विभाग की मंशा पर पानी फेर रहा है। आए दिन नेटवर्किग खराब होने या कभी साफ्टवेयर की गड़बड़ी से लोगों को लाइन में खड़े होकर इंतजार करना पड़ रहा है। अभी तक जिले में योजना के तहत 2,70, 580 कार्ड ही बने हैं। जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार जिले की आबादी 19 लाख के करीब है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी के जन्मदिन 25 दिसंबर को मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र ¨सह रावत ने अटल आयुष्मान योजना को लांच किया था। इस योजना के तहत हर नागरिक को पांच लाख रुपये तक का निश्शुल्क उपचार मिलना है। योजना के कार्ड बनाने के लिए राशन कार्ड, आधार कार्ड या कोई भी पहचान पत्र दिखाना पड़ रहा है। योजना में राशन कार्ड में परिवार के सभी सदस्यों की संख्या के हिसाब से एक साथ कार्ड बनाया जा रहा है मगर आए दिन नेटवर्किग की समस्या से कार्ड बनाने वालों और बनवाने वालों दोनों को जूझना पड़ रहा है।
बेरोजगारी बड़ी समस्या
मोदी सरकार ने 2014 से पहले युवाओं से रोजगार का वादा किया था. इसके लिए सरकार स्किल इंडिया और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों को लेकर आई. लेकिन युवाओं को इस सरकार से जितनी उम्मीदें थीं, वो पूरी नहीं हो पाईं. विपक्ष का दावा है कि चुनाव से पहले बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया था, जिसे पूरा नहीं करने पर युवाओं में रोष है. वैसे भी देश में आज बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है. आज जब पढ़-लिखे युवाओं को कहीं रोजगार नहीं मिलता है तो फिर वो सरकार के खिलाफ सड़क पर उतर रहे हैं और वादे याद दिला रहे हैं.
आरटीआई में पहला सवाल पूछा गया था, ‘मुद्रा के तहत कितना रोजगार पैदा हुआ. और किस आधार पर ये आंकड़ें सामने आए?’ दूसरा सवाल किया गया, ‘इस योजना के लाभार्थियों की जानकारी उपलब्ध करवाएं.’ वहीं तीसरा सवाल पूछा गया था, ‘2009 से अभी तक पहली बार लोन लेने वालों के बारे में जानकारी उपलब्ध करवाएं.’ जब मंत्रालय ने आरटीआई का जवाब दिया तो उसमें पहले सवाल को बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया गया. उन्होंने दूसरे सवाल से जवाब देने शुरु किए. बाकी के दो सवालों के जवाब में भी सरकार की ही बात को दोहराया गया है. उसमें कहा गया इस योजना से ‘रोजगार बढ़ा’ है. हालांकि, इन दावों को पुख्ता साबित करने के लिए किसी तरह के कोई आंकड़े नहीं दिए गए.
क्या आंकड़ों से दूर होगी गरीबी?
आंकड़ों से गरीबी नहीं पाटी जा सकती. गरीबी दूर करने के लिए
समुचित विकास की जरूरत होती है. आज भी ऐसी तस्वीरें सामने आती हैं जिसे देखकर
सोचने के लिए मजबूर होना पड़ता है. एक तरह से अमीर-गरीब की खाई बढ़ती जा रही है.
ग्रामीण इलाकों में भूख से लोग दम तोड़ रहे हैं. क्या ऐसी तस्वीरों के बीच भारत
विश्वशक्ति बन पाएगा? जहां के लोग भरपेट भोजन के लिए आज भी तरस रहे हैं.
जब ऐसी तस्वीर आती है तो फिर डिजिटल इंडिया और तमाम हाईटेक की बातें झूठी लगती
हैं. हालांकि सरकार गरीबी दूर करने की हमेशा से दंभ भरती रही है. मोदी सरकार की
मानें तो हर मिनट में 44 लोग गरीबी रेखा से बाहर आ रहे हैं और अगर इसी
रफ्तार से आंकड़े आगे बढ़ते रहे तो 2022 के बाद देश में केवल 3 फीसदी लोग गरीबी रेखा
के नीचे बच जाएंगे.
करीब दो दशक बाद भी उत्तराखंड में बेरोजगारी एक ज्वलंत समस्या बनी हुई है. पूरे राज्य में साढ़े नौ लाख युवा रोजगार की राह देख रहे हैं. महज हरिद्वार, ऊधमसिंह नगर और देहरादून जैसे मैदानी जिलों को छोड़ दिया जाए तो शेष उद्योग विहीन पहाड़ में रोजगार के नाम पर अब भी सन्नाटा पसरा हुआ है. पूरे राज्य में 2 लाख 17 हजार गजटेड और नॉन गजटेड पोस्ट हैं. इन पर एक लाख 73 हजार लोग कार्यरत हैं. ऐसे में राज्य भर में पंजीकृत 9 लाख 36 हजार बेरोजगारों को रोजगार देना एक चुनौती है.
आखिर क्यों प्रदर्शन करते हैं किसान
देश का अन्नदाता आज भी प्रदर्शन के लिए क्यों मजबूर है. सबका
पेट भरने वालों को आखिर क्यों सरकार को जगाने की जरूरत पड़ती है. सच यह भी है कि
हमेशा से किसानों की मांग को गंभीरता से नहीं लिया. मोदी सरकार में भी किसानों मे
अंसतोष है और वो लगातार जगह-जगह अपनी मांगों को लेकर संघर्षरत हैं. सरकार का दावा
है कि किसानों की स्थिति पहले से बहुत बेहतर हुई है. लेकिन जब कहीं से किसान की
खुदकुशी की खबर आती है तो फिर सरकार नीति और नीयत दोनों पर सवाल उठते हैं.
कब तक लटक कर करेंगे यात्रा
भारतीय रेल दुनिया में सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है. सरकारें
बदलती रहीं लेकिन रेलवे में बड़े बदलाव नहीं दिखे. हालांकि बदलाव के नाम पर
बड़ी-बड़ी घोषणाएं की गईं. यात्रा को सुगम बनाने के लिए हर साल बजट में नये इरादे
के साथ वादे किए जाते हैं. लेकिन हालात जस के तस हैं. खासकर आम आदमी जो स्लीपर
क्लास या फिर सामान्य डिब्बे में सफर करते हैं, उनकी समस्याएं आज भी वैसी ही
हैं जैसे 5 साल
पहले थी. सरकार हर साल बजट में बेहतर सफर का वादा दोहराती है. लेकिन ये तस्वीर
बताती है कि आज भी रेल यात्रा भगवान भरोसे है.
भारतीय किसान यूनियन के बैनर तले किसानों ने हरिद्वार में प्रदेश और केंद्र सरकार को अपनी विभिन्न मांगों को लेकर चेतावनी दी है. प्रदर्शनकारी किसानों के अनुसार प्रदेश सरकार किसानों की अवहेलना कर रही है. किसानों का कहना है कि उनकी गन्ना भुगतान, कर्ज माफी, बीमा योजना व अन्य कई मांगें पूरी नहीं की जा रही हैं. किसानों ने चेतावनी के स्वर में कहा है कि सरकार उनकी मांगों को जल्द पूरा करे. ऐसा नहीं किए जाने की सूरत में वे इसी माह देहरादून कूच कर विधानसभा का घेराव करेंगे.
ऐसे चलेगा स्वच्छ भारत अभियान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को
स्वच्छ भारत मिशन का आगाज किया था, लेकिन अभी तक ये अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है. अभी
भी लोग खुले में शौच के लिए मजबूर हैं. वहीं शहरों में कूड़े का ढेर जैसे 5 साल पहले था, वैसा ही नजारा आज भी
है. जबकि स्वच्छता के नाम पर सरकार ने करोड़ों का फंड निर्धारित कर दिया है. ऊपर
की तस्वीर दिल्ली है. ये तस्वीर बताती है कि गांधी का सपना अभी पूरा नहीं हुआ है.
हम केवल साफ-सफाई के नाम पर साल में एक दिन झाड़ू उठा लेते हैं लेकिन फिर खुद ही
कूड़ा फैलाते हैं या फिर सालभर कूड़े के ढेर को नजरअंदाज करते हैं.
कब तक भूख से मरते रहेंगे लोग
मोदी सरकार के गरीबी को दूर करने के तमाम प्रयासों के बावजूद
भूखमरी भारत के लिए आज भी बड़ी समस्या बनी हुई है. साल 2018 में ग्लोबल हंगर
इंडेक्स में भारत की रैंकिंग और गिरी है. भारत को 119 देशों की सूची में 103वां स्थान मिला है.
अहम बात ये है कि गिरावट का यह सिलसिला 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री
मोदी की अगुवाई वाली सरकार बनने के बाद से ही जारी है. साल 2014 में भारत इस रैंकिंग
में 55वें
पायदान पर था तो वहीं 2015 में 80वें और 2016 में 97वें पर आ गया. वहीं 2017 में भारत ग्लोबल हंगर
इंडेक्स में 100वें
स्थान पर था. मोदी सरकार में कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने बीते दिनों बताया था कि
सरकार साल 2030
तक भुखमरी को पूरी तरह समाप्त करना एक बड़ा लक्ष्य है. भुखमरी को दूर करने की दिशा
में दीनदयाल अंत्योदय योजना भी है. लेकिन जब ऐसी तस्वीर सामने आती है तो सारे वादे
धरे के धरे रह जाते हैं.
कब आएगा कालाधन?
2014 के बीजेपी ने कालेधन
के खिलाफ बड़ी मुहिम छेड़ दी थी और कटघरे में यूपीए सरकार थी. लेकिन NDA सरकार में कालेधन के
खिलाफ कोई बड़ी कामयाबी हाथ नहीं लगी है. विपक्ष का सीधा कहना है कि कालेधन के
खिलाफ सरकार का वादा एक जुमला था. वहीं आम आदमी को भी मोदी सरकार से कालेधन के
खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद थी. जो वक्त से साथ-साथ कम होती गई और आज फिर देश चुनाव
के मुहाने पर खड़ा है और कालेधन का मुद्दा केवल मुद्दा बनकर रह गया है. लोगों को
भी लगने लगा है कि विदेशों में जमा कालाधन अब कभी वापस नहीं आएगा.
कब हकीकत में बदलेगा घर का सपना
हर इंसान का एक सपना होता है कि उसका अपना घर हो. लेकिन कुछ
लोग सपने को साकार कर पाते हैं और कुछ सरकारी मदद की आस में वर्षों गुजार देते
हैं. बिल्डरों की मनमानी आज भी आम बात है. चाहे सरकार किसी की हो, कानून कुछ भी कहता है, बिल्डर जो चाहता है, वही होता है और आज भी
हो रहा है. तमाम मेट्रो सिटी में लाखों लोग को अपनी गाढ़ी कमाई एक आशियाने के लिए
लगा चुके हैं,
और बिल्डर से उन्हें केवल तारीख मिल रही है. मोदी सरकार ने भी
सबको घर का वादा किया था लेकिन कुछ लोग आज भी अपने घर की तलाश में बड़ी
निर्माणाधीन इमारतों के पास खड़े होकर सोचने को मजबूर हैं कि कब एक छत नसीब होगी.
शिक्षा का बंटाधार
पिछले पांच साल में हर बजट में शिक्षा पर अतिरिक्त रकम का
प्रावधान किया गया, लेकिन जमीनी स्तर पर बड़े बदलाव नहीं दिख रहा है.
ये वही देश है जहां शून्य का अविष्कार हुआ था. लेकिन आज के दौर में शिक्षा के स्तर
पर तमाम कोशिशों के बावजूद हालात ज्यों के त्यों हैं. ‘सबको मिले शिक्षा का
अधिकार’ जैसे
नारे बैनर-पोस्टर में तो दिखते हैं, लेकिन गांव की गलियों तक इनकी आवाज नहीं पहुंच पा
रही है. जब बारिश के दिनों में स्कूल की छत से पानी टपकता है और बच्चों की छुट्टी
कर दी जाती है तो विकास के सारे वादे खोखले साबित होते हैं. जब छात्र को पास कराने
के लिए परिजन स्कूल की दीवारों पर लटक जाते हैं तो सारा सच सामने आ जाता है.
2017-18 के लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की तरफ से कराये जाने वाले श्रम शक्ति सर्वे के नतीजों को सरकार दबा रही है. इस साल पिछले 45 साल में बेरोज़गारी की दर सबसे अधिक रही है. दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) ने सर्वे को मंज़ूर कर सरकार के पास भेज दिया लेकिन सरकार उस पर बैठ गई. यही आरोप लगाते हुए आयोग के प्रभारी प्रमुख मोहनन और एक सदस्य जेवी मीनाक्षी ने इस्तीफ़ा दे दिया.
बिज़नेस स्टैंडर्ड के सोमेश झा ने इस रिपोर्ट की बातें सामने ला दी है. एक रिपोर्टर का यही काम होता है. जो सरकार छिपाए उसे बाहर ला दे. अब सोचिए अगर सरकार खुद यह रिपोर्ट जारी करे कि 2017-18 में बेरोज़गारी की दर 6.1 हो गई थी जो 45 साल में सबसे अधिक है तो उसकी नाकामियों का ढोल फट जाएगा. इतनी बेरोज़गारी तो 1972-73 में थी. शहरों में तो बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत हो गई थी और काम न मिलने के कारण लोग घरों में बैठने लगे थे.
2017-18 के लिए नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस की तरफ से कराये जाने वाले श्रम शक्ति सर्वे के नतीजों को सरकार दबा रही है. इस साल पिछले 45 साल में बेरोज़गारी की दर सबसे अधिक रही है. दिसंबर 2018 के पहले हफ्ते में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (NSC) ने सर्वे को मंज़ूर कर सरकार के पास भेज दिया लेकिन सरकार उस पर बैठ गई. यही आरोप लगाते हुए आयोग के प्रभारी प्रमुख मोहनन और एक सदस्य जेवी मीनाक्षी ने इस्तीफ़ा दे दिया.
बिज़नेस स्टैंडर्ड के सोमेश झा ने इस रिपोर्ट की बातें सामने ला दी है. एक रिपोर्टर का यही काम होता है. जो सरकार छिपाए उसे बाहर ला दे. अब सोचिए अगर सरकार खुद यह रिपोर्ट जारी करे कि 2017-18 में बेरोज़गारी की दर 6.1 हो गई थी जो 45 साल में सबसे अधिक है तो उसकी नाकामियों का ढोल फट जाएगा. इतनी बेरोज़गारी तो 1972-73 में थी. शहरों में तो बेरोज़गारी की दर 7.8 प्रतिशत हो गई थी और काम न मिलने के कारण लोग घरों में बैठने लगे थे.
सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इंडियन इंकॉनमी (CMIE) के महेश व्यास तो पिछले तीन साल से बेरोज़गारी के आंकड़े सामने ला रहे हैं. उनके कारण जब बेरोज़गारी के आंकड़ों पर बात होने लगी तो सरकार ने लेबर रिपोर्ट जारी करनी बंद कर दी. उन्होंने पिछले महीने के प्राइम टाइम में बताया था कि बेरोज़गारी की दर नौ प्रतिशत से भी ज़्यादा है जो कि अति है.
आप इंटरनेट पर रोज़गार और रोज़गार के आंकड़ों से संबंधित ख़बरों को सर्च करें. आपको पता चलेगा कि लोगों में उम्मीद पैदा करते रहने के लिए ख़बरें पैदा की जाती रही हैं. बाद में उन ख़बरों का कोई अता-पता नहीं मिलता है. जैसे फ़रवरी 2018 में सरकार अपने मंत्रालयों से कहती है कि अपने सेक्टर में पैदा हुए रोज़गार की सूची बनाएं. एक साल बाद वो सूची कहां हैं.
पिछले साल टी सी ए अनंत की अध्यक्षता में एक नया पैनल बना था. उसे बताना था कि रोज़गार के विश्वसनीय आंकड़े जमा करने के लिए क्या किया जाए. इसके नाम पहले जो लेबर रिपोर्ट जारी होती थी, वह बंद कर दी गई. जुलाई 2018 इस पैनल को अपनी रिपोर्ट देनी थी मगर उसने छह महीने का विस्तार मांग लिया.
इसीलिए बेहतर आंकड़े की व्यवस्था के नाम पर उन्होंने पुरानी रिपोर्ट बंद कर दी क्योंकि उसके कारण सवाल उठने लगते थे. अब जब राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की रिपोर्ट आई है तो उसे दबाया जा रहा है. सोचिए सरकार चाहती है कि आप उसका मूल्यांकन सिर्फ झूठ, धार्मिक और भावुक बातों पर करें.
सरकार की आर्थिक नीतियां फ़ेल हो चुकी हैं इसलिए भाषण को आकर्षक बनाए रखने के लिए अमरीकी मॉडल की तरह स्टेडियम को सजाया जा रहा है. अच्छी लाइटिंग के ज़रिए प्रधानमंत्री को फिर से महान उपदेशक की तरह पेश किया जा रहा है. उन्होंने शिक्षा और रोज़गार को अपने एजेंडे और भाषणों से ग़ायब कर दिया है. उन्हें पता है कि अब काम करने का मौक़ा भी चला गया.
इसलिए उन्होंने एक तरह प्रधानमंत्री कार्यालय छोड़ सा दिया है. भारत के प्रधानमंत्री सौ सौ रैलियां कर रहा हैं लेकिन एक में भी शिक्षा और रोज़गार पर बात नहीं कर रहे हैं. मैंने इतना नौजवान विरोधी प्रधानमंत्री नहीं देखा. सरकारी ख़र्चे पर होने वाली इन सौ रैलियों के कारण प्रधानमंत्री बीस दिन के बराबर काम नहीं करेंगे. इसे अगर बारह-बारह घंटे में बांटे तो चालीस दिन के बराबर काम नहीं करेंगे. वे दिन रात कैमरे की नज़र में रहते हैं. आप ही सोचिए वे काम कब करते हैं?
न्यूज़ चैनलों के ज़रिए धार्मिक मसलों का बवंडर पैदा किया जा रहा है ताकि लोगों के सवाल बदल जाएं. वे नौकरी छोड़ कर सेना की बहादुरी और मंदिर की बात करने लग जाएं. हमारी सेना तो हमेशा से ही बहादुर रही है. सारी दुनिया लोहा मानती है. प्रधानमंत्री क्यों बार बार सेना-सेना कर रहे हैं? क्या सैनिक के बच्चे को शिक्षा और रोज़गार नहीं चाहिए? उन्हें पता है कि धार्मिक कट्टरता ही बचा सकती है. इसलिए एक तरफ अर्ध कुंभ को कुंभ बताकर माहौल बनवाया जा रहा है तो दूसरी तरह रोज़गार के सवाल ग़ायब करने के लिए अनाप-शनाप मुद्दे पैदा किए जा रहे हैं.
हे भारत के बेरोज़गार नौजवानों ईश्वर तुम्हारा भला करे! मगर वो भी नहीं करेगा क्योंकि उसका भी इस्तमाल चुनाव में होने लगा है. तुम्हारी नियति पर किसी ने कील ठीक दी है. हर बार नाम बताने की ज़रूरत नहीं है.
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